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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग- द्वितीय : 71
चोर के पॉव कच्चे होते है, इसलिए श्रेणिक चेलना को लिए रथ रवाना कर
देता है | 128
सुज्येष्ठा रत्नो का डिब्बा लेकर सुरग-द्वार तक पहुँचती है, लेकिन रथ जा मनोरथ मिट्टी मे मिल गया बहिन चली गयी
वह
चुका था एकाकी रह गयी
जोर-जोर से रोने लगी । अन्त पुर मे हलचल मच गयी। राजा चेटक को पता चला कि उसकी पुत्री रुदन मचा रही है। वह वहाँ आया और पूछा- क्या बात है, बेटी?
सुज्येष्ठा ने बतलाया कि राजगृह के सम्राट् श्रेणिक ने चेलना का हरण कर लिया ।
चेटक - हरण? कैसे किया ?
ज्येष्ठा - सुर-द्वार से ।
चेटक -अभी जाता हॅू युद्ध करने । चेटक सुरग-द्वार से जाने लगा जितने उसको वीरागक नामक वीर सैनिक मिला। उसने चेटक से पूछा- आप कहाँ जा रहे है ?
चेटक - युद्ध करने।
वीरागक- युद्ध करने? किससे युद्ध करने?
चेटक - श्रेणिक से, जो सुरग-द्वार से चेलना का हरण कर ले जा रहा है। वीरागक- इसके लिए मै स्वय जाता हॅू। आप निश्चित रहिए ।
वीरागक तुरन्त सुरग द्वार से युद्ध करने जा रहा हे । तीव्र गति से रथ चल रहा है । घोडो की टापो से वातावरण में धूलि व्याप्त हो रही है। पवन वेग से घोडे निरन्तर दौड रहे हैं । दौडते-दौडते रथ, सुलसा के बत्तीस पुत्र जो अगरक्षक थे, वहाँ पहुँचा। शत्रु अगरक्षको को देखते ही वीरागक का खून खौलने लगा। एक तीर निकाला कमान से और ऐसी वीरता से उसे छोड़ा कि एक ही तीर से बत्तीस अगरक्षको को धराशाही कर दिया । धरती लाशो से पट गयी । रथ निकलने का स्थान तक नहीं रहा। वीरागक ने उन शवो को एक तरफ किया ओर रथ निकालने की जगह बनाई। इतने मे श्रेणिक वहाँ से भाग गया, सुरग पार कर ली।
वीरागक ने रथ लौटा लिया और पूरा वृत्तान्त राजा चेटक को सुनाया । चेटक को गलती का प्रतिकार होने से तोष और पुत्री हरण पर रोष था । लेकिन