Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 18
________________ १७ नमो नमो निम्मलदंसणस्स आचार अंगसूत्र-१-हिन्दीअनुवाद 9 श्रुतस्कन्ध-१ (अध्ययन-१-शस्त्रपरिज्ञा) उद्देशक-१ [१] आयुष्मन् ! मैंने सुना है । उन भगवान् (महावीर स्वामी) ने यह कहा है - [२] संसार में कुछ प्राणियों को यह संज्ञा (ज्ञान) नहीं होती । जैसे - “में पूर्व दिशा से आया हूँ, दक्षिण दिशा से आया हूँ, पश्चिम दिशा से आया हूँ, उत्तर दिशा से आया हूँ, ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ, अधोदिशा से आया हूँ, अथवा विदिशा से आया हूँ । [३] इसी प्रकार कुछ प्राणियों को यह ज्ञान नहीं होता कि मेरी आत्मा औपपातिक है अथवा नहीं ? मैं पूर्व जन्म में कौन था ? मैं यहाँ से च्युत होकर अगले जन्म में क्या होऊँगा ?" [४] कोई प्राणी अपनी स्वमति, - स्वबुद्धि से अथवा प्रत्यक्षज्ञानियों के वचन से, अथवा उपदेश सुनकर यह जान लेता है, कि मैं पूर्वदिशा, या दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व अथवा अन्य किसी दिशा या विदिशा से आया हूँ । कुछ प्राणियों को यह भी ज्ञात होता है - मेरी आत्मा भवान्तर में अनुसंचरण करने वाली है, जो इन दिशाओं, अनुदिशाओं में कर्मानुसार परिभ्रमण करती है । जो इन सब दिशाओं और विदिशाओं में गमनागमन करती है, वही मैं (आत्मा) हूँ । [५] (जो उस गमनागमन करने वाली परिणामी नित्य आत्मा को जान लेता है) वही आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है । [६] (वह आत्मवादी मनुष्य यह जानता/मानता है कि)- मैंने क्रिया की थी । मैं क्रिया करवाता हूँ । मैं क्रिया करनेवाले का भी अनुमोदन करूँगा । [७] लोक-संसार मे ये सब क्रियाएँ हैं, अतः ये सब जानने तथा त्यागने योग्य हैं । [८] यह पुरुष, जो अपरिज्ञातकर्मा है वह इन दिशाओं व अनुदिशाओं में अनुसंचरण करता है । अपने कृत-कर्मों के साथ सब दिशाओं/अनुदिशाओं में जाता है । अनेक प्रकार की जीव-योनियों को प्राप्त होता है | [९] वहां विविध प्रकार के स्पर्शों का अनुभव करता है । [१०] इस सम्बन्ध में भगवान् ने परिज्ञा विवेक का उपदेश किया है । [११] अपने इस जीवन के लिए, प्रशंसा व यश के लिए, सम्मान की प्राप्ति के लिए, पूजा आदि पाने के लिए, जन्म-सन्तान आदि के जन्म पर, अथवा स्वयं के जन्म निमित्त से, मरण-सम्बन्धी कारणों व प्रसंगों पर, मुक्ति के प्रेरणा या लालसा से, दुःख के प्रतीकार हेतु -.

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