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56 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय बस, आगामी भव मे इस राजा को मार डालूंगा। ऐसा निदान कर वह तपस्वी मृत्यु को प्राप्त कर अल्पऋद्धि वाला व्यन्तर देव बनता है।
इधर राजा भी स्वस्थ होने पर खूब पश्चात्ताप करता है। कुछ समय पश्चात् राज्य का परित्याग कर वह तापस बनता है और वह भी मरकर व्यन्तर देव बनता है। राजा सुमगल देवायुष्क पूर्ण कर राजा प्रसेनजित की महारानी धारिणी की कुक्षि मे जन्म धारण करता है। समय आने पर महारानी धारिणी एक पुत्र रत्न को जन्म देती है, जिसका नाम श्रेणिक रखा जाता है। राजकुमार श्रेणिक पॉच धायो द्वारा पालन किया हुआ क्रमश तरुण अवस्था को प्राप्त होता है 12 गूंज उठी किलकारियाँ
इसी समय, उसी नगर मे नाग नामक रथिक रहता था। वह प्रसेनजित के चरणो मे सदैव श्रद्धावनत था। स्वभाव से उदार एव पर-नारी के लिए सहोदर के समान उस नाग रथिक की वृत्ति थी। उसके सुलसा नामक भार्या थी। उसको विवाह किये सुदीर्घ काल व्यतीत हो गया, लेकिन एक भी सतान पैदा नहीं हुई। शनै -शनै पति-पत्नी चिताग्रस्त रहने लगे। नाग रथिकक कई बार विचार करता कि जिस ऑगन मे बच्चो की किलकारियों सुनाई न पडे, वह सूना घर-ऑगन किस काम का? मैंने व्यर्थ ही विवाह किया। इससे तो अविवाहित रहता तो भी अच्छा था। ऐसा चिंतन कर वह मोह मे झूलने लगा। नयनो से अश्रु छलकने लगे और मोतियो की माला की तरह कपोलों पर दुलकने लगे। तभी सुलसा वहाँ पर आई और उसने देखा कि पतिदेव आर्तध्यानग कर रहे हैं। उन्हे इस प्रकार रुदन करते हए देखकर पूछा-प्रिय ! क्या बात है? मुझसे क्या अपराध हो गया? या किस बात की कमी आपको महसूस हो रही है? किस दुश्चिन्ता से आपका मन व्याकुल बन रहा है?
(तब सुलसा के मधुर वचनो को श्रवण कर) नाग ने कहा-प्रिये ! मुझे ओर किसी बात का दुख नहीं है। एकमात्र सतान के अभाव मे मुझे जीवन भारभूत लग रहा है।
सलसा (अत्यन्त उदारता से)-प्रियतम ! इतनी-सी बात से आप क्यो दुखी बन रहे है? इसके लिए तो आप दूसरा विवाह कर सकते हैं।
नाग-प्रिये ! मैंने जब तुमसे विवाह किया था. तब मैंने प्रतिज्ञा की थी कि में तुम्हारे अतिरिक्त सभी स्त्रियो को मॉ एव बहिन तुल्य मानूंगा। आज मैं केवल (क) रथिक-रथ पर सवारी करने वाला, रथ का स्वामी (ख) कपोल-गाल (ग) आर्तध्यान-चिंता, इप्ट वियोग, अनिष्ट के संयोग से होने वाला ध्यान।