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58 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय
आने से मेरा तेल बनाना सफल हो जायेगा । ऐसा कहती हुई वह अत्यन्त हर्ष भाव से तेल का घडा लेने गई। उसने घडा उठाया और मुनि को बहराने के लिए ला रही थी । तब मुनि रूपधारी देव ने अपनी शक्ति से वह घडा उसके हाथ से छुडवा दिया | घडा छूटते ही गिर पडा और फूटकर सारा तेल जमीन पर बिखर गया। तब वह दूसरा घडा लाई । वह भी देव ने छुडवा दिया, वह भी फूटा और पूरा तेल जमीन पर बिखर गया, परन्तु सुलसा को किञ्चित मात्र भी खेद नहीं हुआ। अब वह तीसरा घडा लेने गई तब देवता ने उसे भी छुडवा दिया और तेल जमीन पर बिखर गया। तब सुलसा ने सोचा- ओह । मै कितनी अल्पपुण्या हॅू। मेरे द्वार पर मुनि पधारे और मैं तेल न बहरा सकी तेल न बहरा सकी वह अत्यन्त ग्लान" भाव का अनुभव करने लगी । सुलसा की इस भावना को जानकर देवता ने अपना रूप प्रकट कर दिया और कहा- अरे । मै तो तुम्हारी परीक्षा लेने आया था, क्योकि देवताओ मे शक्रेन्द्र ने तुम्हारी दृढ धार्मिकता की प्रशसा की थी । उस समय मुझे विश्वास नहीं हुआ था, लेकिन आज मैंने परीक्षा करके देख लिया कि तुम वास्तव मे दृढधर्मी व प्रियधर्मी श्राविका हो। मैं तुमसे अतीव प्रसन्न हूँ । तुम मुझसे कोई वरदान माँगो | तब सुलसा ने कहा- मुझे और कोई वरदान नहीं चाहिए, लेकिन मेरे पति को सतान प्राप्ति की इच्छा है। तब देव ने उसे दिव्य बत्तीस गुटिकाऍ दी और कहा- ये जितनी गुटिकाऍ है, उतने ही तुम्हारे पुत्र होगे और तुम इनको खा लेना जिससे तुम पुत्रवती बन जाओगी । तुझे जब भी कोई आवश्यकता हो, तब तुम स्मरण कर लेना, मैं उपस्थित हो जाऊँगा। तुम्हारी कामना पूर्ण करूँगा। ऐसा कहकर देव अतर्धान हो गया ।
देव के जाने के पश्चात् सुलसा ने विचार किया कि बत्तीस गुटिका यदि बार-बार खाऊँगी तो बत्तीस बालको का पालन-पोषण करना मेरे लिए दुरूह हे, अतएव ऐसा करती हॅू कि बत्तीस गुटिकाएँ" एक साथ खा लेती हूँ ताकि बत्तीस लक्षण वाला एक ही कुमार उत्पन्न हो जायेगा। अपनी मति से ऐसा विचार करके उसने बत्तीस गुटिकाऍ एक साथ ग्रहण कर लीं। भवितव्यता अति बलवान होती है। एक साथ बत्तीस गुटिकाऍ खाने से उसके उदर मे बत्तीस पुत्रो का एक साथ जन्म हुआ। इतने वालक एक साथ गर्भ मे पलने से उसे अतिपीडा का अनुभव होने लगा। पीडा असहनीय वन गई तब उसने देव का स्मरण किया। देव उपस्थित हुआ। सुलसा ने देव से कहा- मुझे बत्तीस गुटिकाऍ खाने (क) बहराना-देना (ख) ग्लान- - खेद
(ग) गुटिका- गोली