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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 47 के हेतुरूप उपलेप से रहित। 6 ववगय पेम राग दोस मोहे-प्रेम, राग, द्वेष एव मोहरहित। 7 निग्गथस्स पवयण देसए-निर्ग्रन्थ प्रवचन के उपदेष्टा । 8 सत्यनायको-धर्म-शास्त्र के नायक। 9 अणंतनाणी-अनंत ज्ञान सहित। 10 अणतदसी-अनत दर्शन सहित । 11 अणत चरित्ते-अनत चारित्र सहित । 12 अणत वीरिय सजुत्ते-अनत बलवीर्य सयुक्त ।
भगवान् महावीर सदैव अनेक गुणो से समन्वित अर्धमागधी भाषा मे ही उपदेश फरमाते थे, क्योकि प्राणी अपने-अपने रूप मे यह भाषा समझ लेते थे। विभग अद्ध कथा पृष्ठ 387 पर कहा है कि बालको को बचपन मे कोई भाषा न सिखाई जाये तो वे स्वय मागधी भाषा बोलने लगते हैं। ऐसा विद्वानों का अभिमत है।
बौद्ध विद्वान वागभट्ट ने भी ऐसा उल्लेख किया है कि हम उसी वाणी को नमस्कार करते हैं जो सबकी अर्धमागधी है, जो सभी भाषाओ को अपना परिणाम दिखाती है और जिसके द्वारा सभी-कुछ जाना और समझा जा सकता है। इससे बौद्ध धर्म मे भी अर्धमागधी को सब भाषाओ का मूल माना है, यह सिद्ध होता है।
जर्मन विद्वान रिचार्ड पिशल ने अर्धमागधी के अनेक रूपो का विश्लेषण किया है। जिनदास महत्तर ने अर्धमागधी का लक्षण बतलाते हुए कहा है कि मगध के आधे भाग मे बोली जाने वाली अथवा अठारह देशी भाषाओ मे नियत भाषा को अर्धमागधी कहा है 186
उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला मे गोल्ल, मध्यप्रदेश, कनार्टक, अन्तरवेदी मगध, अन्तखेदी, कीर, ढवक, सिधु, मरु, गुर्जर, लाट, मालवा, ताइय, कौशल, मरहट्ठ और आन्ध्र प्रदेशो की भाषाओ को देशी भाषाuiv कहा है। ____ वृहत्कल्प भाष्य मे मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाटक, द्रविड गौड, विदर्भ इन आठ देशो की भाषाओ को देशी भाषा कहा है।
नवागी टीकाकार अभयदेव सूरि ने व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र की टीका में अर्धमागधी का लक्षण निरुपित करते हुए कहा है कि इसमे कुछ लक्षण मागधी के तथा कुछ लक्षण प्राकृत के पाये जाते हैं, इस कारण इसे अर्ध मागधी कहते है।
इस प्रकार अर्ध मागधी विशिष्ट भाषा होने से प्रमु महावीर ने अर्थ- मागधी भाषा मे ही अपनी धर्मदेशना प्रवाहित की।