Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ 213 श्रीमत्सूत्रकृताङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] अणारिए अकेवले अप्पडिपुन्ने अर्णयाउए असंसुद्धे यमलगत्तणे असिद्धिमग्गे अमुत्तिमग्गे अनिव्वाणमग्गे अणिजाणमग्गे असबदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहु एस खलु पढमस्स ठाणस्स अधम्मपवखस्स विभंगे एवमाहिए 16 ॥सूत्रं 32 // ग्रहावरे दोन्चस्स ट्ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगं एवमाहिजइ, इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा-यापरिया वेगे अणारिया वेगे उचागोया वेगे णीयागोया वेगे कायमंता वेगे रहस्समंता वेगे सुवन्ना वेगे दुवन्ना वेगे सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे, तेसिं च णं खेत्तपत्थूणि परिग्गहियाइं भवंति, एसो पालावगो जहा पोंडरीए तहा तब्बो, तेणेव अभिलावेण जाव सब्बोवसंता सव्वत्ताए परिनिखुडेत्तिमि // एस ठाणे पारिए केवले जाव सम्बदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्मे साहु, दोबस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए ॥सूत्र 33 // - ग्रहावरे तच्चस्स ढाणस्स मिस्सगस्स विभंगे एवमाहिजइ, जे इमे भवंति थारगिगाया श्रावसहिया गामणियंतिया कराहुईरहस्मिता जाव ते तयो विप्पमुच्चमाणा भुजो एलमूयत्ता एतमूत्ताए पञ्चायंति, एस ठाणे प्रणारिए अकेवले जाव असव्वदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू, एस खलु तच्चस्स ठाणस्स मिस्सगम्स विभंगे एवमाहिए ॥सूत्रं 34 // ग्रहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपवखस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-इह खलु पाईगां वा 4 संतेगतिया मणुस्सा भवंति-गिहत्था महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया अधम्माणुराणा अधम्मिट्ठा अधम्मक्खाई धम्मपायजीविणो अधम्मपविलोई अधम्मपलजणा अधम्मसीलसमुदायारा अधम्मेणं चेव वितिं कप्पेमाणा विहरति 1 // हण छिंद भिंद विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कुचणवंचणमायाणियडिकूडकवडसाइसंपयोगबहुला दुस्मीला दुब्बया दुप्पडियाणंदा असाहू, सव्वायो पाणाइवायायो
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