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20 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय करवाने का कार्य करते थे। सोमिल आर्य का निमत्रण पाकर इन्होने भी सहज स्वीकृति प्रदान की। ___ सोमिल ने तदनन्तर अपना निमत्रण मौर्य सन्निवेश मे मण्डित व मौर्य पुत्र को प्रेषित किया। मण्डित धनदेव एव विजयादेवी के आत्मज तथा मौर्यपुत्र मौर्य एव विजयादेवी के अगजात थे। दोनो वेद, वेदाग, उपाग के ज्ञाता थे। दोनो 350-350 छात्रो को अध्ययन करवाते थे। सोमिल आर्य के निमत्रण पर दोनो ने हर्षान्वित होकर स्वीकृति प्रदान की।
तदनन्तर सोमिल आर्य ने मिथिला नगरी मे गौतम गोत्रीय देव एव जयन्ति के पुत्र, 300 छात्रो के आचार्य अकम्पित को निमत्रण भेजकर उनकी स्वीकृति प्राप्त की।
इसके पश्चात् कोसला निवासी हारित गोत्रीय अचलभ्राता वसु एव नन्दा के नन्द जो 300 छात्रो को अध्ययन करवाने मे निपुण थे, उन्होने भी सोमिल के निमत्रण को स्वीकार किया।
तदनन्तर वत्सभूमि के तुगिय सन्निवेश मे कौण्डिन्य गोत्रीय दत्त एव वरुणादेवी के आत्मज, 300 शिष्यो के अध्यापक मैतार्य को एव राजगह मे कौण्डिन्य गोत्रीय 300 छात्रो के अध्यापक बल एव अतिभद्रा के पुत्र प्रभास" को सोमिल ने यज्ञ के लिए निमत्रित कर स्वीकृति प्राप्त की।
अन्य अनेक उद्भट विद्वानो को निमत्रण भेजकर सोमिलाचार्य ने स्वीकृति प्राप्त कर ली। उस यज्ञ की कई दिनो से बडी जोर-शोर से तैयारी चल रही थी। सब निमत्रित विद्वान यथासमय अपने शिष्य समुदाय सहित उस विराट यज्ञ मेले मे भाग लेने हेतु आ गये थे। सभी उत्सुकता से वैशाख शुक्ला एकादशी का बेसब्री से इतजार कर रहे थे। गणधर समागम :
अनेक अरमानो को मन मे सजोये इन्द्रभूति विविध प्रकार से यज्ञ को सफल बनाने के लिए चितनशील थे। उनके इस चितन को कार्यरूप मे परिणत करने हेतु यह वैशाख शुक्ला एकादशी का दिन अपनी दिव्य आभा को लेकर मध्यम पावा मे अवतरित हुआ। इन्द्रभूतिजी यज्ञ मण्डप मे अनेक विद्वानो के साथ आये और वेद मत्रो का उच्चारण करते हुए आहुतियाँ देने लगे। विशाल जन-समूह अत्यन्त निमग्नता से इस यज्ञ के कार्य को उत्सुकता से देख रहा
(क) अंगजात-पुत्र (ख) नन्द-पुत्र