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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 63 से निवेदन करने मे वह सलज्ज बन गई और दिन प्रति-दिन सूख-सूख कॉटा बनने लगी। आखिर एक दिन मॉ ने पूछा-क्या बात है? आजकल बडी उदास दिखाई देती हो? शरीर भी सूख रहा है। क्या कोई दोहद उत्पन्न हुआ है?
नदा ने कहा-हॉ।
मॉ ने पूछा-क्या दोहद उत्पन्न हुआ है? तब उसने अपना दोहद मॉ को बताया। मॉ ने भद्र सेठ से कहा। जब भद्र सेठ को पता लगा कि उसकी पुत्री नदा को दोहद उत्पन्न हुआ है, तब उसने पुत्री के दोहद को पूर्ण करने के लिए राजा से निवेदन किया । राजा ने बडी उदारता से नदा के दोहद को पूर्ण करने के लिए उसे हस्ती पर आरूढ करवाया और उसके हाथो मुक्त हस्त दान करवाया। दोहद पूर्ण होने पर नदा गर्भ का सुन्दर रीति से निर्वहन करने लगी। 9 मास 7/2 रात्रि पूर्ण होने पर नदा ने एक सुन्दर सुकुमार पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम अभयकुमार रखा। प्रज्ञापुण्ज अभयकुमार :
अभयकुमार मनोहर किलकारियाँ भरता हुआ, एक गोद से दूसरी गोद मे जाता हुआ वृद्धिंगत होने लगा। अभयकुमार बालवय मे ही अत्यत बुद्धिशाली था। इसीलिए मात्र 8 वर्ष की आयु मे ही वह 72 कलाओ मे निष्णात बन गया। एक बार वह समवयस्क बालको के साथ वार्तालाप कर रहा था। सयोग से एक बालक ने उसका तिरस्कार करते हुए कहा कि तू क्या बोल रहा है? अभी तक तेरे पिता के नाम का भी तुझे पता नहीं है। तब अभयकुमार के दिल को बहुत बडी ठेस लगी। वह अपने घर आया ओर अपनी माँ से पूछा-मातुश्री, मेरे पिता का क्या नाम है?
नदा ने कहा-भद्रसेठ।
अभयकुमार बोला-माताजी, भद्रसेठ तो आपके पिता हैं। मेरे पिता का नाम पूछ रहा हूँ।
माता ने कहा-किसी परदेशी ने आकर मुझसे विवाह किया था। मैंने उसका नाम नहीं पूछा। परन्तु हाँ, एक बार जब तू गर्भ मे था तो एक ऊँट वाला आया ओर वह उन्हे ले गया।
अभयकुमार ने कहा-अच्छा, ये बताओ जब ऊँट वाला उन्हे ले गया तव उन्होने तुम्हे क्या कहा?
नदा ने कहा-मुझे यह कुछ लिखकर दे गए। अभयकुनार ने उस लिखित पत्र को माँगा। तय नदा ने वह प दे दिया। अभयकुमार ने उसे पदा आर