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64 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय
अत्यन्त खुश हुआ। अपनी माँ से कहा- माताजी, मेरे पिता राजगृह नगर के राजा है । अपन भी वहाँ चलते हैं।
माँ ने कहा- नानाजी से पूछो, फिर चलेगे ।
अभयकुमार अपने नाना के पास गया और बोला- नानाजी, मैं अपनी माँ को पिता के पास ले जाना चाहता हूँ ।
नाना ने पूछा-वत्स, तुम्हारे पिता कहाँ है?
अभयकुमार ने कहा- नानाजी, मैने माँ के पास पिता द्वारा लिखित जो पत्र था उससे जान लिया कि मेरे पिता राजगृह के राजा हैं।
नानाजी ने अभयकुमार की प्रतिभा जानकर उसे जाने की आज्ञा प्रदान कर दी। तब अभयकुमार अपनी मॉ एव सामग्री लेकर राजगृह की ओर रवाना हो गया । वह शनै - शनै चलते हुए राजगृह नगर पहुँचा और वहाँ जाकर उद्यान मे अपना डेरा डाल दिया। उधर राजा श्रेणिक राजगृह नगर मे श्रेष्ठ मंत्री की खोज मे लगा है। वह चितन कर रहा है कि कोई विशिष्ट प्रज्ञासम्पन्न, प्रतिभापुञ्ज पुरुष ही इस विशिष्ट पद को सम्हाल सकता है। मेरा राज्य सुविस्तृत है। अत राज्य की सुव्यवस्था के लिए 499 मंत्री व 1 महामत्री बना देता हूँ। उसने अपनी योजनानुसार मंत्री पद के लिए 499 व्यक्ति चयनित कर लिए। अब उत्कृष्ट बुद्धिनिधान एक और व्यक्ति की खोज चल रही थी जो महामंत्री पद को सम्हाल सके। राजा श्रेणिक ने एक प्रयोग किया और खाली कुऍ मे अपनी मुद्रिका डाल दी। उपस्थित व्यक्तियो से कहा - इस कुएँ मे बाहर खडा रहकर जो पुरुष इस मुद्रिका को निकाल देगा उसे महामंत्री पद से सुशोभित किया जाएगा।
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राजा की यह घोषणा सुनकर उपस्थित जनता कहने लगी- राजन् । यह कार्य असभव है।
उसी समय अभयकुमार वहाँ पर मुस्कराता हुआ आया ओर कहने लगा कि खाली कुएँ मे से अगूठी निकालना क्या मुश्किल काम है? यह श्रवण कर उपस्थित जनता आश्चर्यचकित हो अभयकुमार की ओर निहारने लगी। जनता ने समझ लिया कि यह व्यक्ति अतिशय बुद्धिमान है। तब लोगो ने कहा- आप अपने बुद्धिबल से यदि यह अगूठी निकाल दे तो महाराजा आपको प्रधानमंत्री का पद दे देगे ।
यह सुनकर अभयकुमार मुस्कराया। उसने गीला गोवर कुएँ मे डाला। वह गोवर अगूठी पर गिरा, तब एक जलता हुआ तृण का पूला डाला, जिससे वह गोवर शीघ्र ही सूख गया । तव अभयकुमार ने उस कुएँ को पानी से भर दिया।