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प्रार्थना के इन स्वरों में
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प्रार्थना के इन स्वरों में
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धर्मप्रेमी बन्धुओं! माताओं एवं बहनों !!
श्री रायप्रसेणी सूत्र में सूर्याभदेवता का वर्णन चल रहा है। सूर्याभि देवता स्वर्ग से ही भगवान महावीर प्रभु की स्तुति करते हैं।
कैसे हैं भगवान !
स्वर्ग के देवता भी जिनकी स्तुति करते हैं, वे भगवान कैसे हैं? द्वीप के समान हम और आप भी उन्हें दीवोत्ताणं कहते हैं। नमोत्थूणं के पाठ में यह शब्द आया है। द्वीप किसे कहते हैं? चाों ओर पानी, और उसके बीच में जो सूखा स्थान होता है उसे द्वीप कहा जाता है। जम्बूद्वीप एक लाख योजन का है। इसके चारों ओर दो लाख योजन का लम्बा-चौड़ा समुद्र है। जम्बूद्वीप उसके बीच में एक आश्रयभूत स्थान है, सहारा है।
पानी के अन्दर द्वीप का होना, पानी में डूबते हुए प्राणी के लिए विश्राम स्थल और आश्रय स्थान बनता है। इसी प्रकार इस संसार रूपी सागर में 'धर्म' द्वीप के समान है तथा इसमें डूबते हुए प्राणियों के लिए सहारा और आश्रय स्थान है । द्वीप जल में डूबते हुए प्राणी को जिस प्रकार सहारा देता है उसी प्रकार 'धर्म' भव-सागर में गोते लगाती हुई आत्मा को शरण ईता है।
अद्भुतशक्ति का स्त्रोत: प्रार्थना
सूर्याभ देवता धर्म के मूर्त रूप भगवान महावीर की स्तुति अथवा प्रार्थना कर रहे हैं! जिज्ञासा होती है कि प्रार्थना क्यों की जाती है? उससे क्या लाभ होता है? गांधी जी का कथन है
प्रार्थना आत्मा की व्याकुलता का द्योतक है, अपने अधिक अच्छे, अधिक शुध्द बनने की आतुरता का चिह्न है जा हम अपनी असमर्थता को समझ लेते हैं और सब कुछ छोड़कर ईश्वर पर भरोसा करते हैं उस भावना का फल प्रार्थना है। प्रार्थना आत्मा की पुकार और दैनिक दुर्बलताओं की स्वीकृति है। यह हृदय
के भीतर चलने वाले अनुसंधानों का नाम था आत्म-शुध्दि का आह्वान है। प्रार्थना तभी प्रार्थना है, जब वह अपने आप हम से निकलती है। मैं कोई काम बिना प्रार्थना के नहीं करता। मेरी आत्मा के लिए प्रार्थना उतनी ही अनिवार्य है जितना