________________
अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 53 इधर राजा सुमगल दूसरे दिन स्वस्थता को प्राप्त हुआ और उसके स्मृति पटल पर आया कि मैंने तपस्वी को मासक्षपण के पारणे का निमत्रण दिया था, परन्तु कैसा सयोग कल उनके पारणा था और कल ही मेरा स्वास्थ्य अस्वस्थ हो गया था, फलस्वरूप तपस्वी आये होगे जरूर आये होगे . किसी ने ध्यान नही दिया. जरूर वे भूखे ही वापिस लौट गये होगे ___ उनका तो पारणा भी नहीं हुआ होगा। राजा सुमगल ने द्वारपाल को बुलाया और पूछा-क्या कोई तपस्वी आया था?
द्वारपाल-हॉ, हुजूर। राजा-महल मे नहीं आया?
द्वारपाल-राजन् ! आपका स्वास्थ्य खराब होने से राजभवन के द्वार बद थे, उन्हे देखकर वह वापिस लौट गया। ___राजा-बहुत बुरा हुआ। उनके मासक्षपण का पारणा था। मैंने निमत्रण दिया था, पारणा करने का। वह तपस्वी भूखा ही रह गया हाय मै कितना हतभागी कहकर राजा शोकमग्न हो गया।
कुछ समय पश्चात् राजा ने चितन किया-मुझे अब उन तपस्वी के चरणो मे जाकर क्षमायाचना करनी चाहिए। ऐसा विचार कर राजा समगल तपस्वी के पास गया। अत्यन्त ग्लानि का अनुभव करते हुए दबे शब्दो से उसे प्रणाम किया और सकरुण वाणी से निवेदन किया-तपस्विन् ! मैंने अत्यन्त शुद्ध भावो से आपको निमत्रण दिया था, लेकिन लेकिन मेरे घोर अशुभ कर्मो का उदय आया कि जिस दिन आपके पारणा था उसी दिन मेरा स्वास्थ्य अस्वस्थ हो गया। द्वारपाल ने द्वार बद कर दिये और मैं आपको पारणा नहीं । मेरे कारण आपके आहार-पानी मे जबरदस्त अन्तराय लगी है। मै आपसे हार्दिक क्षमायाचना करता हूँ और निवेदन कर रहा हूँ प्रार्थना कर रहा हूँ कि इस बार पारणा मेरे राजभवन के प्रागण मे करने की कृपा करावे।
__ राजा के भावभरे आमत्रण को तपस्वी टुकरा नहीं सका। उसने राजा से कहा-आपकी भावना के मद्देनजर मुझे आपका हार्दिक निमत्रण स्वीकार्य है। तपस्वी की वाणी को श्रवण कर राजा बडा हर्षित-प्रमुदित होता है और अत्यन्त प्रसन्नता के साथ तपस्वी का यथायोग्य सम्मान और अभिवादन कर राजमहलो मे लौट जाता है।
राजा सुमगल बेताबी से तपस्वी का इतजार कर रहा है। एक-एक दिन