Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 42
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 11 ] [ 175 एइ मोहं, अन्ने जणा तसि हरंति वित्तं // 11 // सीहं जहा खुड्डुमिगा चरंता, दूरे चरंती परिसंकमाणा / एवं तु मेहावि समिक्ख धम्म, दूरेण पावं परिवजएजा // 20 // संबुज्झमाणे उ गरे मतीमं, पावाउ अप्पाण निवट्टएजा ।हिंमप्पसूयाई दुहाई मत्ता, वेराणुबंधीणि महब्भयाणि (निव्वा. णभूए व परिव्वएजा) // 21 // मुसं न ब्रूया मुणि अत्तगामी, णिवाणमेयं कसिगां समाह / सयं न कुज्जा न य कारवेजा, करंतमन्नपि य णाणुजाणे // 22 // सुद्धे सिया जाए न दूसएजा, अमुच्छिए ण य यज्मोव. वन्ने / घितिमं विमुक्के ण य पूयणट्ठी, न सिलोयगामी य परिवएज्जा // 23 // निक्खम्म गेहाउ निरावकंखी, कायं विउसेज नियाणछिन्ने / णो जीवियं णो मरणाभिकंखी, चरेज भिक्खू वलया विमुक्के // 26 // तिबेमि / / (गाथा 580) // इति दशममध्ययनम् // 10 // // अथ एकादशं श्रीमार्गाध्ययनम् // कयरे मग्गे अक्खाए, माहणेणं मईमता / जं मग्गं उज्जु पावित्ता, योहं तरति दुत्तरं // 1 // तं मग्गं णुत्तरं सुद्धं, सव्वदुक्खविमोक्खणं / जाणासि णं जहा भिक्खू !, तं णो ब्रूहि महामुणी // 2 // जइ णो केइ पुच्छिजा, देवा अदुव माणुसा / तेसिं तु कयरं मग्गं, बाइक्खेज ? कहाहि णो // 3 // जइ वो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा। तेसिमं पडिसाहिजा, मग्गतारं सुगोह मे (तेसिं तु इमं मग्गं, बाइक्खेज सुणेह में) // 4 // अणुपुब्वेण महाघोरं, कासवेण पवेइयं / जमादाय इयो पुवं, समुदं ववहारिणो // 5 // अतरिंसु तरंतेगे, तरिस्संति यणागया / तं सोचा पडिवक्खामि, जंतवो तं सुणेह मे // 6 // पुढवीजीवा पुढो सत्ता, अाउजीवा तहाऽगणी / बाउजीया पुढो मत्ना, तगारुक्खा सबीपगा // 7 // ग्रहावरा तसा पाणा, एवं

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