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50 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय
भगवान् महावीर अपने तीर्थंकर नाम कर्म का वेदन (भोग) करने के लिए, सम्पूर्ण जगत् के जीवो की रक्षा के लिए, दया-रूप, अहिंसा-रूप प्रवचन फरमाने लगे।19 वे अपने भव्य प्रवचन से भव्यात्माओ को जीव हिंसा से निवृत्त बनाने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। उन्हे जहाँ भी लगा कि कोई भव्य आत्मा ससार सागर तैर कर पार करने वाली है, वहाँ वे पाद-विहार करते हुए पधार जाते और अपने पावनतम उपदेश से उन्हें ससार के मोह-कीच से निकालकर सर्वविरति चारित्र (दीक्षा) या देशविरति श्रावक धर्म अगीकार करवाते।
वे अनेक भव्यात्माओ को सयम के पथ पर आरूढ करवाने हेतु, अनेक भव्यात्माओं का उद्धार करने हेतु ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए राजगृह नगर पधार गये 10 मगधेश श्रेणिक की पूर्व झलक :
उस समय राजगृह नगर अत्यन्त समृद्धिशाली नगर था। वहाँ के लोग बडे धनाढ्य थे। धनाढ्य होने के साथ-साथ वहाँ के लोग दयालु प्रकृति के भी थे। वहाँ के सरलमना, भद्रपरिणामी लोग साधुओ को अत्यन्त उदारतापूर्वक भिक्षा बहराते थे। राजा श्रेणिक वहाँ का परमप्रतापी नरेश था।
श्रेणिक राजा के पिता प्रसेनजित अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। वे तो स्वय भरत क्षेत्र के कुशाग्रपुर नगर मे राज्य करते थे। पुण्य-भोगी प्रसेनजित अपने मधुर व्यवहार से दूर-दूर तक ख्यातिप्राप्त था। सुदूर प्रान्तो तक उसका कोई शत्रु नजर ही नहीं आता था। उसका सैन्य-समूह राज्य की शोभा मे चार चाँद लगाने हेतु था। दृढधर्मीक, प्रियधर्मीष राजा प्रसेनजित भगवान् पार्श्वनाथ का बारह व्रतधारी श्रावक था। ___ उसने अनेक राजकन्याओ के साथ परिणय सूत्र मे बधकर अनेक पुत्रो का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। उसकी धारिणी रानी की कुक्षि से ही राजगृह के परम प्रतापी राजा श्रेणिक का जन्म हुआ, जो कि पूर्वभव मे भी राजा ही था। उनका पूर्वभव का वृत्तान्त इस प्रकार मिलता है।
भरत क्षेत्र मे बसन्तपुर नामक नगर था। उस बसन्तपुर नगर मे राजा जितशत्रु राज्य करता था। उसकी अमरसुन्दरी नामक पटरानी थी, जिसने समय आने पर एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम सुमंगल रखा गया। वह सुमगल अत्यन्त रूपवान एव पराक्रमशाली राजकुमार था। उसके अग-प्रत्यग से सौन्दर्य फूट-फूटकर वह रहा था। राजसी परिवार मे अत्यन्त प्यार और दुलार से वह (क) दृढ़धर्मी-धर्म में दृढ़, अगीकृत व्रतो का यथावत पालन करने वाला (ख) प्रियधर्मी-धर्म में श्रद्धा रखने वाला, धर्म प्रेमी