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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 61 राजकुमार श्रेणिक की योग्यता को नहीं जानते थे। इसी गुत्थी को सुलझाने के लिए राजा ने श्रेणिक के अतिरिक्त सभी को पृथक्-पृथक् राज्य दे दिया और मन मे विचार किया कि श्रेणिक को राजगृह नगरीurvi दे दूंगा। सब कुमार अपने-अपने राज्य का राज करने लगे, लेकिन श्रेणिक को कुछ नही मिलने पर उसने अपने पौरुष का घोर अपमान समझा। इस अपमान की गरज से वह राजगृह से निकलकर घूमता-घूमता वेणातट नगरी मे आया 124 सोचा, इधर-उधर घूमने से तो कही काम की तलाश करनी चाहिए। इसी हेतु वह बाजार मे गया। वहाँ भद्र नामक सेठ की दुकान पर पहुंच गया। उस दिन वेणातट नगर मे एक विशाल महोत्सव का आयोजन था और बहुत-से ग्राहक दुकान पर अनेक वस्तुएँ लेने के लिए कतारबद्ध खडे थे।
ग्राहको की अत्यधिक भीड से परेशान सेठ को खिन्नता पैदा हो गई। श्रेणिक ने श्रेष्ठि की खिन्नता को देखा और अवसर का लाभ उठाने के लिए वह सेठ का हाथ बॅटाने लगा। सेठ ने कुछ राहत महसूस की और उस दिन श्रेणिक की पुण्यवानी से दिन-भर प्रचुर द्रव्य उपार्जन किया। जब दुकान बद करने का समय आया तो भद्र सेठ ने श्रेणिक से पूछा कि तुम किस पुण्यवान गृहस्थ के अतिथि बनकर आये हो? श्रेणिक कुमार ने कहा-मैं आपका अतिथि बनकर आया हूँ। तब भद्र सेठ ने चितन किया कि आज यामा में एक स्वप्न देखा था कि मेरी इकलौती पुत्री नदा को योग्य वर मिल गया है। लगता है, वह आज साक्षात आ गया है। ऐसा चितन कर श्रेष्ठि ने कहा-मै तुम्हारे जैसे पुण्य पुरुष का सान्निध्य प्राप्त करके धन्य हो गया हूँ| चलो घर की ओर चलते हैं। यो कहकर श्रेष्टि श्रेणिक को साथ लेकर घर की दिशा मे प्रयाण करता है। ___ श्रेष्ठि के घर पहुंचने पर श्रेणिक का खूब सत्कार हुआ। उसे आदर सहित स्नानादि करवाया, उत्तम वस्त्र पहनाए ओर पूर्ण सम्मान के साथ उसे भोजन करवाया गया। उत्तम शयन कक्ष की व्यवस्था करवाई गई और आदर सहित वह श्रेणिक श्रेष्टि के घर पर रहने लगा। समय व्यतीत होने पर एक दिन श्रेष्टि ने श्रेणिक से कहा-तुम सुलक्षण, पुण्यवान पुरुष हो। मेरी हार्दिक तमन्ना है कि में अपनी पुत्री का हाथ तुम्हे सौप दूं।
श्रेणिक ने कहा-आपने अभी तक मेरे कुल को जाना नही। अनजान कुल वाले को पुत्री कैसे दे रहे हो?
श्रेष्टि ने कहा-भद्र पुरुष । तुम्हारे व्यवहार से ही तुम्हारे कुल का परिचय मिल गया है। तुम्हारे व्यवहार से में अत्यन्त प्रभावित हूँ। मंने दृढ निश्चय कर लिया है कि म अपनी पुत्री तुम्हे ही दूंगा।