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76 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय औषधियाँ ग्रहण कर ली लेकिन वह गर्भ न नष्ट हुआ और न गिरा । तब चेलना महारानी उदास रहकर तीव्र आर्तध्यान से ग्रस्त होकर गर्भ का वहन करने लगी। 9 मास पूर्ण होने पर चेलना महारानी ने एक सुकुमार यावत् रूपवान बालक को जन्म दिया।
बालक का प्रसव होने पर चेलनादेवी ने विचार किया कि गर्भ मे रहते हुए ही इस बालक ने पिता की उदरावली का मास खाया है तो युवा होने पर यह बालक कुल विनाशक भी हो सकता है। अत इस बालक को तत्काल उकरडी (कचरे के ढेर) पर फेक देना चाहिए। ऐसा विचार कर चेलनादेवी ने दासी को बुलाया और बुलाकर उसे अशोक वाटिका मे एकान्त मे फिकवा दिया।
इधर राजा श्रेणिक को आकर किसी ने बतला दिया कि महारानी चेलना ने नवजात शिशु को उकरडी पर फिकवा दिया है, तब राजा स्वय अशोक वाटिक मे गया, बालक को उठाकर लाया और चेलना पर अत्यन्त कुपित हुआ कि इस प्रकार नवजात शिशु को तुमने उकरडी पर क्यो फिकवाया? अरे चेलना अधर्मिणी स्त्री भी गोलक और कुण्ड पुत्र को भी नहीं त्यागती, तब तूने इसको क्यों त्यागा?
चेलना ने कहा-यह आपका वैरी है, इसलिए।
तब श्रेणिक ने कहा कि तू यदि ज्येष्ठ पुत्र को इस तरह छोड देगी तो तेरा दूसरा पुत्र भी जल के परपोटे की तरह स्थिर नहीं रह पायेगा। अतएव तुम्हे कसम है कि तुम अब इस बालक के साथ बुरा व्यवहार न करती हुई इसका पालन करोगी।
सम्राट् द्वारा ऐसा कहने पर चेलना लज्जित हुई और अपराधिन की भाँति दोनो हाथ जोडकर राजा के आदेश को स्वीकृत किया। अब चेलना बालक का लालन-पालन करने लगी। उकरडे पर जब उस बालक को फेका था तो एक मुर्गे ने वालक की अगलि का आगे का भाग चोच से छील दिया जिससे उसम वार-वार पीव व खून बहने लगा, जिस कारण वह बालक बार-बार रुदन करता। उसका रुदन श्रवणकर श्रेणिक उसे गोद मे लेता, उसकी अगुली को मुख म चूसता और रक्त पीव को मुख मे चूसकर थूक देता था। ऐसा करने से वह शिशु शात हो जाता । जब-जब भी वेदना से वह क्रन्दन करता श्रेणिक राजा इसी प्रकार चूस कर उसकी वेदना शात कर देता। इस प्रकार जव वह ग्यारह दिन का हो गया तब उसका गुण निप्पन्न नाम रखा कि इस पुत्र को अशोक वाटिक मे भूमि पर (क) गोलक- पति को विद्यमानता म जार से पैदा लड़का (य) कुण्ड-पति की मृत्यु के बाद जार स पैदा लड़का