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मार्गशिर, वीरनि० सं० २४५६]
अनेकान्तके इतिहास पर एक दृष्टि
___ अनेकान्तके इतिहास पर एक दृष्टि
ल-श्रीयुत बा० कामताप्रसादजी, सं० 'वीर']
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सत्य यही
लोकमें कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जिसमें एकसे करना और उस दृष्टि से उसे ठीक मानना सत्यका अधिक गुण न हों । दूसरे शब्दोंमें यों कहिये कि अनेक पा लेना है। इसीको विद्वान लोग 'अनेकान्त' के नामसे गुणोंके समुदायका नाम ही वस्तु है । और यह प्रकट पुकारते हैं । अनेकान्त का महत्व एकान्तके सत्य है । इतना ही "
अंधपक्षको नाश करके प्रसिद्ध देशभक महात्मा भगवानदीनजीका
सत्यका निरूपण करने भी मनुष्य वस्तु के :
शुभ सन्देश
में है। धार्मिक सिद्धान्त संपूर्ण गुणों को एक : "जैनधर्म की बनियाद अनेकान्त पर है यह हम :
हो और चाहे लौकिक माथ नहीं कह सकता। : सबका दावा है । किन्तु हमारा व्यवहार हमारे इस :
मारे इस: अनेकान्तकी तुला में इसी कारण भापावि- : दावेको झुठलाता है । जैनसमाजकी असहिष्णुता अत्यंत : तोलने मे उमका ठीक ज्ञानमें 'सापेक्षवाद'को: प्रगटहै, सहिष्णुता उसमें नामको नहीं। 'अनेकान्त' : ठीक अन्दाजा होजाता स्थान मिनना स्वाभा: पत्रके निकलनकी सार्थकता इमीमें है कि वह न केवल
है और आपसमें गलत : जैनोंके भिन्न भिन्न दलों को मिला दे, किन्तु जगतके विक है । वास्तवमें, एक : सब धर्माका एक नंट फार्म पर ला दे; जिस जिस सचाई
फहमी तथा अप्रेम फैगुणको ही व्यक्त करके
: को लेकर जो जो धर्भ खड़ा हुआ है उसके प्रकटीकरण : लनेका कोई अवसरही वस्तुकी पूर्ण परिभाषा : में पग भाग ले; मनय अनुसार प्रतिा अनकों: शेष नहीं रहता । कोई हुई मान लेना और रोतियोंकी जड़में कौनमा उत्तम सिद्धान्त निहित है, : कोई महाशय एकान्त उसीका आग्रह करता जनताके सामने उसे खोल कर रखदे; बड़े बड़े विद्वान्
को ग्रहण करके इस साधारण बातके विचार कानमें कहाँ भूलकर जाते हैं, सत्यसे दूर जा पड़ना जिससे एक ही धर्म में शाखामें शाखा पैदा होती चली :
लोकके बिगाड़-बनाव है। यही एकान्नहै और : जाती हैं, इस बातको बिनकुल साफ कर दे, विचार-:
की सारी जिम्मेवरी इसका मोह धार्मिक : स्वाधीनता प्रारम्भ कर दे और सहिष्णुताकी आदत : एक शुद्ध-युद्ध निरंजन संसारमें अपना महान : डाल दे । तो,समझना चाहिये कि अनेकान्तने वह काम: परमात्मा पा लाद कर कटुफल दिखला चुका : कर दिया जिसके लिये उसका जन्म हुआ था।" :
छुट्टी पा लेते हैं और
-भगवानदीन है । इसके विपरीत,
...... उसको बुरी निगाहसे वस्तुके अनेक गुणोंको ध्यानमें रखते हुए, एक समयमें देखते हैं जो ऐसे ईश्वरके अस्तित्व से इनकार करता एक श्रीक्षाको लेकर किसी एक गुणका प्रतिपादन है। किन्तु एक अनेकान्तवादी इन दोनोंके विपरीत
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