Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 11
________________ 144 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः अप्पणो य वियकाहिं, अयमंजूहिं दूम्मई // 21 // एवं तकाइ साहिंता, धम्माधम्मे अकोविया / दुक्खं ते नाइतुटंति, सउणी पंजरं जहा // 22 // सयं सयं पसंसंता, गरहंता परं वयं / जे उ तत्थ विउस्संति, संसारं ते विउ. स्सिया // 23 // ग्रहावरं पुरक्खायं, किरियावाइदरिसणं / कम्मचिंतापणट्ठाणं दुक्खखंधस्स वडणं (संसारस्म पवडणं)॥२४॥ जाणं कारणऽणाउट्टी, अनुहो जं च हिंसति / पुट्ठो संवेदइ परं, अवियत्तं खु सावज // 25 // संतिमे तउ श्रायाणा, जेहिं कीरइ पावगं / अभिकरमा य पेसा य, मणसा अणुजाणिया // 26 // एते उ तउ आयाणा, जेहिं कीरइ पावगं / एवं भावविसोहीए, निव्वाणमभिगच्छइ // 27 // पुत्तं पिया समारम्भ, श्राहारेज असंजए / भुजमाणो य मेहावी, कम्मणा नोवलिप्पइ // 28 // मणसा जे पउस्संति, चित्तं तेसिं ण विजइ। अणवजमतह तेसिं, ण ते संवुडचारिणो // 21 // इच्चेयाहि य दिट्ठीहिं, सातागारवणिस्सिया / सरणंति मन्नमाणा, सेवंती पावगं जणा // 30 // जहा अस्साविणिं णावं, जाइअंधो दुरूहिया / इच्छई (इच्छिज्जा) पारमागंतु, अंतरा य विसीयई // 31 // एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्ठी श्रणारिया / संसारपारकंखी ते, संसारं अणुपरियदति // 32 // तिमि / / गायाग्रं // 56 / इति प्रथमाध्ययने द्वितीयोद्देशकः / / 1-2|| // अथ प्रथमाध्ययने तृतीयोद्देशकः // जं किंचि उ पूइकडं, सड्डीमागंतुभीहियं / सहस्संतरियं भुजे, दुपक्खं चेव सेवइ / / 1 // तमेव अवियांणंता, विसमंसि अकोविया / मच्छा वेसालिया चेव, उदगस्सऽभियागमे // 2 // उदगस्स पभावेणं. सुक सिग्धं तमिति उ(सुक्कमि घातमिति उ) ढंकेहि य कंकेहि य, श्रामिसत्थेहिं ते दुही // 3 // एवं तु समणा एगे, वट्टमाणसुहेसिणो / मच्छा वेसालिया चेव, घातमेस्सति [तसो // 4 // इणमन्नं तु अन्नाणं, इहमेगेसि श्राहियं / देवउत्ते अयं

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