Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नि नागना विभाग : 1/2 संपादकः संशोधकश्च प.पन्यास प्रीमिनेन्द्रविजयजी गणिवर Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NEEKO श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला-ग्रन्थाङ्कः-६४ श्री महावीर जिमेन्द्राय नमः / ___ तपोमूर्ति पूज्याचार्यदेवश्रीविजयकर्पूरसूरिगुरुभ्यो नमः। * हालारदेशोद्धारक-पूज्याचार्यदेवश्रीविजयामृतसूरिगुरुभ्यो नमः / पञ्चम-गणधर श्रीमत्सुधर्मस्वामि-निर्मितं श्रीमत्सूत्रकृतांग-सूत्रम् प्रथममङ्गलम् / (मूलम्) - संपावकः संशोधकश्च तपोमूर्ति-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयकपूरसूरीश्वर-पट्टालङ्कार-हालारदेशोद्धारक- कविरत्न-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयामृतसूरीश्वर-विनेयः पंन्यास-श्री-जिनेन्द्रविजय-गणी प्रकाशिका श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशिका-श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखाबावल-चांतिपुरी (सौराष्ट्र) गुजरात पौर सं० 25.1] विकास सं० 2031 [सन् 1954 आ आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित साधु महाराजो छ, www मूल्य रु. 10-0. ज्ञानोदय प्रिन्टिंग प्रेस पिण्पा (राजस्थान) (n-for) . Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय निवेदन with अमारी ग्रन्धमाला तरफथी आ श्री सूत्रकृतांगसूत्र मूल प्रगट करता आनंद अनुभवीए छीए / हालमा 45 आगम मूल अने केटलाक आगम टीका सहित प्रगट करवाने काम शरू करतां आ सूत्र नागरी लिपिमा मोटा टाइपमा प्रगट करेल छ / आ ग्रन्थन संशोधन संपादन हालारदेशोद्धारक कविरत्न स्व. पू० आचार्यदेव श्रीमद्विजयअमतसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यरत्न पू० पंन्यास श्री जिनेन्द्रविजयजी गणिवरे घणी खंत भी करेल के। कागळ छपाइ आदिना भाव वधवाने कारणे खर्च धायर्या करतां वधु आवे छ / मोटा टाइपमा मुद्रित करातां पेज वधारे थाय छ / परंतु टकवानी अने अभ्यासनी दृष्टिए अनु. कुलता रहेशे / आगम सूत्रोना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिओ के / ए शास्त्रविधि मुजब पूज्य श्रमणसंघमा आगम वाचनादिमां अनुकूलता थाय ते रूप आ श्रुतभक्ति करता अमे आनंद अनुभविए छीए / श्री आचारांग सूत्रादि मूल सूत्रो प्रगट यइ रहया छ / श्रीआचरांग सूत्र तैयार थई गयु के / श्रीस्थानाङ्गसूत्रनु मुद्रण काम चालु छ / एज रीते सटीक आगमोमां श्रीमदन्तकृद्दशा, श्रीमदन्तरोपपातिकदशा अने श्रीमदपासकदशा सूत्र तैयार थइ गयां के। वीर संबट 2501 वि० सं० 2031 पोष सुद-२ मंगलवार ar. 14-1-75 नेमचंद बाघजी गुढका नवीनचंद्र बाबुलाल शाह Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ # अनुक्रमणिका प्रथमः श्रुतस्कन्धः 171 173 175 मन्यवनक्रमः नाम 1 समय (उद्देशा-५) . 2 वैतालीय (उद्देशा-३) 3 उपसर्गपरिज्ञा (उद्देशा-४) 4 स्त्रीपरिज्ञा (उद्देशा-२) 5 नरकविभक्ति (उद्देशा-२) 6 वीरस्तुति 7 कुशीलपरिभाषा . 8 वीर्य ष्ठ / अध्ययन क्रमः नाम 141 9 धर्म 146 10 समाधि 152 11 मार्ग 12 समवसरण 161 13 याथातथ्य 14 ग्रन्थ 167 15 आदानीय 166 / 16 गाथा . 152 178 179 165 .. द्वितीयः श्रुतस्कन्धः ". अभ्ययन क्रमः नाम 1 पौण्डरीक 2 क्रियास्थानः 3 आहारपरिज्ञा 4 प्रत्याख्यान अध्ययन क्रमः नाम 5 आचारश्रुत 6 आर्द्रकीय 7 नालन्दीय .. 238 mr Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // शुद्धिपत्रकम् / पृष्ठं पंक्तिः अशुद्धं पृष्ठं पंक्तिः अशुद्धं शुद्धं 141 22 सिब सिया 143 8 तुमं दे तु मंदे . / 205 13 चिंतासोगरसंपविठे चिंतासोगसा१४८ 18 सोउण (सोउण गरसंपविट्ठे 154 18 वल वलया 206 1 मणी माणी 156 13 भन्नागाय (अन्नपागाय) 287 1 नियट्टर ण नियट्टर 171 5 सवाहटु समाहट्टु 212 20 अन्नेवि देवजीवणिज्जे खलु 176 1 (इत्ताव एव (इत्ताव एव) अयं पुरिसे, अन्नेवि 177 12 भइमाणं च भइमाणं च मायं च | 294 7 सव्वाओ- बेवार छे ते एक 177 17 बुद्धे बुद्धे जावजीवाए, वार जाणवू 180 16 मेवइ सेवा 217 1 सुद्ध हियवा- , 186 17 कुसलेपं डिते कुसले पंडित . खग्गविसाणं व 188 4 णिन्सने णिसन्ने 234 21 णवकम्मे पावकम्मे 110 2 मणुस्सिते मणुस्सिंदे 242 11 पुरिसे से पुरिसे 161 2 कडएति कडुएति मस्त सर्वममताभजन जयति शासनम Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) स्तवनामत सं // श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला // लाखापावल-शान्तिपुरी (हालार) सौराष्ट्र प्रयांक ग्रंथनु नाम मूल्य रू० पैसा | प्रेयांक ग्रंथनु नाम मूल्य रू. पैसा (1) दीक्षानुसुदर स्वरूप . 1-50 (36) अक्षय तृतीया [सचित्र .-35 (2) विधियुक्त पौषधविधि 1-35 / (37) कातिक पूर्णिमा महिमा . 0-25 (3) स्वाध्याय सुधारस (नूतन सज्झायो) 0-50 | (38) छन्दोमृतरसः 0-30 1-50 (36) समेतशिखर तीर्थवंदना 0-14 (5) जिनेन्द्र भक्ति भावना (त्रीजी आवृत्ति) 1-00 (40) नारको चित्रावलो [त्रीजी आवृति] 8-80 (6) चतुर्विशति जिन चैत्यवन्दनादि -50 (41) शत्रुञ्जय-तीर्थवंदना (बीजी आवृति) 0-20 (7) नवस्मरणादि स्तोत्र संग्रह 1-00 (42) भक्तामर सौरभ (महिमा कथाभो) 1-25 (8) जयविजय कथानकम् (43) नारकी चित्रावली (हीन्दी) 6-00 (9) श्री लेखामत संग्रह भा. 1 (4) मनोहर स्वाध्याय सौरभ (उत्तरा(१०) सद्गुरुवंदन चैत्यवंदन ध्ययन मूल) (11) चौर नियम धारवानी बुक 0-20 (45) महामंत्र प्रभाव 0-80 (12) लेखामृत संग्रह भा. 2 (46) श्री नमस्कार पद स्तवना 0-20 (13) जिनेन्द्र भक्तिसुधा (आवृति त्रीजी) 1-75 (47) वार्ता विहार (14) सोम भीम कथा तथा तपोमूर्ति पू. (48) सत्कर्म चित्रावली (बीजी नावृति) प्रेसमां आ. श्री विजय कपूरसूरिजी म. / (46) कल्मसूत्र पूजा व्याख्यान (सचित्र) 3--50 नजीवन चरित्र 0-50 (10) प्रबापजी म. नो खलासो .--20 (15) संक्षिप्त श्राद्धधर्म प्रथम भाग 2-50 | (51) कुलभूषण (सचित्र कथा) 2-00 (16) स्नात्रपूजा स्तवनादि 8-25 (50) लक्ष्मी सरस्वती संवाद. (18) श्री लेखामृत स ग्रह भा. 3 0-50 | (53) श्री आचारांगं मूलं (मोटा टाइप) 10-00 (19) होलिका व्याख्यान (54) सुनंदा रुपसेन 0-50 (20) मगल कलश कथा (55) पारसमणि-(वार्तासंग्रह) 125 (21) प्रभु महावीर देव | (56) जन्म पत्रिका रजीस्टर (300 कुडली (22) नित्यनोंध माटे) 4-00 (23) बे प्रतिक्रमण सूत्रो 0-55 (57) धनंजय नाममाला (24) श्री विविध पूजामृत संग्रह (58) जिनेन्द्र संगीतमाला 3-50 (25) महात्मा मत्योदर 0-30 (59) अनेकार्थ संग्रह सटीक भाग 1 लो 10-00 (26) श्री लेखामृत संग्रह भा. 4 (60) जयशंखेश्वरनाथ (27) , भा. 5 (61) चैत्री पूर्णिमानो महामहिमा - 0-60 (28) , ,, भा. 6 (62) श्रीमदन्तकृशांगं श्रीमदनुत्तरोपपा(1) श्री अमृन गहुंली संग्रह (30) श्री जिनेन्द्र पूजा संग्रह तिदशाङ्ग सटीकञ्च (31) श्री जिनेन्द्र पूजा पीयूष 0-50 / (63) नवस्मरणानि गौतमस्वामिरासश्च 2-00 (32) तिथिचर्चामां स्पष्टीकरण 0-50 (64) श्रीमत्सूत्रकृताङ्गमूलम् (33) सामायिक चैत्यवंदनादि सूत्रो०-२० (65) श्रीमदुपासकदशाङ्ग सटीकम् 5-.00 (34 महासती सुलसा 0-50 ' (66) श्रीमत्स्थानाङ्ग सूत्रं मूलम् प्रेसमा (३५)शास्त्रदर्पण[पर्व आराधना अंगे प्रमाणो]०-४० (67) भीमत्समवायांग सूत्रम् , 0 0 0 0 0 0 1-75 3-00 8 / -75 / 0 / 0 0-75 / 0 8-75 / / 0 37 / 0 10-00 / 0 / 0 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गो, थवान्न थणुजागाइ, तमन्तमचित्तं वादा / किमाह बंधा // अहम् // गणधरदेव श्रीमत्सुधर्मस्वामिनिर्मितं // श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् // // अथ समयाख्ये प्रथमाध्ययने प्रथमोद्देशकः // ___बुझिजति तिउ(तिकुट्टिजा, बंधणं परिजाणिया / किमाह बंधणं वीरो, किंवा जाणं तिउट्टई ? // 1 // चित्तमन्तमचित्तं वा, परिगिझ किसामवि / अन्नं वा अणुजाणाइ, एवं दुक्खा ण मुच्चइ // 2 / सयं तिवायए पाणे, अदुवाऽन्नेहिं घायए / हगांतं वाऽणुजाणाइ, वेरं वडदइ अप्पणो // 3 // जस्सिं कुले समुप्पन्ने, जहिं वा संवसे नरे। ममाइ लुप्पई बाले, अराणे अराणेहि मुच्छिए // 4 // वित्तं सोयरिया चेय, सव्वमेयं न ताणइ / संखाए जीवियं चेवं, कम्मुणा उ तिउट्टइ // 5 // एए गंथे विउक्कम्म, एगे समणमा. हणा / अयागांता विउस्सित्ता, सत्ता कामेहि माणवा // 6 // संति पंच मह. भूया, इहमेगेसिमाहिया / पुढवी ग्राउ तेऊ वा, वाउ अागासपंचमा // 7 // एए पंच महन्भूया, तेव्भो एगोत्ति श्राहिया / यह तेसिं विणासेगां, विणासो होइ देहिणो // 8 // जहा य पुढवीथूभे, एगे नाणाहि दीसइ / एवं भो ! कसिणे लोए, विन्नू नाणाहि दीसइ (वडदइ) // 6 // एवमेगेत्ति जप्पंति, मंदा प्रारंभणिस्सिया। एगे किच्चा सयं पावं, तिव्वं दुवखं (तेणां तिव्वं) नियच्छ। // 10 // पत्तेयं कसिणे पाया, जे बाला जे य पंडिया / संति पिचा न ते संति, नत्थि सत्तोववाइया // 11 // नत्थि पुराणे व पावे वा, नत्थि लोए इतो वरे। सरीरस्त विणासेगां, विणासो होइ देहिणो // 12 // कुव्वं च कारयं चेव, सव्वं कुव्वं न विजई / एवं अकारो अप्पा, एवं ते उ पगम्भिया 13 // जे ते उ वाइणो एवं, लोए तेसिं कयो सिय!। तमाश्रोते तमंजंति, मंदा प्रारंभ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः निस्सिया॥१४॥ संति पंच महन्भूया, इहमेगेसि ग्राहिया / पायलट्ठो पुणो बाहु, पाया लोगे य सासए // 15 // दुहयो ण विणस्संति, नो य उप्पज्जए असं / सव्वेऽवि सव्वहा भावा, नियत्तीभावमागया // 16 // पंच खंधे वयंतेगे, बाला उ खणजोइणो। अगणो अणराणो गोवाहु, हेयं च अहेउयं // 17 // पुढवी ग्राउ तेऊ य, तहा वाऊ य एगयो / चनारि धाउणो रूवं, एवमाहंसु बावरे // 18 // अगारमावसंतावि, परराणा वावि पव्वया / इमं दरिसणमावराणा, सव्वदुक्खा विमुच्चई // 16 // ते णावि संधिं णच्चा गां, न ते धम्मवित्रो जणा / जे ते उ वाइणो एवं, न ते पोहंतराऽहिया // 20 // ते णावि संधि णच्चा गां, न ते धम्मवियो जणा / जे ते उ वाइणो एवं, न . ते संसारपारगा // 21 // ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्मविश्रो जणा / जे ते उ वाइणो एवं, न ते गब्भस्स पारगा // 22 // ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्मवियो जणा / जे ते उ वाइणो एवं, न ते जम्मस्त पारगा // 23 // ते णावि संधिं णच्चा णं, न ते धम्मवियो जणा / जे ते उ वाइणो एवं, न ते दुक्खस्स पारगा // 24 // ते णावि संधिं णच्चा णं, न ते धम्मवियो जणा / जे ते उ वाइणो एवं, न ते मारस्स पारगा // 25 // नाणाविहाई दुक्खाई, अणुहोति पुणो पुणो / संसारचकवालंमि, मच्चुवाहिजराकुले // 26 // उच्चावयाणि गच्छंता, गम्भमेस्संति णंतसो / नायपुत्ते महावीरे, एवमाह जिणोत्तमे // 27 // इति बेमि // // इति प्रथमाध्ययने प्रथमोद्देशकः // 1-1 // // अथ प्रथमाध्ययने द्वितीय उद्देशकः // अाघायं पुण एगेसिं, उववराणा पुढो जिया / वेदयंति सुहं दुक्खं, अदुवा लुप्पंति ठाणयो // 1 // न तं सयं कडं दुक्खं, कयो अन्नकडं च णं ? / सुहं वा जइवा दुक्खं, सेहियं वा असेहियं // 2 // सयं कडं न Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् -:: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 1 ] [ 143 अराणोहिं, वेदयंति पुढो जिया। संगइयं तं तहा तेसिं, इहमेगेसि पाहिग्रं // 3 // एवमेयाणि जपंता, बाला पंडिग्रमाणिणे। निययानिययं संतं, अयाणंता अशुद्धिया // 4 // एवमेगे उ पासत्या, ते भुजो विप्पगन्भिया / एवं उपट्टि(पट्टि)या संता, ण ते दुक्खविमोक्खया // 5 // जविणो मिगा जहा संता, परिताणेण वजिया / संकियाई संकंति, संकियाइं असंकिणो // 6 // परियाणियाणि संकेता, पासिताणि असंकिणो। अराणाणभयसंविग्गा, संपलिंति तहिं तहिं // 7 // ग्रहतं पवेज बज्झ, अहे बज्झस्स वा वए। मुच्चेज्ज पयपामायो (पम्पासाई), तं तुम दे ण देहए // 8 // अहियप्पाऽहि. यपराणाणे, विसमतेणुवागते / स बद्धे पयपासेणं, तत्थ घायं नियच्छइ // 4 // एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्ठी यणारिया / असंकिग्राइं संकंति, संकियाई असंकिणो // 10 // धम्मपराणवणा जा सा, तं तु संकति मूढगा। श्रारंभाई न संकंति, अवियत्ता अकोविया // 11 // सव्वप्पगं विउकस्सं, सव्वं गुमं विहूणिया / अप्पनियं अकम्मसे, एयम8 मिगे चुए // 12 // जे एयं नाभिजाणंति, मिच्छदिट्ठी प्रणारिया / मिगा वा पासबद्धा ते, घायमेसंति णंतसो // 13 // माहणा समणा एगे, सव्वे नाणं सयं वए / सव्वलोगेऽवि जे पाणा, न ते जाणंति किंचण // 14 // मिलक्खू अमिलक्खुस्स, जहा वुत्ताणुभासए ण हेउं से विजाणाइ, भासिधे तऽणुभासए // 15 // एमवन्नाणिया नाणं, वयंतावि सयं सयं / निन्छयत्यं न याणंति, मिलक्खुव अबोहिया // 16 // अन्नाणियाणं वीमंसा, श्रराणाणे ण (नाणे नो व) विनियच्छइ / अपणो य परं नालं, कुतो अनाणुसासिउँ ? // 17 // वणे मूढे जहा जंतू , मूढे गोयाणुगामिए / दोवि एए अकोविया, तिव् सोयं नियच्छङ्॥१८॥ अंधो अंधं पहं णितो, दूरमद्धाणु गच्छइ / श्रावज्जे उप्पहं जंतू , अदुवा पंथाणुगामिए // 19 // एवमेगे णियायट्ठी, धम्ममाराहगा वयं / अदुवा अहम्ममावज्जे, ण ते सवज्जुयं वए // 20 // एवमेगे वियकाहिं, नो अन्न पज्जुवासिया / Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः अप्पणो य वियकाहिं, अयमंजूहिं दूम्मई // 21 // एवं तकाइ साहिंता, धम्माधम्मे अकोविया / दुक्खं ते नाइतुटंति, सउणी पंजरं जहा // 22 // सयं सयं पसंसंता, गरहंता परं वयं / जे उ तत्थ विउस्संति, संसारं ते विउ. स्सिया // 23 // ग्रहावरं पुरक्खायं, किरियावाइदरिसणं / कम्मचिंतापणट्ठाणं दुक्खखंधस्स वडणं (संसारस्म पवडणं)॥२४॥ जाणं कारणऽणाउट्टी, अनुहो जं च हिंसति / पुट्ठो संवेदइ परं, अवियत्तं खु सावज // 25 // संतिमे तउ श्रायाणा, जेहिं कीरइ पावगं / अभिकरमा य पेसा य, मणसा अणुजाणिया // 26 // एते उ तउ आयाणा, जेहिं कीरइ पावगं / एवं भावविसोहीए, निव्वाणमभिगच्छइ // 27 // पुत्तं पिया समारम्भ, श्राहारेज असंजए / भुजमाणो य मेहावी, कम्मणा नोवलिप्पइ // 28 // मणसा जे पउस्संति, चित्तं तेसिं ण विजइ। अणवजमतह तेसिं, ण ते संवुडचारिणो // 21 // इच्चेयाहि य दिट्ठीहिं, सातागारवणिस्सिया / सरणंति मन्नमाणा, सेवंती पावगं जणा // 30 // जहा अस्साविणिं णावं, जाइअंधो दुरूहिया / इच्छई (इच्छिज्जा) पारमागंतु, अंतरा य विसीयई // 31 // एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्ठी श्रणारिया / संसारपारकंखी ते, संसारं अणुपरियदति // 32 // तिमि / / गायाग्रं // 56 / इति प्रथमाध्ययने द्वितीयोद्देशकः / / 1-2|| // अथ प्रथमाध्ययने तृतीयोद्देशकः // जं किंचि उ पूइकडं, सड्डीमागंतुभीहियं / सहस्संतरियं भुजे, दुपक्खं चेव सेवइ / / 1 // तमेव अवियांणंता, विसमंसि अकोविया / मच्छा वेसालिया चेव, उदगस्सऽभियागमे // 2 // उदगस्स पभावेणं. सुक सिग्धं तमिति उ(सुक्कमि घातमिति उ) ढंकेहि य कंकेहि य, श्रामिसत्थेहिं ते दुही // 3 // एवं तु समणा एगे, वट्टमाणसुहेसिणो / मच्छा वेसालिया चेव, घातमेस्सति [तसो // 4 // इणमन्नं तु अन्नाणं, इहमेगेसि श्राहियं / देवउत्ते अयं Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] [ 145 लोण, बंभउत्तेति बावरे // 5 // ईसरेगा कडे लोए, पहाणाइ तहावरे / जीजीवसमाउत्ते, सुहदुक्खसमन्निए // 6 // सयंभुणा कडे लोए, इति वृत्तं महसिणा / मारेण संथुया माया, तेण लोए अतासए // 7 // माहणा समणा एगे, ग्राह अंडकडे जगे। अतो तत्तमकासी य. श्रयाणंता मुसं वदे // 8 // सएहिं परियाएहिं, लोयं ब्रूया कडेति य / तत्त ते ण विजाणंति (नाभिजाणंति) ण विणासी कयाइवि // 1 // श्रमणुन्नसमुप्पायं, दुक्खमेव विजाणिया / समुपायम नाणंता, कह नायति संवर ? // 10 // सुद्धे पावए आया, इहमेगेसिमाहियं / पुणो किड्डापढोसेगां, सो तत्थ अवरज्झई // 11 // इह मंबुडे मुणी जाए, पच्छा होइ अपावए / वियडंबु जहा भुजा, नीरयं सरयं तहा // 12 // एताणुगीति मेधावी, बभचेरेण ते वसे / पुढो पावाउया सब्वे, अक्खायारो सय सयं // 13 // सए सए उबट्ठाणे, सिद्धिमेव न अन्नहा / यही इहेव वसवत्ता, सबकामसमप्पिए // 14 // सिद्धा य ते अरोगा य, इहमेगेसिमाहियं / सिद्धिमेव पुरो काउं, सासए गदिश्रा नरा / / 15 // असंवुडा अणादीयं, भमिहिंति पुणो पुणो / कप्पकालमुवज्जति, ठाणा श्रासुरकिब्बिसिया // 16 // // इति धेमि // 075 / / इति प्रथमाध्ययने तृतीयोद्देशकः 1-3 // // अथ प्रथमाध्ययने चतुर्थ उद्देशकः // एते जिया भो / न सरणं, बाला पडियमाणिणो (जत्थ बालेऽवसी. यति) / हिचा गां पुब्बसंजोगं, सिया किचोवएसगा // 1 // तं च भिक्खू परिनाय, वियं तेसु ण मुच्छए / अणुकस्से अप्पलीणे, मज्झेण मुणि जावए // 2 // सपरिग्गहा य सारंभा, इहमेगेसिमाहियं / अपरिग्गहा अणारंभा, भिक्खू तागां परिवए // 3 // कडेसु घासमेसेज्जा, विऊ दत्तेसणं चरे / अगिद्धो विप्पमुक्को श्र, श्रोमागां परिवज्जए // 4 // लोगवायं णिसामिज्जा, Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 146 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभागः इहमेगेसिमाहियं / विपरीयपन्नमंभूयं, यन्नउत्तं तयाणुयं // 5 // अणते निइए लोए, सासए ण विणस्सती / अंतवं गिइए लोए, इति धीरोऽतिपासइ // 6 // श्रपरिमाणां वियाणाई, इहमेगेसिमाहियं / सम्वत्थ सपरिमागां, इति धीरोऽतिपासई ॥७॥जे केइ तसा पाणा, चिट्ठति अदु थावरा / परियाए अस्थि से अंजू, जेण ते तसथावरा // 8 // उगलं जगतो जोगं, विवज्जासं पलिंति य / सव्वे अक्कतदुक्खा य, यो सत्वे अहिंसिता // 1 // एयं खु नागिणो सारं, जन्न हिंसइ किंवण / अहिंसासमयं चेव, एतावन्तं वियाणिया / / 1.0 // वुसिए य विगयगेही (विगयगिद्धी य) अायागीयं संरक्खए (यायाणं सं (सम्म)रक्खए) / बरियासणसेज्जासु, भत्तपाणे श्र अंतसो // 11 // एतेहिं तिहिं ठाणेहिं, संजए सततं मुणी / उक्कसं जलणं णूम, मज्झत्थं च विगिंवए // 12 // समिए उ सया साहु, पंचसंवरसंवुडे / सिएहि असिए भिक्खू , ग्रामोक्खाय परिव्वएज्जासि // 13 // त्तिवेमि // - // इति प्रथमाध्ययने चतुर्थोद्देशकः // 1-4 // इति प्रथमाध्ययनम् // 1 // ॥अथ वैतालीयाख्ये द्वितीयाध्ययने प्रथमोशकः॥ ___ संबुज्झह किं न बुज्झह ?, संघोही खलु पेच्च दुल्लहा / णो हूवणमंति राइयो, नो सुलभं पुणरावि जीवियं // 1 // डहरा बुड्ढा य पासह गब्भत्था वि चयंति माणवा / सेणे जह वट्टयं हरे एवं पाउखयंमि तुट्टई (जीवाण जीवियं) // 2 // मायाहिं पियाहिं लुप्प३, नो सुलहा सुगई य पेच्चयो / एयाइं भवाई पेहिया, प्रारम्भा विरमेज सुब्बए सुट्ठिए // 3 // जमिणं जगती पुढो जगा, कम्मेहिं लुप्पंति पाणिणो / सयमेव कडेहिं गाहइ, णो तस्स मुन्चेज पुठ्ठयं // 4 // देवा गंधपरक्खसा, असुरा भूमिचरा सरिसिवा / सया नरसेट्ठिमाहणा, ठाणा ते वि चयंति दुक्खिया // 5 // कामेहिं ण संथवेहि गिद्धा (कामे हि य संथवे हि य) कम्मसहा कालेण जंतवो। ताले जह Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 1 ] [ 147 बंधणच्चुए, एवं श्राउखयंमि तुती // 6 // जे यावि बहुस्सुए सिया (सुई), धम्मिय माहणभिक्खुए सिया / अभिणूमकडेहिं मुच्छिए, तिव्वं ते कम्मेहिं किवती / / 7 / यह पास विवेगमुट्ठिए, अवितिन्ने इह भासई धुवं / णाहिसि प्रारं कयो परं. वेहासे कम्मेहिं किञ्चती // 8 // जइ वि य णिगणे किसे चरे, जइविय भुजिय मारमंतसो।जे इह मायाइ मिजई, यागंता गम्भाय गंतसो // 3 // पुरिसोरम पावकम्मुणा, पलियंतं मणुयाण जीवियं / सन्ना इह काममुच्छिया, मोहं जाते नरा असंवुडा // 10 // जययं विहराहि जोगवं अणुपाणा पंथा दुरुत्तरा / यगुसासणमेव पक्कमे, वीरेहिं संमं पवेड्यं // 11 // विरया वीरा समुट्ठिया, कोहकायरियाइपीसणा / पाणे ण हणंति सव्वसो, पावायो विरयाऽभिनिव्वुडा // 12 // णवि ता अहमेव लुप्पए, लुप्पंती लोग्रंसि पाणिणो / एवं सहिएहिं पासए, अणिहे से पुढे यहियासए. // 13 / / धुणिया कुलियं व लेववं, किसए देहमणासणा इह / अविहिंसामेव पव्वए, अणुधम्मो मुणिणा पवेदितो // 14 // सउणी जह पंसुगुडिया, विहुणिय धंसयई सियं रयं / एवं दवियोवहाणवं, कम्मं खबइ तवस्तिमाहणे // 15 // उठ्ठियमणगारमेसणं, समणं ठाणठियं तवस्सिणं / डहरा वुड्डा य पत्थर, अवि सुस्से ण य तं लभेज णो॥१६॥ जइ कालुणियाणि कासिया, जइ रोयति य पुत्तकारणा / दवियं भिक्खु समुट्ठियं, णो लभंति ण संठवित्तए // 17 // जइविय कामेहिं लाविया, जइ गणेजाहि ण बंधिउं घरं / जइ जीविय नावकंखए, णो लभंति ण संठ(सराण)वित्तए // 18 // सेहंति य णं ममाइणो, माय पिया य सुया य भारिया / पोसाहि ण पासयो तुम, लोग परंपि जहासि पोसणो // 16 // अन्ने अन्नेहिं मुच्छिया, मोहं जंति णरा असंवुडा / विसमं विसमेहिं गाहिया, ते पावेहिं.पुणो पगन्भिया // 20 // तम्हा दवि इक्ख पंडिए, पावायो विरतेऽभिणिव्वुडे / पणए वीरं महाविहि, मिद्धिपहं गोपाउयं धुवं // 21 // वेयालियमग्गमागयो, मणवयसाकायेण Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 148] नमोणपयं उपजियाविणा इखिणिया जिला परिभवहर [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः संवुडो / चिचा वित्तं च णाययो, प्रारंभ च सुसंवुडे चरे // 22 // त्तिबेमि // गाथा 120 // इति द्वितीयाध्ययने प्रथमोद्देशकः // 2-1 / / // अथ द्वितीयाध्ययने द्वितीय उद्देशकः // तयसं व जहाइ से रयं, इति संखाय मुणी ण मजई। गोयन्नतरेण माहणे (जे विऊ) अहसेयकरी अनेसी(सि) इंखिणी // // जो परिभवइ परं जणं, संसारे परिवत्तई महं (चिरं) / अदु इंखिणिया उ पाविया, इति संखाय मुणी ण मजई // 2 // जे यावि यणायगे सेया, जेविय पेसगपेसए सिया। जे मोणपयं उवट्ठिए, णो लज्जे समयं सया(5)यरे // 3 // सम अन्नयरम्मि संजमे, संसुद्धे समणे परिव्वए / सिथ (जे) यावकहा समाहिए, दविए. कालमकासि पंडिए // 4 // दूरं अणुपस्सिया मुणी, तीतं धम्ममणागयं तहा / पुढे परुसेहिँ माहणे, अवि हराणू समयंमि रीयइ (समयाहियासए) // 5 // पराणसमते (पराहसमत्थ) सया जए, समताधम्ममुदाहरे मुणी। सुहुमे उ सया अलूमए, णो कुज्झ (कुप्पे) मो माणि माहणे // 6 // बहुजणाणमणमि संवुडो, सव्वट्ठेहिं णरे अणिस्सिए / हरए व सया यणाविले, धम्म पादुरकासि कासवं // 7 // बहवे पाणा पुढो सिया, पत्तेयं समयं समी(उवे)हिया। जो मोणपदं उवट्ठिते, विरतिं तत्थ अकामि पंडिए॥॥ धम्मस्स य पारए मुणी, श्रारंभस्स य अंतए ठिए। सोयंति य णं ममाइणो, हो लभंति गिर्य परिग्गहं सोउण तयं उवट्ठियं, केइ गिही विग्घेण उठ्ठिया / धम्ममि अणुतरे मुणी, तंपि जिणिज इमेण पंडिए)॥६॥ इहलोगदुहावहं विऊ, परलोगे य दुहं दुहावहं / विद्धंसणधम्ममेव तं, इति विज्जं कोऽगारमावसे ? // 10 // महयं पलिगोव जाणिया, जावि य वंदणष्यणा इहं / सुहुने सल्ले दुरुद्धरे, विउमंता पयहिज संथवं (पलिमंथ महं वियाणिया, जाविय वंदणप्यणा इहं। सुहुमं सल्लं दुरुद्धर, तंपि जिणे एएण पंडिए) // 11 // एगे चरे ठाणमामणे, Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 3 ] / 146 सयणे एगे समाहिए सिया / भिक्खू उवहाणवीरिए, वइगुत्ते अज्झत्तसंवुडो // 12 // णो पीहे ण यावपंगुणे, दारं सुन्नघरस्त संजए / पुठे ण उदाहरे वयं, गण समुच्छे णो संथरे तणं // 13 // जत्थ त्यमिए प्रणाउले, समविसमाई मुणीऽहियासए / चरगा अदुवावि भेरवा. अदुवा तत्थ सरीसिवा सिया॥१४॥ तिरिया मणुमा य दिव्वगा, उवसग्गा तिविहाहियासिया / लोमादीयं ण हारिसे, सुन्नागारगयो महापुणी // 15 // णो अभिकंखेज जीवियं, नोऽविय पूयणपत्थए सिया / यभत्थमुर्विति भेरवा, सुन्नागारगयस्त भिवखुणो // 16 // उवणीयतरस्स ताइणो, भयमाणस्स विविकमासणं / सामाइयमाहु तस्स जं, जो अप्पाण भए ण दंसए // 17 // उसिणोदगतत्तभोइणो, धम्मट्ठियस्स मुणिस्म हीमतो / संमग्गि असाहु राइहिं, असमाही उ तहागयस्सवि // 18 // अहिगरणाकडरस भिवखुणो, वयमाणस्स पसज्झ दारुणं / अट्ठे परिहायती बहु, अहिगरणं न करेज पंडिए // 11 // सीयोदग पडि दुगुछिणो, यपडिराणस्स लवावसप्पिणो / सामाइयमाहु तस्म जं, जो गिहिमतेसणं उ भुजती // 20 // ण य संखयमाहु जीवियं, तहविय बालजणो पग भइ / बाले पापेहिं मिजती, इति संखाय मुणी ण मजती॥२१॥ छदेण पले इमा पया, बहुमाया मोहेण पाउडा / वियडेण पलिंति माहणे, सीउराहं वयसाहियासए // 22 // कुजए अपराजिए जहा, अक्खेहिं कुमलेहिं दीवयं / कडमेव गहाय णो कलिं, नो तीयं नो चेव दादरं // 23 // एवं लोगंमि ताइणा, बुइए जे धम्मे अणुतरे / तं गिराह हियंति उत्तम, कडमिव सेसऽवहाय पंडिए॥२४॥ उत्तर मणुयाण ग्राहिया, गामधम्मा इइ मे अणुस्सुयं / जसी विरता समुट्ठिया, कासवस्म अणुधम्मचारिणो // 25 // जे एय चरंति ग्राहियं, नाएणं महया महेसिणा / ते उठ्ठिय ते समुट्ठिया, अन्नोन्नं सारंति धम्मयो // 26 // मा पेह पुरा पणामए, अभिकंखे उवहिं धुणित्तए / जे दूमण तेहिं णो गाया, ते जाणंति ममाहिमाहियं // 27 // णो काहिएँ होज संजए, पासणिए Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्युः :: प्रथमो विभागः ण य संपसारए / नचा धम्मं अणुत्तरं, कयकिरिए णयावि मामए॥२८॥छन्नं च पसंस णो करे, न य उकोस पगास माहणे / तेसिं सुविवेगमाहिए, पणया जेहिं सुजोसियं धुयं // 26 // अणिहे (यणहे) सहिए सुसंवुडे, धमट्ठी उवहा. णवीरिए / विहरेज समाहिइंदिए, अत्तहियं खु दुहेण लभइ // 30 // ण हि गुण पुरा अणुस्सुतं (यवितह), अदुवा तं तह णो समुट्ठियं / मुणिणा सामाइग्राहितं, नाएणं जगसव्वदंसिणा // 31 // एवं मत्ता महंतरं, धम्ममिणं सहिया बहू जणा / गुरुगो छंदाणुवत्तगा, विरया तिन्न महोघमाहितं // 32 // तिबेमि // (गाथाश्रम् 152) // इति द्वितीयाध्ययने द्वितीयोदे शकः / / 2-2 // // अथ द्वितीयाध्ययने तृतीयोद्देशकः // संवुडकम्मस्स भिक्खुणो, जं दुक्खं पुढे बोहिए / तं संजमयोऽ. वचिजई, मरणं हेच्च वयंति पंडिया // 1 // जे विनवणाहिजोसिया, संतिन्नेहिं सम वियाहिया / तम्हा उड्वति पासहा (उड्दं सिरियं अहे तहा), अदक्खु कामाइ रोगवं // 2 // या वणिएहिं पाहियं, धारती राईणिया इहं / एवं परमा महब्बया, यक्खाया उ सराइभोयण। // 3 // जे इह सायागुगा नरा, अझोववनाकामेहिं मुच्छिया / किवणेण संमं पगम्भिया, न वि जाणंति समाहिमाहितं // 4 // वाहेण जहा व विच्छर, अवले होइ गवं पत्रोइए। से अंतप्तो अपथाए, नाइवहइ अबले विसीयति // 5 // एवं कामेसणं विऊ, अज सुर पयहेज संथां / कामी कामे ण कामए, लद्धे बावि अलद्ध कराहुई // 6 // मा पच्छ असाधुता भो, अच्चेही अणुसास अप्पगं / अहियं च असाहु सोयती, से थणत! परिदेवती बहुं // 7 // इह जीवियमेव पासहा, तरुण एव (दुबल) वाससयस्त तुट्टती / इत्तरवासे य बुज्झह, गिद्धनरा कामेसु मुच्छिया॥८॥जे इह यारंभनिस्सिया, यातदंडा एगं Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 2 ] तलूमगा / गंता ते पावलोगयं, चिररायं ग्रासुरियं दिसं // 1 ॥ण पर संखयमाहु जीवितं, तहवि य बालजणो पग-भई / पञ्चुप्पन्नेण कारियं, को ट्ठपरलोयमागते ? // 10 // अदक्खुव दक्खुवाहियं, (तं) सदहसु श्रदक्खुदंसणा ! / हंदि हु सुनिरुद्धदंसणे, मोहणिज्जेण कडेण कम्मुणा // 11 // दुक्खी मोहे पुणो पुणो, निविदेज्ज लिलोगपूयणं / एवं सहिते. हिपासए, यापतुलं पाणेहिं संजए // 12 // गारंपिय पावसे नरे, अणुपुत्रं पाणेहिं संजए। समता सम्बत्थ सुब्बते, देवाणं गच्छे सलोगयं / / 13 / / सोचा भगवाणु गाणं, सच्चे तत्य करेज्जुवकमं / सव्वत्थ विणीयमच्छरे, उच्छं भिक्खु विसुद्धमाहरे // 14 // सव्वं नचा यहिटुए, धम्मट्ठी उपहाणवीरिए / गुते जुत्ते सदाजए, यायपर परमायतहिते / / 15 / / वित्तं पसवो य नाइयो, तं वाले सरणं ति मन्नइ / एते मम तेसुधी यहं, नो ताणं सरणं न विजई // 16 // ग्रभागमितमि वा दुहे, यहवा उकमिते भवंतिए / एगस्त गती य ागती, विदुमंता सरणं ण मनई // 17 // सब्वे सयकम्मकप्पिया, अवियत्तेण दुहेण पाणणो / हिंडंति भगाउला सढा, जाइजरा. मरणेहिऽभिद् ता // 18 // इणमेव खणं वियाणिया, णो सुलभं बोहिं च अाहित / एवं सहिएऽहिया नए, (अहियासर) याह जिणे इणमेव संसगा // 16 // अभविसु पुरावि भिक्यो , थाएमावि भवंति सुव्वता / एयाई गुणाई बाहु ते, कालवस्त अगुधम्म वारिणो / / 20 // तिविहेणवि पाण मा हणे, यायहिते अणियाण संखुड़े / एवं सिद्धा अणंततो, संपइ जे श्र यणागपावरे // 21 // एवं से उदाहु अणुतरनाणी अणुत्तरदंसी श्रगुत्तरनाणदंसणधरे / यरहा नायपुते भगवं वेतालिए वियाहिए // 22 // निवेमि // (गाथायं. 174 ) // इति द्वितीयाध्ययने तृतीयोद्देशकः / / 2-3 / इति दिनोयमध्ययनम् // 2010 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 152 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अथोपसर्गपरिज्ञाख्ये तृतीयाध्ययने प्रथमोद्देशकः // सूरं मराणाइ अप्पाणं, जाव जेयं न पस्सती / जुमंतं दधम्माणं, सिसुपालो व महारहं // 1 // पयाता सूरा रणसीसे, संगामंमि उव द्विते / माया पुतं न याणाइ, जेएण परिविच्छए // 2 // एवं सेहेवि अप्पुटठे, भिक्खायरियायकोविए / मूरं मराणति अप्पाणं, जाव लूहं न सेवए // 3 // जया हेमंतमासंमि, सीतं फुसइ सवायगं (सव्वगं)। तत्थ मंदा विसीयंति, रजहीणा व खत्तिया // 1 // पुठे गिम्हाहितावेणं, विमणे सुपिवासिए / तत्थ मंदा विसीयंति, मच्छा अप्पोदए जहा // 5 // सदा दत्तेसणा दुक्खा, जायणा दुप्पणोल्लिया / कम्मत्ता दुभगा चेव, इचाहंसु पुढोजणा // 6 // एते सद्दे अचायंता, गामेसु गरेसु वा / तत्थ मंदा विसीयंति, संगामंमिव भीरुया // 7 // अप्पेगे खुधियं भिवखु, सुणी डंसति लूमए / तत्थ मंदा विसीयंति, तेउपुट्ठा व पाणिणो // 8 // यप्पेगे पडिभासंति, पडिपंथियमागता॥ पडियारगता एते, जे एते एव जीविणो // 6 // अप्पेगे वइ जुति, नगिणा पिंडोलगाहमा / मुडा कंडूविणटुंगा, उज्जल्ला असमाहिता // 10 // एवं विप्पडिवन्नेगे, अप्पणा उ अजाणया। तमायो ते तमं जंति, मंदा मोहेण पाउडा // 11 // पुट्ठो य दंसमप्सरहिं, तणफासमचाइया / न मे दिटठे परे लोए, जइ परं मरणं सिया // 12 // संतत्ता केसलोएणं, बंभचेरपराइया / तत्थ मंदा विसीयंति, मच्छा विष्ठा व (पविठ्ठा) केयणे // 13 // श्रायदंडसमायारे, मिच्छासंठियभावणा / हरिसप्पयोसमावन्ना, केई लूसंतिनारिया / 14 // अप्पेगे पलियते सिं, चारो चोरोत्ति सुव्वयं / बंधति भिवख्यं बाला, कसायवयणेहि य / 15 // तत्थ दंडगा संवीते, मुट्ठिणा अदु फलेण वा / नातीणं सरती बाले, इत्थी वा कुद्धगामिणी // 16 // एते भो ! कसिणा फामा, फरुसा दुरहियासया। हत्थी वा मरमंवित्ता, कीवाऽवस गया गिहं Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 3 ] [ 153 (तिब्बसडढे गया गिह) // 17 // // तिमि // इति तृतीयाध्ययने प्रथमांद्देशकः // 3-1 // (गायाग्रं० 191) // अथ तृतीयाध्ययने द्वितीयोद्दशकः // अहिमे सुहुमा संगा, भिक्खुणं जे दुरुत्तरा / जत्थ एगे विसीयंति, ण चयंति जवित्तए // 1 // अप्पेगे. नाययो (नायगा) दिस्त, रोयंति परिवारिया / पोसणे ताय ! पुट्ठोसि, कस्स ताय ! जहासि णे ? // 2 // पिया ते थेरयो तात !, ससा ते खुड्डिया इमा / भायरो ते सगा तात !, सोयरा किं जहासि णे ? // 3 // मायरं पियरं पोस, एवं लोगो भविस्सति / एवं खुलोइयं ताय !, जे पालंति य मायरं // 4 // उत्तरा (उत्तमा) महुरुल्लावा, पुत्ता ते तात ! खुड्डया / भारिया ते णवा तात !, मा सा अन्नं जणं गमे // 5 // एहि ताय ! घरं जानो, मा य कम्मे सहा वयं / वितियंपि ताय ! पासामो, जामु ताव सयं गिह / / 6 / / गंतु ताय ! पुणो गच्छे, ण तेणारमणो सिया / यकामगं परिकम्मं, को ते वारेउमरिहति ? // 7 // जं किंचि अणगं तात !, तंपि सव्वं समीकतं (उत्तारितं)। हिरराणं ववहाराइ, तंपि दाहामु ते वयं // 8 // इञ्चेव णं सुसेहंति, कालुणीयसमुट्ठिया / विबद्धो नाइसंगेहिं, ततो. गारं पहावइ // 6 // जहा रुक्खं वणे जायं, मालुया पडिबंधई / एव णं पडियंति, णातयो असमाहिणा // 10 // विवद्धो नातिसंगेहि, हत्थीवावी नवग्गहे / पिठुलो परिमप्पंति, सुयगोव्व अदूरए // 11 // एते संगा मणूसाणं, पाताला व अतारिमा / कीवा जत्थ य किस्संति, नाइसंगेहिं मुच्छिया॥१२॥ // 12 // तं च भिक्खू परिन्नाय, सब्वे संगा महासवा / जीवियं नावकंखिजा, मोचा धम्ममणुत्तरं // 13 // अहिमे (अहो इमे) संति श्रावट्टा, कासवेणं पवे. इया / बुद्धा जत्थावसप्पंति, सीयंति अहा जहिं // 14 // रायाणो रायऽमचा य, माहणा अदुव खत्तिया। निमंतयंति भोगेहिं, भिक्खूयं साहुजीविणं Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // 15 // हत्थऽस्तरहजाणेहिं, विहारगमणेहि य / भुज भोगे इमे सग्थे, महरिसी ! पूजयामु तं // 16 // वत्थाधमलकारं, इत्थीयो सयणाणि य / भुजाहिमाइं भोगाई, श्राउसो ! पूजयामु तं // 17 // जो तुमे नियमो चिराणो, भिक्खुभावंमि सुव्वया ! / अगारमावसंतस्स, सव्वो संविजर तहा // 18 // चिरं दूइजमाणस्त, दोसो दाणिं कुतो तव ? / इच्चेव णं निमंति, नीवारेण व सूयरं // 16 // चोइया भिक्खचरियाए, अचयंता जवित्तए / तत्थ मंदा विसीयंति, उजाणंसि व दुबला // 20 // अचयंता व लूहेणं, उवहाणेण तजिया / तत्थ मंदा विसीयंति, उजाणंसि जरग्गवा // 21 // एवं निमंतणं लद्भु, मुन्छिया गिद्ध, इत्थीसु / अझोववन्ना कामेहिं चोइज्जता गया गिहं // 22 // // तियेमि / / इति तृतीयाध्ययने द्वितीयोद्देशकः // 3-2 // // अथ तृतीयाध्ययने तृतीयोद्दशकः // जहा संगामकालंमि. पिटतो भीरु वेहइ / वलयं गहगां गूंमं, को जाणइ पराजयं ? // 1 // मुहुनागां मुहुतस्स मुहुत्तो होइ तारिसो / पराजिया वसप्पामो, इति भीरू उवेहई // 2 // एवं तु समणा एगे, अबलं नचाण अप्पगं / अणागयं भयं दिस्स, यदि(अव)कप्पंतिमं सुयं // 3 को जाणइ विऊ(या)वातं, इत्थीयो उदगाउ वा / चोइज्जता परक्खामो, ण णो यत्थि पकप्पियं // 4 // इञ्चेव पडिलेहंति, वल / (बलाइ) पडिलहिणो / वितिगिच्छसमावन्ना, पंथाणं च अकोविया // 5 // जे उ संगामकालंमि, नाया सूरपुरंगमा / णो ते पिट्ठमुवेहिंति, किं परं मरगां सिया ? // 6 // एवं समुट्ठिए भिक्खू, वोसिजागारबंधगां / प्रारंभ तिरिय कटु, अत्तत्ताए परिव्वए // 7 // तमेगे परिभासंति, भिक्खूयं साहुजीविणं / जे एवं परिभासंति, अंतए ते समाहिए // 8 // संबद्धसमकप्पा उ. अन्नमन्नेसु मुन्छिया। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 3 ] [ 155 पिंडवाय गिलाणस्स, जं सारेह दलाह य॥१॥ एवं तुब्भे सरागत्था, अन्नमन्त्रमणुवसा। नट्ठसप्पहसम्भावा, संसारस्स अपारगा // 10 // ग्रह ते परिभासेजा, भिवू मोखविसारए / एवं तुम्भे पभामंता, दुपवखं चेव सेवह // 11 // तुझे भुजह पाएनु, गिलाणो अभिहडंमि या / तं च चीयोदगं भोचा, तमुदिस्मादि जं कडं // 12 // लित्ता तिव्वामितावेणं, उझिया अलमाहिया / नातिकंडूइयं सेयं, अमयस्सावरज्झती // 13 // तत्तेण अणुमिट्ठा ते, अपडिन्नेण जाणया / ण एस णियए मग्गे, यसमिक्खा वती किती // 14 // एरिसाजा वई एसा, अग्गवे गुब्ब करिसिता / गिहिणो अभिह से, भुजिउंण उ भिक्खुणं // 15 // धम्मपन्नवणा जा सा, सारंभा ण विमोहि या / ण उ एयाहिं दिट्ठीहिं, पुवमासि पग्गप्पियं // 16 // सव्वाहिं अणुजुत्तीहि, अचयंता जवित्तए / ततो वायं णिराकिचा, ते भुजोवि पगब्भिया // 17 // रागदोसाभिभूयप्पा, मिच्छतेगां अभिदुता। थाउस्से सरगां अंति, टंकणा इव पव्वयं // 18 // बहुगुणप्पगप्पाई, कुना अत्तममाहिए / जेण न्ने णो विरुज्झज्जा, तेण तं तं समायरे // 11 // इमं व धम्ममादाय, कासवेण पवेइयं / कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स, अगिलाए समाहिए // 20 // संखाय पेसलं धम्म, दिट्टिमं परिनिव्वुडे / उवसग्गे नियामित्ता, ग्रामोवखाए परिवएज्जाऽसि // 21 // तिमि // इति तृतीयाध्ययने तृतीयोद्देशकः // 3-3 // (गाथाग्रं 234) // अथ तृतीयाध्ययने चतुर्थोद्देशकः // ग्राहं च महापुरिमा, पुब्बिं तत्ततवोधणा / उदएण सिद्धिमावन्ना, तत्य मदो विसीपति॥ 1 // अभुजिया नमी विदेही, रामगुत्ते य भुजिया। बाहुए उदगं भोचा, तहा नारायणे रिसी // 2 // ग्रामिले देविले चेव, दीवायण महारिसी / पारासरे दगं भोचा, बीयाणि हरियाणि य॥३॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 156 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः एते पुत्वं महापुरिसा, याहिता इह संमता। भोचा बीयोदगं सिद्धा, इति मेयमणुस्सुयं // 4 // तत्थ मंदा विसीयंति. वाहन्छिन्ना व गद्दभा। पिट्ठतो परिसप्पंति, पिट्ठसप्पी य संभमे // 5 // इहमेगे उ भासंति (मन्नति), सातं सातेण विज्जती / जे तत्थ पारियं मग्गं, परमं व समाहिए (यं) // 6 // मा एवं अवमन्नंता, अप्पेणं लुपहा बहुं / एतस्स (उ) अमोवखाए, अयोहारिव्व जूरह // 7 // पाणाइवाते वदता, मुसावादे असंजता / दिन्नादागो वटता, मेहुणे य परिग्गहे // 8 // एवमेगे उ पासत्था, पन्नवंति अणारिया / इत्थीवसं गया बाला, जिणसामणपरम्मुहा // 1 // जहा गंडं पिलागं वा, परिपीलेज मुहुत्तगं / एवं विनवणित्थीसु, दोसो तत्थ कयो सिया ? // 10 // जहा मंधादए नाम, थिमिग्रं भुजती दगं / एवं विनवणित्थीसु, दोसो तत्थ कयो सिया ? // 11 // जहा विहंगमा पिंगा, थिमिग्रं भुजती दगं / एवं विनवणित्थीसु, दोसो तत्थ कयो सिया ! // 12 // एवमेगे उ पासस्था, मिच्छादिट्ठी अणारिया / अज्झोववन्ना कामेहिं, पूयणा इव तरुणए // 13 // अण्णागयमपस्संता, पञ्चुप्पन्नगवेसगा / ते पच्छा परितप्पंति, खीगो ग्राउंमि जोव्वणे // 14 // जेहिं काले परिक्कतं, न पच्छा परितप्पए / ते धीरा बंधणुम्मुक्का, नारखंति जीविग्रं // 15 // जहा नई वेयरणी, दुत्तरा इह संमता / एवं लोगंसि नारीयो, दुरुत्तरा अमईमया // 16 // जेहिं नारीण संजोगा, पूयणा पिट्ठतो कता / सव्वमेयं निराकिच्चा, ते ठिया सुसमाहिए // 17 // एते योघं तरिस्संति, समुद्द ववहारिणो / जत्थ पाणा विसन्नासि, किच्चंती सयकम्मुणा / / 18 // तं च भिवखू परिण्णाय, सुब्बते समिते चरे / मुसावायं च वजिन्जा अदिनादाणं च वोसिरे // 11 // उड्डमहे तिरियं वा, जे केई तसथावरा / सव्वत्थ विरतिं कुजा, संति निव्वाण माहियं .20 // इमं च धम्ममादाय, कासवेण पवेदितं / कुजा भिक्खू गिलाणस्प, अगिलाए समाहिए // 21 // संखाय पेसलं धम्म, Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 4 ] [157 दिट्ठिमं परिनिव्वुडे / उवसग्गे नियामित्ता, ग्रामोक्खाए परिव्वएजासि // 22 // त्तियाम / / इति तृतीयाध्ययने चतु द्देशकः / / 3-4 / / इति तृतीयमध्ययनम् // 3 // // अथ चतुर्थे स्त्रीपरिज्ञाध्ययने प्रथमोद्देशकः // __जे मायरं च पियरं च, विप्पजहाय पुव्वसंजोगं / एगे सहिते चरि. स्सामि, भारतमेहुणो विवित्तेसु (विवित्तेसि) // 1 // सुहुमेणं तं परिक्कम्म, छन्नपएण इथियो मंदा / उब्वायंपि ताउ जाणसु (जाणंति), जहा लिस्संति भिक्खुणो एगे // 2 // पासे भिसं णिसीयंति अभिक्खणं पोसवत्थं परिहिंति। कायं अहेवि दंसंति, बाहू उद्भट्टु काखमणुव्वजे // 3) सयणासणेहिं जोगेहि इथियो एगता णिमंतंति / एयाणि चेव से जाणे, पासाणि विरूवरूवाणि // 2 // नो तासु चक्खु संधेजा, नोविय साहसं समभिजाणे / णो सहियंपि विहरेजा, एवमप्पा सुरक्खियो होइ // 5 // ग्रामतिय उस्सविया भिक्खु यायला निमंतति / एताणि चेव से जाणे, सहाणि विस्वरूवाणि // 6 // मणबंधणेहिं णेगेहिं, कलुण विणीयमुवगसित्ताणं / अदु मंजुलाई भासंति, श्राणवयंति भिन्नकहाहिं // 7 // सीहं जहा व कुणिमेणं, निभयमेगचरंति पासेणं / एवित्थियाउ बंधति, संवुडं एगतियमणगारं // 8 // यह तत्थ पुणो णमयंती, रहकारो व णेमि ग्राणुपुबीए / बद्धे मिए व पासेणं, फंदते वि ण मुच्चए ताहे // 6 // ग्रह सेऽणुतप्पई पच्छा, भोच्चा पायसं व विसमिस्सं / एवं विवे(विवा गमादाय, संवासो नवि कप्पए दविए // 10 // तम्हा उ वजए इत्थी, विसलित्तं व कंटगं नच्चा / योए कुलाणि वसवत्ती, याशते ण सेवि णिग्गंथे // 11 // जे एवं उंछ अणुगिद्धा, अन्नयरा हुंति कुसीलाणं / सुतवस्तिएवि से भिक्खू, नो विहरे सह णमित्थीसु // 12 / / अवि धूयराहि सुराहाहिं, धातीहिं अदुव दासीहिं / महतीहिं वा कुमारीहिं, संथवं से न कुजा गुणगारे // 13 // यदु गाइणं च सुहीणं वा, अप्पियं Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 158 ] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः दछ एगता होति। गिद्धा सत्ता कामेहि, रक्खणपोसणे मणुस्सोऽसि // 14 // समणंपि दठ्ठदासीणं (समणं द णु दासीणं) तत्थवि ताव एगे कुप्पंति / अदुवा भोयणेहिं णत्थेहिं, इत्थीदोसं संकिणो होति // 15 // कुव्वंति संथवं ताहिं, पन्भट्ठा समाहिजोगेहिं / तम्हा समणा ण समेति, पायहियाए सरिणसेज्जायो // 16 // बहवे गिहाई अवहटु, मिस्सी. भावं पत्थुया (पराणता) य एगे / धुवमग्गमेव पवयंति, वायावीरियं कुसीलाणं // 17 // सुद्धं रखति परिसाए, यह रहस्संमि दुक्कडं करेंति / जाणंति य णं तहाविहा, माइल्ले महासढेऽयंति // 18 // सयं दुकडं च न वदति, थाइट्ठोवि पकत्थति बाले / वेयाणुवीइ मा कासी, चोइज्जतो गिलाइ से भुजो // 11 // श्रोसियावि इत्थिपोसेसु, पुरिसा इत्थिवेयखेदन्ना। पराणासमन्निता वेगे, नारीणं वसं उवकसति // 20 // अवि हत्थपादछेदाए, अदुवा वद्धमंसउक्कते / अवि तेयसाभितावणाणि, तच्छियखारसिंचणाई च // 21 // अदु कराणणालच्छेदं, कंठच्छेदणं तितिवखंती / इति इत्थ पावसंतत्ता, नय बिति पुणो न काहिंति // 22 // सुंतमेतमेवमेगेसिं, इत्थीवेदेति हु सुयक्खायं / एवंपि ता वदित्ताणं, अदुवा कम्मुणा अवकरेंति // 23 // अन्नं मणेण चिंतेति, वाया अन्नं च कम्मणा यन्नं / तम्हा ण सदह भिक्खू, बहुमायायो इत्थियो णचा // 24 // जुवती समणं ब्रूया, विचित्तऽलंकारवत्थगाणि परिहित्ता / विरता चरिस्तहं रुवखं (मौन), धम्ममाइवखणे भयंतारो॥२४॥अदु साविया पवाएणं, ग्रहमंसि साहम्मिणीय समणाणं / जउकुभे जहा उपजोई, संघासे विदू विसीएज्जा // 26 // जतुकुभे जोइउवगूढे, बासुऽभितत्ते णासमुवयाइ / एवित्थियाहिं श्रणगारा, संवासेण णासमुवयंति // 27 // कुव्वंति पावगं कम्म, पुट्ठा वेगेवमाहिंसु / नोऽहं करेमि पावंति, अंकसाइणी ममेसत्ति // 28 // बालस्स मंदयं बीयं, जंत्र कडं अवजाणई भुजो / दुगणं करेइ से पावं, पूयणकामो विसन्नेसी Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 4 ] / 156 // 26 // संलोकणिजमणगारं, पायगयं निमंतणेणाहंसु / वत्थं च ताइ ! पायं वा, अन्नं पाणगं पडिग्गाहे ॥३०॥णीवारमेवं बुज्झेजा, णो इच्छे अगारमागंतु / बद्धे विसयपासेहिं, मोहमावज्जइ पुणो मंदे // 31 // तिमि (गाथाग्रं 287) // इति चतुर्थाध्ययने प्रथमोद्देशकः / / 4-1 // // अथ चतुर्थाध्ययने द्वितोयोद्देशकः // योए सया ण रज्जेजा, भोगकामी पुणो विरज्जेजा। भोगे समणाण सुणेह, जह मुंजंति भिक्खुणो एगे // 1 // अह तं तु भेदमावन्नं, मुच्छितं भिक्खु काममतिवटें / पलिभिदिया णं तो पच्छा, पादुटु मुद्धि पहणंति // 2 // जइ केसिया णं मए भिक्खू, णो विहरे सह णमिस्थीए / केसाणऽविह लुचिस्सं, नन्नत्थ मए चरिजासि // 3 // ग्रह णं से होई उबलद्धो, तो पेसंति तहाभूएहिं / अलाउच्छेदं पेहेहि, वग्गुफलाइं थाहराहित्ति // 4 // दारूणि सागपागाए अन्नपागाय, पजोयो वा भविस्सती रायो / पाताणि य (पोताणि य) मे रयावेहि, एहि ता मे पिट्ठयोमद्दे // 5 // वत्थाणि य मे पडिलेहेहि, अन्नं पाणं च याहराहित्ति। गंधं (गंथं) / रयोहरणं च, कासवगं च मे समणुजाणाहि // 6 // अदु अंजणिं अलंकारं, कुक्कययं (कुक्कुइयं-घर्घर) मे पयच्छाहि / लोद्धं च लोद्ध कुसुम च, वेणुपलासियं च गुलियं च // 7 // कुटं तगरं च अगरु, संपिटटं मम्मं उसिरेणं / तेल्लं मुहभिजाए (भिगडलिजाए-भिलिजए) वेणुफलाई सनिधानाए // 8 // नंदीचुराणगाई पाहराहि, छत्तोबाणहं च जाणाहि / सत्थं च सूवच्छेजाए, वाणीलं च वत्थयं रयावेहि // 1 // सुफाणि व सागपागाए, अामलगाइं दगाहरणां च / तिलगकरणिमंजणगलागं, प्रिंसु मे विहणायं विजाणेहि // 10 // संडासगं च फणिहं च, Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सीहलिपासगं च प्राणाहि / बादंसगं च पयच्छाहि, दंतपवखान / पवेप्ताहि // 11 // पूयफलं तंबोलयं, सूईसुत्तगं च जाणाहि / कोसं च मोवमेहाए, सुप्पुक्खलगं च खारगालणं च // 12 // चंदालगं च करगं च, वचचरं च पाउसो ! खणाहि / सरपाययं च जायाए, गोरहगं च सामणेरार // 13 // घडिगं च सडिडिमयं च, चेलगोलं कुमारभूयाए / वासं समभिवावराणं, श्रावसहं च जाण भत्तं च // 14 // श्रासंदियं च नवसुत्तं, पाउल्लाइं संकमट्ठाए / अदु पुत्तदोहलट्ठाए, ग्राणप्पा हवंति दासा वा // 15 // जाए फले समुप्पन्ने, गेराहसु वा गां ग्रहवा जहाहि / अहं पुत्तयोसिणो एगे, भारवहा हवंति उट्टा वा // 16 ॥रायोवि उठ्ठिया संता, दारगं च संवंति धाई वा / सुहिरामणा वि ते संता, वत्थथोवा हवंति हंसा वा // 17 // एवं बहुहिं कयपुर्व, भोगत्थाए जेऽभियावन्ना / दासे मिइव पेसे वा, पसुभूतेव से ण वा केई // 18 // एवं खु तासु विनप्पं, संथवं संवासं च वज्जेजा / तजातिया इमे कामा, वजकरा य एवमक्खाए।। 16 // एयं भयं ण सेयाय, इइ से अप्पगं निरुभित्ता / णो इत्थिं णो पसु भिक्खू , णो सयं पाणिणा णिलिज्जेजा // 20 // सुविसुद्धलेसे मेहावी, परकिरियं च वजए नाणी / मणसा वयसा कायेगां, सव्वफाससहे अणगारे // 21 // इच्चेवमाहु से वीरे, धुश्ररए धुअमोहे (धुराजमग्गे) से भिवखू / तम्हा अज्झत्थविसुद्धे, सुविमुक्के (विहरे) ग्रामोवखाए परिव्वएज्जा सि // 22 // तिबेमि // (गाथा 301) // इति चतुर्थाध्ययने द्वितीयोद्देशकः // 4-2 // इति चतुर्थाध्ययनम् 4 // Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमन्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 5 ] [ 161 // अथ पञ्चमे नरकविभक्त्यध्ययने प्रथमोद्देशकः // ____ पुच्छिरसऽहं केवलियं महेसिं, कहं भितावा गरगा पुरस्था ? / अजा यो मे मुण ब्रूहि जाण, कहिं नु बाला नरयं उविति ? // 1 // एवं मए पुढे महाणुभावे, इणमोऽस्वी कासवे श्रास्लुपन्ने / पवेदइस्सं दुहमट्ठदुग्गं, यादीणियं दुक्कडियं (दुकडिणं) पुरथा // 2 // जे केइ बाला इह जीवियट्टी, पावाई कम्माई करंति रुदा / ते घोररूवे तमिसं क्यारे, तिव्वाभितावे नरए पति // 3 // तिवं तसे. पाणिणो थावरे य, जे हिंसती यायसुहं पडुच्चा / जे लूमए होइ अदत्तहारी, ण सिक्खती सेयवियस्स किंचि // / // पागन्भि पाणे बहुणं तिवाति, अनिव्वते घातमुवेति बाले / णिहो णिसं गच्छति अंतकाले, ग्रहोसि कट्टु उवेइ दुग्गं // 5 // हण छिदह भिंदा णं दहेति, सद सुणिंता परहम्मियाणं / ते नारगायो भयभिन्नसन्ना, कंखंति कन्नाम दिसं वयामो ! // 6 // इंगालरातिं जलियं सजोतिं, तत्तोवमं भूमिमणुकमंता। ते डझगणा कलुणं थणंति, अरहस्सरा तत्थ चिरद्वितीया // 7 // जइ ते सुया वेयरणी भिदुग्गा, णिसियो जहा खुर इव तिवखसोया / तरंति ते वेपरणी भिन्गां, उसुचोइया सत्तिसु हम्ममाणा ॥८॥कीलेहिं विझति असाहुक मा, नावं उविते सइविप्पहूणा / अन्ने तु सूलाहिं तिसूलियाहिं, दीहाहिं विद्धूण ग्रहेकरंति // 1 // केसिं च बंधित्तु गले सिलायो, उदगंसि बोलंति महालयसि / कलंबुयावालुय मुम्मुरे य, लोलंति पच्चंति य तत्थ अन्ने // 10 // अ(या)सूरियं नाम महाभितावं, अंधंतमं दुप्पतरं महंतं / उड्दं अहे तिरियं दिसासु, समाहियो (समूसिया) जत्थगणी झियाई // 11 // जंसी गुहाए जलणेऽतिउटे, अविजाणयो डज्मइ लुत्तपराणो। सया य कलुणं पुण घम्मठाणं, गाढोवणीयं अतिदुक्खधम्मं // 12 // चत्तारि अगणीयो समारभित्ता, जहि कूरकम्माऽभितविति बालं / ते तत्थ चिठंतऽ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 ] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः भितप्पमाणा, मच्छा व जीवंतुवजोतिपत्ता // 13 // संतच्छणं नाम महाहितावं, ते नारया जत्थ असाहुकम्मा। हत्थेहिं पाएहि य बंधिऊणं, फलगं व तच्छंति कुहाडहत्था // 14 // रहिरे पुणो वच्चसमुस्सियंगे, भिन्नुत्तमंगे वरिवत्तयंता / पयंति णं णेरइए फुरते, सनीयमच्छे व अयोकवल्ले // 15 // नो चेव ते तत्थ मसीभवंति, ण मिजती तिव्यभिवेयणाए / तमाणुभागं अणुवेदयंता, दुक्खंति दुक्खी इह दुक्कडेणं // 16 // तहिं च ते लोलणसंपगाढे, गाढं सुतत्तं अगणिं वयंति / न तत्थ सायं लहती भिदुग्गे, अरहिया (अरभिया) भितावा तहवी तविति // 17 // से सुचई नगरवहे व सद्दे, दुहोवणीयाणि पयाणि तत्थ / उदिण्णकम्माण उदिराणकम्मा, पुणो पुणो ते मरहं दुहेति // 18 // पाणेहिं णं पाव वियोजयंति, तं भे पयक्खामि जहातहेणं / दंडेहिं तत्था सरयंति बाला, सव्वेहिं दंडेहि पुराकरहिं // 11 // ते हम्ममाणा णरगे पडंति, पुन्ने दुरूपस्स महाभितावे / ते तत्थ चिट्ठति दुरूवभक्खी, तुझंति कम्मोवगया किमोहिं // 20 // सया कसिणं पुण घम्मठाणं, गाढोवणीयं अतिदुक्खधम्मं / अंसु पक्खिप्प विहत्तु देहं, वेहेण सीसं सेभितावयंति // 21 // छिदंति बालस्स खुरेण नवकं, उठेवि छिदंति दुवेवि करणे / जिभं विणिकस्स विहत्थिमित्तं, तिक्खाहिं सूलाहिभितावयंति // 22 // ते तिप्पमाणा तलसंपुडंव, राइंदियं तत्थ थणंति बाला / गति ते सोणियप्वयमंसं, पजोइया खारपइद्धियंगा // 23 // जइ ते सुता लोहितपूथपाई, बालागणी तेयगुणा परेणं / कुभी महंताहियपोरसीया, समूसिता लोहियपूयपुगणा // 24 // पक्खिप्प तासु पययंति बाले, अट्टस्तरे ते कलुणं रसंते। तराहाइया ते तउतंवतत्तं, पजिजमाणा ट्टतरं रसंति // 25 // अप्पेण अप्पं इह वंचइत्ता, भवाहमे पुब्बसते सहस्से / चिठ्ठति तत्था बहुकूरकम्मा, जहा कडं कम्म तहासि भारे // 26 // समजिणित्ता कलुसं अणज्जा, इठेहिं कंतेहि य विप्पहूणा / ते दुन्भिगंधे Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 5 ] [ 163 कसिणे य फासे, कम्मोवगा कुणिमे श्रावसंति // 27 // तिबेमि // (गाथाग्रं 336) // इति पश्चमध्ययने प्रथमोद्देशकः / / 5-1 // // अथ पञ्चमाध्ययने द्वितीयोद्देशकः // ग्रहावरं सासयदुवखधम्म, तं मे पवक्खामि जहातहेणं / बाला जहा दुक्कडकम्मकारी, वेदंति कम्माइं पुरेकडाई // 1 // हत्थेहिं पाएहि य बंधिऊणं, उदरं विकत्तंति खुरासिएहिं / गिरिहत्तु बालस्स विहत्तु देहं, वद्धं थिरं पिट्ठतो उद्धरंति // 2 // बाहू पकत्तंति (पकप्पत्ति) य मूलतो से, थूलं विमं मुहे बाडहति / रहंसि जुत्तं सरयंति बालं, पारुस्स विझति तुदेण पिठे // 3 // अयंव तत्तं जलियं सजोइ, तऊवमं भूमिमणुकमंता / ते डझमाणा कलुणं थणंति, उसुचोइया तत्तजुगेसु जुत्ता // 4 // बाला बला भूमिमणुकमंता, पविज्जलं लोहपहं च तत्तं / जंसीऽभिदुग्गंसि पवज्जमाणा, पेसेव दंडेहिं पुराकरंति // 5 // ते संपगादसि पवज्जमाणा, मिलाहिं हम्मति निपातिणीहिं / संतावणी नाम चिरद्वितीया, संतप्पती जत्थ असाहुकम्मा // 6 // कंडूसु पक्खिप्प पयंति बालं, ततोवि दड्डा पुण उप्पयंति / ते उड्ढकाएहिं पखज्जमाणा, अवरेहिं खजंति सणफएहिं // 7 // समूसियं नाम विधूमगणं, जं सोयतत्ता कलुणं थणंति / अहोसिरं कट्टु विगत्तिऊणं, अयंत्र सत्येहिं समोसवेति // 8 // समूसिया तत्थ विसूणियंगा, पाखीहिं खजंति अयोमुहेहिं / संजीवणी नाम चिरद्वितीया, जंसी पया हम्मइ पावचेया // 1 // तिक्खाहिं सूलाहि निवाययंति (भितावयंति) वसोगयं सावययं व लद्धं / ते सूलविद्धा कलुणं थणंति, एगंतदुवखं दुहयो गिलाणा ॥१०॥सया जलं नाम निहं महंतं, जंसी जलंतो अगणी अकट्ठो। चिट्ठति बद्धा बहुकूरकम्मा, अरहस्सरा केइ चिरद्वितीया // 11 // चिया Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः महंतीउ समारभित्ता, छुम्भंति ते तं कलुणं रसंतं / श्रावती तत्थ असाहुकम्मा, सप्पी जहा पडियं जोइमज्झे // 12 // सदा कसिणं पुण घम्मयणं गाढोवणीयं अइदुक्खधम्मं / हत्थेहिं पाएहि य बंधिऊणं, सत्तुव्व डंडेहिं समारभंति // 13 // भंजति बालरस वहेण पुट्ठी, सीसपि भिदंति अयोघणेहिं / ते भिनदेहा फलगंव तच्छा, तत्ताहिं बाराहिं णियोजयंति // 14 // अभिजुजिया रुद्द असाहुकम्मा, उसुचोइया हथिवहं वहति / एगं दुरूहित्तु दुवे ततो वा, थारुस्स विझति ककाणयो से // 15 // बाला बला भूमिमणुकमंता, पविजलं कंटइलं महंतं / विवद्धतप्पेहिं विव. राणचिते, समीरिया कोट्टबलि करिति // 16 // वेतालिए नाम महाभितावे, एगायते पव्वयमंतलिक्खे / हम्मति तत्था बहुकूरकम्मा, परं सहस्साण मुहुत्तगाणं // 17 // संवाहिया दुकडिणो थणंति, ग्रहो य रायो परितप्पमाणा / एगंतकूडे नरए महंते, कूडेण तत्था विसमे हता उ // 18 // भंति णं फुधमरी सरोसं, समु गरे ते मुसले गहेतु। ते भिन्नदेश रुहिरं वमंता, योमुद्रगा धरणितले पडंति // 16 // अणासिया नाम महासियाला, पागभिणो ताथ सयायकोवा / खज्जति तत्था बहुकूरकम्मा, अदूरगा संकलियाहि बद्धा // 20 // सयाजला नाम नदी भिदुग्गा, प.वेज्जलं लोहविलीणतत्ता / जंसी भिदुग्गंसि पवज्जमाणा, एगायऽताणुकमगां करेंति // 21 // एयाई फासाइं फुसंति घालं, निरंतरं तत्थ चिरद्वितीयं / ण हम्ममाणस्स उ होइ ताणं, एगो सयं पचणुहोइ दुक्खं // 22 // जं जारिसं पुरमकासि कम्म, तमेव यागच्छति संपराए। एगंतदुक्खं भवमजगित्ता, वेदंति दुक्खी तमणंतदुक्खं // 23 // एताणि सोचा णगाणि धीरे, न हिंसए किंचण सव्वलोए / एगंतदिट्ठी अपरिग्गहे उ, बुझिज लोयस्स वसं न गच्छे // 24 // एवं तिरिक्खे मणुयासु(म)रेसु, चतुरन्तऽणतं तयणुब्बिवागं / स सव्वमेयं इति वेदइत्ता, कंखेज कालं धुयमायरेज्ज // 25 // तिबेमि (गाथा 361) / / / इति पञ्चमाध्ययने द्वितियोद्देशकः / / 5-2 / / / / इति पञ्चमायनंम् / / 5 / / Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] [165 // अथ श्रीवीरस्तुत्याख्यं षष्ठमध्ययनम् // पुच्छिस्सु णं समणा माहणा य, अगारिणो या परतिस्थिया य / सं केइ णेगंतहियं धम्ममाहु, अणेलिसं साहु ममिक्खयाए // 1 // कहं च णाणं कह दंसणं से, सौलं कहं नायसुतस्त श्रासी ? / जाणासि गां भिक्खु जहातहेणं, अहासुतं ब्रूहि जहा णिसतं // 2 // खेयन्नए से कुसला. सुपन्ने (कुसले महेसी), श्रणांतनाणी य अशांतदंसी / जसंसिणी चक्खुपहे ठियरस, जाणाहि धम्मं च धियं च पेहि // 3 // उडढं अहेयं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा / से णिचणिच्चेहि समिवख पन्ने, दीवे व धम्म समियं उदाहु // 4 // से सम्बदंसी अभिभूयनाणी, गिरामगंधे धिइमं ठितप्पा / अणुतरे सबजगंसि विज्जं, गंथा अतीते अभए यणाऊ // 5 // से भूइपगणे अणिएयचारी, श्रोहंतरे धीरे अगांतचवग्वृ / अणुत्तरं तप्पति सूरिए वा, वइरोयणिंदे व तमं पगासे // 6 // अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं, ोया मुणी कासव यासुपन्ने / इंदेव देवाण महाणुभावे, सहस्सणेता दिवि गां विसिठे // 7 // से पन्नया अक्खयसागरे वा, महोदही वावि अशांतपारे। / अणाइले वा अकसाइ मुक्के (भिक्खू ), सक्केव देवाहिवई जुईमं // 8 // से वीरिएगां पडिपुन्नवीरिए, सुदंसणे वा णगसव्वसे? / सुरालए वासि(दि). मुदागरे से, विरायए गोगगुणोववेए // 6 // सयं सहस्साण उ जोयणागां, तिकंडगे पंडगवेजयंते / से जोयणे णरणवते सहरसे, उद्धस्सितो हेट्ठ महस्समेगं // 10 // पुठे गभे चिट्ठइ भूमिवट्टिए, जं सूरिया अणुपरिवट्रयति / से हेमवन्ने बहुनंदणे य, जंसी रतिं वेदयंती महिंदा / / 11 / / से पव्यए सहमहप्पगासे, विरायती कंचणमट्ठवन्ने / अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे गिरीवरे से जलिएव भोमे // 12 // महीइ मझमि टिते णगिंद, पन्नायते सूरियसुद्धलेसे / एवं सिरीए उमः भूरिवन्ने, मणोरमे जोयइ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः अचिमाली // 13 // सुदंसणरसेव जसो गिरिस्स, पवुचई महतो पव्वयस्स / एतोवमे समणे नायपुत्ते, जातीजसोदंसणनाणसीले // 14 // गिरीवरे वा निसहाऽऽययाणं, स्यए व सेट्ठे वलयायताणं / तोवमे से जगभूइपन्ने, मुणीण मज्झे तमुदाहु पन्ने // 15 // अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं मियाइ / सुसुक्कसुवकं अपगंडसुवकं, संखिंदुएगंतवदातसुवर्क // 16 // अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता / सिद्धि गति (गते) साइमणंतपत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेण // 17 // रुखेसु णाते जह सामली वा, जस्सिं रति वेययती सुवन्ना / वणेसु वा णंदणमाहु सेट्ठं, नाणेण सीलेण य भूतिपन्ने // 18 // थणियं व सहाण अणुत्तरे उ, चंदो व ताराण महाणुभावे / गंधेसु वा चंदणमाहु सेट्ट, एवं मुणीणं अपडिन्नमाहु // 16 // जहा सयंभू उदहीण सेठे, नागेसु वा धरणिंदमाहु सेठे / खोयोदए वा रस वेजयंते, तवोवहाणे मुणिवेजयते // 20 // हत्थीसु एरावणमाहु णाए, सीहो मिगाणं सलिलाण गंगा / पाखीसु वा गरुले वेणुदेवो, निव्वाणवादीणिह णायपुत्ते // 21 // जोहेसु णाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु / खत्तीण सेठे जह दंतवक्के, इसीण सेठे तह वद्धमाणे / / 22 // दाणाण सेटठं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति / तवेसु वा उत्तम बंभचेरं, लोगुतमे समणे नायपुत्ते // 23 // ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुहम्मा व सभाण सेट्ठा। निव्वाणसेट्ठा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि नाणी // 24 // पुढोवमे धुणइ विगयगेही, न सरिणहिं कुव्वति श्रासुपन्ने / तरिउं समुद्द व महाभवोघं, अभयंकरे वीर अणंतचक्खू // 25 // कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं चउत्थं अज्झत्थदोसा। एग्राणि वंता अरहा महेसी, ण कुवई पाव ण कारवेइ // 26 // किरियाकिरियं वेणइयाणुवायं, अरणाणियाणं पडियच्च ठाणं / से सव्ववायं इति वेयइत्ता, उवट्ठिए संजम Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 7 ] [ 167 दीहरायं // 27 // से वारिया इत्थी सराइभत्त, उवहाणवं दुक्खखयट्ठयाए / लोगं विदित्ता यारं परं च, सव्वं पभू वारिय सम्बवारं // 28 // सोचा य धम्मं श्ररहंतभासियं, समाहितं अट्ठपदोवसुद्धं / तं सदहाणा (सद्दहंता) य जणा श्रणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्संति // 21 // त्तिबेमि (गाथाग्रं 360) // इति षष्ठमध्ययनम् // 6 // // अथ कुशीलपरिभाषाख्यं सप्तममध्ययनम् // पुढवो य श्राऊ अगणी य वाऊ, तण रुक्ख बीया य तसा य पाणा। जे अंडया जे य जराउ पाणा, संसेयया जे रसयाभिहाणा // 1 // एयाइं कायाई पवेदिताई, एतेसु जाणे पडिलेह सायं / एतेण(हिं) कारण(हिं) य यायदंडे. एतेसु या विप्परियासुर्विति // 2 // जाईपहं अणुपरिव. ट्रमाणे, तसथावरेहिं विणिघायमेति ।से जाति जाति बहुकूरकम्मे, जं कुव्वती मिजति तेण बाले // 3 // अस्सिं च लोए अदुवा परत्था, सयग्गसो वा तह अनहा वा / संमारमावन्न परं परं ते, बंधति वेदंति य दुन्नियाणि // 4 // जे मायरं वा पियरं च हिच्चा, समणव्वए अगणिं ममारभिजा। अहाहु से लोए कुसीलधम्मे, भूताई जे हिंमति प्रायसाते // 5 // उजालयो पाण निवातएजा, निब्वावो अगणि निवायवेज्जा / तम्हा उ मेहावि ममिक्ख धम्मं, ण पंडिए अगणि समारभिजा // 6 // पुढवीवि जीवा श्राऊवि जीवा, पाणा य संपाइम संपयंति / संसेयया कट्ठसमस्सिया य, एते दहे अगणि समारभंते // 7 // हरियाणि भूताणि विलंबगाणि. श्राहार देहा य पुढो सियाई / जे छिंदती यायसुहं पडुच, पागन्भि पाणे बहुणं तिवाती // 8 // जातिं च बुद्धिं च विणासयते, बीयाई अस्संजय पायदंडे / अहाहु से लोए अणजधम्मे, बीयाइ जे हिंसति श्रायसाते // 1 // Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168 ] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः गम्भाई मिज्जति बुयाबुयाणा, णरा परे पंचसिहा कुमारा / जुवाणगा मझिम थेरगा (मझिम पोरसा) य, चयंति ते पाउखए पलीणा // 10 // संबुज्झहा जंतवो! माणुसत्तं, दद्रु भयं बालिसेणं अलंभो / एगंतदुक्खे जरिए व लोए, सकम्मुणा विप्परियासुवेइ // 11 // इहेग मूढा पवयंति मोक्खं, याहारसंपजणवजणेणं (याहारसपंचयवजणेणं, आहारयो पंचकवजणेणं)। एगे य सीयोदगसेवणेणं, हुएण एगे पवयंति मोक्खं // 12 // पायोसिणाणादिसु णत्थि मोक्खो, खारस्स लोणस्स यणासएणं / ते मजमंसं लसणं च भोचा, अन्नत्थ वासं परिकप्पयंति // 13 // उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पायं उदगं फुसंता। उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी, सिझिसु पाणा बहवे दगंसि // 14 // मच्छा य कुम्मा य सिरीसिवा य, मग्गू य उट्ठा(ट्टा) दगरवखसा य / अट्ठाणमेयं कुसला वयंति, उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति // 15 // उदयं जइ कम्ममलं हरेजा, एवं सुहं इच्छामित्तमेव / अंधं व णेयारमणुस्सरित्ता, पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा // 16 // पावाई कम्माई पकुवतो हि, सियोदगं तू जइ तं हरिजा / सिझिसु एगे दगसत्तघाती, मुसं वयंते जलसिद्धिमाहु // 17 // हुतेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पायं अगणिं फुसंता / एवं सिया सिद्धि हवेज तम्हा, अगणिं फुसंताण कुकम्मिणंपि // 18 // अपरिक्ख दिळं ण हु एव सिद्धी, एहिति ते घायमबुज्झमाणा / भूएहिं जाणं पडिलेह सातं, विज्ज गहायं तसथावरेहिं // 11 // थणंति लुप्पंति तसंति कम्मी, पुढो जगा परिसंखाय भिक्खू / तम्हा विऊ विरतो पायगुत्ते, दद्रुतसे या पडिसंहरेजा // 20 // जे धम्मलद्धं विणिहाय भुजे, वियडेण साहटु य जे सिणाई / जे धोवती लूसयतीव वत्थं, अहाहु से णागणियस्स दूरे // 21 // कम्म परिनाय दगंसि धीरे, वियडेण जीविज य श्रादिमोक्खं / से बीयकंदाइ अभुजमाणो, विरते सिणाणाइसु इत्थियासु // 22 // जे मायरं च पियरं च हिना, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 8 ] [ 166 गारं तहा पुत्तपसु धणं च / कुलाई जे धावइ साउगाई, ग्रहाहु से सामणियस्स दूरे // 23 / / कुलाई जे धावइ साउगाई, श्राघाति धम्मं उदराणुगिद्धे / अहाहु से पायरियाण सयंसे, जे लावएजा असणस्स हेऊ // 24 // णि खम्म दीणे परभोयणंमि, मुहमंगलीए उदराणुगिद्धे / नीवारगिद्धेव महावराहे, अदूरए एहिइ घातमेव // 25 // अन्नस्स पाणस्सिहलोइयस्स, अणुप्पियं भासति सेवमाणे / पासत्थयं चेव कुसीलयं च, निस्सारए. होइ जहा पुलाए / / 26 // अगणातपिंडेणहियासएजा, णो पूया तवसा. यावहेजा / सहहिं स्वेहिं असन्जमाणां, सब्वेहिं कामेहिं विणीय गेहिं // 27 // सव्वाइं संगाई अइच धीरे, सव्वाइं दुक्खाई तितिक्खमाणे / अखिले अगिद्धे अणिएयवारी, अभयंकरे भिक्खु अणाविलप्पा // 28 // भारस्स जत्ता (जाता) मुणि भुजएन्जा, कंखेज पावस्स विवेग भिक्खू / दुक्खेण पुढे धुयमाइएजा, संगामसीसे व परं दमेजा // 21 // अवि हम्ममाणे फलगावतट्ठी, समागमं कंखति अंतकस्स / णिधूय कम्मं ण पवंचुवेइ, अक्खक्खए वा सगडं तिबेमि // 30 // (गाथाग्रं 402) // इति सप्तममध्ययनम् // 7 // ॥अथ अष्टमं श्रीवीर्याध्ययनम् // - दुहा वेयं सुयक्खायं, वीरियंति पवुचई / किं नु वीरस्स वीरतं, कह चेयं पवुचई ? / / 1 // कम्ममेगे पवेदेति, अकम्मं वावि सुब्वया / एतेहिं दोहि ठाणेहिं, जेहिं दीसति मचिया // 2 // पमायं कम्ममाहंसु, अप्पमाय तहावरं / तभावादेसयो वावि, बालं पंडियमेव वा // 3 // सत्थमेगे तु सिक्खंता (सिक्खंति), अतिवायाय पाणिणं / एगे मंते अहिज्जंति, पाणभूयविहेडिणो / / 4 / / माइणो कटु माया य, कामभोगे समारभे (प्रारंभाय तिवट्टइ)। ता छेत्ता पगभित्ता, श्रायसायाणुगामिणो // 5 // मणसा Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170 ] _[ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो। पारयो परयो वावि, दुहावि य असंजया // 6 // वेराइं कुबई वेरी, तयो वेरेहिं रजती / पावोवगा य श्रारंभा, दुक्खफासा य अंतसो // 7 // संपरायं णियच्छंति, अत्तदुक्कडकारिणो / रागदोसस्सिया बाला, पावं कुव्वंति ते बहुं // 8 // एवं सकम्मवीरियं, बालाणां तु पवेदितं / इत्तो अकम्मविरियं, पंडियाणां सुणेह मे // 1 // दविए बंधणुम्मुक्के, सम्वो छिन्नबंधणे / पणोल्ल पावकं कम्म, सल्लं कंतति अंतसो (सल्लं कंतइ अप्पणो) // 10 // नेयाउयं सुयक्खायं, आदाय समीहए / भुजो भुजो दुहावासं, सुहत्तं तहा तहा // 11 // ठाणी विविहठाणाणि, चइस्संति ण संसश्रो / यणियते अयं वासे (अनिइए य संवासे), णायएहिं सुहीहि य // 12 // एक्मादाय मेहावी, अप्पणो गिद्धिमुद्धरे / पारियं उपसंपज्जे, सबधम्मकोवि यं // 13 // सह संमइए णचा, धम्मसारं सुणेत्तु वा। समुवट्ठिए उ अणगारे (उवट्ठिए य मेहावी), पचक्खायपावए // 14 // जं किंचुवकर्म जाणे (णच्चा), श्राउक्लेमस्स अप्पणो / तस्सेव अंतरा खिप्पं, सिक्खं सिवखेज पंडिए // 15 // जहा कुम्मे सयंगाई, सए देहे समाहरे। एवं पावाई मेधावी, यज्झप्पेण समाहरे // 16 // साहरे हत्थपाए य, मणं पंचें(सव्वें)दियाणि य / पावकं च परीणाम, भासादोमं च तारिसं // 17 // णु मागां च मायं च, तं पंडिन्नाय पंडिए (अइमाणां च मायं च तं परिगणाय पंडिए।), (सुयं मे इहमेगेसिं / एवं वीरस्स वीरियं), (पायतळं सुपादाय, एवं वीरस्स वीरियं), सातागाखणिहुए, उवसंते णिहं चरे॥१८॥ पाणे य णाइवाएजा. अदिन्नंपिय णादए। सादियं ण मुसं ब्रूया, एस धम्मे वुसीमयो // 11 // अतिकम्मति कायाए, मणसा वि न पत्थए / सव्वथो संवुडे दंते, पायाणं सुसमाहरे // 20 // कडं च कजमाणं.च, श्रागमिस्सं च पावगं / सव्वं तं णाणुजाणंति, श्रायगुत्ता जिइंदिया // 21 // जे याबुद्धा महाभागा, वीरा असमत्तदंसिणो / Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 9 ] [ 171 असुद्धं तेसिं परवकतं, सफलं होइ सव्वसो // 22 // जे य बुद्धा महाभागा, वीरा सम्मत्तदंसिणो। सुद्धं तेसिं परक्कंतं, अफलं होइ सव्वसो // 23 // तेसिपि तवो ण (इ) सुद्धो, निक्खंता जे महाकुला / जन्ने वन्ने वियाणंति, न सिलोगं पवेज्जए // 24 // अप्पपिंडासि पाणासि, अप्पं भासेज सुव्वए / खंतेऽभिनिव्वुडे दंते, वीतगिद्धी सदा जए // 25 // झाणजोगं सवाहटु, कायं विउसेज सव्वसो / तितिक्खं परमं णचा, श्रामोक्खाए परिव्वएजासि // 26 // (गाथाग्रं० 446) त्तिवेमि // // इति वोर्यालयमष्टममध्ययनम् // 8 // // अथ धर्माख्यं नवममध्ययनम् // कयरे धम्मे अक्खाए, माहणेण मतोमता / अंजु धामं जहातच्चं, जिणाणं तं सुणेह मे (जणगा तं सुणेह भे) // 1 // माहणा खत्तिया वेस्सा, चंडाला अदु बोकसा / एसिया वेसिया सुद्दा, जे य श्रारंभणिस्सिया // 2 // परिग्गहनिवि. ठाणं, पावं (वेरं) तेसिं पवडई / श्रारंभसंभिया कामा, न ते दुस्खविमोयगा // 3 // श्राघायकिञ्चमाहेउ, नाइयो विसएसिणो / अन्ने हरंति तं वित्तं, कम्मी कम्मेहिं किच्चती // 4 // माया पिया राहुसा भाया, भजा पुत्ता य श्रोरसा / नालं ते तर ताणाय, लुप्पंतस्स सकम्मुणा // 5 // एयम8 सपेहाए, परमट्ठा. णुगामियं / निम्ममो निरहंकारो, चरे भिक्खू जिणाहियं // 6 // चिचा वित्तं च पुत्ते य, णाइयो य परिग्गहं / चिच्चा ण अंतगं सोयं, (चिच्चाणऽगांतगं सोयं) निरवेक्खो परिव्वए // 7 // पुढवी उ अगणी वाऊ, तणरुक्खा सबीयगा / अंडया पोयजराऊ, रससंसेयउब्भिया // 8 // एतेहिं छहिं काएहि, तं विज्जं परिजाणिया। मणसा कायवक्केणं, णारंभी ण परिग्गही // 1 // मुसावायं बहिद्धं च, उग्गहं च अजाइया / सत्थादाणाई लोगंसि, तं विज्जं परिजाणिया // 10 // पलिउंचणं भयणं च, पंडिल्लु Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 172 ] [ श्रीमदागमसुघासिन्धुः :: प्रथमो विभागः यणाणि या / धूणादाणाई लोगंसि, तं विज्जं परिजाणिया // 11 // घोयणं रयणं चेव, बत्थीकम्मं विरेयणं / वमणंजण पलीमथं, तं विज्ज परिजाणिया // 12 // गंधमल्लमिणाणं च, दंतपक्खालणं तहा। परिग्गहित्थिकम्मं च, तं विज्जं परिजाणिया // 13 // उद्देसियं कीयगडं, पामिच्चं चेव पाहडं / पूयं श्रणेसणिज्जं च, तं विज्जं परिजाणिया // 14 // श्रासूणिमक्खिरागं च, गिद्धवघायकम्मगं / उच्छोलणं च कक्कं च, तं विज्जं परिजाणिया // 15 // संपसारी कयकिरिए, पसिणायतणाणि य / सागारियं च पिंडं च, तं विज्जं परिजाणिया // 16 // अट्ठावयं न सिक्खिज्जा, वेहाईयं च णो वए / हत्थकम्मं विवायं च, त विज्जं परिजाणिया // 17 // पाणहायो य छत्तं च, णालीयं वालवीयणं / परकिरियं अन्नमन्नं च, तं विज्जं परिजाणिया // 18 // उच्चारं पासवणं, हरिएसु ण करे मुणी / वियडेण वावि साहट्ट, णायमेजा(वमज्जे) कयाइवि // 11 // परमत्ते अन्नपाणं, ण भुजेज कयाइवि / परवत्थं अचेलोऽवि, तं विज्जं परिजाणिया // 20 // श्रासंदी पलियके य, णिसिज्जं च गिहतरे। संपुच्छणं सरणं वा, तं विज्जं परिजाणिया // 21 // जसं कित्तिं सलोयं च, जा य वंदणप्यणा / सब्बलोयंसि जे कामा, तं विज्जं परिजाणिया // 22 // जेणेहं णिव्वहे भिक्खू, अन्नपाणं तहाविहं / अणुप्पयाणमन्नेसिं, तं विज्ज परिजाणिया // 23 // एवं उदाहु निग्गंथे, महावीरे महामुणी / अणंतनाणदंसी से, धम्मं देसितवं सुतं // 24 // भासमाणो न भासेजा, णेव वंफेज मम्मयं / मातिट्टाणं विवज्जेज्जा, अणुचिंतिय वियागरे // 25 // तत्थिमा तइया भासा, जं वदित्ताऽणुतप्पती / जं छन्नं तं न वत्तव्वं, एसा बाणा णियंठिया // 26 // होलावायं महीवायं, गोयावायं च नो वदे / तुर्म तुमति अमणुन्नं, सब्यसो तं ण बत्तए // 27 // अकुसीले सया भिक्खू, णेव संसग्गियं भए। सुहरूवा तत्थुवस्मग्गा, पडिबुज्झेज ते विऊ // 28 // Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 10 ] [ 173 नन्नत्थ अंतराएणं, परगेहे ण णिसीयए / गामकुमारियं किड्ड, नातिवेलं हसे मुणी // 26 // अणुस्सुयो (अणिस्सियो) उरालेसु, जयमाणो परिव्वए। चरियाए अप्पमत्तो, पुट्ठो तत्थ हियासए // 30 // हम्ममाणो ण कुप्पेज, वुचमाणो न संजले / सुमणे अहियासिज्जा, ण य कोलाहलं करे // 31 // लद्धे कामे ण पत्थेजा, विवेगे एव(म)माहिए। यायरियाई सिवखेजा, बुद्धाण अंतिए सया // 32 // सुस्सूसम.णो उवासेज्जा, सप्पन्नं सुतवस्सियं / वीरा जे अत्तपन्नेसी, धितिमन्ता जिइंदिया // 33 // गिहे दीवमपासंता, पुरिसादाणिया नरा / ते वीरा बंधणु-मुक्का, नावकंखंति जीवियं // 34 // अगिद्धे सहकासेसु, ग्रारंभेसु चणिस्सिए / सव्वं तं समयातीतं, जमे लवियं बहु // 35 // अइमागां च मायं च, तं परिगणााय पंडिए / गारवाणि य सवाणि, गिब्यागां संधए मुणि // 36 // (गाथाग्रं 482) तिबेमि // . // इति नवममध्ययनम् / 9 // // अथ दशमं श्रीसमाध्याख्यमध्ययनम् // याचं मईमं मणुवीय धम्म, अंजू समाहि तमियां सुमेह / अपडिन्न भिक्खू उ समाहिपत्ते, अणियाण भूतेमु परिव्वराजा / / 1 / / उड्डअहे ये तिरियं दिसासु, तमा य जे थावर जे य पाणा / हत्थेहिँ पाएहिँ य संजमित्ता, यदिन्नमन्नेसु य णो गहेजा / / 2 // सुयक्खायधम्मे वितिगिच्छ: तिराणे, लाढे चरे बायतुले पयासु / यायं न कुजा इह जीवियट्ठी, चयं न कुजा सुतबस्ति भिक्खू // 3 // सबिंदियाभिनिव्वुडे पयासु, चरे मुणी सवतो विप्पमुक्के / पासाहि पाणे य पुढोवि सचे, दुक्खेण अटे परितप्पः माणे // 4 // एतेसु बाले य (एवं तु बाले) पकुवमाणे, श्रावट्टती (बाउदृति) कम्मसु पावएसु / अतिवायतो कीरति पावकम्म, निउंजमाणे उ करेइ कम्मं // 5 // यादीणविनीव (यादीणभूईवि) करेति पावं, मंता उ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः एगंतसमाहिमाहु / बुद्धे समाहीय रते विवेगे, पाणातिवाता विरते ठियप्पा (ठियचि) // 6 // सव्वं जगं तू समयाणुपेही, पियमप्पियं कस्सइ णो करेजा। उट्ठाय दीणो य पुणो विसन्नो, संप्यणां चेव सिलोयकामी // 7 / / श्राहा. कडं चेव निकाममीणे, नियामचारी य विसरणमेसी / इत्थीसु सत्ते य पुढो य बाले, परिग्गहं चेव पकुव्वमाणे // 8 // वेराणुगिद्धे (यारंभसत्तो णिचयं करेति, इयो चुते स इह(से दुह)मट्ठदुग्गं। तम्हा उ मेधावि समिक्ख धम्म, चरे मुणी सब्वउ विप्पमुक्के // 1 // श्रायं ण कुजा इह जीवियट्ठी, अस. जमाणो य परिव्वएजा / णिसम्मभासी य विणीय गिद्धिं, हिंसन्नियं वा. ण कहं करेजा // 10 // श्राहाकडं वा ण णिकामएज्जा, णिकामयंते य ण संथवेजा / धुगो उरालं अणुवेहमाणे, विच्चाण सोयं अणवेक्खमाणो // 11 // एगत्तमेयं श्रभिपत्थएजा, एवं पोलखो न मुसंति पासं / एसप्पमोक्खो अमुसे वरेवि, अकोहणे सञ्चरते तवस्सी // 12 // इत्थीसु या पारय मेहुणायो, परिग्गहं चेव अकुबमाणे / उच्चावएसु विसएसु ताई, निस्संसयं भिक्खु समाहिपत्ते // 13 // अरइं रई च अभिभूय भिक्खू, तणाइफासं तह सीयफासं / उराहं च दंसं चाहियासएजा, सुभि व दुभि व तितिक्खएज्जा // 14 // गुत्तो वईए य समाहिपत्तो, लेसं समाहर्ट्स परिवएजा। गिहं न छाए णवि छायएजा, संमिस्सभावं पयहे पयासु // 15 // जे केइ लोगंमि उ अकिरियथाया, अन्नेण पुट्ठा धुयमादिसति / श्रारंभसत्ता गढिता य लोए, धम्म ण जागांति विमुक्खहेउं // 16 // पुढो य छंदा इह माणवा उ, किरियाकिरीयं च पुढो य वायं / जायस्स बालस्स पकुव देहं (जायाए बालस्स पगभणाए), पवडती वेरमसंजतस्स // 17 // श्राउवखयं चेव अबुज्झमाणे, ममाति से साहसकारि मंदे / अहो य रायो परितप्पमाणे, अटेसु मूढे अजरामरेव्व // 18 // जहाहि वित्तं पसवो य सव्वं, जे बंधवा जे य पिया य मित्ता / लालप्पती सेऽवि य (गंधमुति) Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 11 ] [ 175 एइ मोहं, अन्ने जणा तसि हरंति वित्तं // 11 // सीहं जहा खुड्डुमिगा चरंता, दूरे चरंती परिसंकमाणा / एवं तु मेहावि समिक्ख धम्म, दूरेण पावं परिवजएजा // 20 // संबुज्झमाणे उ गरे मतीमं, पावाउ अप्पाण निवट्टएजा ।हिंमप्पसूयाई दुहाई मत्ता, वेराणुबंधीणि महब्भयाणि (निव्वा. णभूए व परिव्वएजा) // 21 // मुसं न ब्रूया मुणि अत्तगामी, णिवाणमेयं कसिगां समाह / सयं न कुज्जा न य कारवेजा, करंतमन्नपि य णाणुजाणे // 22 // सुद्धे सिया जाए न दूसएजा, अमुच्छिए ण य यज्मोव. वन्ने / घितिमं विमुक्के ण य पूयणट्ठी, न सिलोयगामी य परिवएज्जा // 23 // निक्खम्म गेहाउ निरावकंखी, कायं विउसेज नियाणछिन्ने / णो जीवियं णो मरणाभिकंखी, चरेज भिक्खू वलया विमुक्के // 26 // तिबेमि / / (गाथा 580) // इति दशममध्ययनम् // 10 // // अथ एकादशं श्रीमार्गाध्ययनम् // कयरे मग्गे अक्खाए, माहणेणं मईमता / जं मग्गं उज्जु पावित्ता, योहं तरति दुत्तरं // 1 // तं मग्गं णुत्तरं सुद्धं, सव्वदुक्खविमोक्खणं / जाणासि णं जहा भिक्खू !, तं णो ब्रूहि महामुणी // 2 // जइ णो केइ पुच्छिजा, देवा अदुव माणुसा / तेसिं तु कयरं मग्गं, बाइक्खेज ? कहाहि णो // 3 // जइ वो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा। तेसिमं पडिसाहिजा, मग्गतारं सुगोह मे (तेसिं तु इमं मग्गं, बाइक्खेज सुणेह में) // 4 // अणुपुब्वेण महाघोरं, कासवेण पवेइयं / जमादाय इयो पुवं, समुदं ववहारिणो // 5 // अतरिंसु तरंतेगे, तरिस्संति यणागया / तं सोचा पडिवक्खामि, जंतवो तं सुणेह मे // 6 // पुढवीजीवा पुढो सत्ता, अाउजीवा तहाऽगणी / बाउजीया पुढो मत्ना, तगारुक्खा सबीपगा // 7 // ग्रहावरा तसा पाणा, एवं Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 ] __ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः छक्काय पाहिया / एतावए (इत्ताव एव जीवकाए, नावरे विजती काए (क) (णावरे कोइ विजई) // 8 // सव्वाहि अणुजुत्तीहिं, मतिमं पडिलेहिया। सव्वे अवकंतदुक्खा य, अतो सव्वे न हिंसया // 6 // एवं खुणाणिणो सारं, जं न हिंसति कंचण / अहिंसा समयं चेव, एतावंतं विजाणिया // 10 // उड्ढे अहे य तिरियं, जे केइ तसथावरा / सव्वत्थ विरतिं विज्जा, संति निव्वाणमाहियं // 11 // पभू दोसे निराकिच्चा (निरिविखत्ता), ण विरुज्झेज केणई / मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो // 12 // संवुडे से महापन्ने, धीरे दत्तेसणं चरे / एसणासमिए णिच्चं, वजयंते अणेसणं // 13 // भूयाइं च समारंभ, तमुदिस्सा (भूयाई समारंभ, समुद्दिस्सा) य जंकडं / तारिसं तु ण गिराहेजा, अन्नपाणं सुसंजए // 14 // पूईकम्म न सेविजा, एस धम्मे बुसीमयो / ज किंचि अभिकखेज्जा, सव्वसो तं न कप्पए // 15 // हणंतं णाणुजाणेजा, पायगुत्ते जिइंदिए। ठाणाई संति सडीणं, गामेसु नगरेसु वा // 16 // तहा गिरं समारब्भ, अत्थि पुराणंति णो वए / ग्रहवा णत्थि पुराणंति, एवमेयं महन्भयं // 17 // दाणट्ठया य जे पाणा, हम्मति तसथावरा / तेसिं सारक्खणट्टाए, तम्हा अस्थिति णो वए // 18 // जेमिं तं उवकप्पंति, अन्नपाणं तहाविहं / तेसिं लाभंतरायंति, तम्हा णस्थित्ति णो वए // 16 // जे य दाणं पसंसंति, वहमिच्छति पाणिणं / जे य णं पडिसेहंति, वित्तिच्छेयं करंति ते // 20 // दुह योवि ते ण भासंति, अस्थि वा नस्थि वा पुणो / श्रायं रयस्स हेच्चा णं, निव्वाणं पाउणंति ते // 21 // निव्वाणं परमं बुद्धा, णवखत्ताण व चंदिमा। तम्हा सदा जए दंते, निव्वाणं संधए मुणी // 22 // वुममाणाण पाणाणं, किच्छताण सकम्मुणा / श्राघाति साहु तं दीवं, पतिठेसा पवुच्चई // 23 // श्रायगुत्ते सया दंते, छिन्नसोए श्रणासवे / जे धम्मं सुद्धमक्खाति, पडिपुन्नमणेलिसं // 24 // तमेव अविजाणंता, अबुद्धा बुद्धमाणिणो / बुद्धा मोत्ति य मन्नंता, Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 11 ] 1 177 अंत एते समाहिए // 25 // ते य बीयोदगं चेव, तमुहिस्सा य जं कडं / भोचा झाणं झियायंति, अखेयन्ना]समाहिया // 26 // जहा ढंका य कंका य, कुलला मग्गुका सिही / मच्छेसणं मियायंति, भाणं ते कलुसाधर्म // 27 // एवं तु समणा एगे, मिच्छट्ठिी अणारिया। विसएसणं झियायंति, कंका वा कलुसाहमा // 28 // सुद्धं मग्गं विराहित्ता, इहमेगे उ दुम्मती / उम्मग्ग(ग्गेण)गता दुक्खं, घायमेसंति तं तहा // 26 // जहा श्रासाविणिं नावं, जाइबंधो दुरूहिया / इच्छई पारमागंतु, अंतरा य विसीयति // 30 // एवं तु समणा एगे, मिच्छट्ठिी अणारिया। सोयं कसिणमावन्ना, श्रागंतारो महब्भयं // 31 // इमं च धम्ममादाय कासवेण पवेदितं / तरे सोयं महाघोरं, अत्तत्ताए परिव्वए (कुजा भिक्खु गिलाणस्स अगिलाए समाहिए) // 32 // विरए गामधम्मेहिं, जे केई जगई जगा। तेसिं अत्तुवमायाए, थाम कुव्वं परिवए // 33 // श्रइमाणं च, तं परिन्नाय पंडिए / सव्वमेयं णिराकिचा, गिवाणं संधए मुणी // 34 // संधए (सदहे) साहुधम्मं च, पावधम्म णिराकरे / उवहाणवीरिए भिक्खू, कोहं माणं ण पत्थए (च वजए)॥३५॥ जे य बुद्धा अतिक्कता, जे य बुद्धा श्रणागया। संति तेसिं पइट्ठाणं, भूयाणं जगती जहा // 36 // अह णं वयमावन्नं, फासा उच्चावया फुसे। ण तेसु विणिहराणेजा, वारण व महागिरी // 37 // संवुडे से महापन्ने, धीरे बुद्धे दत्तेसणं चरे। निव्वुडे कालमाकंखी, एयं केवलिणो मयं // 38 // तिबेमि / (गाथा 546) // इति एकादशमध्ययनम् // 11 // ... Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विमागः // अथ द्वादशं श्रीसमवसरणाध्ययनम् // ___चत्तारि समोसरणाणिमाणि, पावाया जाई पुढो वयंति / किरियं अकिरियं विणियंति तइयं, अन्नाणमाहंसु उत्थमेव // 1 // श्ररणाणिया ता कुसलावि संता, असंथुया णो वितिगिच्छतिना। अकोविया बाहु अकोवियेहिं, अणाणुवीइत्तु मुसं वयंति // 2 // सच्चं असच्चं इति चिंतयंता, असाहु साहुत्ति उदाहरंता। जेमे जणा वेणइया अणेगे, पुढावि भावं विणइंसु णाम // 3 // अणोवसंखा इति ते उदाहू, अढे स प्रोभासइ अम्ह . एवं / लवावसंकी य श्रणागएहिं, णो किरियमाहंसु अकिरियवादी // 4 // सम्मिस्तभावं च गिरा गहीए, से मुम्मुई होइ प्रणाणुवाई / इमं दुपक्खं इमोगपक्वं, श्राहंसु छलायतणं च कम्मं // 5 // ते एवमक्खंति अबुज्ममाणा, विरूवख्वाणि अकिरियवाई। जे मायइना बहवे मणूमा, भमंति संसारमणोवदग्गं ॥६॥णान्चो उएइ ण अत्थमेति, ण चंदिमा वड्डति हायती वा / सलिला ण संदंति ण वंति वाया, वंझो णियतो कसिणे हु लोए // 7 // जहाहि अंधे सह जोतिणावि, रूवाई णो पस्सति हीणोत्ते। संतंपि ते एवमकिरियवाई, किरियं ण पस्संति निरुद्धपन्ना // संवच्छर सुविणं लक्खणं च, निमित्तदेहं च उप्पाइयं च / अटुंगमेयं बहवे अहित्ता, लोगंसि जाणंति प्रणागताई // 6 // केई निमित्ता तहिया भवंति, केसिंचि तं विष्पडिएति णाणं (माण) / ते विजभावं अणहिजमाणा, याहंसु विजापरिमो. क्खमेव (जाणामु लोगंसि वयंति मंदा)॥१०॥ ते एवमक्खंति समिञ्च लोगं, तहा तहा (गया)समणा माहणा य / सयं कर्ड गन्नकर्ड च दुक्खं, याहंसु विजाचरणं पमोक्खं // 11 // ते चाखु लोगसिह णायगा उ, मग्गाणुसासंति हितं पयाणं / तहा तहा सासयमाहु लोए, जंसी पया माणव ! संपगाढा // 12 // जे रक्खमा वा जमलोइया वा, जे वा सुरा गंधव्वा य काया / श्रागास Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 13 ] [ 176 गामी य पुढोसिया जे, पुणो पुणो विपरियासुवेति // 13 // जमाहु श्रोहं सलिलं अपारगं, जाणाहि णं भवगहणं दुमोक्खं / जसी विसन्ना विसयं. गणाहिं, दुहयोऽवि लोयं अणुसंचरंति // 14 // न कम्मुणा कम्म खति बाला, अकम्मुणा कम्म खति धीरा / मेधाविणो लोभमयावतीता, संतोसिणो नो पकरेंति पावं (संतोसिणो लोभमयावतीता) // 15 // ते तीयउप्पन्नमणागयाई, लोगस्स जाणंति तहागयाई / णेतारो अन्नेसि अणनणेया, बुद्धा हु ते अंतकडा भवंति // 16 // ते णेव कुव्वंति ण कारवंति, भूताहिसंकाइ दुगु'छमाणा / सया जता विप्पणमंति धीरा, विराणत्ति(गणाय) धीरा य हवंति (वीरा य भवंति) एगे // 17 // डहरे य पाणे वुड्ढे य पाणे, ते श्रात्तयो पासइ (तुल्लए) सबलोए / उव्वेहती लोगमिणं महतं, बुद्धेऽपमत्तेसु परिवएजा // 18 // जे पाययो परयो वावि णच्चा, अलमप्पणो होति अलं परेसिं / तं जोइभूतं च सयावसेजा, जे पाउकुजा अणुवीति धम्म // 11 // अत्ताण जो जाणति जो य लोगं, गईं च जो जाणइ णागइं च / जो सासयं जाण असासयं च, जाति मरणं च जणोववायं // 20 // अहोऽवि सत्ताण विउट्टणं च, जो पासवं जगणति संवरं च / दुक्खं च जो जाणति निजरं च, सो भासिउमरिहइ किरियवाद // 21 // ससु रूवेसु असन्जमाणो, गंधेसु रसेसु अदुस्समाणे / णो जीवितं णो मरणाहिकंखी, थायाणगुत्ते वलया विमुक्के // 22 // तिबेमि // (गाथा 568) // इति बादशममध्ययनम् // 12 // // अथ त्रयोदशं श्रीयाथातथ्याध्ययनम् // थाहत्तहीयं तु पवेयइस्सं, नाणप्पकारं पुरिसस्स जातं / सयो श्र धम्म असो असीलं, संतिं असंति करिस्सामि पाउं // 1 // अहो य रायो श्र समुट्ठिएहिं, तहागएहिं पडिलब्भ धम्मं / समाहिमाघातमजोसयंता, Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. ] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सत्थारमेवं फरुसं वयंति // 2 // विसोहियं ते अणुकाहयते, जे यातभावेण वियागरेजा / अट्टाणिए होइ बहुगुणागां (होंति बहुनिवेसो), जे णाणसंकाइ मुसं वदेजा // 3 // जे यावि पुट्ठा पलिउंचयंति, थायाणम, खलु वंचयित्ता (यन्ति) / असाहुणो ते इह साहुमाणी, मायरिण एसंति अणंतघातं // 4 // जे कोहणे होइ जगट्ठभासी, वियोसियं जे उ उदीरएजा। अंधे व से दंडपहं गहाय, अवियोसिए धासति पावकम्मी // 5 // जे विग्गहीए अन्नायभासी, न से समे होइ अझंझपत्ते। यो(उ)वायकारी य हरीमणे य, एगंतदिट्ठी (एगंतसड्डी) य अमाइरूवे // 6 // से पेसले सुहुमे पुरिसजाए, जच्चन्निए चेव सुउज्जुयारे / बहुंपि अणुसासिए जे तहचा, समे हु से होइ अझंझपत्ते ॥७॥जे प्रावि अप्पं वसुमंति मना, संखाय वायं अपरिवख कुजा / तवेण वाऽहं सहिउत्ति मत्ता, अगणं जणं पस्सति विवभूयं // 8 // एगंतकूडेण उ से पलेइ. ण विजती मोगपयंमि गोत्ते / जे माणणठेण विउकसेन्जा, वसुमनतरेण अबुज्झम.गणे // 6 // जे माहणो खत्तियजायए वा, तहुग्गपुते तह लेच्छई वा / जो पब्बईए परदचभाई, गोते ण जे थंभति (थंभभि) माणबद्धे // 10 // न तस्स जाई व कुलं व ताणं, णरणत्य विजाचरणं सुचिरणं / णिवखम्म से मेवइ गारिमग्गं(कम्म), रम से पारए होइ विमोयणाए // 11 // णिकिंचणे भिक्खु सुलूहजीवी, जे गारवं होइ सलो. गगामी / श्राजीवमेयं तु अबुझमाणो, पुणो पुणो विपरियासुर्वेति // 12 // जे भासवं भिवखु सुसाहुवादी, पडिहाणवं होइ विसारए य / श्रागाढपरणे सुविभावियप्पा, अन्नं जणं पन्नया परिहवेजा // 13 // एवं ण से होइ समाहिपत्ते, जे पन्नवं भिक्खु विउकसेजा / अहवाऽवि जे ला(लो)भमयावलित्ते, अन्नं जणं खिसति बालपन्ने // 14 // पन्नामयं चेव तवोमयं च, णिनामए गोयमयं च भिक्खू / याजीवगं चेव चउत्थमाहु, से पंडिए उत्तम पोग्गले से // 15 // एयाई मयाई विगिंच धीरा, गा ताणि सेवांते सुधीरः Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 14 ] [ 181 धम्मा / ते सबगोत्तावगया महेसी, उच्चं अगोतं च गतिं वयंति // 16 // भिक्खू मुयच्चे तह(सूय)दिट्ठधम्मे, गामं च णगरं च अणुप्पविस्सा / से एसणं जाणमणेसणं च, अन्नस्स पाणस्स अणाणुगिद्धे // 17 // परति रतिं च अभिभूय भिक्खू, बहूजणे वा तह एगचारी / एगंतमोणेण विया. गरेजा, एगस्स जंतो गतिरागती य // 18 // सयं समेचा अदुवावि सोचा, भासेज धम्म हिययं पयाणं / जे गरहिया सणियाणप्पयोगा, ण ताणि सेवंति सुधीरधम्मा // 11 // केसिंचि तक्काइ अबुझ भावं, खुद्दपि गच्छेज असदहाणे / अाउस्स कालाइयारं वघाए, लद्धाणुमाणे य परेसु अठे // 20 // कम्मं च छंदं च विगिंच धीरे, विणइज उ सव्वयो (सुव्ययो) पाव(प्राय)भावं / रूवेहिँ लुप्पंति भयावहेहि, विज्ज गहाया तसथावरेहिं // 21 // न पूयणं चेव सिलोयकामी, पियमप्पियं कस्सइ णो करेजा। सव्वे अणठे परिवजयंते, अणाउले या यकसाइ भिक्खू // 22 // याहतहीयं समुपेहमाणे सव्वेहिं पाणेहिं णिहाय दंडं / णो जीवियं णो मरणाहिकंखी, मेहावि वलयविष्यमुक्के (परिव्वएजा वलयाविमुक्के) // 23 // ... तिमि / (गाथाग्रं-५९१) इति त्रयोदशमध्ययनम् // 13 // // अथ ग्रन्थनामकं चतुर्दशमध्ययनम् // गंथं विहाय इह सिक्खमाणो, उट्ठाय सुबंभचेरं वसेजा। ग्रोवायकारी विणयं सुसिवखे, जे छेय विप्पमायं न कुजा // 1 // जहा दियापोतमपत्तजातं, सावासगा पविउं मन्नमाणं / तमचाइयं तरुणमपत्तजातं, ढंकाइ अव्वत्तगम हरेजा // 2 // एवं तु सेहंपि अपुट्ठधम्मं, निस्सारियं वुसिमं मनः माणा / दियस्स हायं व अपत्तजायं, हरिंसु णं पावधम्मा अणेगे // 3 // योसाणमिच्छे मणुए समाहिं, अणोसिए णंतकरिति णचा / योभासमाणे दवियस्त वित्तं, ण गिकसे बहिया यासुपन्नो // 4 // जे ठाणयो य सयणा Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 182 ] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सणे य, परकमे यावि सुसाहुजुत्ते / समितीसु गुत्तीसु य श्रायपन्ने, वियागरिते य पुढो वएजा // 5 // सदाणि सोचा अदु भेरवाणि, श्रणासवे तेसु परिव्वएजा / निद' च भिक्खू न पमाय कुजा, कहंकहं वा वितिगिच्छतिन्ने // 6 // डहरेण वुडेणऽणुसासिए उ, रातिणिएणावि समव्वएणं / सम्मं तयं (समं गतं) थिरतो णाभिगच्छे, णिज्जंतए वावि अपारए से // 7 // विउट्टितेणं समयाणुसिठे, डहरेण वुड्ढेण उ चोइए य / अच्चुट्टियाए घडदासिए वा, अगारिणं वो समयाणुसिठे // // ण तेसु कुझे ण य पव्वहेजा, ण यावि किंची फरसं वदेजा। तहा करिस्संति पडिस्सुगोजा, सेयं खु मेयं ण पमाय कुजा // 6 // वणंसि मूढस्स जहा अमूदा, मग्गाणुसासंति हितं पयाणं / तेगोव (तेणावि) मझ इणमेव सेयं, जं मे बुहा समणुसासयंति // 10 // ग्रहातेण मूढेण अमूढगस्स, कायब पूया सविसेसजुत्ता। एयोवमं तत्थ उदाहु वीरे, अणुगम्म प्रत्थं उवणेति सम्म // 11 // णेता जहा अंधकारंसि रायो, मग्गं ण जाणाति अपस्समाणे / से सूरियस्स अभुग्गमेणं, मग्गं वियाणाइ पगासियंसि // 12 // एवं तु सेहेवि अपुटुधम्मे, धम्मं न जाणाइ अबुज्झमाणे / से कोविए जिणवयणेण पच्छा, सूरोदए पासति चक्खुणेव // 13 // उड्ढे अहेयं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावरा जे य पाणा / सया जए तेसु परिवएज्जा, मणप्पयोसं अविकंपमाणे // 14 // कालेण पुच्छे समियं पयासु, श्राइवखमाणो दवियस्स वित्तं / तं सोयकारी य पुढो पवेसे, संखा इमं केवलियं समाहिं // 15 // अस्सि सुठिचा तिविहेण तायी, एएसु या संति निरोहमाहु। ते एवमवखंति तिलोगदंसी, ण भुजमेयंति पमायसंगं // 16 // निसम्म से भिवखु समीहियठं, पडिभाणवं होइ विसारए य / श्रायाणपट्ठी वोदाणमोणं, उवेच्च सुद्धण उवेति मोक्खं (न उवेइ मारं) // 17 // संखाइ धम्मं च वियागरंति, बुद्धा हु ते अंतकरा भवंति। ते पारगा दोराहवि मोयणाए, संसोधितं पराहमुदाहरंति // 18 // णो छायए Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 15 ] [ 183 णोऽविय लूमएजा, माणं ण सेवेज पगासणं च / ण यावि पन्ने परिहास कुजा, ण याऽऽसियावाय वियागरेजा // 16 // भूताभिसंकाइ दुगुंउमाणे, ण णिव्वहे मंतपदेण गोयं / ण किंचि मिच्छे माणुए पयासु, असाहुधम्माणि ण संवएजा // 20 // हासं पि णो संधति पावधम्मे, श्रोए तहीयं फरुसं वियाणे / णो तुच्छए णो य विकंथइजा, अणाइले या अकसाइ भिक्खू // 21 // संकेज याऽसंकितभाव भिक्खू, विभजवायं च वियागरेजा। भासादुयं धम्मसमुट्ठितेहिं, वियागरेजा समया सुपन्ने // 22 // अणुगच्छमाणे वितहं विजांणे, तहा तहा साहु अककसेणं / ण कत्थई भास विहिंसइजा, निरुद्धगं वावि न दीहइजा // 23 // समालवेज्जा पडिपुन्नभासी, निसामिया समियाग्रहदंसी। अाणाइ सुद्धं वयणं भिउंजे, अभिसंधए पावविवेग भिक्खू // 24 // अक्षाबुझ्याई सुसिक्खएजा, जइज्जया णातिवेलं वदेजा / से दिट्ठिमं दिट्ठि ण लूसएजा, से जाणई भासिउं तं समाहिं // 25 // अलूसए णो पच्छन्नभासी, णो सुत्तमत्थं च करेज ताई। सत्थारभत्ती अणुवीइ वायं, सुयं च सम्म पडिवाययेजा(यंति) / / 26 / / से सुद्धसुत्ते उवहाणवं च, धम्मं च जे विंदति तत्थ तत्थ / श्रादेजवक्के कुसले वियत्ते, स अरिहइ भासिउं तं समाहि // 27 // तिबेमि // (गाथागं 518) इति चतुर्दशमध्ययनम् // 14 // // अथ आदानीयनामकं पञ्चदशमध्ययनम् // जमतीतं पडुपन्नं, श्रागमिस्सं च णाययो / सव्वं मन्नति तं ताई, दंसणावरणंतए // 1 // अंतए वितिगिच्छाए, से जाणति अणेलिसं / अणेलिसस्स अक्खाया, ण से होइ तहिं तहिं // 2 // तहिं तहिं सुयक्खायं, से य सच्चे सुश्राहिए / सया सच्चेण संपन्ने, मित्तिं भूएहि कप्पए // 3 // भूएहिं न विरुज्झेजा, एस धम्मे बुसीमयो / बुसिमं जगं Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 184 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः परिनाय, अस्सि जीवितभावणा // 4 // भावणाजोगसुद्धप्पा, जले णावा व ग्राहिया / नावा व तीरसंपन्ना, सव्वदुक्खा तिउट्टइ // 5 // तिउट्टई उ मेधावी, जाणं लोगंसि पावगं / तुति पावकम्माणि, नवं कम्ममकुव्वयो // 6 // अकुवयो णवं णत्थि, कम्मं नाम विजाणइ / विनाय से महावीरे, जेण जाई ण मिजई ॥७॥ण मिजई महावीरे, जस्स नत्थि पुरेकडं / वाउव्व जालमञ्चेति, पिया लोगंसि इथियो // 8 // इथियो जे ण सेवंति, थाइमोक्खा हु ते जणा / ते जणा बंधणुम्मुक्का, नावखंति जीवियं // 6 // जीवितं पिट्ठयो किच्चा, अंतं पावंति कम्मुणं / कम्मुणा संमुहीभूता, जे मग्गमणुसासई // 10 // अणुसासणं पुढो पाणी, वसुमं पूयणासु (स) ते / अणासए जते दंते, दढे यारयमेहुणे // 11 // णीवारे व ण लीएजा, छिन्नसोए अणाविले / अणाइले सया दंते, संधि पत्ते अणेलिसं // 12 // अणेलिसस्स खेयन्ने, ण विरुझिज केणइ / मणसा वयसा चेव, कायसा चेव चक्खुमं // 13 // से हु चक्खू मणुस्साणं, जे कंखाए य अंतए / अंतेण खुरो वहती, चक्कं अंतेश लोढ़ती // 14 // अंताणि धीरा सेवंति, तेण अंतकरा इह / इह माणुस्तए ठाणे, धम्ममाराहिउं णा / / 15 / / णिट्ठियट्ठा व देवा वा, उत्तरीए इयं सुयं / सुयं च मेयमेगेसिं अमणुस्सेसु णो तहा // 16 // अंतं करंति दुक्खाणं, इहमेगेसि श्राहियं / बाघायं पुण एगेसिं, दुल्लभेऽयं समुस्सए॥ १७॥इयो विद्धंसमाणस्स, पुणो संबोहि दुल्लभा दुल्लहायो तहच्चायो, जे धम्म8 वियागरे // 18 // जे धम्मं सुद्रमक्खंति, पडिपुन्नमणेलिसं / अणेलिसस्स जंगणं, तस्स जम्मकहा करो ? // 16 // कयो कयाइ मेधावी, उप्पज्जति तहागया। तहागया अप्पडिन्ना, चक्खू लोगस्सणुत्तरा // 20 // अणुत्तरे य ठाणे से, कासवेण पवेदिते / जं किचा णिव्वुडा एगे, निर्ल्ड पावंति पंडिया // 21 // पंडिए वीरियं लद्ध, निग्घायाय पवत्तगं / धुणे पुव्वकडं कम्म, णवं वाऽवि ण कुवती // 22 / / Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 16 ] [ 185 ण कुव्वती महावीरे, अणुपुवकडं रयं / रयसा संमुहीभूता, कम्मं हेच्चाण जं मयं ॥२३॥जं मयं सव्वसाहूणं, तं मयं सल्लगत्तणं / साहइत्ताण तं तिन्ना, देवा वा अर्भावसु ते // 24 // अभवितु पुरा वी(धी)स, यागमिस्सावि सुव्वता / दुन्निबोहस्स मग्गस्स, अंतं पाउकरा तिन्ने // 25 // तिबेमि / (गाथागं 643) ॥इति पञ्चदशमध्ययनम् // 15 // // अथ षोडशं श्रीगाथाध्ययनम् // अहाह भगवं-एवं से दंते दविए वोसट्टकाएत्ति वच्चे माहणेत्ति वा 1 समणेत्ति वा 2 भिक्खूत्ति वा 3 णिग्गंथेत्ति वा 4 पडियाह-भंते ! कहं नु दंते दविए वोसट्टकाएत्ति वच्चे माहणेत्ति वा समणेत्ति वा भिक्वृत्ति वा णिग्गंथेत्ति वा ? तं नो ब्रूहि महामुणी ! // इतिविरिए सव्वपावकम्मेहिं पिज्जदोसकलह० अन्भवखाण० पेसुन्न. परपरिवाय. अरतिरति० मायामोस० मिच्छादसणसल्लविरए समिए सहिए सया जए णो कुज्झे णो माणी माहणेत्ति वच्चे 1 // एत्थवि समणे अणिस्सिए अणियाणे श्रादाणं च अतिवायं च मुसावायं च बहिद्धं च कोहं च माणं च मायं च लोहं च पिज्जं च दोसं च इच्चेव जयो जयो श्रादाणं अप्पणो पदोसहेऊ तो तयो यादाणातो पुब्वं पडिविरते पाणाइवायायो सियादते दविए वोसट्टकाए समणेत्ति वच्च 2 // एत्थवि भिक्खू अणुन्नए विणीए नामए दंते दविए वोसट्टकाए संविधुणीय विरूवरूवे परीसहोवसग्गे अज्झप्पजोगसुद्धादाणे उवट्ठिए ठियप्पा संखाए परदत्तभोई भिक्खुत्ति वच्चे 3 // एत्थवि णिग्गंथे एगे एगविऊ बुद्धे संछिन्नसोए सुसंजते सुसमिते सुसामाइए श्रायवायपत्ते विऊ दुहयोवि सोयपलिच्छिन्ने णो प्रयासकारलाभट्ठी धम्मट्ठी धम्मविऊ णियागपडिबन्ने समि(म)यं चरे दंते दविए वोसट्टकाए निग्गंथेत्ति वच्चे 4 // से एवमेव जाणह जमहं भयंतारो // तिबेमि / . // इति षोडशममध्ययनम् // 16 // प्रथमः श्रुतस्कन्धः समाप्तः // 1 // Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ श्री सूत्रकृतांगे द्वितीयः श्रुतस्कन्धः / // अथ प्रथमं पौण्डरीकाख्याध्ययनम् // सुयं मे पाउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु पोंडरीए णामज्झयणे, तस्स णं अयमठे पराणत्ते-से जहाणामए पुक्खरिणी सिया बहुउदगा बहुसेया बहुपुक्खला लट्ठा पुंडरिकिणी पासादीया दरिसणीया अभिरुवा पडिख्वा, तीसे णं पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया बुझ्या, अणुपुबुट्ठिया असिया रुइला वराणमता गंधमंता रसमंता फासमंता पासादीया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा, तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं परमवरपोंडरीए बुइए, अणुपुबुट्ठिए उस्मिते रुइले वनमंते गंधमंते रसमंते फासमंते पासादीए जाव पडिरूवे 1| सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमयरपोंडरीया बुझ्या अणुपुबुट्ठिया ऊसिया रुइला जाव पडिरूवा, सव्वावंति च णं तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगं महं पउमवर. पोंडरीए बुइए अणुपुवुट्ठिए जाव पडिरूवे २॥सू० 1 // अह पुरिसे पुरित्थिमायो दिसायो पागम्म तं पुक्खरिणी तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिचा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुबुट्टियं ऊसियं जाव पडिरूवं 1 / तए णं से पुरिसे एवं वयाती-अहमंसि पुरिसे खेयन्ने दुसलेपं डिते वियत्ते मेहावी अवाले मग्गत्थे मग्गविऊ मग्गस्स गतिपरक्कमराणू अहमेयं परमवरपोंडरीयं उन्निक्खिविस्तामित्ति कट्टु इति बुया (बुच्चा) से पुरिसे अभिक्कमेति तं पुक्खरिणी, जावं जावं च णं अभिकमेइ तावं तावं च णं महंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं श्रपत्ते पउमवरपोंडरीयं णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा पोक्खरिणीए सेयंसि निसगणे पढमे पुरिसजाए ! 2 ॥सू०२॥ अहावरे Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [187 दोच्चे पुरिसजाए, ग्रह पुरिसे दक्षिणायो दिसायो पागम्म तं पुवखरिणिं तीसे पुरणरिणीए तीरे ठिचा पासति तं महं (महन्तं) एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुवुट्ठियं पासादीयं जाव पडिरूवं 1 / तं च एत्थ एगं पुरिसजातं पासति पहीणतीरं अपत्नपउमवरपोंडरीयं णो हव्वाए णो पाराए अंतग पोखरिणीए सेयंसि णिसन्नंसु, तए णं से पुरिसे (तं पुरिसं) एवं वयासी-ग्रहो णं इमे (अयं) पुरिसे अखेयन्ने अकुसले अपंडिए अवियत्ते श्रमेहावी बाले णो मग्गत्थे णो मग्गविऊ णो मग्गस्स गतिपरक्कमराणू जन्नं एस पुरिसे, अहं खेयन्ने कुसले जाव पउमवरपोंडरीयं उन्निविखविस्सामि 3 / णो य खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उनिक्खेवियध्वं जहा णं एस पुरिसे मन्ने, ग्रहमंसि पुरिसे खेयन्ने कुसले पंडिए वियत्ते मेहावी अबाले मग्गत्थे मग्गविऊ मग्गस्स गतिपरकमराणू ग्रहमेयं पउमवरपोंडरीयं उन्निविखविस्सामित्तिकट्टु इति वुच्चा से पुरिसे अभिकमे तं पुक्खरिणिं, जावं जावं च णं अभिकमेइ तावं तावं च णं हिंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं अपत्ते पउमरपोंडरीयं णो हव्वाए णो पाराए अंतरा पोक्खरिणीए सेयंसि णिसन्ने दोच्चे पुरिसजाते 4 // 3 // ग्रहावरे तच्चे पुरिसजाते, यह पुरिसे पच्चत्थिमायो दिसायो पागम्म तं पुक्खरिणिं तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिचा पासति तं एगं महं पउमवरपोंडरीयं अणुपुव्वुट्ठियं जाव पडिरूवं 1 / ते तत्थ दोन्नि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं अपत्ते पउमवरपोंडरीयं णो हव्वाए णो पाराए जाव सेयंसि णिसन्ने 2 / तए णं से पुरिसे एवं वयासी-ग्रहो णं इमे पुरिसा अखेयन्ना अकुसला अपंडिया अवियत्ता अमेहावी बाला णो मग्गत्था णो मग्गविऊ णो मग्गस्स गतिपरक.मराणू जं णं एते पुरिसा एवं मन्ने-श्रम्हे एतं पउमवरपोंडरीयं उरिणक्सिविस्सामो 3 / नो य खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उनिक्खेवेतव्वं जहा णं एए पुरिसा मन्ने, अहमंसि पुरिसे खेयन्ने कुसले पंडिए वियत्ते मेहावी अबाले मग्गत्थे मग्गविऊ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्सि गतिपपुरस अभिकम महते सेए जाव शहावरे बउथे पाचारणाए 188] " [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू अहमेयं परमवरपोंडरीयं उन्निक्खिविस्सामित्ति कटु इति वुच्चा से पुरिसे अभिकमे तं पुक्खरिणिं जावं जारं च णं अभिकमे तावं तावं च णं महंते उदए महंते सेए जाव अंतरा पोक्खरिणीए सेयंसि णिन्स, नेतच्चे पुरिसजाए 4 // सूत्रं 4 // ग्रहावरे उत्थे पुरिसजाए, ग्रह पुरिसे उत्तरायो दिसायो बागम्म तं पुक्खरिगिण, तीसे पुरखरिणीए तीरे ठिचा पासति तं महं. एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुबुट्ठियं जाव पडिरूवं 1 / ते तत्थ तिनि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं अपत्ते जाव सेयंसि णिसन्ने / तए णं से पुरिसे एवं वयासी-ग्रहो णं इमे पुरिला अखेयन्ना जाव णो मग्गस्स गतिपरक्कमराणू जगणं एते पुरिसा एवं मन्ने-यम्हे एतं पउमवरपोंडरीयं उन्निक्खिविस्तामो 3 / णो य खलु एयं पउमररपोंडरीयं एवं उन्निक्खेवेयव्वं जहा णं एते पुरिसा मन्ने, अहमंसि पुरिसे खेयन्ने जाव मग्गस्स गतिपरकमराणू, अहमेयं परमवरपोंडरीयं उन्निक्खिविस्सामित्ति कट्टु इति वुच्चा से पुरिसे तं पुक्खरिणिं जावं जावं च णं अभिकमे तावं तावं च णं महंते उदए महंते सेए जाव णिमन्ने, चउत्थे पुरिसजाए // सूत्रं 5 // श्रह भिक्खू लूहे तीरट्ठी खेयन्ने जाव गतिपरकमराणू अन्नतरायो दिसायो वा अणुदिसायो वा बागग्म तं पुक्खरिणिं तीसे पुखरिणीए तीरे टिचा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं जाव पडिरूवं 1 / ते तत्थ चत्तारि पुरिसजाए पासति पहीणे तीरं श्रपत्ते जाव पउमवरपोंडरीयं णो हव्वाए णो पाराए अंतरा पुक्खरिणीए सेयंसि णिसन्ने 2 / तए णं से भिवखू एवं वयासी-ग्रहो णं इमे पुरिसा अखेयना जाव णो मग्गस्स गतिपरक माणू, जं एते पुरिसा एवं मन्ने अम्हे एयं परमवरपोंडरीयं उनिक्खिविस्सामो 3 / णो य खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उन्निक्खेवेतव्वं जहा णं एते पुरिसा मन्ने, ग्रहमंसि भिक्खू लूहे तीरट्ठी खेयन्ने जाव मग्गस्स गतिपरकमगण , अहमेयं परमवरपोंडरीयं उरिणक्खिविस्तामित्ति कटु इति बुच्चा से Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 186 भिक्खू णो अभिकमे तं पुक्खरिणिं तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा सद्द कुजा-उप्पयाहि खलु भो पउमवरपोंडरीया ! उप्पयाहि अह से उप्पतिते पउमवरबोंडरीए // सूत्रं 6 // किट्टिए नाए समणाउसो!. अठे पुण से जाणितब्वे भवति, भंतेत्ति समगां भगवं महावीरं निग्गंथा य निग्गंथीयो य वंदंति नमसंति वंदेतानमंसित्ता एवं वयासि-किट्टिए नाए समणाउसो! थट्टपुण से ण जाणामो समणाउसोत्ति, समणे भगवं महावीरे ते य बहवे निग्गथे य निग्गंथीयो य थामतेता एवं वयासी-हंत समणाउसो ! बाइक्खामि विभावेमि किटटेमि पवेदेमि सटुं सहेउं सनिमित्तं भुजो भुजो उपदंसेमि से बेमि / / ॥सूत्रं ७॥लोयं च खलु मए अप्पाहटु समकाउसो ! सा पुक्खरिणी बुझ्या, कम्मंच खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से उदए बुइए. कामभोगे य खलु मए अप्पाहटु समणाउसो! से सेए बुइए, जणं जाणवयं च खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! ते वहवे पउमवरपोंडरीया बुइया, रायाणं च खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से एगे महं परमवरपोंडरीए बुइए, अन्नउत्थिया य खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो! ते चत्तारि पुरिसजाया बुइया, धम्मं च खलु मए अप्पाह१ समणाउसो ! से भिक्खू बुइए, धम्मतित्थं च खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से तीरे बुइए, धम्मकह च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से सद्दे बुइए, निव्वाणं च खलु गए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से उप्पाए बुइए, एवमेयं च खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से एवमेयं बुझ्यं ॥सूत्रं 8 // इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगतिया मगुस्सा भवंति अणुपुब्वेणं लोग उववन्ना, तंजहा-ग्रारिया वेगे अणारिया वेगे उच्चागोत्ता वेगे णीयागोया वेगे कायमंता वेगे रहस्समंता वेगे सुवन्ना वेगे दुव्वन्ना वेगे सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे 1 / तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवइ, महया(महा)हिमवंत-मलय-मंदरमहिंदसारे अच्चंतविसुद्धरायकुलवंसप्पसूते निरंतररायलक्खणविराइयंगमंगे बहुयणबहुमाणपइए सज्व Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 190 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः गुणममिद्धे खत्तिए मुदिए मुद्धाभिसित्ते माउपिउसुजाए दयप्पिए सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिते जणवयपिया जणवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसपवरे पुरिससीहे पुरिसयासीविसे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्नविउल-भवणसयणासण-जाणवाहणाइराणे बहुधणबहुजातरूवरतए अायोगपयोगसंपउत्ते विच्छड्डियपउरभत्तपाणे बहुदासीदास-गोमहिस-गवेलगप्पभूते पडिपुराणकोसकोट्ठागाराव्हागारे बलवं दुबल्लपञ्चामित्ते श्रोहयकंटयं निहयकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं श्रोहयसत्तू निहयसत्तू मलियसत्तू उद्धियसत्तू निजियसत्तू पराइयसत्तू ववगयदुभिक्ख-मारिभयविप्पमुक्कं रायवनयो जहा उबवाइए जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति / तस्स णं रन्नो परिसा भवइउग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता इवखागाइ इक्खागाइपुत्ता नाया नायपुत्ता कोरवा कोरवपुत्ता भट्टा भट्टपुत्ता माहणा माहणपुत्ता लेच्छइ लेच्छइपुत्ता पसत्थारो पसस्थपुत्ता सेणावई सेणावइपुत्ता 3 / तेसिं च णं एगतीए सड्डी भाइ कामं तं समणा वा माहणा वा मंपहारिंसु गमणाए, तत्थ यन्नतरेणं धम्मेणां पन्नत्तारो वयं इमेगां धम्मेगां पन्नवइस्लामो से एवमायाणह भयंतारो जहा मए एस धम्मे सुयक्खाए सुपन्नते भवइ, तंजहा-उडढं पादतला आहे केसग्गमत्थया तिरियं तयपरियंते जीवे एस यायापजवे कसिणे एस जीवे जीपति एस मए णो जीवइ, सरीरे धरमाणे धरइ विणटुंमि य णो धरइ, एयंतं जीवियं भवति, श्रादहणाए परेहिं निजइ, अगणिझामिए सरीरे कवोतवन्नाणि अट्ठीणि भवंति, यासंदीपंचमा पुरिसा गामं पञ्चागच्छंति 4/ एवं असंते असंविजमाणे जेसिं तं असंते असंविजमाणे तेसिं तं सुयक्खायं भवति-ग्रन्नो भवति जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा, ते एवं नो विपडिवेदेंति-श्रयमाउसो ! पाया दीहेति वा हस्सेति वा परिमंडलेति वा कटटेति वा तंसेति वा चउरंसेति वा प्रायतेति वा छलंसिएति वा अट्टसेति वा, किराहेति Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1] [ 161 वा णीलेति वा लोहियहालिद्दे जाव सुकिल्लेति वा, सुन्भिगंधेति वा दुन्भिगंधेति वा, तितेति वा कड्डएति वा कसाएति वा अंबिलेति वा जाव महुरेति वा, कक्खडेति वा मउएति वा गुरुएति वा लहुएति वा सिएति वा उसिणेति वा निद्रेति वा लुबखेति वा, 5 / एवं असंते असंविजमाणे जेसिं तं सुयपखायं भवति-अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा ते णो एवं उवलभंति से जहाणामए केइ पुरिसे कोसीयो असिं अभिनिवट्टित्ता गां उवदंसेज्जा अयमाउसो ! असी अयं कोसी, एवमेव णस्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेइ (उवदंसेत्तारो) अयमाउसो! याया इयं सरीरं 6 / से जहाणामए केइ पुरिसे मुजायो इसियं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसजा अयमाउसो! मुजे इयं इसियं, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमारसो ! थाया इयं सरीरं 7 से जहाणामए केइ पुरिसे मंसायो अढि अभिनिवट्टित्ता गां उवदंसेज्जा अयमाउसो। मसे अयं अट्ठी, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो! याया इयं सरीरं 8 / से जहाणामए केइ पुरिसे करयलायो ग्रामलकं अभिनिव्वट्टित्ता गां उवदंसेज्जा अयमाउसो ! करतले अयं श्रामलए, एवमेव णत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो ! याया इयं सरीरं / से जहाणामए केइ पुरिसे दहियो नवनीयं अभिनिव्वट्टित्ताणं उवदंसेजा अयमाउसो ! नवनीयं अयं तु दही, एवमेव णत्थि केइ पुरिसे जाव सरीरं 1 / से जहाणामए केइ पुरिसे तिलेहितो तिल्लं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेजा श्रयमाउसो! तेल अयं पिनाए, एवमेव जाव सरीरं 10 से जहाणामए केइ पुरिसे इक्खूतो खोतरसं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेजा अयमाउसो / खोतरसे अयं छोए, एवमेव जाव सरीरं 11 / से जहाणामए केइ पुरिसे परणीतो अग्गि अभिनियट्टित्ताणं उवदंसेजा श्रयमाउसो! अरणी अयं अग्गी, एवमेव जाव सरीरं 12 / एवं असते असंविजमाणे जेसिं तं सुयक्खायं भवति, तंजहा अन्नो जीवो अन्नं सरीरं / तम्हा ते मिन्छ। 13 // से हंता तं हणह खणह छणह Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः डहह पयह यालु पह विलुपह सहसाकारह विपरामुसह, एतावताव जीवे गत्थि परलोए, ते णो एवं विप्पडिवेदेति, तंजहा-किरियाइ वा अकिरियाइ वा सुकडेइ वा दुकडेइ वा कलाणेइ वा पावएइ वा साहुइ वा असाहुइ वा सिद्धीइ वा असिद्वीइ वा निरएइ वा अनिरएइ वा, एव ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरुवरुवाई कामभोगाई समारभंति भोयणाए 14 // एवं एगे पाग. ब्भिया णिक्खम्म मामगं धम्मं पनवेंति, तं सदहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा साहु सुयक्खाए समणेति वा माहणेति वा कामं खलु अाउसो ! तुमं पूययामि, तंनहा-असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा वत्येण वा पडिग्गहेण वा कंवलेण वा पायपुछणेण वा तत्थेगे पूयणाए समाउट्टिसु तन्थेगे पूयणाए निकाइंसु 15 // पुत्वमेव तेसिं णायं भवतिसमणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता (अपत्ता) अपसू परदत्तभोइणो भिक्खुणो पावं कम्मं णो करिस्सामो समुट्टाए ते अप्पणा अप्पडिविरया भवंति, सयमाइयंति अन्नेवि श्रादियाति अन्नपि यायतं समणुजाणंति, एवमेव ते इथिकामभोगेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अभोववन्ना लुद्धा रागटोसवसट्टा, ते णो अप्पाणं समुच्छेदेति ते णो परं समुच्छेदेति ते णो अराणाई पाणाई भूताई जीवाई सत्ताई समुच्छेदेति, पहीणां पुब्वमंजोगं थायरियं मग्गं असंपत्ता इति ते णो हव्वाए णो पाराए अंतरा कामभोगेसु विमन्ना इति पढमे पुरिसजाए तज्जीवतच्छरीरएत्ति थाहिए 16 // सूत्रं 1 // ग्रहावरे दोच्चे पुरिसजाए पंचमहन्भूतिएत्ति पाहिजइ, इह खलु पाइणं वा (6) संतेगतिया मणुस्सा, भवंति अणुपुव्वेगां लोयं उववन्ना, तंजहाअारिया वेगे अणारिया वेगे एवं जाव दुरूवा वेगे, तेमि च णं महं एगे राया भवइ महया० एवं चेव गिरवसेमं जाव सेणावइपुत्ता, तेसिं च णं एगतिए सड्ढी भवति कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसु गमणाए, तत्थ अन्नयरेगां धम्मेगां पन्नत्तारो वयं इमेगां धम्मेगां पन्नवइस्सामो से एवमायाणह Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्ग-मूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 193 भयंतारो ! जहा मए एस धम्मे सुअक्खाए (जाव) सुपन्नत्ते भवति 1 // इह खलु पंच महन्भूता, जेहिं नो विजइ किरियाति वा अकिरियाति वा, सुकडेति वा दुक्कडेति वा, कल्लाणेति वा पावएति वा, साहुति वा असाहुति वा, सिद्धीति वा ग्रसिद्धीति वा, जाव णिरएति वा, अणिरएति वा, अवि अंतसो तणमायमवि 2 // तं च पिहुई सेणं पुढोभूतसमवातं जाणेजा, तंजहा-पुटवी एगे महन्भूते श्राऊ दुच्चे महन्भूते तेऊ तच्चे महन्भूते वाऊ चउत्थे महन्भूते यागासे पंचमे महन्भूते, इच्चेते पंच महन्भूया अणिम्मिया अणिम्माविता अकडा णो कित्तिमा णो कडगा अणाझ्या अणिहणा अवंझा अपुरोहिता सतंता सासता अायछट्टा, पुण एगे एवमाहु-सतो णस्थि विणासो असतो णत्थि संभवो 3|| एतावताव जीवकाए, एतावताव अस्थिकाए, एतावताव सव्वलोए, एतं मुहं लोगस्स करणयाए, अवियंतसो तणमायमवि // से किणं किणावेमाणे हणं घापमाणे पयं पयावेमाणे अवि अंतसो पुरिसमवि कीणित्ता घायइत्ता एत्थंपि जाणाहि णत्थित्थदोमो, ते णो एवं विप्पडिवेदेति, तंजहा-किरियाइ वा जावणिरएइ वा, एवं ते विख्वस्वेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाई कामभोगाइं समारभति भायणाए, एवमेव ते श्रणारिया विप्पडिवन्ना तं सदहमाणा तं पत्तियमाणा जाव इनि, ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु जाव विसराणा, दोच्चे पुरिसजाए पंचमहत्भूतिएत्ति याहिए 5 // सूत्रं 10 // ग्रहावरे तच्चे पुरिसजाए ईसरकारणिए इति थाहिज्जइ, इह खलु पादीणं वा (6) सतेगतिया मणस्सा भवंति अणुपुट्वेण लोयं उववन्ना, तं०अारिया वेगे जाव तेसिं च णं महंते एगे राया भवइ जाव संणावडपुत्ता, तेसिं च णं एगतीए सही भवड, कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसु गमणाए जाव जहा मए एस धम्मे सुयक्खाए सुपन्नत्ते भवइ 1 // इह खलु धम्मा पुरिसादिया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिमसंभूया पुरिसपजोनिता पुरिसश्रभिसमगणागया पुरिसमेव अभिभूय चिठंति, से जहाणामए गंडे Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 194 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः सिया सरीरे जाए सरीरे संवुड्ढे सरीरे अभिसमगणागए सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मा पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिठ्ठति 2 / से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे संवुड्डा सरीरे अभिसमराणागया सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरि. समेव अभिभूय चिठ्ठति 3 / से जहाणामए वम्मिए सिया पुढविजाए पुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमराणागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठइ / एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिढ़ति 4 / से जहाणामए रुक्खे सिया पुढविजाए पुढविसंवुडढे पुढवियभिसमराणागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिठंति 5 / से जहाणामए पुखरिणी सिया पुढविजाया जाव पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिठति 6 / से जहाणामए उदगपुवखले सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटठंति 7 / से जहाणामए उदगबुब्बुए सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति 8 // जंपिय इमं समणाणं णिग्गंथाणं उद्दिठं पणीयं वियंजियं दुवालसंगं गणिपिडयं, तंजहा-यायारो सूयगडो जाव दिट्ठिवातो, सव्वमेवं मिच्छा, ण एवं तहियं, ण एवं ग्राहातहियं, इमं सच्चं इमं तहियं इमं श्राहातहियं, ते एवं सन्नं कूव्वंति, ते एवं सन्नं संठति, ते एवं सन्नं सोवठ्ठवयंति, तमेवं ते तज्जाइयं दुक्खं णातिउटति सउणी पंजरं जहा 1 // ते णो एवं विडिवेदेति, तंजहा-किरिया इ वा जाव अणिरए इवा, एवामेव ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाई समारंभंति भोयणाए, एवामेव ते प्रणारिया विप्पडिवन्ना एवं सद्दहमाणा जाव इति ते णो हब्बाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसराणेत्ति, तच्चे पुरिसजाए Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 195 ईसरकारणिएत्ति वाहिए 10 ॥सूत्रं 11 // ग्रहावरे चउत्थे पुरिसजाए णियतिवाइएत्ति पाहिजइ, इह खलु पाईणं वा (6) तहेव जाव सेणावइपुत्ता वा, तेसिं च णं एगतीए सड्डी भवइ, कामं तं समणा य माहणा य संपहारिंसु गमणाए जाव मए एस धम्मे सुयक्खाए सुपन्नत्ते भवइ 1 // इह खलु दुवे पुरिसा भवंतिएगे पुरिसे किरियमाइक्खइ एगे पुरिसे णोकिरियमाइक्खइ,जे य पुरिसे किरियमाइक्खइ जे य पुरिसे णोकिरियमाइक्खइ दोवि ते पुरिसा तुला एगट्ठा, कारणमावन्ना 2 // बाले पुण एवं विपडिवेदेति कारणमावन्ने अहमंसि दुवखामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा अहमेयमकासि परो वा जं दुवखइ वा सोयइ वा जूरइ वा तिप्पइ वा पीडइ वा परितप्पइ वा परो एवमकासि, एवं से बाले सकारणं वा परकारणं वा एवं विप्रडिवेदेति कारण मावन्ने 3 // मेहारी पुण एवं विडिवेदेति कारणमावन्ने-ग्रह. मंसि दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि गा, णो यह एवमकासि, परो वा जं दुवखइ वा जाव परितप्पइ वा णो परी एवमकार्सि, एवं से महावी सकारणं वा परकारणं वा एवं विप्पडिवेदेति कारणमावन्ने, 4 // से बेमि पाईणं वा (6) जे तसथावरा पाणा ते एवं संघायमागच्छंति ते एवं विपरियासमावज्जति ते एवं विवेगमागच्छति ते एवं विहाणमगच्छति ते एवं संगतियंति उवेहाए, णो एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा-किरियाति वा जाव (णिरएति वा) अणिरएति वा, एवं ते विरूवरूवेहि कम्मसमारंभेहिं विरूवख्वाइं कामभोगाइं समारभंति भोयणाए 5 // एवमेव ते श्रणारिया विप्पडिवन्ना तं सइहमाणा जाव इति ते णो हवाए णो पाराए अंतरा कामभोगेसु विसराणा 6 / चउत्थे पुरिसजाए गियइ. वाइएत्ति ग्राहिए, // इच्चेते चत्तारि पुरिसजाया णाणापन्ना णाणाछंदा णाणासीला णाणादिट्ठी णाणाई णाणारंभा णाणाअभवसागसंजुत्ता पहीणपुषसंजोगा पारियं मग्गं असंपत्ता इति ते णो हव्वाए णो पाराए Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः अंतरा कामभोगेसु विसराणा ८॥सूत्रं 12 // से बेमि पाईणं वा (6) संतेगतिया मणुस्सा भवति, तंजहा-पारिया वेगे अणारिया वेगे उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे. कायमंता वेगे, रहस्तमंता वेगे, सुवन्ना वेगे, दुवन्ना वेगे, सुरूवा वेगे। दुरूवा वेगे 1 / तेसिं च णं जणजाणवयाई खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाई भवंति, तं० अप्पयरा वा भुजयरा वा, तहप्पगारेहिं कूलेहिं यागम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिता सतो वावि एगे णाययो य (अणाययो) य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खारियाए समुट्टिता असतो वावि एगे णाययो (अणाययो) य उवगरणं च विष्पनहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता, [जे ते सता वा असतो वा णाययो य यणाययो य उवगरणं च विप्पजहाय भि खायरियाए समुट्ठिता] 2 / पुवमेव तेहिं णायं भवइ, तंजहा-इह खलु पुरिसे अन्नमन ममट्ठाए एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा-खेत्तं मे वत्थू मे हिरराणां मे सुवन्न मे धणं मे धरणं मे कंसं मे दूसं मे विपुलधण-कणगरयण-मणिमोत्तिय-संखसिलप्पवाल-रप्तरयणसंतसारसावतेयं मे सदा मे रूवा मे गंधा मे रसा मे फाप्ता मे, एते खलु मे कामभोगा अहमवि एतेसिं 3 // से मेहावी पुवामेव अपणो एवं समभिजाणेजा, तंजहा-इह खलु मम अन्नयरे दुक्खे रोयातके समुप्पज्जेजा अणिठे अकंते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे दुक्खे णो सुहे से हंता भयंतारो ! कामभोगाइं मम अन्नयरं दुक्खं रोयातंक परियाइयह अणिटु अकंतं अप्पियं असुभं अमणुन अमणामं दुक्खं णो सुह, ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा इमायो मे अण्णयरायो दुवखायो रोगातंकायो पडि. मोयह अणिटायो अकंतायो अप्पियायो असुभायो यमणुनायो अमणामायो दुक्खायो णो सुहायो, एवामेव णो लद्धपुत्वं भवइ 4 / इह खलु कामभोगा णो ताणाए वा णो सरणार वा, पुरिसे वा एगता पुट्विं कामभोगे विप्पजहति, कामभोगा वा एगता पुब्बिं पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 167 खलु कामभोगा अन्नो ग्रहमंसि, से किमंग पुण वयं यन्नमन्नेहिं कामभोगेहिं मुच्छामो ?, इति संखाए णं वयं च कामभोगेहिं विप्पजहिस्सामो 5 / से मेहावी जाणेजा बहिरंगमेतं, इणमेव उवणीयतरागं, तंजहा-माया मे पिता मे भाया मे भगिणी मे भजा मे पुत्ता मे धूता मे पेसा मे नत्ता में सुराहा मे सुही मे पिया मे सहा मे सयणसंगंथसंथुया मे, एते खलु मम णाययो अहमवि एतेसिं, एवं से मेहावी पुवामेव अप्पणा एवं समभिजाणेजा 6) इह खलु मम ग्रन्नयरे दुक्खे रोयातके समुप्पज्जेजा अणिठे जाव दुक्खे णो सुहे, से हंता भयंतारो ! णाययो इमं मम अन्नयरं दुक्खं रोयातंक परियाइयह अणिठे जाव णो सुहं 7 ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जाव परि. तप्पामि वा, इमायो मे अन्नयरातो दुक्खायो रोयातंकायो परिमोएह अणिहायो जाव णो सुहायो, एवमेव णो लद्धपुवं भवइ, तेसिं वावि भयंताराणं मम णाययाणं अन्नपरे दुक्खे रोयातके समुपज्जेज्जा अणिठे जाव णो सुहे, से हंता ग्रहमेतेसिं भयंताराणं णाययाणं इमं यन्नयरं दुक्खं रोयातंक परियाझ्यामि अणिद्रं जाव णो सुहं 8 / मा मे दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु वा, इमायो णं अरणयरायो दुक्खातो रोयातंकायो परिमोएमि अणिटायो जाव णो सुहायो, एवमेव गो लद्रपुध्वं भवइ, अन्नस्स दुक्खं अन्नो न परियाझ्यति यन्नेण कडं ग्रन्नो नो पडिसंवेदेति पत्तेयं जायति पत्तेयं मरइ पत्तेयं चयइ पत्तेयं उववजइ पत्तेयं झंझा पत्तेयं सन्ना पत्तेयं मन्ना एवं विन्नू वेदणा 1 / इइ खलु णातिसंजोगा णा ताणाए वा णो सरणाए वा, पुरिसे वा एगता पुब्बिं गातिसंजोए विप्पजहति, णातिसंजोगा वा एगता पुब्बि पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने खलु णातिसंजोगा अन्नो ग्रहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहिं णातिसंजोगेहिं मुच्छामो ?, इति संखाए णं वयं णातिसंजोगं विप्पजहिस्सामो 10 / से मेहावी जाणेजा बहिरंगमेयं, इणमेव उवणीयतरागं, तंजहा-हत्था मे पाया मे वाहा मे ऊरू मे उदरं में Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः सीसं मे सीलं मे ग्राऊ मे बलं मे वरणो मे तया मे छाया मे सोयं मे चक्व मे घाणं मे जिब्भा मे फासा मे ममाइजइ, वयाउ पडिजूरइ, तंजहाश्राउयो बलायो वराणायो तयायो छायायो सोयायो जाव फासायो, सुसंधितो संधी विसंधीभवइ, वलियतरंगे गाए भवइ, किराहा केसा पलिया भवंति, तंजहा-जंपि य इमं सरीरगं उरालं श्राहारोवइयं एयपि य अणुपुव्वेणं विप्पजहियव्वं भविस्सति 11 // एवं संखाए से भिक्खू भिक्खायरियाए समुट्ठिए दुहयो लोगं जाणेजा, तंजहा-जीवा चेव अजीवा चेव, तसा चेव थावरा चेव 12 // सूत्रम् 13 // - इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरिग्गहा, जे इमे तसा थावरा पाणा ते सयं समारंभति अन्नेणवि समारंभावेंति अरणंपि समारभंतं समणुजाणंति 1 // इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरिग्गहा, जे इमे कामभोगा माचेता वा अचित्ता वा ते सयं परिगिरहंति अन्नेणवि परिगिराहावेंति अन्नपि परिगिराहतं समणुजाणंति 2 // इह खलु गारस्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरिग्गहा, अहं खलु अणारंभे अपरिग्गहे, जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरिग्गहा, एतेसिं चेव निस्साए बंभचेरवास वसिस्सामो, कस्स णं तं हेउं ?, जहा पुव्वं तहा अवरं जहा अवरं तहा पुव्वं, अंजू एते अणुवरया अणुपट्ठिया पुणरवि तारिसगा चेव ३॥जे खलु गारस्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरि. ग्गहा, दुहतो पावाई कुव्वंति इति संखाए दोहिवि अंतेहिं अदिस्समाणो इति भिक्खू रीएजा 4 // से बेमि पाईणं वा 6 जाव एवं से परिराणायकम्मे, एवं से ववेयकम्मे, एवं से विद्युतरकारए भवतीति मक्खायं 5 ॥सूत्रं 14 // Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 166 श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] तत्थ खलु भगवता छजीवनिकाय हेऊ पराणत्ता, तंजहा-पुढवीकाए नाव तसकाए, से जहाणामए मम अस्सायं दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा स्त वा ताडिजमाणस वा परियाविजमाणस्स वा किलामिजमाणस्त वा उद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि 1 / इच्चे जाण सव्वे जीवा सब्वे भूता सव्वे पाणा सब्वे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा ग्राउट्टिजमाणा वा हम्ममाणा वा तजिजमाणा वा ताडिजमाणा वा परियाविजमाणा वा किलामिजमाणा वा उद्दविजमाणा वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुवखं भयं पडिसंवदंति, एवं नच्चा सव्वे पाणा जाव सत्ता ण हंतव्वा ण यजावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण परितावेयव्या ण उद्दवेयव्वा 2 // से बेमि जे य अतीता जे य पडुप्पन्ना जे य श्रागमिस्ता अरिहंता भगवंतो सव्वे ते एषमाइक्खंति एवं भासंति एवं पराणवेंति एवं परूवेति-सव्वे पाणा जाव सत्ता ण हंतव्वा ण यजावेयवा ण परिघेतव्या ण परितावेयब्वा ण उद्दवेयवा एस धम्मे धुवे णीतिए सासए समिञ्च लोगं खेयन्नेहिं पवेदिए, एवं से भिक्खू विरते पाणातिवायातो जाव विरते परिग्गहातो णो दंतपवखालणेणं दंते पक्खालेजा णो अंजणं णो वमणं णो धूवणे णो तं परियाविएज्जा 3 // से भिक्खू अकिरिए अलूमए अकोहे प्रमाणे अमाए अलोहे उवसंते परिनिव्वुडे णो श्रासंसं पुरतो करेजा इमेण मे दिठेण वा सुएण वा मएण वा विनाएण वा इमेण वा सुचरियतवनियमबंभचेरवासेण इमेण वा जायामायावत्तिएणं धम्मेणं इयो चुए पेचा देवे सिया कामभोगाण वसवत्ती सिद्धे वा अदुक्खमसुभे एथवि सिया एत्थवि णो सिया 4 // से भिक्खू सद्द हिं अमुच्छिए रूवेहिं अमुच्छिए गंधेहिं अमुच्छिए रसेहिं अमुच्छिए फासेहिं अमुच्छिए विरए कोहायो माणायो मायायो लोभायो पेजायों Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः दोसायो कलहायो अब्भक्खाणायो पेसुन्नायो परपरिवायायो अरइरईयो मायामोसायो मिच्छादसणसल्लायो इति से महतो श्रायाणाश्रो उवसते उवट्ठिए पडिविरते से भिवखू 5 // जे इमे तसथावरा पाणा भवंति ते णो सयं समारंभइ णो वराणेहिं समारंभावेंति अन्ने समारभंतेवि न समणुजाणंति इति से महतो थायाणायो उवसंते उवट्ठिए पडिविरते से भिक्खू 6 // जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा ते णो सयं परिगिरहति णो अन्नेणं परिगिराहावेति अन्नं परिगिराहतंपि ण समणुजाणंति इति से महतो थायाणायो उवसंते उपट्ठिए पडिविरते से भिक्खु 7 // जंपिय इमं संपराइयं कम्मं कजइ, णो तं सयं करेति णो अराणाणं कारवेति थन्नंपि करेंतं ण समणुजाणइ इति, से महतो पायाणायो उबसंते उवट्ठिए पडि. विरते 8 // से भिक्खू जाणेजा असणं वा 4 अस्सि पडियाए एगं साहम्मियं समुदिस्स पाणाई भूताई जीवाइं सत्ताई समारंभ समुदिस्स कीतं पामिच्चं यच्छिज्ज अणिसटुं अभिहडं ग्राहय़ोसियं तं चेतियं सिया तंजहा अप्पणो पुनाईणट्ठाए जाव पाएमाए पुढो पहेणाए मामासाए पायरासाए संणिहिसंणिचयो किजइ, इहएतेसिं माणवाणं. भोयणाए (अह पुण एवं जाणेजा विजति तेसिं परकम जस्सट्टाए चेयं सिया तंजहा-अपणो पुत्ताणं धूयाणं सुराहाणं धाईणं णातीणं राईणं दासाणं दासीणं कम्मकराणं कम्मकरीणं पाएसाणं पुढोपहेणाए सामासाए पातरासाए सन्निहीसन्निचर फिजइ इहमेगेमि माणवाणं भोयणाए) णो सयं भुजइ णो अराणेणं भुजावेति अन्नपि भुजंतं ण समणुजाणइ इति, से महतो आयाणायो उवरते उवट्ठिए पडिविरते 6 // तत्थ भिक्खू परकडं परणिट्ठितमुग्गमुप्पायोसणासुद्धं सत्थाईयं सत्थपरिणामियं अविहिसियं एसियं वेसियं सामुदाणियं पत्तमसणं कारणट्ठा पमाणजुत्तं अक्खोवंजणवणलेवणभूयं संजमजायामायावत्तियं विलमिव पन्नगभूतेणं अप्पाणेणं श्राहारं श्राहारेज्जा अन्नं अन्नकाले पाणं पाणकाले Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 201 वत्थं वत्थकाले लेणं लेणकाले सयणं सयणकाले 10 // से भिक्खू मायन्ने अन्नयरं दिसं अणुदिसं वा पडिबन्ने धम्मं प्राइक्खे विभए किटे उवट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए, संतिविरतिं उवसमं निव्वाणं सोयवियं अजवियं मदवियं लाघवियं अणतिवातियं सव्वेसि पाणाणं सर्वसिं भूताणं जाव सत्ताणं अणुवाई किट्टए धम्मं 11 // से भिक्खू धम्मं किट्टमाणे णो अन्नस्स हेउं धम्ममाइक्खेजा, णो पाणस्स हेउं धम्ममाइक्खेजा, णो वत्थस्स हेडं धम्ममाइक्खेजा, णो लेणस्स हेउं धम्ममाइक्खेजा, णो सयणस्स हेउं धम्म. माइक्खेजा, णो अन्नेसिं विरूवरूवाणं कामभोगाणं हेउं धम्ममाइक्खेजा, अगिलाए धम्ममाइक्खेजा, ननस्थ कम्मनिजरटाए धम्ममाइक्खेज्जा 12 // इह खलु तस्स भिक्खुस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म उट्ठाणेणं उद्याय वीरा अस्सि धम्मे समुट्ठिया जे नस्स भिक्खुस्स अंतिए धम्म सोचा णिसम्म सम्म उट्ठाणेणं उट्ठाय वीरा असि धम्मे समुट्टिया ते एवं सव्योवगता ते एवं सम्वोवर(ग)ता ते एवं सव्योवसंता ते एवं सव्वत्ताए परिनिव्वुडत्तिबेमि 13 // एवं से भिक्खू धम्मट्ठी धम्मविऊ णियागपडिवगणे से जहेयं बुतियं अदुवा पने पउमवरपोंडरीयं अदुवा अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, एवं से भिवखू परिराणायकम्मे परिराणायसंगे परिराणायगेहवासे उवसंते समिए सहिए सया जए, सेवं वयणिज्जे, (वत्तव्वे) तंजहा-समणेति वा माहणेति वा खतेति वा दंतेति वा गुत्तेति वा मुत्तेति वा इसीति वा मुणीति वा कतीति वा विऊति वा भिवृति वालूहेति वा तीरट्ठीति वा चरणकरणपारविउत्तिबेमि१४ ॥सूत्र-१५॥ // इति प्रथममध्ययनम् // श्रुतस्कधः 2: अ०१ // Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 ] _ [श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः ... // अथ द्वितीयं क्रियास्थानाख्याध्ययनम् // सुयं मे थाउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु किरियागणे णामज्झयणे पराणत्ते, तस्त णं अयमटठे-इह खलु संजूहेणं दुवे ठाणे एवमाहिज्जंति, तंजहा-धम्मे चेव अधम्मे चेव उपसंते चेव अणुवसते चेव 1 // तस्थ णं जे से पढमस्स ठाणस्स ग्रहम्मपक्खस्स विभंगे तस्स णं अयमाठे पराणत्ते, इह खलु पाईणं वा 6 संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा-यारिया वेगे अणारिया वेगे उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे कायमंता वेगे रहस्समंता वेगे सुवरणा वेगे दुव्वराणा वेगे सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे 2 // तेसिं च णं इमं एतास्वं दडसमादाणं संपेहाए तंजहा-णेरइएसु वा तिरिक्खजोणिएसु वा मणुस्सेसु वा देवेसु वा जे यावन्ने तहप्पगारा पाणा विन्नू वेयणं वेयंति 3 // तेसि पि य णं इमाइं तेरस किरियागणाई भवंतीति एवमक्खायं, तं. जहा-अट्टादंडे 1 अणट्ठादंडे 2 हिंसादंडे 3 अकम्हादंडे 4 दिट्ठीविपरियासियादंडे 5 मोसवत्तिए 6 अदिन्नादाणवत्तिए 7 अज्झत्थवत्तिए 8 माणवत्तिए 1 मित्तदोसवत्तिए 10 मायावत्तिए 11 लोभवत्तिए 12 इरियावहिए 13 ॥सूत्रं 16 // ___ पढमे दंडसमादाणे अट्ठादंडवत्तिएत्ति पाहिज्जइ, से जहाणामए केइ पुरिसे श्रायहेउं वा णाइहेउं वा यगारहेउं वा परिवारहउँ वा मित्तहेउं वा णागहेडं वा भूतहेउं वा जक्खहेउं वा तं दंडं तसथावरेहिं पाणहिं सयमेव णिमिरिति अंगणेणवि णिसिरावेति अराणपि णिसिरंतं समणुजाणइ, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति पाहिज्जाइ, पढमे दंडसमादाणे अट्ठादंडवत्तिएत्ति अाहिए // सूत्रं 17 // . अहावरे दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिएत्ति पाहिज्जइ, से जहाणामए केइ पुरिसे जे इमे तसा पाणा भवंति ते णो अच्चाए णो जिणाए Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्ग-सूत्रम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [203 णो मंसाए णो सोणियाए एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए णहाए राहारुणिए अट्ठीए अट्टिमंजार णो हिंसिंसु मेत्ति णो हिंसंति मेत्ति णो हिंसिस्संति मत्ति णो पुत्तपोसणाए णो पसुपोसणयाए णो अगारपरिवूहणताए णो समणमाहणवत्तणाहेउं णो तस्स सरीरगस्म किंचि विपरियादित्ता भवंति, से हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता उज्झिउं बाले वेरस्स आभागी भवति, अणट्ठादंडे 1 // से जहाणामए केइ पुरिसे जे इमे थावरा पाणा भवंति, तंजहा-इकडा इ वा कडिणा इ वा जंतुगा इ वा परगा इवा मोक्खा इवा तणा इवा कुसाइ वा कुच्छगा इ वा पवगा इवा पलाला इ वा, ते णो पुत्तमोसणाए णो पसुपोसणाए णो अगारपडिवूहणयाए णो समणमाहणपोसणयाए णो तस्स सरीरगस्स किंचि विपरियाइत्ता भवंति, से हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दव. इत्ता उभिउं बाले वेरस्स श्राभागी भवति, अणट्ठादंडे 2 // से जहाणामए केइ पुरिसे कच्छसि वा दहंसि वा उदगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा मंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गसि वा पवयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा तणाइं ऊसविय ऊसविय सयमेव अगणिकायं णिसिरति अराणेणवि अगणिकायं णिसिरावेति अगणंपि अगणिकायं णिसिरितं समणुजाणइ अणट्ठादंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजन्ति ग्राहिजइ, दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिएत्ति अाहिए 3 // सूत्रम् 18 // ग्रहावरे तच्चे दंडसमादाणे हिंसादंडवत्तिएत्ति पाहिजइ, से जहाणामए केइ पुरिसे ममं वा ममि वा यन्नं वा अनि वा हिंसिंसु वा हिंसइ वा हिंसिस्सइ वा तं दंडं तसथावरेहिं पाणेहिं सयमेव णिसिरति अराणेणवि णिसिरावेति अन्नपि णिसिरंतं समणुजाणइ हिंसादंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जंति पाहिजइ, तच्चे दंडसमादाणे हिंसादंडवत्तिएत्ति श्राहिए // सूत्रम् 11 // Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 204 ] __[ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः ___ ग्रहावरे चउत्थे दंडसमादाणे अकस्मात् दराडवत्तिएत्ति पाहिज्जइ, से जहाणामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा जाव वण(पव्वय)विदुग्गंसि वा मियवत्तिए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एए मियत्तिकाउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए उसु थायामेत्ता गां णिसिरेजा, स मियं बहिस्सामित्ति कटु तित्तिरं वा वट्टगं वा चडगं वा लावगं वा कवोयगं वा कविं वा कविजलं वा विधित्ता भवइ, इह खलु से अन्नस्स अट्ठाए अगणं फुसति अकम्हादंडे 1 // से जहाणामए केइ पुरिसे सालीणि वा वीहीणि वा कोदवाणि वा कंगूमि वा परगाणि वा रालाणि वा णिलिजमाणे अन्नयरस्स तणस्प वहाए सत्थं णिसिरेजा, से सामगं (मयणगं मुगुणगं) तणगं कुमुदुगं वीहीऊसियं कलेसुयं तणं बिंदिस्सामित्ति कटु सालिं वा वीहिं वा कोदवं वा कंगु वा परगं वा रालयं वा विंदित्ता भवइ, इति खलु से अन्नस्स अट्ठाए अन्नं फुसति अकम्हादंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं याहिजइ, चउत्थे दंडसमादाणे अकम्हादंडवत्तिए पाहिए 2 / / सूत्रम् 20 // ग्रहावरे पंचमे दंडसमादाणे दिविविपरियासियादंडवत्तिएत्ति बाहि. जइ, से जहाणामए केइ पुरिस माईहिं वा पिईहिं वा भाईहिं वा भगिणीहिं वा भजाहिं वा पुत्तेहिं वा धूताहिं वा सुराहाहिं वा सद्धिं संवसमाणे मित्तं अमित्तमेव मन्नमाणे मित्ते हयपुब्वे भवइ दिट्ठिविपरियासियादंडे // से जहा. णामए केइ पुरिसे गामघायंसि वा णगरघायंसि वा खेड० कबड० मडंब. घायंसि वा दोणमुहघायंसि वा पट्टणघायंसि वा बासमघायंसि वा सन्निवेसघायंसि वा निग्गमघायंसि वा रायहाणिघायंसि वा अतेणं तेणमिति मन्नमाणे अतेणे हयपुब्वे भवइ दिद्विविपरियासियादंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति पाहिजइ, पंचमे दंडसमादाणे दिविविपरियासियादंडवत्तिएत्ति श्राहिए / / सूत्रम् 21 // Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 205 ___ग्रहावरे छठे किरियहाणे मोप्सावत्तिएत्ति याहिजइ, से जहाणामए केइ पुरिसे घायहेउं वा णाईहउँ वा अगारहेउं वा परिवारहेडं वा सयमेव मुसं वयति अराणेणवि मुसं वाएइ मुसं वयंतपि अरणं समणुजाणइ, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति पाहिजइ, छठे किरियट्ठाणे मोसावत्तिएत्ति ग्राहिए / / सूत्रम् 22 / / - ग्रहावरे सत्तमे किरियट्ठाणे ग्रदिन्नादाणवत्तिएत्ति याहिजइ, से जहाणामए केइ पुरिसे थायहेउं वा जाव परिवारहेउं वा सयमेव अदिन्नं थादिवइ यन्नेणवि यदिन्नं यादियावेति अदिन्नं श्रादियंत अन्नं समणुजाणइ, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति अाहिजइ, सत्तमे किरियट्ठाणे यदिन्नादाणवत्तिएत्ति अाहिए। सूत्रम् 23 // ग्रहावरे यट्टमे किरियट्ठाणे अज्झत्थवत्तिएत्ति पाहिजइ, से जहाणामए केइ पुरिसे णत्थि णं केइ किंचि विसंवादेति सयमेव हीणे दीणे दुठे दुम्मणे योहयमसंकप्पे चिंतासोगरसंपविठे करतलपल्हस्थमुहे अट्टज्माणावगए भूमिगयदिट्ठिए झियाइ, तस्स णं अन्झत्थया असंसइया चत्तारि ठाणा एवमहिज्जइ (ज्जंति) तंजहा-कोहे माणे माया लोहे, अज्झत्यमेव कोहमाणमायालोहे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति पाहिजइ, अट्ठमे किरियट्ठाणे अज्झत्यवत्तिएत्ति श्राहिए // सूत्रम् 24 // __ग्रहावरे णवमे किरियट्ठाणे माणवत्तिएत्ति पाहिज्जइ, से जहाणामए केइ पुरिसे जातिमएण वा कुलमएण वा बलमएण वा रूवमएण वा तवमरण वा सुयमएण वा लाभमएण वा इस्मरियमएण वा पन्नामएण वा अन्नतरेण वा मयट्ठाणेणं मत्ते समाणे परं हीलेति निदेति खिसति गरहति परिभवइ अवमराणेति, इत्तरिए अयं, ग्रहमंसि पुण विसिट्ठजाइकुलबलाइगुणोववेए, एवं अप्पाणं समुकसे, देहच्चुए कम्मबितिए श्रवसे पयाइ, तंजहा-गभायो गभं 4 जम्मायो जम्मं मारायो मारं णरगायो णरगं चंडे थद्धे चवले / Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 206 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभागः मणी यावि भवइ, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजंति पाहिजइ, णवमे किरियाठाणे माणवनिएत्ति वाहिए।सूत्रम् 25 // ग्रहावरे दसमे किरियट्ठाणे मितदोसवत्तिएत्ति पाहिज्जइ, से जहाणामए केइ पुरिसे माईहिं वा पितीहिं वा भाईहिं वा भइणीहिं वा भजाहिं वा धूयाहिं वा पुत्तेहिं वा सुराहाहि वा सद्धिं संवसमाणे तेसिं अन्नयरंसि ग्रहालहुगंसि यवराहसि सयमेव गस्यं दंडं निवत्तेति, तंजहा-सीयोदगवियउंसि वा कायं उच्छोलित्ता भवति, उसिणोदगवियडेण वा कायं योसिंचित्ता भवति, अगणिकारणं कायं उबडहित्ता भवति, जोत्तेण वा वेत्तेण वा वा णेत्तेण वा तयाइ वा [कराणेण वा छियाए वा] लयाए वा यन्नयरेण वा दवरएण पासाइं उद्दालित्ता भवति, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा कायं अाउट्टित्ता भवति, तहप्पगारे पुरिसजाए संवसमाणे दुम्मणा भवति, पवसमाणे सुमणा भवति, तहप्पगारे पुरिसजाए दंडपासी दंडगुरुए दंडपुरकडे अहिए इमंसि लोगंसि अहिए परंसि लोगंसि संजलणे कोहगो पिटिमंसि यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जंति पाहिजति, दसमे किरियट्ठाणे मित्तदोसवत्तिएत्ति वाहिए ॥सूत्रम् 26 // ग्रहावरे एक्कारसमे किरियट्ठाणे मायावत्तिएत्ति यांहिजइ, जे इमे भवंति-गूढायारा तमोकसिया उलुगपतलहुया पव्वयगुरुया ते पायरियावि संता अणारियायो भासायोवि पउज्जति, अन्नहामंतं अप्पाणं अन्नहा मन्नंति, अन्नं पुट्ठा अन्नं वागरंति, अन्नं बाइक्खियध्वं अन्नं बाइक्खंति 1 // से जहाणामए केइ पुरिसे अंतोसल्ले तं सल्लं णो सयं णिहरति णो अन्नेण णिहराति णो पडिविद्धंसेइ, एवमेव निराहवेइ, अविउट्टमाणे अंतोअंतो रियइ 2 / एवमेव माई मायं कटु णो बालोएइ णो पडिक्कमेइ णो णिदइ णो गरहइ णो विउट्टइ णो विसोहेइ णो अकरणाए अब्भुठेइ णो अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिबजइ, माई अस्सि लोए पञ्चायोइ माइ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 207 परंसि लोए पुणो पुणो पचायाइ निंदइ गरहइ पसंसइ णिचाइ नियट्टइ णिमिरियं दंडं छाएति, माई असमाहडसुहलेस्से यावि भवइ, एवं खलु तस्स तपत्तियं सावज्जति पाहिजइ, एकारसमे किरियट्ठाणे मायावत्तिएत्ति श्राहिए 3 // सूत्रं 27 // ग्रहावरे बारसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिएत्ति पाहिजइ, जे इमे भवंति, तंजहा-यारनिया श्रावसहिया गामंतिया कराहुईरहस्सिया णो बहुसंजया णो बहुपडिविरया सव्वपाणभूतजीवसत्तेहिं ते अप्पणो सच्चामोसाई एवं विउंति, अहं ण हतब्बो अन्ने हंतव्या अहं ण अजावेयव्वो अन्ने ग्रजावेयव्वा ग्रहं ण परिघेतब्बो अन्ने परिघेतव्वा ग्रहं ण परितावेयब्वो अन्ने परितावेयब्वा यहं ण उद्दवेयव्यो अन्ने उद्दवेयवा 1 / एवमेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया गरहिया अज्मोववन्ना जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाई अप्पयरो वा भुजयरो वा भुजित्तु भोगभोगाइं कालमासे कालं किचा अन्नयरेसु बासुरिएसु किबिसिएसु ठाणेसु उववत्तारो भवंति 2 / ततो विप्पमुचमाणे भुजो भुजो एलमूयत्ताए तमूयत्ताण्जाइमूयत्ताए पञ्चायंति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जंति पाहिजइ, दुवालसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिएत्ति पाहिए 3 // इच्चेयाई दुवालस किरियट्ठाणाई दविएणं समणेण वा माहणे,ण वा सम्मं सुपरिजाणिग्रवाई भवंति 4 ॥सूत्रं 28|| ग्रहावरे तेरसमे किरियट्ठाणे इरियावहिएत्ति पाहिजइ, इह खलु अत्तत्ताए संवुडस्स यणगारस्स ईरियासमियस्स भासासमियस्स एसणासमियस्त अायाणभंडमतणिक्खेवणासमियस्स उच्चारपासमणखेलसिंघाणजल्लपारि. ट्ठावणियासमियस्स मणसमियस्स वयसमियस्म कायसमियस्स मणगुत्तस्स वयगुत्तस्स कायगुत्तस्स गुतस्म गुतिदियस्स गुत्तवंभयारिस्स पाउत्तं गच्छमाणस्स थाउत्तं चिट्ठमाणस्त पाउत्तं णिसीयमाणस्स पाउत्तं तुयट्टमाणस्स पाउत्तं भुजमागास्स अाउत्तं भासमाणस्स पाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुछणं Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 208 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः गिराहमाणस्स वा णिक्खिरमाणस्त वा जाव चवखुपम्हणिवायमवि अस्थि विमाया सुहुमा किरिया ईरियावहिया नाम कन्जइ 1 ।सा पढमसमए बद्धा पुट्ठा बितीयममए वेइया तइयसमए णिजिराणा सा बद्धा पुटा उदीरिया वेइया णिजिगणा सेयकाले अकम्मे यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति पाहिज्जइ, तेरसमे किरियट्ठाणे इरियारहिएत्ति याहिजइ 2 / से बेमि जे य अतीता जे य पडुपन्ना जे य यागमिस्सा अरिहंता भगवंता सव्वे ते एपाइं चेव तेरस किरियट्ठाणाई भासिंसु वा भासेंति वा भासिस्संति वा पन्नविसु वा पनविति वा पन्नविस्संति वा, एवं चेव तेरसमं किरियट्ठाणां सेविंसु वा सेवंति वा सेविस्संति वा // सूत्रं 26 // यदुत्तरं च णं पुरिसविजयं विभंगमाइक्खिस्सामि, इह खलु णाणापराणाणं णाणाछंदाणं णाणासीलाणं णाणादिट्ठीणं गाणारूईणं णाणारंभाणं गाणाझवसाणसंजुत्ताणं णाणाविहपावसुयज्झयणं एवं भवइ, तंजहा-भोमं उप्पायं सुविणं अंतलिक्खं अंगं सरं लक्खणं वंजणं इथिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं मिढलक्खणं कुकडलक्खणं तित्तिरलक्खणं वट्टगलक्खणं लावयलक्खणं चकलक्खणं छत्तलक्खणं चम्मलक्खणं दंडलक्खणं असिलवखणं मणिलक्खणं कागिणिलक्खणं सुभगाकरं दुब्भगाकरं गम्भकरं मोहणकरं पाहव्वणिं पागसासणिं दव्वहोम खत्तियविजं चंदचरियं सूरचरियं सुकचरियं बहस्सइवरियं उक्कापायं दिसादाहं मियवक्कं वायसपरिमंडलं पंसुवुढेि केसवुट्टि मंसवुद्धिं रुहिरखुट्ठि वेतालिं श्रद्धवेतालिं योसोवणिं तालुगघाडणिं सोवागि सोवरि दामिलिं कालिंगि गोरिं गंधारिं योवतणि उप्पयणिं जंभणि थंभणि लेसणिं ग्रामयकरणिं विसल्लकरणिं पकमणिं अंतद्धाणिं थायमिणिं, एवमाझ्यायो विजायो अन्नस्स हेडं पउँजंति, पाणस्स हेउं पउंजंति वत्थस्स हेउं पउंजंति लेणस्स हेउं पउंजंति सयणस्स हेउं पउंजंति / अन्नेसिं वा विख्वरूवाणं कामभोगाणं हेळं पउंजंति, Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 206 तिरिच्छ ते विज्ज सेवेति, ते अणारिया विप्पडिबन्ना कालमासे कालं किच्चा अन्नयराइं यासुरियाई किब्बिसियाई ठाणाई उववत्तारो भवंति, ततोऽवि विप्पमुचमाणा भुजो एलभूयताए तमयंधपाए पचयति ॥सूत्रं 30 // से एगइयो अायहेउं वा णायहेउं वा सयणहेउं वा अगारहेडं वा परिवारहेउँ वा नायगं वा सहवासियं वा णिस्साए अदुवा अणुगामिए 1 यदुवा उवचरए 2 अदुवा पडिपहिए 3 अदुवा संधिच्छेदए 4 अदुवा गंठिच्छेदए 5 यदुता उरम्भिए 6 अदुवा मोवरिए 7 यदुवा वागुरिए 8 अदुवा साउणिए 1 अदुवा मच्छिए 10 अदुवा गोघायए 11 अदुवा गोवालए 12 अदुवा सोवणिए (सेयणए) 13 अदुवा सोवणियंतिए 14-1 // से एगइयो ग्राणुगामियभावं पडिसंधाय तमेव अणुगामियाणुगामियं हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता याहारं याहारेति, इति से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उववखाइत्ता भवइ 2 // से एगइयो उवचरयभावं पडिसंधाय तमेव उवचरियं हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता याहारं थाहारेति, इति से महया पावहिं कम्मेहिं श्रत्ताणं उदवखाइत्ता भवइ 3 // से एगइयो पाडिपहियभावं पडिसंधाय तमेव पाडिपहे ठिचा हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता अाहारं श्राहारेति, इति से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ 4 // से एगइयो सधिहंदगभावं पडिसं. धाय तमेव संधि छेत्ता भत्ता जाव इति से महया पावहिं कम्महिं अत्ताणं उववखाइत्ता भवइ 5 // से एगइयो गंठिछेदगभावं पडिसंधाय तमेव गंठिं छेत्ता भेत्ता जाव इति से महया पावहिं कम्मेहिं अत्ताणं उववखाइत्ता भवइ 6 // से एगइयो उरब्भियभावं पडिसंधाय उरभं वा अराणतरं वा तसं पाणं हंता जाव उववखाइत्ता भवइ / एसो अभिलावो सव्वस्थ 7 // से एगइयो सोयरि. यभावं पडिसंधाय महिसं वा अरणतरं वा तसं पाणं जाव उवक्खाइत्ता भवइ 8 // से एगइयो वागुरियभावं पडिसंधाय मियं वा अरणतरं वा तसं पाणं Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 210 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ // से एगइयो सउणियभावं पडिसंधाय सउणिं वा अगणतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 10 // से एगइयो मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा श्रराणतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 11 // से एगद्दयो गोघायभावं पडिसंधाय तमेव गोणं वा अरणयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 12 // से एगइयो गोवालभावं पडिसंधाय तमेव गोवालं (गोणं) वा परिजविय परिजविय हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 13 // से एगइयो सोवणियभावं पडि. संधाय तमेव सुणगं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 14 // से एगइयो सोवणियंतियभावं पडिसंधाय तमेव मणुस्सं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव श्राहारं याहारेति, इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ 15 // सूत्रं 31 // से एगइयो परिसामन्मायो उद्वित्ता अहमेयं हणामित्ति कटु तित्तिरं वा वट्टगं वा लावगं वा कवोयगं वा कविंजलं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 1 // से एगइयो केणइ यायामोणं विरुद्ध समाणे अदुवा रूलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएगां सस्साई भामेइ अन्नेणवि अगणिकाएणं सस्साइं झामावेइ अगणिकाएणं सस्साई झामंतंपि अन्नं समणुजाणइ इति से महया पावकमेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ 2 // से एगइयो केणइ अायाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव धूरायो कप्पेति अन्नेणवि कप्पावेति कप्पंतपि अन्नं समणुजाणइ इति से महया जाव भवइ 3 // से एगइयो केणइ अायाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टसालायो वा गोणसालाथो वा घोडगसालायो वा गद्दभसालायो Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 211 वा कंटकोंदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ अन्नेणवि झामावइ झामंतंपि अन्न समणुजाणइ इति से महया जाव भवइ 4 // से एगइयो केणइ यायाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा कुंडलं वा मणिं वा मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ अन्नेणवि अवहरावइ अवहरंतंपि अन्न समणुजाणइ इति से महया जाव भवइ 5 // से एगइयो केणइवि श्रादाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं समणाण वा माहणाण वा छत्तगं वा दंडगं वा भंडगं वा मत्तगं वा लट्ठि वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगं वा चम्मयं वा छेयणगं वा चम्मकोसियं वा सयमेव यवहरति जाव समणुजाणइ इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवइ 6 // से एगइयो गो वितिगिलइ तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकारणं श्रोसहीयो झामेइ जाव यन्नपि झामतं समणुजाणइ इति से महया जाव उपक्खाइत्ता भवति // से एगइयो णो वितिगिछइ, तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घरायो कप्पेइ अन्नेणवि कप्पावेति अन्नपि कप्पंतं समणुजाणइ० 8 // से एगइयो णो वितिगिंछइ तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा अट्टसालायो वाजाव गदभसालायो वा कंटकोंदियाहिं पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ जाव समणुजाणइ 1 // से एगइयो णो वितिगिछइ, तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा जाव मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ जाव समणुजाणइ० 10 // से एगइयो णो वितिगिछइ तं०-समणाण वा माहणाण वा छत्तगं वा दंडगं वा जाव चम्मच्छेदणगं वा सयमेव अवहरइ जाव समगुजाणइ इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवइ 11 // से एगइयो समणं वा माहणं वा दिस्सा णाणाविहेहिं पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ, अदुवा णं अच्छराए ग्राफालित्ता भवइ, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवइ, कालेणवि से Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 212 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः अणुपविट्टम्स असणं वा पाणं वा जाव णो दवावेत्ता भवइ 12 // जे इमे भवन्ति वोनमंता भारतकंता अलसगा वसलगा किवणगा समणगा पदयंति ते इणमेव जीवितं घिजीवितं संपडिव्हेंति, नाइ ते परलोगस्स पढाए किंचिवि सिलीसंति, ते दुवखंति ते सोयंति ते जूरंति ते तिप्पति ते पिरति ते परितप्पति ते दुवखणजूरणसोयणतिप्पणापिट्टणपरितिप्पणवहवंधणपरिकिले. सायो अप्पडिविरया भवंति, ते महया प्रारंभेणं ते महया समारंभेणं ते महया प्रारंभसमारंभेणं विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजित्तारो भवंति, तंजहा- यन्नं अन्नकाले पाणं पाणकाले वत्थं वा थकाले लेणं लेणकाले सयणं सयणकाले सपुवावरं च णं राहाए कयवलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सिरसा राहाए कंठमालाकडे थाविद्धमणिसुवन्ने कप्पियमालामाली पडिबद्धसरीरे वग्वारियसोणिसुत्तगमल्लदामकलावे यहतवत्थपरिहिए चंदणोक्खित्तगायसरीरे महतिमहालियाए कूडागारसालाए महतिमहालयंसि सीहासणंसि इत्थीगुम्मसंपरिखुडे सव्वराइएणं जोइणा झियायमाणेणं महयाहयनट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपड़पवाइयरवेणं उरालाई मणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विह. रइ 13 / तस्स णं एगमवि पाणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अवुत्ता चेव अत्भुति, भणह देवाणुप्पिया ! कि करेमो ? किं श्राहरेमो ? किं उवणेमो ? किं याचिट्टामो ! किं भे हिय इच्छियं ? किं भे अासगस्स सयइ ?, 14 // तमेव पासित्ता श्रणारिया एवं वयंति-देवे खलु अयं पुरिसे, देवमिणाए खलु अयं पुरिसे, अन्नेवि य णं उवजीवंति, तमेव पासित्ता ग्रारिया वयंति-अभिक्कतकूरकम्मे खलु अयं पुरिसे अतिधुन्ने अइयायरवखे दाहिणगामिए नेरइए कराहपक्खिए श्रागमिस्साणं दुल्लहबोहियाए यावि भविस्सइ 15 / / इच्चेयस्स ठाणस्स उठ्ठिया वेगे अभिगिझंति अणुट्ठिया वेगे अभिगिझति अभिझझाउरा अभिगिझति, एस ठाणे Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 213 श्रीमत्सूत्रकृताङ्ग-सूत्रम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] अणारिए अकेवले अप्पडिपुन्ने अर्णयाउए असंसुद्धे यमलगत्तणे असिद्धिमग्गे अमुत्तिमग्गे अनिव्वाणमग्गे अणिजाणमग्गे असबदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहु एस खलु पढमस्स ठाणस्स अधम्मपवखस्स विभंगे एवमाहिए 16 ॥सूत्रं 32 // ग्रहावरे दोन्चस्स ट्ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगं एवमाहिजइ, इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा-यापरिया वेगे अणारिया वेगे उचागोया वेगे णीयागोया वेगे कायमंता वेगे रहस्समंता वेगे सुवन्ना वेगे दुवन्ना वेगे सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे, तेसिं च णं खेत्तपत्थूणि परिग्गहियाइं भवंति, एसो पालावगो जहा पोंडरीए तहा तब्बो, तेणेव अभिलावेण जाव सब्बोवसंता सव्वत्ताए परिनिखुडेत्तिमि // एस ठाणे पारिए केवले जाव सम्बदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्मे साहु, दोबस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए ॥सूत्र 33 // - ग्रहावरे तच्चस्स ढाणस्स मिस्सगस्स विभंगे एवमाहिजइ, जे इमे भवंति थारगिगाया श्रावसहिया गामणियंतिया कराहुईरहस्मिता जाव ते तयो विप्पमुच्चमाणा भुजो एलमूयत्ता एतमूत्ताए पञ्चायंति, एस ठाणे प्रणारिए अकेवले जाव असव्वदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू, एस खलु तच्चस्स ठाणस्स मिस्सगम्स विभंगे एवमाहिए ॥सूत्रं 34 // ग्रहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपवखस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-इह खलु पाईगां वा 4 संतेगतिया मणुस्सा भवंति-गिहत्था महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया अधम्माणुराणा अधम्मिट्ठा अधम्मक्खाई धम्मपायजीविणो अधम्मपविलोई अधम्मपलजणा अधम्मसीलसमुदायारा अधम्मेणं चेव वितिं कप्पेमाणा विहरति 1 // हण छिंद भिंद विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कुचणवंचणमायाणियडिकूडकवडसाइसंपयोगबहुला दुस्मीला दुब्बया दुप्पडियाणंदा असाहू, सव्वायो पाणाइवायायो Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः अप्पडिविरया जावजीवाए जाव सव्वायो परिग्गहायो अप्पडिविरया जावजीवाए, सव्वायो कोहायो जाव मिच्छादसणसल्लायो अप्पडिविरया, सव्वायो राहाणुम्मदणवराणगगंधविलेवणसद्दफरिसरसख्वगंधमल्लालंकारायो अप्पडिविरया जावजीवाए, सव्वायो सगडरहजाणजुग्गगिल्लिथिलिसियासंदमाणियासयणासणजाणवाहणभोगभोयणपवित्थरविहीयो अप्पडिविरया जावजीवाए, सव्वायो कयविक्कयमासद्धमासरुवगसंववहारायो अप्पडिविरया जावजीवाए, सब्बायो कयविकयमासद्धमासरूवगसंववहारायो अप्पडिविरया जावजीवाए, सव्वायो हिरगणसुवरणधणधराणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालाश्रो अप्पडिविरया जावजीवाए, सव्वायो कूडतुलकूडमाणायो अप्पडिविरया जावजीवाए, सवायो प्रारंभसमारंभायो अप्पडिविरया जावजीवाए, सव्वायो कारणकारावणायो अप्पडिविरया जावजीवाए, सव्वायो पयणपयावणायो अप्पडिविरया जावजीवाए, सव्वायो कुट्टणपिट्टणतजणताडणवहबंधपरिकिलेसायो अप्पडिविरया जावजीवाए, 2 // जे ग्रावराणे तहप्पगारा सावजा अबोहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा जे अणारिएहिं कन्जंति ततो अप्पडिविरया जावजीवाए, से जहाणामए केइ पुरिसे कलममसूरतिलमुग्गमासनिफावकुलत्थयालिसंदगपलिमंथगमादिएहिं अटते कूरे मिच्छादंडं पउंजंति 3 / एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाए तित्तिरवट्टगलावगकवोतकविजलमियमहिसवराहगाहगोहकुम्मसिरिसिवमादिएहिं अयते कूरे मिच्छादंडं पउंति 4 / जावि य से बाहिरिया परिसा भवइ, तंजहा-दासे इ वा पेसे इ वा भयए इ वा भाइल्ले इ वा कम्मकरए इ वा भोगपुरिसे इ वा तेसिपि य णं अन्नयरंसि वा ग्रहालहुगंसि श्रवराहसि सयमेव गस्यं दंडं निवत्तेइ, तंजहा-इमं दंडेह इमं मुंडेह इमं तज्जेह इमं तालेह इमं अदुयबंधणं करेह इमं नियलबंधणं करेह इमं हड्डिबंधणं करेह इमं चारगबंधणं करेह इमं नियलजुयलसंकोइयमोडियं करेह इमं हत्थछिन्नयं करेह इमं पायछिन्नयं Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्ग-सूत्रम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 215 करेह इमं कनछिराणयं करेह इमं नक्कयो?सीसमुहछिन्नयं करेह वेयगछहियं अंगछहियं पक्खाफोडियं करेह इमं णयणुपाडियं करेह इमं दंसणुप्पाडियं वसणुप्पाडियं जिन्भुप्पाडियं अोलंबियं करेह घसियं करेह घोलियं करेह सूलाइयं करेह सूलाभिनयं करेह खारवत्तियं करेह वझवत्तियं करेह सीहपुच्छियगं करेह वसभपुच्छियगं करेह दवग्गि(कडग्गि)दड्डयंगं कागणिमंसखावियगं भत्तपाणनिरुद्धग इमं जावजीवं वहबंधणं करेह इमं अन्नयरेणं असुभेणं कुमारेणं मारेह 5 // जावि य से अभितरिया परिसा भवइ, तंजहा-माया इवां पिया इवा भाया इवा भगिणी इ वा भन्जा इ वा पुत्ता इ वा धूता इ वा सुराहा इवा, तेसिपि य णं अन्नयरंसि ग्रहालहुगंसि अवराहसि सयमेव गरुयं दंडं णिवत्तेइ, सीयोदगवियङसि उच्छोलित्ता भवइ जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिए परंसि लोगंसि, ते दुक्खंति सोयंतिजूरंति तिप्पंति पिटंति परितप्पंति ते दुक्खण मोयणजूरणतिप्पणपिट्टणपरितप्पणवहबंधणपरिकिलेसायो अपडिविरया भवंति 6 // एवमेव ते इत्थिकामहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववन्ना जाव वामाई चउपंचमाइं छहसमाई वा अप्पतरो वा भुजतरो वा कालं भुजित्तु भोगभोगाइं पविसुइत्ता वेरायतणाई संचिणित्ता बहूई पावाई कम्माइं उस्सन्नाइं संभारकडेण कम्मणा से जहाणामए अयगोले इ वा सेलगोले इ वा उदगंसि पक्खित्ते समाणे उदगतलमइवइत्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवइ 7 / एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाते वजबहुले धूतबहुले पंकबहुले वेरबहुले अप्पत्तियवहुले दंभवहुले णियडिबहुलं साइबहुले अयसबहुले उस्सन्नतसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितलमइवइत्ता अहे णरगतलपइट्ठाणे भवइ 8 // सूत्रं 35 // ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा ग्रहे खुरप्पसंठाणसंठिया णिच्चंधतमसा (णिच्चंधकारतमसा) ववगयगहचंदसूरनक्खत्तजोइसप्पहा मेदवसामसरुहिरप्यपडलचिक्खिललित्ताणुलेवणतला असुई वीमा परमदुभिगंधा कराहा अगणिवन्नाभा कक्खडफामा दुरहियासा असुभा Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 216 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः गरगा असुभा णरएसु वेयणायो 1 // णो चेव णरएसु नेरइया णिहायंति वा पयलायंति वा सुई वा रतिं वा धितिं वा मतिं वा उपलभंते, ते णं तत्थ उज्जलं विउलं पगाढं कडुयं ककसं चंडं दुक्खं दुग्गं तिव्वं दुरहियासं णेरइया वेयणं पचणुभवमाणा विहरंति 2 // सूत्रं 36 // से जहाणामए रुक्खे सिया पव्वयग्गे जाए मूले छिन्ने अग्गे गरुए जयो णिराणं जो विसमं जयो दुग्गं तयो पवडति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाए गन्भातो गम्भं जम्मातो जम्मं मारायो मारं णरगायो णरगं दुक्खायो दुक्खं दाहिणगामिए ओरइए कराहपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लभबोहिए यावि भवइ 1 // एस गणे अणारिए अकेवले जाव असम्बदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए 2 // सूत्रं 37 // ग्रहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिजइ-इह खलु पाइणं वा 4 संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा-अणारंभा अपरिगहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुब्वया सुप्पडियाणांदा सुसाहू सम्वता पाणातिवायायो पडिविरया जावजीवाए जाव जे यावन्ने तहप्पगारा सावजा अबोहिया कम्मता परपाणपरियावणकरा कज्जति ततो विपडिविरता जावजीवाए 1 // से जहाणामए अणगारा भगवंतो ईरियासमिया भासासमिया एसणासमिया श्रायाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिया उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियाममिया मणसमिया वयसमिया कायसमिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुतिंदिया गुत्तवंभयारी अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिवुडा श्रणासवा अग्गंथा छिन्नमोया विरुवलेवा कंसपाइ व मुकतोया संखो इव णिरंजणा जीव इव अपडिहयगती गगणतलंपिव निरालंबणा वाउरिव अपडिबद्धा सारदसलिल व सुद्धहियया पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा कुम्मो इव गुतिंदिया विहग इव विप्पमुक्का खग्गिंविसाणं व Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 217 सुद्धहिक्या पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा कुम्भा इव गुनिंदिया विहग इव विप्पमुक्का खग्गिविसाणं व एगजाया भारंडपक्खीव अप्पमत्ता कुंजरो इव सोंडीरा वसभो इव जातत्थामा सीहो इव दुद्धरिसा मंदरो इव अप्पकंपा सागरो इव गभीरा चंदो इव सोमलेसा सूरो इव दित्ततेया जच्चकंचणगं (कणगं) व जातरूवा वसुंधरा इव सव्वकासविसहा सुहुयहुयासणो विव तेयसा जलंता // णत्थि णं तेसिं भगवंताणं कत्थवि पडिबंधे भवइ, से पडिबधे चउबिहे पराणत्ते, तंजहा-अंडए इ वा पोयए इ वा उग्गहे इ वा पग्गह इ वा जन्नं जन्नं दिसं इन्छति तन्नं तन्नं दिसं यपडिबद्धा सुइभूया लहुभूया अप्पग्गंथा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति / तेसि णं भगवंताणं इमा एतारूवा जायामायावित्ती होत्था, तंजहा-चउत्थे भत्ते छठे भत्ते अट्ठमे भत्ते दसमे भत्ते दुवालसमे भत्ते चउदसमे भत्ते श्रद्धमासिए भने मासिए भत्ते दोमासिए तिमासिए चाउम्मासिए पंचमासिए छम्मासिए अदुत्तरं च णं उक्खित्तचरमा णिरिखत्तचरया उविखत्तणिक्खित्तचरगा अंतचरगा पंतचरगा लूहचरगा समुदाणचरगा संसट्टचरगा असंसट्टचरगा तजातसंसट्टचरगा दिट्ठलाभिया अदिट्ठलाभिया पुठ्ठलाभिया अपुठलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अन्नायचरगा उवनिहिया संखादत्तिया परिमितपिंडवाइया सुद्धेसणिया अंताहारा पंताहारा बरसाहारा विरसाहारा लूहाहारा तुच्छाहारा अंतजीवी पंतजीवी आयंबिलिया पुरिमडिया निविगइया अमजमंसासिणो णो णियामरसभोई ठाणाइया पडिमाठाणाइया उकडुवासणिया णेसजिया वीरासणिया दंडायतिया लगंडसाइणो अप्पाउडा अगत्तया अकंडया अणिठ्ठहा एवं जहोववाइए धुतकेसमंसुरोमनहा सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्का चिठ्ठति 2 // ते णं एतेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामनपरियागं पाउणंति 2 बहुबहु अावाहसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहूई भत्ताई पञ्चक्खन्ति पञ्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 218 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः छेदिति अणसणाए छेदित्ता जस्सवाए कीरति नग्गभावे मुडभावे अगहाणभावे अदंतवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेजा फलगसेज्जा कट्ठसेजा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धे माणावमाणणायो हीलणायो निंदणायो खिसणायो गरहणायो तजणायो तालणायो उचावया गामकंटगा बाबीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमळं याराहंति, तमठं बाराहित्ता चरमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं गणंतं अणुत्तरं निवाघातं निरावरणं कसिणं पडिपुराणं केवलवरणाणदंसणं समुपाति, समुप्पाडित्ता ततो पच्छा मिझति बुज्झति मुच्चंति परिणिवायंति सव्वदुक्खागां अंतं करेंति 3 // एगचाए पुण एगे भयंतारो भवंति, अवरे पुण पुञ्चकम्मावसेसेगां कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तंजहा-महडिएसु महज्जुतिएसु महापरक्कमेसु महाजसेसु महाबलेसु महाणुभावेसु महासुक्खेसु ते गां तत्थ देवा भवंति महड्डिया महज्जुतिया जाव महासुक्खा हारविराइयवच्छा कडगतुडियथंभियभुया अंगयकुडलमट्ठगंडयलकन्नपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगंधपवरखत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा भासुरवोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेगां रूवेणां दिव्वेणां वन्नेगां दिव्वेगां गंधेां दिव्वेगां फासेगां दिव्वेगां संघाएगां दिव्वेणां संठाणेगां दिव्वाए इड्डीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्याए पभाए दिव्वाए छायाए दिबाए अचाए दिव्वेषां तेएगां दिवाए लेसाए दस दिसायो उज्जोवेमाणा पभासेमाणा गइकल्लाणा ठिकलाणा बागमेसिभद्दया यावि भवंति, एस ठाणे थायरिए जाव सव्वदुक्खपहीणमग्गे एगंतसम्मे सुसाहू / दोचस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए 4 // सूत्रं 38 // ग्रहावरे तबस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिजइ-इह खलु पाईणं वा 4 संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा–अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति सुसीला सुव्वया लुपडियाणंदा साहू Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 216 एगच्चायो पाणाइवायायो पडिविरता जावजीवाए एगच्चायो अप्पडिविरया जाव जे यावराणे तहप्पगारा सावजा अबोहिया कम्मंता परपाणपरितावणकरा कज्जंति ततोवि एगच्चायो अप्पडिविरया 1 // से जहाणामए समणोवासगा भवंति अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुराणपावा यासवसंवरवेयणाणिजराकिरियाहिगरणबंधमोक्खकुसला असहेज(जा)देवासुरनागसुवराणजवखरक्खसकिन्नरकिंपुरिसगरुलगंधव्वमहोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाश्रो पावय. णायो अणइक्कमणिज्जा इणमेव निग्गंथे पावयणे णिस्संकिया णिवकंखिया निबितिगिच्छा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा अट्टिमिंजपेम्माणुरागरत्ता अयमाउसो / निग्गंथे पावयणे अढे अयं परमठे सेसे अणठे उसियफलिहा अवंगुयदुवारा अचियत्तंतेउरपरघरपवेमा चाउद्दसट्टमुद्दिट्टपुरिणमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुंछणेणं योसहभेसज्जेणं पीठफलगसेजासंथारएणं पडिलाभेमाणा बहूहिं सीलव्वयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहिं ग्रहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावमाणा विहरंति 2 // ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणंति पाउणित्ता याबाहंसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खायंति बहूई भत्ताई पच्चक्खाएत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेन्ति बहूई भत्ताई अणसणाए छेइत्ता पालोइयपडिकंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तंजहा–महडिएसु महज्जुइएसु जाव महासुक्खेसु सेसं तहेव जाव एम ठाणे यायरिए जाव एगंतसम्मे साहू / तच्चस्स ठाणस्स मिसगस्स विभंगे एवं श्राहिए 3 // अविरई पडुच्च बाले पाहिजइ, विरई पडुच्च पंडिए पाहिजइ, विरयाविरइं पडुच्च बालपंडिए पाहिज्जइ, तत्थ णं जा सा सव्वतो अविरई एस ठाणे श्रारंभट्टाणे Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 220 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः अणारिए जाव असव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू, तत्थ णं जा सा सब्बतो विरई एस ठाणे अणारंभट्ठाणे पारिए जाव सव्वदुवखप्पहीणमग्गे एगंतसम्म साहू, तत्थ णं जा सा सव्वयो विरयाविरई एस ठाणे श्रारंभणोथारंभट्टाणे एस ठाणे पारिए जाव सब्बदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्मे साहू 4 // सूत्रं 31 // एवमेव समणुगम्ममाणा इमेहिं चेव दोहिं ठाणेहिं समोअरंति, तंजहा-धम्मे चेव अधम्मे चेव उवसंते चेव अणुवसंते चेव, तत्थ णं जे से पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए, तत्थ णं इमाई तिन्नि तेवढाइं पावादुमयाइं भवतीति मक्खायं(याई), तंजहा-किरियापाईणं अकिरियावाईणं अन्नाणियवाईणं वेणइयवाईणं, तेऽवि परिनिव्वाणमाहंसु, तेवि मोक्खमाहेसु तेऽवि लवंति, सावगा ! तेवि लवंति सावइत्तारो // सूत्रम् 40 // ते सव्वे पावाउया यादिकरा धम्माणं णाणापन्ना णाणाछंदा णाणासीला णाणादिट्ठी णाणाई णाणारंभा णाणाझवसाणसंजुत्ता एगं महं मंडलिबंधं किच्चा सव्वे एगो चिट्ठति 1 // पुरिसे य सागणियाणं इंगालाणं पाइं बहुपडिपुन्नं अयोमएणं संडासणं गहाय ते सव्वे पावाउए प्राइगरे धम्माणं णाणापन्ने जाव णाणाझवसाणसंजुत्ते एवं वयासी-हंभो पावाउया ! श्राइगरा धम्माणं णाणापन्ना जाव णाणायज्झवसाणसंजुत्ता ! इमं ताव तुम्भे सागणियाणं इंगालाणं पाई बहुपडिपुन्नं गहाय मुहुत्तयं मुहुत्तगं पाणिणा धरेह, णो बहुसंडासगं संसारियं कुज्जा णो बहुअग्गिथंभणियं कुजा णो बहु साहम्मियवेयावडियं कुन्जा णो बहुपरधम्मियवेयावडियं कुजा उज्जुया णियागपडिवन्ना अमायं कुब्वमाणा पाणिं पसारेह, इति वुच्चा से पुरिसे तेसि पावादुयाणं तं सागणियाणं इंगालाणं पाइं बहुपडिपुन्नं अयोमएणं संडासएणं गहाय पाणिंसु णिमिरति 2 / तए णं ते पावादुया याइगरा धम्माणं णाणापना जाव णाणाझवसाणसंजुत्ता पाणिं पडिसाहरंति, तए णं से पुरिसे ते सव्वे पावाउए अादिगरे धम्माणं Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 221 श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] जाव णाणाझवसाणसंजुत्ते एवं वयासी-हंभो पावादुया ! याइगरा धम्माणं णाणापन्ना जाव णाणाझवमाणसंजुत्ता ! कम्हाणं तुम्भे पाणिं पडिसाहरह ?, पाणिं नो डहिज्जा, दडढे किं भविस्सइ ?, दुक्खं दुक्खंति मन्नमाणा पडिसा. हरह, एस तुला एम पमाणे एम समासरणे, पत्तेयं तुला पत्तेयं पमाणे पत्तेयं समोसरणे 3 // तत्य णं जे ते समणा माहणा एवमातिक्वंति जाव परूवेति-सव्वे पाणा जाव सब्वे सत्ता हतया यजावेयवा परिघेतब्बा परितावेयबा किलामेतवा उद्दवेतब्बा, ते पागंतुछेयाए ते श्रागंतुभेयाए जाव ते श्रागंतुनाइजरामरणजोणिजम्मणसंसारपुणभागभवालभववंचकलंकलीभागिणो भविस्मंति 4 ते बहूणं दंडणाणं वहूणं मुंडणाणं तजणाणं तालणाणं अंदुबंधणागां जाव घोलणागां माइमरणाणां पिइमरणाणं भाइपरणाणां भगिणीमरणागां भजापुत्तधूतराहामरणाणां दारिदाणां दोहग्गाणं अप्पियमंवामागां पियविषयोगागां बहूगां दुक्खदोम्मणस्मागां अाभागिणो भविस्संति, अणादियं च गां अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं भुजो भुजो अणुपरियट्टिस्संति, ते णो सिभिस्संति णो बुझिस्संति जाव णो सब्व. दुक्खागां अंतं करिस्संति, एस तुला एम पमाणे एस समोसरणे पत्तेयं तुला पत्तेयं पमाणे पत्तेयं समोसरणे 5 // तत्थ गां जे ते समणा माहणा एवमाइक्खंति जाव पवेति-सचे पाणा सच्चे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्या गा अजावेयव्वा ण परिघेतव्या ण उद्दवेयव्वा ते णो आगंतु. छेयाए ते णो आगंतुभेयाए जाव जाइजरामरणजोणिजम्मणसंसारपुणब्भवगभासभवपवंचकलंकलीभागिणो भविस्संति, ते णो बहा दंडणागां जाव णो बहूगां मुंडणाणां जाव बहूणं दुक्खदोम्मणस्साणां णो भागिणो भविस्संति, अणादियं व गां अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं भुजो भुजो णो अणुपरियट्टिस्संति, ते सिज्मि.स्संति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति 6 // सूत्रं 41 // इच्चेतेहिं वारसहिं किरियाठायेहिं वट्टमाणा Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 222 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः जीवा णो सिन्झिसु णो बुझिसु णो मुच्चिसु णो परिणिव्वाइंसु जाव णो सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा णो करेंति वा णो करिस्संति वा 1 // एयसि चेव तेरसमे किरियाठाणे वट्टमाणा जीवा सिभिंसु बुझिसु मुचिंसु परिणिब्वाइंसु जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा करंति वा करिस्संति वा 2 / एवं से भिक्खु प्रायट्ठी आयहिते पायगुत्ते श्रायजोगे वायपरकमे थायरक्खिए थाया गुकंपए पायनिफेडए श्रायाणमेव पडिसाहरेन्जासि तिबेमि 3 // // सूत्रं 42 // // इति द्वितीयमध्ययनम् / / श्रु०२-अ०२ // ... // अथ द्वितीयश्रुतस्कन्धे तृतीयमाहारपरिज्ञाध्ययनम् // . सुयं मे अाउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु श्राहारपरिरणानामज्झयो, तस्स णं अयमठे-इह खलु पाईणं वा 4 सब्बतो सब्यावंति च णं लोगंसि चत्तारि बीयकाया एवमाहिज्जंति, तंजहा-अग्गबीया मूलबीया पोरबीया खंधबीया, (वणस्सइकाइयाणं पंचविहा बीजववकंती एवमाहिज्जइ, तंजहा-अग्गमूलपोखखंधबीयरुहा छट्ठावि एगेंदिया समुच्छिमा बीया जायते) तेसिं च णं ग्रहावीएणं ग्रहावगासणं इहेगतिया सत्ता पुढवीजोणिया पुढवीसंभवा पुढवीवुकमा तज्जोणिया तस्संभवा तदुवकमा कम्मो. वगा कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा णाणाविहजोणियासु पुढवीसु रुक्खत्ताए विउटति 1 // ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा अाहारेति पुढवीसरीरं ग्राउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वर्णस्सइसरीरं 2 // गाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरारं अचित्तं कुवंति परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूवियकडं संतं 3 // अवरेऽवि य णं तेसिं पुढविजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावराणा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंगणसंठिया णाणाविहसरीरपुग्गल Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3 ] [ 223 विउविता ते जीवा कम्मोववन्नगा भवंतित्तिमक्खायं 4 ॥सूत्रं 43 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता सखजोणिया रुखसंभवा रुक्खवुकमा तज्जो. णिया तस्संभवा तदुवकमा कम्मोवगा कम्मनियाणेणं तत्थवुकमा पुढवीजोणिएहिं रुक्खेहि रुक्खत्ताए विउदंति, ते जीवा तेसिं पुढवीजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा याहारेंति पुढवीसरीरं पाउतेउवाउवणस्सइसरीरं णाणाविहाणं तसथावराणां पाणाणां सरीरं अचित्तं कुबंति परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विप्परिणामियं सारूविकडं संतं अवरेवि य गां तेसि रुक्खजोणियाणां रुक्खाणं सरीरा णाणावराणा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपुग्गलविउविया ते जीवा कम्मोववन्नगा भवंतीतिमक्खायं ॥सूत्रं 44 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता रुखजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवुकमा तजोणिया तस्संभवा तदुवकमा कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवुक्कमा रुक्खजोणिएसु रुक्खत्ताए विउटंति, ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं रक्खाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा श्राहारेंति पुढवीसरीरं पाउतेउवाउवणरसइसरीरं तसथावराणं पाणाणां सरीरं अचित्तं कुब्बंति, परिविद्धत्थं तं मरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणामियं सारूविकडं संतं अवरेऽवि य गां तेसिं रुवखजोणियाणां रुक्खाणां सरीरा णाणावन्ना जाव ते जीवा कम्मोववन्नगा भवंतीतिमक्खायं ॥सूत्रं 45 // यहायरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता रुखजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवुकमा तज्जोणिया तस्संभवा तदुवकमा कम्मावगा कम्मनियाणेगां तत्थवुकमा रुखखजोणिएसु रक्खेसु मूलत्ताए कंदताए खंधनाए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउटंति, ते जीवा तेसिं रुखखजोणियाणां रुक्खाणां सिगोहमाहारेंति. ते जीवा याहारेति पुढवीसरीरं पाउतेउवाउवणस्सइसरीरं णाणाविहाणं तमथावगणां पाणाणां सरीरं अचित्तं कुब्वंति परिविद्धत्थं तं Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः सरीरगं जाव सारूविकडं संतं, अबरेऽवि य तेसिं रुक्खजोणियागां मूलागणां कंदागां खंधाणां तयाणां सालाणां पवालागां जाव बीयाणां सरीरा णाणावराणा णाणागंधा जाव णाणाविहसरीरपुग्गलविउन्दिया ते जीवा कम्मोववन्नगा भवंतितीमक्खायं ॥सूत्रं 46 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुवखवुकमा तज्जोणिया तस्संभवा तदुवकमा कम्मोववन्नगा कम्मनियाणेणां तत्थवुकमा रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं अज्भारोहत्ताए विउटंति, ते जी तेसिं रुक्खनोणियाणां रुक्खा सिणेहमाहारेंति, ते जीपा श्राहारेंति पुढवीसरीरं जाव सारूविकडं संतं, अवरेवि य गां तेसिं रुक्खजोणियाणां अज्मारहाणां सरीरा णाणावन्ना जावमक्खायं ॥सूत्र 47 // अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्मारोहसंभवा जाव कम्मनियाणेगां तत्थवुकमा रुक्खजोगिएसु अज्झारोहेसु अज्झारोहत्ताए विउटंति, ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणां अज्झारोहाणां सिणेहमाहारेंति, ते जीवा पुढवीसरीरं जाव सारूविकर्ड संतं, अव. रेवि य गां तेसिं अज्झारोहजोणियाणां अज्झाराहाणां सरीरा गागावन्ना जावमक्खायं ॥सूत्रं 48 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता अज्मारोहजोणिया अन्झारोहसंभवा जार कम्मनियाणेगां तत्थवुकमा अज्झारोह. जोणिएसु (अझोरुहेसु) अज्झारोहत्ताए विउटति, ते जीवा तेसिं श्रज्मारोहजोणियाणां अज्मारोहाणां सिणेहमाहारेंति, ते जीवा अाहारंति पुढविसरीरं पाउसरीरं जाव सारूविकडं संतं, अवरेऽवि य गां तेसिं अज्मारोहजोणियाणां अज्झारोहाणां सरीरा णाणावन्ना जावमक्खायं ॥सूत्रं 4 // अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा जाव कम्मनियाणेगां तत्थवुकमा अन्भारोहजोणिएसु अज्झारोहेसु मूलत्ताए जाव बीयत्ताए विउटंति ते जीवा तेसिं यन्मारोहजोणियाणां अज्मारोहाणां सिणेहमाहारेंति जाव अवरेऽवि य गां तेसिं अज्झारोहजोणियागां मूलाणां Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3 ] / 225 जाव बीयाणां सरीरा णाणावन्ना जावमवखायं ।।सूत्रं 50 // ग्रहावरं पुरवखायं इहेगत्तिया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा जाव णाणाविहजोणियासु पुढवांस तणत्ताए विउटैति, ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणां पुढवीण सिणेहमाहारेंति जाव ते जीवा कम्मोववन्ना भवंतीतिमक्खायं ॥सूत्रं 51 // एवं पुढविजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउटति जावमवखायं ॥सूत्रं 52 // एवं तणजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउमति, तणजोणियं तणसरीरं च याहारेंति जावमक्खायं 1 // एवं तमजोणिएसु तणेसु मूलत्ताए जाव बीयत्ताए विउटति ते जीवा जाव एवमक्खायं 2 // एवं श्रोसहीणवि चत्तारि घालावगा 3 / / एवं हरियाणवि चत्तारि बालावगा 4 ॥सूत्रं 53 // अहा. वरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा जाव कम्मनियाणेणं तत्थवुकमा णाणाविहजोणियासु पुढवीसु श्रायत्ताए वायत्ताए कायत्ताए कूहणत्ताए कंदुकत्ताए उव्वेहणियत्ताए निव्वेहणियत्ताए सच्छत्ताए छत्तगनाए वासाणियत्ताए कूरत्ताए विउटति, ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेंति, तेवि जीवा श्राहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं पुढविजोणियागां अायत्ताणां जाव कूराणां सरीरा णाणावगणा जावमवखायं, एगो चेव आलावगो सेसा तिरिण णस्थि 1 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा जाव कम्मनियाणेणं तत्थवुकमा णाणाविहजोणिएसु उदएसु रुखखत्ताए विउट्टति, ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा थाहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य गां तेसिं उदगजो. णियाणां रुक्खाणां सरीरा णाणावराणा जावमवसायं 2 / जहा पुढविजोणियाणां रुक्खाणां चत्तारि गमा अज्झारहाणवि तहेव, तणाणां श्रोसहीणां हरियाणां चत्तारि पालावगा भाणियव्वा एक्केक्के 3 // अहावरं पुरवसायं इहेगतिया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा जाव कम्मणियाणेगां तत्थवुकमा Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 226 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः णाणाविहजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए अवगत्ताए पणगत्ताए सेवालत्ताए कलंबुगताए हडताए कसेरुगत्तार कच्छभाणियत्ताए उप्पलत्ताए पउमत्ताए कुमुयत्ताए नलिणत्ताए सुभगत्ताए सोगंधियत्ताए पोंडरियमहापोंडरियत्ताए सयपतत्ताए सहस्तपत्तत्ताए एवं कल्हारकोंकणयत्ताए अरविंदत्ताए तामरसत्ताए भिसभिसमुणालपुक्खलत्ताए पुक्खलच्छिभगत्ताए विउति, ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियागां उदगागां सिणेहमाहारेंति, ते जीरा थाहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य गां तेसिं उदगजोणियागां उदगागां जाव पुवरखलच्छिभगागां सरीरा णाणावराणा जावमक्खायं, एगो चेव घालावगो 4 // सूत्र५४ // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता तेसिं चेव पुढवीजोगिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं रुख जोणिएहिं मूनेहिं जाव बीएहिं रुक्खजोणिएहिं अमारोहेहिं यज्झारोहजोणिहिं यज्मारहेहिं यज्मारोहजोगिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं पुढविजोणिएहिं तणेहि तणजोजिएहिं तणेहिं तणजोणिएहिं मूल्नेहिं जाव बीएहिं एवं योसहीहिवि तिन्नि बालावगा 1 / एवं हरिएहिवि तिन्नि बालावगा 2 / पुढविजोणिएहिवि पाएहिं काएहिं जाव कूरेहिं उदगनोणिएहिं रुक्खेहि रुखखजोगिएहि रक्खेहि रुखजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं एवं यज्झारुहेहिवि तिगिण 3 / तणेहिंपि तिरिण बालावगा 4 // श्रोसहीहिपि तिरिण 5 / हरिएहिपि तिगिण 6 उदगजोगिएहिं उदएहिं यवएहिं जाव पुवखलच्छिभएहिं तसपाणत्ताए विउति 6 / / ते जीवा तेसिं पुढवी. जोणियाणां उदगजोणियाणां रुक्खजोणियागां अज्झारोहजोणियागां तणजोणियाणां योसहीजोणियागां हरियजोणियागां स्वखागां अज्मारहागां तणाणां योसहीणां हरियाणां मूलागां जाव बीयागां यायागां कायागां जाव कुरवा(कूरा)गां उदगागां अवगागां जाव पुक्खलच्छिभगागां सिणेहमाहारेंति 7 / ते जीवा अाहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं / अवरेऽवि य गां ते से रुक्खजोणियागां अज्झारोहजोणियाणां तणजोणियागां योसहिजो Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3] [ 227 याणां हरियजोणियाणां मूलजोणियाणां कंदजोणियाणां जाव बीयजोणियाण थायजोणियाणां कायजोणियाणां जाव कूरजोणियाा उदगजोणियाणां अवगजोणियाणां जाव पुक्खलच्छिभगजोणियाणां तसपाणाणं सरीरा गाणावराणा जावमक्खायं 1 // सूत्र 55 // ग्रहावरं पुरवखायं णाणाविहाणां मणुम्साणां तंजहा--कम्मभूमगाणां अकम्मभूमगाणां अंतरदीवगागां यारियाणां मिलक्खुयाणं, तेसिं च गां हाबीएगां ग्रहावगासेणां इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणिए एस्थ गां मेहुणवत्तियाए [व] णामं संजोगे समुपजइ, ते दुहयोवि सिणेहं संचिगांति 1 // तत्थ गां जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए विउदंति, ते जीवा मायोउयं पिउसुक्कं तं तदुभयं मंजळं कलुसं किविसं तं पढमत्ताए याहारमाहारेंति, ततो पच्छा जं से माया णाणाविझयो रमविहीयो याहारमाहारेति ततो एगदेसेगां ओयमाहारेति, ग्राणुपुव्वेण वुड्डा पलिपागमणुपवन्ना ततो कायातो अभिनिवट्टमाणा इत्थिं वेगया जणयंति पुरिसं वेगया जणयंति णपुसगं वेगया जणयंति 2 / ते जीवा डहरा समाणा माउक्खीरं सप्पिं श्राहारेंति, आणुपुःवेणां वुड्डा श्रोयणं कुम्मासं तसथावरे य पाणे. ते जीवा श्राहारेति पुढविसरीरं जाव मारूविकडं संतं, अवरेऽवि य गां तेसिं णाणाविहाणां मणुस्सगाणां कम्मभूमगाणां अकम्मभूमगाणां अंतरद्दीवगायां पारियाणां मिलक्खूणां सरीरा णामावराणा भवतीतिमक्खायं 3 // सूत्रं 56 // ग्रहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणां जलचराणां पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणां, तंजहा-मच्छाणां जाव सुसुमाराणां, तेसिं च गां ग्रहाबीएगां ग्रहावगासेगां इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडा तहेव जाव ततो एगदेसेगां श्रोयमाहारेंति, श्राणुपुब्वेणां वुड्डा पलिपागमणुपवन्ना ततो कायायो अभिनिवट्टमाणा अंडं वेगया जणयंति पोयं वेगया जणयंति से अंडे उभिजमाणे इत्थि वेगया जणयंति पुरिसं वेगया जणयंति नपुंसगं वेगया जणयंति ते जीवा डहरा समाणा ग्राउसि Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 228 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः णेहमाहारेंति प्राणुपुब्वेगां वुड्डा वणस्सतिकायं तसथावरे य पाणे, ते जीवा थाहारेति पुढविसरीरं जाव संतं. यावरे वि य गां तेमि गाणाविहागां जलचरपंचिंदियतिरिक्खजोणियागां मच्छाणां सुसुमारागां सरीरा णाणावगणा जावमक्खायं 1 // ग्रहावरं पुरक्खायं णाणाविहागां चउपयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा-एगखुराणं दुखुराणं गंडीपदाणं सणफयाणं, तेसिंच णं अहावीएणं अहावगासेणं इस्थिपुरिमस्म य कम्म जाव मेहुणवत्तिए णामं संजोगे समुप्पजइ, ते दुहयो सिणेहं संचिणंति, तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए जाव विउदंति, ते जीवा मायोउयं पिउसुक्कं एवं जहा मणुस्साणं इत्यपि वेगया जणयंति पुरिमंपि नपुमगंपि, ते जीवा डहरा समाणा माउक्खीरं सपि अाहारेंति श्राणुपुवेणं वुड्डा वणस्मइकायं तसथावरे य पाणे, ते जीवा याहारेंति पुडविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं णाणाविहाणं चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खनोणियाणं एगखुराणं जाव सणफयाणं सरीरा गाणावगणा जावमाखायं 2 / अहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणं उरपरिसप्पथलयरपचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा-बहीणं श्रयगराणं यासालियाणं महोरगाणं. तेमिं च गां ग्रहाबीएगां ग्रहावगासेणं इत्थीए पुरिस जाव एत्थ णं मेहुण० एवं तं चेव, नाणत्तं अंडं वेगइया जणयंति पोयं वेगइया जणयंति, से अंडे उभिजमाणे इत्थं वेगइया जणयंति पुरिमंपि णपुसगंपि, ते जीवा डहरा समागमा बाउकायमाहारेंति आणुपुबेणं वुड्डा वणस्पइकाय तसथावरपाणे, ते जीवा याहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं णाणाविहाणं उरपरिसप्पथलयर. पंचिंदियतिरिक्ख० ग्रहीणं जाव महोरगाणं सरीरा रणाणावराणा णाणागंधा जावमक्खायं 3 // ग्रहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणं भुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा-गोहाणं नउलाणं सीहाणं सरडाणं सल्लाणं सरवाणं खराणं घरकोइलियाणं विस्संभराणं, मुमगाणं - मंगुसाणं Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3 ] [ 226 पयलाइयाणं बिरालियाणं जोहाणां चउप्पाइयाणां, तेसिं च गां ग्रहावीएगां अहावगासेगां इत्थीए पुरिसस्स य जहा उरपरिसप्पाणां तहा भाणियब्वं जाव सारूविकडं संतं, अवरेऽवि य aaN तेसिं णाणाविहाणं भुयपरिसप्पपंचिं. दियथलयरतिरिक्खाणं तं० गोहाणं जावमक्खायं 4 // ग्रहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणं खहचरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं तंजहा-चम्मपक्खीणं लोमपक्खीणं समुग्गपक्खीणं विततपक्खीणं तेसिं च णं यहाबीएणं ग्रहावगासेणं इत्थीए जहा उरपरिसप्पाणं, नाणत्तं ते जीवा डहरा समाणा माउगात्तसिणेहमाहारेंति - पाणुपुव्वेणं वुड्डा वणस्ततिकायं तसथावरे य पाणे, ते जीवा श्राहारेति पुदृविसरीरं जाव संतं, अवरेऽविय णं तेसिं णाणाविहाणं खहचरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं चम्मपक्खीण जावमक्खायं 5 ॥सूत्रं 57 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता णाणाविहजोणिया णाणाविहसंभवा णाणाविहवुकमा तजोणिया तस्संभवा तदुवकमा कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा गाणाविहाणं तसथावराणं पोग्गलाणं सरीरेसु वा मचित्तेसु वा अचित्तेसु वा अणुसूयत्ताए विउदंति, ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा श्राहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं अणुसूयगाणं सरीरा णाणावराणा जावमक्खायं // एवं दुरूवसंभवत्ताए // एवं खुरदुगत्ताए ।सूत्रं 58 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहगतिया सता णाणाविह. जोणिया जाव कम्मणियाणेग तत्थवुकमा णाणाविहाणं तसथावराणं पागाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा यत्रित्तेसु वा तं सरीरगं वायसंमिद्धं वा वायसंगहियं वा वायपरिग्गहियं उडवाएसु उड्डभागी भवति यहेवाण्सु यहभागी भवति तिरियवाएसु तिरियभागी भवति, तंजहा-श्रोसा हिमए महिया करए हरतणुए सुद्धोदए, ते जीवा तेमि णाणाविहाणं तसथावराणं पागाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा याहरिंति पुढविसरीरं Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 230 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणां श्रोसाणं जाव सुद्धोदगाणं सरीरा णाणावराणा जावमक्खायं 1 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा जाव कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा तसथावरजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए विउटंति, ते जीवा तेसिं तसथावरजोणियाणं उदगाणं सिणहमाहारेंति, ते जीवा श्राहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं उदगाणं सरीरा णाणावराणा जावमक्खायं 2 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता उदगजोणियाणं जाव कम्मनियाणेण तत्थवुकमा उदगजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए विउटति, ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा याहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सरीरा णाणावन्ना जावमवखायं 3 // ग्रहावरं पुरवखायं इहेगतिया सत्ता उदगजोणियाणं जाव कम्मनियाणेणं तत्थवुकमा उदगजोणिएसु उदएसु तमपाणत्ताए विउटंति, ते जीवा तेसिं उदगजोगियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीया अाहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णतेसिं उदगजोणियाणं तसपाणाणं सरीराणाणावराणा जावमक्खायं 4 ॥सूत्रं 56 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता णाणाविहजोणिया जाव कम्मनियाणेणं तत्थवुकमा णाणाविहाणं तसथावराणां पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसुवा अचित्तेसु वा अगणिकायत्ताए विउटति, ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तसथावराण पाणाण सिणेहमाहारेंति, ते जीवा अाहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं अगणीणं सरीरा गागावराणा जावमक्खायं, सेसा तिन्नि बालावगा जहा उदगाणा 1 // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता गाणाविहजोणियाणा जाव कम्मनियाणेण तत्थबुकमा णाणाविहाणां तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा वाउकायत्ताए विउटंति, जहा अगणीणां तहा भाणियब्वा, चत्तारि गमा 2 सूत्र 60 // Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 231 श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 3] ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता णाणाविहजोणिया जाव कम्मनियाणेणं तत्थवुकमा णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु वा सचित्तेसु वा अत्रितेसु वा पुढवित्ताए सकरत्ताए वालुयत्ताए इमायो गाहायो अणुगंतव्वायो'पुढवी यसकरा वालुया य उवले सिला य लोणूसे / अय तउय तंव सीसग रुप्प सुवराणे य वइरे य // 1 // हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजणपवाले। अब्भपडलब्भवालुय बायरकाए मणिविहाणा // 2 // गोमेजए य रुयए अंक फलिहे य लोहियक्खे य / मरगयमसारगल्ले भुयमोयग इंदणीले य // 3 // चंदण गेरुय हंसगब्भ पुलए सोगंधिए य बोव्वे / चंदप्पभ वेरुलिए जलकते सूरकते य // 4 // एयायो एएसु भाणियव्वायो गाहायो जाव सूरकंतताए विउटटंति, ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा श्राहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं पुढवीणं जाव सूरकंताणं सरीरा णाणावराणा जावमरखायं, सेसा तिगिण बालावगा जहा उदगाणं // सूत्रं 61 // ग्रहावरं पुरक्खायं सव्वे पाणा सव्वे भूता सब्वे जीवा सव्वे सत्ता णाणाविहजोणिया णाणाविहसंभवा णाणाविहवुकमा सरीरजोणिया सरीरसंभवा सरीवुकमा सरीराहारा कम्मोवगा कम्मनियाणा कम्मगतीया कम्मठिया कम्मणा चेव विप्परियासमुवेति // से एवमायाणह से एवमायाणित्ता अाहारगुत्ते सहिए समिए सया जए तिबेमि // सूत्रं 62 // // इति तृतीयमध्ययनम् // श्रु० 2 / अ० 3 / / Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 232 ] __ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // अथ द्वितीयश्रुतस्कन्धे चतुर्थं प्रत्याख्यानाध्ययनम् // सुयं मे पाउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु पञ्चक्खाणकिरियाणामझयणे, तस्स णं अयमठे पराणत्ते-पाया अपञ्चक्खाणी यावि भवति, थाया अकिरियाकुसले यावि भवति, याया मिच्छासंठिए यावि भवति, पाया एगंतदंडे यावि भवति, प्राया एगंतबाले यावि भवति, थाया एगंतसुत्ते यावि भवति, याया अवियारमणवयणकायवक्के यावि भवति. याया अप्पडिहयअपञ्चक्खायपावकम्मे यावि भवति, एस खलु भगवता अक्खाए असं. जते अविरते अप्पडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंत. वाले एगंतसुत्ते, से बाले अवियारमणवयणकायवक्के सुविणमवि ण पस्सति, पावे य से कम्मे कजइ // सूत्रं 63 // तत्थ चोयए पन्नवगं एवं वयासिअसंतएणं मणेणं पावएणं असंतियाए वतीए पावियाए असंतएणं कारणं पावएणं ग्रहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमणवयकायवकस्स सुविणमवि अपस्सयो पावकम्मे णो कजइ, कस्स णं तं हेउं ?, चोयए एवं बबीतिअन्नयरेणं मणेणं पावएणं मणवत्तिए पावे कम्मे कजइ, अन्नयरीए वतिए पावियाए वतिबत्तिए पावे कम्मे कजइ, अनयरेणं कारणं पावएणं कायवत्तिए पावे कम्मे कजइ, हणंतस्स समणक्खस्स सवियारम गवयकायवकस्स सुविणमवि पासयो एवंगुणजातीस्स पावे कम्मे कजइ 1 / पुणरवि चोयए एवं बबीति-तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-असंतएणं मणेणं पावएणं असंतीयाए वतिए पावियाए असंतएणं कारणं पावएणं अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमणवयणकायवक्कस्स सुविणमवि अपस्सयो पावे कम्मे कजइ, तत्थ णं जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु 2 / / तत्थ पनवए चोयगं एवं वयासीतं सम्मं जं मए पुवं वुत्तं, असंतएणं मणेणं पावएणं असंतियारा वतिए पावियाए असंतएणं कारणं पावएणं ग्रहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमणवयणकायवकस्स सुविणमवि अपस्सयो पावे कम्मे कजति, तं सम्मं, कस्स Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 233 श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 4 ] . णं तं हेउं ?, प्राचार्य थाह-तत्थ खलु भगक्या छजीवणिकायहेऊ पराणत्ता, तंजहा-पुढविकाइया जाव तसकाइया, इच्चेएहिं कहिं जीवणिकाएहिं पाया अप्पडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे निच्वं पसढविउवातचित्तदंडे, तंजहा-पाणातिवाए जाव परिग्गहे कोहे जाव मिच्छादसणसल्ले 3 // श्राचार्य श्राह-तत्थ खलु भगवया वहए दिळंते पराणत्ते, से जहाणामए वहए सिया गाहावइस्स वा गाहावइपुत्तस्स वा रगणो वा रायपुरिसस्स वा खणं निदाय पविसिस्सामि खणं लभ्रूणं पहिस्सामि (अप्पणो अक्खणयाए तस्स वा पुरिसस्स छिद अलभमाणे णो वहेइ तं जया मे खणो भविस्तइ तस्स पुरिसस्स छिद्द लभिस्सामि तया मे से पुरिसे अवस्सं वहेय वे भविस्सइ एवं मणो पहारेमाणे) पहारेमाणे से किं नु हु नाम से वहए तस्स गाहावइस्स वा गाहावइपुत्तस्स वा रगणो वा रायपुरिस(पुत्त)स्स वा खणं निदाय पविसिस्सामि खणं लद्धणं वहिस्सामि पहारेमाणे दिया वा रात्रो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिन्छासंठिते निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे भवति ?, एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरे ? चोयए-हंता भवति 4 // श्राचार्य श्राह-जहा से वहए तस्स गाहावइस्स वा तस्स गाहावइपुत्तस्स वा रगणो वा रायपुरिसस्स वा खणं निहाय पविसिस्सामि खणं लणं वहिस्सामित्ति पहारेमाणे दिया वा रायो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिते निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे, एवमेव बालेवि सव्वेसि पाणाणं जाव सव्वेसि सत्ताणं दिया वा रायो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिते निच्च पसढविउवायचित्तदंडे, तं०-पाणातिवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, एवं खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतवाले एगंतसुत्ते यावि भवइ, से बाले अवियारमणवयणकायवक्के सुविणमवि ण पस्सइ पावे य से कम्मे कजइ 5 // जहा से वहए तस्स वा गाहावइस्स जाव तस्स वा रायपुरिसस्स पत्तेयं पत्तेयं चित्तसमादाए Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 234 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः दिया वा रायो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिते निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे भवइ, एवमेव बाले सब्वेसिं पाणाणं जाव सव्वेसिं सत्ताणं पत्तेयं पत्तेयं चित्तसमादाए दिया वा रायो वा सुत्ते वा जागरमागे वा अमितभूते मिच्छासंठिते निच्चं पसदविउवायचित्तदंडे भवइ 6 // ॥सूत्रं 64 // णो इणठे समठे [चोदकः] इह खलु बहवे पाणा. जे इमेणं सरीरममुस्सएणं णो दिट्ठा वा सुया वा नाभिमया वा विनाया वा जेसिं णो पत्तेयं पत्तेयं चित्तसमायाए दिया वा रायो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमितभूते मिच्छासंठिते निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे तंजहा-पाणातिवाए जाब मिच्छादंमणसल्ले ॥सूत्रं 65 // प्राचार्य श्राह-तत्थ खलु भगवया दुवे दिळंता पराणत्ता, तंजहा-सन्निदिद्रुते य असन्निदिदेंते य, से किं तं सन्निदिढ़ते ?, जे इमे सन्निपंचिंदिया पजत्तगा एतेसि णं छजीवनिकाए पडुच्च तंजहा-पुवीकार्य जाव तसकायं, से एगइयो पुढवीकारणं किच्चं करेइवि कारवेइवि, तस्स णं एवं भवइ-एवं खलु यहं पुढवीकारणं किच्चं करेमिवि कारवेमिवि, णो चव णं से एवं भवइ इमेण वा इमेण वा, से एतेणं पुढवीकारणं किच्चं करेइवि कारवेइवि से णं तातो पुढवीकायायो असंजयअविश्यअप्पडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे यावि भवइ, एवं जाव तसकाए ति भाणियव्यं, से एगइयो छजीवनिकाएहिं किच्चं करेइवि कारवेइवि, तस्स गां एवं भवइ-एवं खलु छजीवनिकाएहि किच्चं करेमिवि कारवेमिवि, णो चेव णं से एवं भवइ-इमेहिं वा इमेहिं वा, से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं जाव कारवेइवि, से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं असंजयविरययप्पडिहयपञ्चाखायणवकम्मे तं० पाणातिवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, एस खलु भगवया अक्वाए असंजए अविरए अप्पडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे सुविणमवि अपस्सयो पावे य से कम्मे कन्जइ, से तं सन्निदिढ़ते 1 // से किं तं असन्निदिटते ?, जे इमे असन्निणो पाणा तंजहा Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 4 ] [ 235 पुढवीकाइया जाव वणरसइकाइया छट्ठा वेगइया तसा पाणा, जेसि णो तक्का इ वा सन्ना ति वा पन्ना ति वा मणा(णे)ति वा वई इ वा, सयं वा करणाए अन्नेहिं वा कारावेत्तए करंतं वा समणुजाणित्तए, तेऽवि णं बाले सवसि पाणाणं जाव सव्वेसि सत्ताणं दिया वा रायो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूता मिच्छासंठिया निच्चं पसढविउवातचित्तदंडा तंजहा-पाणाइवाते जाव मिच्छादसणमल्ले, इच्चेव जाव णो चेव मणो णो चेव वई पाणाणं जाव सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जूरणयाए तिप्पणयाए पिट्टणयाए परितप्पणयाए ते दुक्खणसोयणजावपरितप्पणवहवंधणपरिकिलेसायो अप्पडिविरया भवंति 2 // इति खलु से असन्निणोऽवि सत्ता ग्रहोनिसिं पाणातिवाए उवक्खाइज्जति जाव अहोनिसिं परिग्गहे उववखाइज्जति जाव मिच्छादसणसल्ले उवक्खाइज्जति, [एवं भूतवादी] सव्वजोणियावि खलु सत्ता सन्निणो हुच्चा असन्निणो होति असनिणो हुच्चा सनिणो होति, होचा सन्नी अदुवा असन्नी, तत्थ से अविविचित्ता अविधूणित्ता असंमुच्छित्ता अणणुतावित्ता असन्निकायायो वा सन्निकायं संकमंति सन्निकायायो वा असन्निकार्य संकमंति, सन्निकायायो वा सन्निकायं संकमंति असन्निकायायो वा असनिकायं संकमंति, जे एए सन्नि वा असन्नि वा सव्वे ते मिच्छायारा निच्चं पसढविउवायचित्तदंडा, तंजहा-पाणातिवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, एवं खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहयप्पचक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुड एगंतदंडे एगंतवाले एगंतसुत्ते से बाले अवियारमणवयणकायवक्के सुविणमवि ण पासइ पावे य से कम्मे कज्जइ 3 ॥सूत्रं 66 // चोदकः-से किं कुव्वं किं कारवं कहं संजयविरयप्पडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे भवइ ?, श्राचार्य श्राह-तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकाय हेऊ पराणत्ता, तंजहा—पुढवीकाइया जाव तसकाइया, से जहाणामए मम अस्सातं डंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा श्रातोडिजमाणस्त वा Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 236 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः जाव उवद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेवं जाण सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा यातोडिजमाणा वा हम्ममाणे वा तजिजमाणे वा तालिजमाणे वा जाव उवद्दविजमाणे वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति, एवं णचा सव्वे पाणा जाव सब्वे सत्ता न हंतव्वा जाव ण उद्दवेयब्वा, एस धम्मे धुवे णिइए सासए समिञ्च लोगं खेयन्नेहिं पवेदिए, एवं से भिक्खू विरते पाणाइवायातो जाव मिन्छादसणसल्लायो, से भिक्खू णो दंतपक्खालणेणं दंते पक्खालेजा, णो अंजणं णो वमणं णो धूवणित्तं पियाइते, से भिक्खू अकिरिए अलूमए अकोहे जाव श्रलोभे उवसंते परि. निव्वुडे, एस खलु भगवया अक्खाए संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे अकिरिए संबुडे एगंतपंडिए भवइ तिबेमि // सूत्रं 67 // // इति चतुर्थमध्ययनम् // 2-4 / / // अथ पञ्चममाचारश्रुताध्ययनम् // श्रादाय बंभचेरं च, श्रासुपन्ने इमं वई / अस्सि धम्मे अणायारं, नायरेज कयाइवि // 1 // अणादीयं परिन्नाय, प्रणवदग्गेति वा गुणो / सासयमसासए वा, इति दिहि न धारए // 2 // एएहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारो ण विजई / एहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए // 3 // समुच्छि(जि)हिंति मत्थारो, सब्वे पाणा प्रणेलिसा / गंठिगा वा भविस्संति, सासयोते व णो वए // 4 // एएहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारो ण विजइ / एएहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए // 5 // जे केइ खुद्दगा पाणा, अदुवा संति महालया। सरिसं तेहिं वेरंति, असरिसंती य णो वदे // 6 // एएहिं दोहिं ठागोहिं, ववंहारो ण विजई / एएहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए // 7 // ग्रहाकम्माणि (ग्रहाकडाणि) भुजंति, अराणम Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् // श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 5 ] [ 237 गणे सकम्मुणा। उवलितेति जाणिजा, अणुवलिनेति वा पुणो // 8 // एएहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारो ण विजई / एएहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए // 1 // जमिदं अोरालमाहारं, कम्मगं च तहेव य (तमेव तं)। सव्वत्थ वीरियं अस्थि, णत्थि सव्वत्थ वीरियं / 10 // एहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारो ण विजई / एएहिं दोहि ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए // 11 // णत्थिलोए बालोए वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि लोए श्रलोए वा, एवं सन्नं निवेसए // 12 // णत्थि जीवा अजीवा वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि जीवा अजीवा वा, एवं सन्नं निवेसए // 13 // णत्थि धम्मे अधम्मे वा, णेवं सन्नं निवेसए / अत्थि धम्मे श्रधम्मे वा, एवं सन्नं निवेसए ॥१४॥णत्थि बंधे व मोक्खे वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि बंधे व मोक्खे वा, एवं सन्नं निवेसए // 15 // णत्थि पुराणो व पावे वा. णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि पुराणे व पावे वा, एवं सन्नं निवेसए // 16 // णस्थि पासवे संवरे वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि श्रामवे संवरे वा, एवं सन्नं निवेसए // 17 / णस्थि वेयणा णिज्जरा वा, णेवं सन्नं निवैसए / अत्थि वेयणा णिजरा वा, एवं सन्नं निवेसए // 18 // णत्थि किरिया अकिरिया वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि किरिया अकिरिया वा, एवं सन्नं निवेसए ॥११॥णत्थि कोहे व माणे वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि कोहे व माणे वा, एवं सन्नं निवेसए // 20 // णत्थि माया व लाभे वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि माया व लोभे वा, एवं सन्नं निवेसए // 21 // णत्थि पेज्जे व दोसे वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि पेज्जे व दोसे वा, एवं सन्नं निवेसए // 22 // णस्थि चाउरते संसारे, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि चाउरते संसारे, एवं सन्नं निवेमए // 23 // णत्थि देवो व देवी वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि देवो व देवी वा, एवं सन्नं निवेमए // 24 // गास्थि सिद्धी प्रसिद्धी वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 238 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विमागः सिद्धी प्रसिद्धी वा, एवं सन्नं निवेसए // 25 // गस्थि सिद्धी नियं ठाणं, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि सिद्धी नियं ठाणं, एवं सन्नं निवेसए // 26 // णत्थि साहू साहू वा, येवं सन्नं निवेसए / यत्थि साहू असाहू वा, एवं सन्नं निवेसए // 27 // णस्थि कल्लाण पावे वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि कल्लाण पावे वा, एवं सन्नं निवेसए // 28 // कल्लाणे पावए वावि, ववहारो ण विज्जइ / जं वेरं तं न जाणंति, समणा बाल पंडिया // 26 // असेसं अक्खयं वावि, सव्वदुक्खेति वा पुणो / वज्मा पाणा न वज्झत्ति, इति वायं न नीसरे // 30 // दीसंति निभियप्पाणो (समियायारा), भिवखुणो साहुजीविणो / एए (तेवि) मिच्छोवजीवंति, इति दिठिं न धारए // 31 // दक्खिणाए पडिलंभो, अत्थि वा णत्थि (अत्थि णत्थि त्ति) वा पुणो / ण वियागरेज मेहावी, संतिमग्गं च वूहए // 32 // इच्चेएहिं ठाणेहिं, जिणदि ठेहिं संजए / धारयते उ अप्पाणं, ग्रामोपखाए परिवएजासि // 33 // त्तिबेमि // .. // इति पञ्चममध्ययनम् // 2-5 // // अथ षष्ठमादकीयाध्ययनम् // पुराकडं ग्रह ! इमं सुणेह, एगंतयारी समणे पुरासी / से भिक्खुणो उवणोत्ता अणेगे, थाइखतिरिह पुढो विथरेणं // 1 // साऽऽजीविया पट्टविताऽथिरेणं, सभागयो गणयो भिवखुमज्झे / श्राइ. क्खमाणो बहुजन्नमत्थं, न संधयाती श्रवरेण पुव्वं // 2 // एगंतमेवं अदुवा वि इसिंह, दोऽवराणमन्नं न समेति जम्हा / पुदि च इसिंह च श्रणागतं वा, एगंतमेवं पडिसंधयाति // 3 // समिञ्च लोगं तसथावराणं, खेमंकरे समणे माहणे वा / बाइक्खमाणोवि सहस्स मज्झे, एगंतयं सारयती तहऽच्चे // 4 // धम्मं कहतस्स उ णस्थि दोसो, खंतस्स दंतस्स जितिदियरस / Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्ग-सूत्रम् / / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 6 ] [ 236 भासाय दोसे य विवजगस्स, गुणे य भासाय णिसेवगस्स // 5 // महब्बए पंच अणुब्बए य, तहेव पंचासव संवरे य / विरतिं इहस्सामणियंमि पुराणे (पन्ने), लवावसकी समणेत्तिवेमि // 6 // सीयोदगं सेवउ बीयकायं, थाहायकम्मं तह इत्थियायो / एगंतचारिस्सिह अम्ह धम्मे, तवस्सिणो णाभिसमेति पावं // 7 / / सीतोदगं वा तह बीयकायं, थाहायकम्मं तह इत्थियात्रो। एयाइं जाणं पडिसेवमाणा, अगारिणो अस्समणा भवंति // 8 // सिया य बीयोदग इस्थिगयो, पडिसेवमाणा समणा भवतु / अगारिणोऽत्री समणा भवंतु, सेवंति उ तेऽवि तहप्पगारं ॥१॥जे यावि बीयोदगभोति भिक्खू , भिक्खं विहं जायति जीवियट्ठी / ते णातिसंजोगमप्पविहाय, कायोवगा ग तकरा भवंति ॥१०॥इमं वयं तु तुम पाउकुव्वं, पावाइणो गरिहसि सव्व एव / पावाइणो पुढो किट्टयंता, सयं सयं दिट्ठि करेंति पाउ // 11 // ते अन्नमन्नस्स उ गरहमाणा, अक्खंति भो समणा माहणा य / सतो य अत्थी असतो य णत्थी, गरहामो दिढि ण गरहामो किंचि // 12 // ण किंचि रूवेणऽभिधारयामो, सदिछिमग्गं तु करेमु पाउँ / मग्गे इमे किट्टिएँ पारिएहि, अणुत्तरे सप्पुरि. सेहिं अंजू // 13 // उड्ढ़ अहेयं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा। भूयाहिसंकाभि दुगुछमाणा, णो गरहती बुसिमं किंचि लोए // 14 // श्रागंतगारे यारामगारे, समणे उ भीते ण उवेति वासं / दक्खा हु संती बहवे मणुस्सा, ऊणातिरित्ता य लवालवा य // 15 // मेहाविणो सिविखय बुद्धिमंता, सुत्तेहि अत्येहि य णिच्छयन्ना (णिच्छियन्नू)। पुच्छिसु मा णे श्रणगार एगे (यन्ने), इति संकमाणो ण उवेति तत्थ // 16 // णो कामकिच्चा ण य बालकिचा, रायाभियोगेण कुयो भएणं / वियागरेज पसिणं नवावि, सकामकिचेणिह यारियाणं // 17 // गंता च तत्था अदुवा अगंता, वियागरेजा समियाऽऽसुपन्ने। प्रणारिया दंमणयो परित्ता, इति संकमाणो ण उवेति तत्थ // 18 // पन्नं जहा वणिए उदयट्टी, आयस्स हेउं पगरेति संगं / तऊवमे Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 240 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः समणे नायपुत्ते, इच्चेव मे होति मती विषका // 11 // नवं न कुजा विहुणे पुराणं, चिचाऽमई ताइ य साह एवं / एतोवया बंभवतित्ति वुत्ता, तस्सोदयट्ठी समणेतिबेमि // 20 // समारभंते वणिया भूयगामं, परिग्गहं चेव ममायमाणा / ते णानिसंजोगमविप्पहाय, श्रायस्स हेउं पगरंति संगं // 21 // वित्तेसिणो मेहुणसंपगादा, ते भोयणट्ठा वणिया वयंति / वयं तु कामेसु अज्मोववन्ना, अणारिया पेमरसेसु गिद्धा // 22 // श्रारंभगं चेव परिग्गहं व, अविउस्तिया णिस्सिय पायदंडा / तेसिं च से उदए जं वयासी, चउरं. तणंताय दुहाय णेह // 23 // : णेगंत णच्चंतिव योदए सो, वयंति ते दो विगुणोदयंमि / से उदए सातिमणंतपत्ते, तमुदयं साहयइ ताइ णाई // 24 // अहिंसयं सवपयाणुकपी, धम्मे ठियं कम्मविवेगहेउं / तमायदंडेहिं समायरंता, श्रबोहीए ते पडिरूवमेयं // 25 // पिनागपिंडीमवि विद्ध सूले, केइ पएज्जा पुरिसे इमेत्ति / अलाउयं वावि कुमारएत्ति, स लिप्पती पाणिवहेण अम्हं // 26 // अहवावि विभ्रूण मिलक्खु सूले, पिन्नागबुद्धीइ नरं पएजा / कुमा. रगं वावि अलाबुयंति, न लिप्पइ पाणिवहेण अम्हं // 27 // पुरिसंव विभ्रूण कुमारगं वा, सूलंमि केई पए जायतेए / पिनाय पिंडं सतिमारुहेत्ता, बुद्धाण तं कप्पति पारणाए // 28 // सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णियए भिक्खुयाणं / ते पुन्नखधं सुमहं जिणित्ता, भवंति थारोप्प महंतमत्ता // 21 // अजोगरूवं इह संजयाणं, पावं तु पाणाण पसज्म काउं / अबोहिए दोराहवि तं असाहु, वयंति जे यावि पडिस्सुणति // 30 // उड्ढ यहेयं तिरिय दिसासु, विनाय लिंगं तसथावराणं / भूयाभिसंकाइ दुगुबमाणे, वदे करेजा व कुत्रो विहऽत्थी ? // 31 // पुरिसेत्ति विन्नत्ति न एवमत्थि, अणारिए से पुरिसे तहा हु / को संभवो ? पिनगपिडियाए, वायावि एसा बुइया श्रमचा // 32 // वायाभियोगेण जमावहेजा, णो तारिसं वायमुदाहरिजा / अट्ठाणमेयं वयणं गुणाणं, णो दिविखए बूय सुरालमेयं // 33 // लद्धे अढे श्रहो Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् // श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] [ 241 एव तुब्भे, जीवाणु भागे सुविचिंतिए व / पुव्वं समुद्द अवरं च पुढे, उलोइए पाणितले ठिए वा // 34 // जीवाणुभागं सुविचिंतयंता, श्राहारिया अन्नविहीय सोहिं / न वियागरे छन्नपयोपजीवि, एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं // 34 // सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए नियए भिक्खुयाणं / असं. जए लोहियपाणि से ऊ, णियच्छति गरिहमिहेव लोए // 36 // थूलं उरभं इह मारियाणं, उद्दिट्ठभत्तं च पगप्पएत्ता / तं लोणतेल्लेण उवक्खडेत्ता, सपिप्पलीयं पगरंति मंसं // 37 // तं भुजमारणा पिसितं पभूतं, णो उवलिप्पामो वयं रएणं / इच्चेवमाहंसु अणजधम्मा, अणारिया बाल रसेसु गिद्धा // 38 // जे यावि भुजंति तहप्पगारं, सेवंति ते पावमजाणमाणा / मणं न एयं कुसला करेंती, वायावि एसा बुझ्या उ मिच्छा // 36 // सव्वेसि जीवाण दयट्ठयाए, सावजदोसं परिवजयंता / नस्संकिणो इसिणो नायपुत्ता, उद्दिट्ठभत्तं परिवजयंति // 40 // भूयाभिसंकाएँ दुगुंछमाणा, सव्वेसिं पाणाण निहाय दंडं / तम्हा ण भुजंति तहप्पगारं, एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं // 41 // निग्गंथधम्ममि इमं समाहिं, अस्ति सुठिचा अणिहे चरेजा / बुद्धे मुणी सीलगुणो. ववेए, अच्चत्यतं (यो) पाउणती सिलोगं // 42 // सिमायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णियए माहणाणं / ते पुन्नखंधे सुमहऽजणित्ता, भवंति देवा इति वेयवायो // 43 // सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णियए कुलालयाणं / से गछति लोलुवसंपगाढे, विवाभितावी णरगाभिसेवी // 4 // दयावरं धम्म दुगुंछमाणा, वहावहं धम्म पसंसमाणा / एगपि जे भोययती असीलं, णियो णिसं जाति कुयो सुरेहिं ? // 45 // दुहश्रोवि धम्ममि समुट्ठियामो, अस्सि सुट्ठिचा तह एसकालं / श्रायारसीले बुइएह नाणी, ण संपंरायमि विसेसमत्थि // 46 // अव्वत्तरूवं पुरिसं महंत, सणातणं अक्खय. मव्वयं च / सव्वेसु भूतेसुवि सव्वतो से, चंदो व ताराहिं समत्तरूवे // 47 // एवं ण मिज्जंति ण संसरंती, ण माहणा खत्तिय वेस पेसा / Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 242 ] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः कीडा य पक्खी य सरीसिवा य, नरा य सब्बे तह देवलोगा // 48 // लोयं अयाणित्तिह केवलेणं, कहंति जे धम्ममजाणमाणा / णासंति अप्पाण परं च णट्ठा, संसार घोरंमि अणोरपारे // 4 // लोयं विजाणंतिह केवलेणं, पुग्नेण नाणेण समाहिजुत्ता / धम्मं समत्तं च कहंति उ, तारंति अप्पाण परं च तिन्ना // 50 // जे गरहियं ठाणमिहावसंति, जे यावि लोए चरणोववेया। उदाहडं तं तु समं मईए, यहाउसो विपरियासमेव // 51 // संवच्छरेणावि एगमेगं, बाणेण मारेउ महागयं तु। सेसाण जीवाण दयट्टयाए, वासं वयं वित्ति पकप्पयामो // 52 // संवच्छरेणावि य एगमेगं, पाणं हणंता अणियत्तदोसा / सेसाण जीवाण वहेण लग्गा, सिया य थोवं गिहिणोऽवि तम्हा // 53 // संवच्छरेणावि य एगमेगं, पाणं हणंता समणंब्वएसु / श्रायाहिए पुरिसे अणज्जे, ण तारिसे केवलिणो भवंति // 54 / / बुद्धस्स श्राणाएँ इम समाहिं, अस्सि सुठिचा तिविहेण ताई / तरिउं समुद्द व महाभवोघं, यायाणवं धम्ममुदाहरेजा // 55 // त्तिवेमि // // इति षष्ठमध्ययनम् // 2-6 // // अथ सप्तमं नालन्दीयाध्ययनम् // तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था, रिद्धिस्थिमितसमिद्धे वगणयो जाव पडिरूवे, तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए, (एत्थ ) नालंदानामं बाहिरिया होत्था, श्रोगभवणसयसन्निविट्ठा जाव पडिरूवा ।।सू० 68 // तत्थ णं नालंदाए बाहिरियाए लेवे नाम गाहावई होत्था, अडढे दित्ते वित्ते विच्छिरणविपुलभवणसयणासणजाणवाहणाइराणे बहुधणबहुजायसवरजते यायोगपयोगसंपउत्ते विच्छड्डियपउरभत्तपाणे बहुदासी दासगोमहिसगवेलगप्पभूए बहुजणस्स अपरिभूए (जाव) यावि होत्या // से णं लेवे नाम गाहावई समणोवासए यावि होत्या, अभि Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 7 ] [ 243 गयजीवाजीवे जाव विहरइ, निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्वितिगिच्छे लढे गहियठे पुच्छियछे विणिच्छियठे अभिगहियठे अट्ठिमिजापेमाणुरागरत्ते, अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अयं अट्ठे अयं परमठे सेसे अणठे, उस्सियफलिह अप्पावयदुवारे चियत्तंतेउरप्पवेसे चाउद्दसट्टमुट्ठिपुराणमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे समणे निग्गंथे तहाविहेणं एसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलामेमाणे बहूहिं सीलव्वयगुणविरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे एवं च णं विहरइ ॥सू० 6 // तस्स णं लेवस्स गाहावइस्स नालंदाए बाहिरियाए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं सेसदविया नामं उदगसाला होत्था, गणेगखंभसयसन्निविट्ठा पासादीया जाव पडिरूवा, तीसे णं सेसदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए, एत्य णं हत्थिनामे नामं वणसंडे होत्था, किराहे वगणयो वणसंडस्स ॥सू० 70 // तेसि च णं गिहपदेसंमि भगवं गोयमे विहरइ, भगवं च णं अहे यारामंसि / यहे णं उदए पेढालपुते भगवं पासावञ्चिज्जे नियंठे मेयज्जे गोत्तेणं जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता भगवं गोयमं एवं वयासी-याउसंतो ! गोयमा अत्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छियब्वे, तं च (मे) अाउसो ! ग्रहासुयं यहादरिसियं मे वियागरेहि सवायं, भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी-अवियाइ पाउसो! सोचा निसम्म जाणिस्तामो सवायं, उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं क्यासी ॥सू० 71 // बाउसो ! गोयमा अस्थि खलु कुमारपुत्तिया नाम समणा निग्गंथा तुम्हाणं पवयणं पवयमाणा गाहावई समणोवासगं उवसंपन्नं एवं पञ्चक्खावेंति-णगणत्थ अभियोएणं गाहावइचोरग्गहणविमोक्खणयाए तसेहिं पाणेहिं णिहाय दंडं, एवं गहं पञ्चक्खंताणं दुप्पचक्खायं भवइ, एवं राहं पच्चक्खावमाणाणं दुपच्चरखावियव्वं भवइ, एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा अतियरंति सयं पतिपणं, कस्स णं तं हेउं ?, संसारिया खलु Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 244 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः पाणा थावरावि पाणा तमनाए पञ्चायंति, तसावि पाणा थावरत्ताए पच्चा. यंति, थावरकायायो विष्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जति, तसकायायो विपमुच्चमाणा थापरकायंसि उबवज्जति, तेसिं च णं थावरकायंसि उवव. राणाणं गणमेयं धत्तं ॥सू० 72|| एवं गहं पच्चाखंताणं सुपच्चाखायं भवइ, एवं गहं पचाखावमाणाणं सुपच्चक्खावियं भवइ, एवं ते पर पञ्चक्खावेमाणा णातियरंति सयं पइराणं, गगराणस्थ अभियोगेणं गाहा. वइचोरग्गहणविमोक्खणयाए तसभूगहिं पाणेहिं णिहाय दंडं, एवमेव सड़ भासाए परकमे विजमाणे जे ते कोहा वा लोहा वा परं पञ्चरखावेंति अयंपि णो उवएसे णो णेबाउए भवइ, अवियाई बाउसो ! गोयमा : तुम्भंपि एवं रोयइ ? ॥सू० 73 // मवायं भगवं गोयमे ! उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी-ग्राउसंतो ! उदगा नो खलु अम्हे एवं रोयइ, जे ते समणा वा माहणा वा एवमाइक्खंति जाव परुति को गलु ते समणा वा णिग्गंथा वा भासं भासंति, अणुतावियं खलु ते भासं भासंति, भाइवखंति खलु ते समणे समणोवासए वा, जेहिंवि अन्नेहिं जीवहिं पाणेहिं भूएहिं सत्तेहिं संजमयंति ताणवि ते अभाइवखंति, कस्स णं तं हेउं ?, संमारिया खजु पाणा, तसावि पाणा थावरत्ताए पन्चायति थावरावि पाणा तसत्ताए पञ्चायति तमकायायो विष्णमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जति थावर. कावायो विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जंति, तेसि च णं तमकायमि उववन्नाणं ठाणमेयं अघत्तं ॥सू. 74 // सवायं उदए पेदालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी-कयरे खलु ते ग्राउसंतो गोयमा ! तुब्भे वयह तमा पाणा तसा ग्राउ अन्नहा ?, सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयामी-पाउसंतो उदगा ! जे तुम्भे वयह तसभूता पाणा, तमा ते वयं वयामो तसा पागा, जे वयं वयामो तमा पाणा ते तुम्भे वयह तसभूया पाणा, एए संति दुवे ठाणा तुल्ला एगट्ठा. किमाउसो ! इमे भे सुप्पणीयतराए भवइ तसभूया पागा Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सुत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 7 ] [ 245 तसा, इमे भे दुप्पणीयतराए भवइ-तसा पाणा तसा, ततो एगमाउसो ! पडिक्कोसह एक अभिणंदह, अयंपि भेदो से णो णेबाउए भवइ 1 // भगवं च णं उदाहु-संतेगइया मणुस्सा भवंति, तेसिं च णं एवं वृत्तपुब्वं भवइ–णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगारायो श्रणगारियं पपइत्तए, सावयं राहं अणुपुव्वेणं गुत्तस्स लिसिस्सामो, ते एवं संखति ते एवं संखं ठपयंति ते एवं संखं ठावयंति नन्नत्थ अभिश्रोएणं गाहावइचोरग्गहणविमोक्खणयाए तसेहिं पाणेहिं निहाय दंडं, तंपि तेसिं कुसलमेव भवइ 2 ॥सू. 75|| तसावि वुच्चंति तसा तससंभारकडेणं कम्मुणा णामं च णं अभुवगयं भवइ, तसाउयं च णं पलिक्खीणं भवइ, तसकायट्ठिइया ते तो पाउयं विप्पजहंति, ते तो भाउयं विप्पजहित्ता थावरत्ताए पच्चायंति 1 / थावरावि वुच्चंति थावरा थावरसंभार. कडेणं कम्मुणा णामं व णं अभुवगयं भवइ, थावराउयं च णं पलिक्खीणं भवइ, थावरकायटिझ्या ते तयो पाउयं विप्पजहंति तो पाउयं विप्प. जहित्ता भुजो परलोइयत्ताए पन्चायंति, ते पाणावि वुच्चंति, ते तसावि वुच्चंति ते महाकाया ते चिरट्टिइया 2 ॥सूत्रं 76 // सवायं उदए पेढालपुत्ते भयवं गोयमं एवं वयासी-ग्राउसंतो गोयमा ! णत्थि णं से केइ परियार जगणं समणोवासगस्स एगपाणातिवायांवरएवि दंडे निक्खित्ते, कस्स णं तं हेउं ?, संसारिया खलु पाणा, थावरावि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसावि पाणा थावरताए पञ्चायंति, थावरकायायो विष्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उपवज्जति, तसकायायो विष्णमुचमाणा सवे थावरकार्यसि उववज्जति, तेसिं च णं थावरकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं धत्तं // 1 // सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी-णो खलु पाउसो / अस्माकं वत्तव्वएणं तुम्भं चेर अणुप्पवादेगां अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सब्वभूएहिं सव्यजीवेहिं सबसत्तेहिं दंडे निक्खित्ते भवइ, कस्स णं तं हेउं ?, Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 246 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः संसारिया खलु पाणा, तसावि पाणा थावरत्ताए पञ्चायंति, थावरावि पाणा तसत्ताए पञ्चायंति, तसकायायो विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उव. वज्जंति, थावरकायायो विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववजंति, तेसि च गणं तसकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं अघत्तं, ते पाणावि वुच्चंति, ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया ते चिरहिइया, ते बहुयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्त सुपचक्खायं भवति, ते अप्पयरागा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपचक्खायं भवइ, से महया तसका पायो उपसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जन्नं तुम्भे वा अन्नो वा एवं वदह -णस्थि णं से केइ परियाए जसि समणोवासगस्स एगपाणाएवि दंडे णिक्खित्ते, अयंपि भेदे से णो ोयाउए भवइ 2 // सूत्रं 77 // भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियबा-याउ. संतो ! नियंठा इह खलु संतेगइया मणुस्सा भवंति, तेसिं च एवं वृत्तपुब्वं भवइ-जे इमे मुडे भवित्ता यागारायो अणगारियं पवइए, एमिं च णं ग्रामरणंताए दंडे णिक्खिने, जे इमे अगारमावसंति एएसिं णं ग्रामरणंताए दंडे णो णिविखने, केई च णं समणा जाव वासाई चउपंचमाई छट्टदममाइं अप्पयरो वा भुजयरो वा देसं दूईजित्ता अगारमावसेजा ?, हंतावसेजा, तम्स णं तं गारत्थं वहमाणस्त से पञ्चक्खाणे भंगे भवइ ?, णो तिणठे समठे, एवमेव समणोवासगस्सवि तसेहिं पाणेहिं दंडे णिक्खित्ने, थावरेहिं पाणेहिं दंडे णो णिक्खिते, तस्स णं तं थावरकायं वहमाणस्म से पञ्चक्खाणे णो भंगे भवइ, से एवमायाणह ? णियंठा !, एवमायाणियव्वं 1 // भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियवा-याउसंतो नियंठा ! इह खलु गाहावई वा गाहावइपुत्तो वा तहप्पगारेहिं कुलेहिं पागम्म धम्म सवणवत्तियं उबसंकमेजा ?, हंता उवसंकमेजा, तेसिं च णं तहप्पगाराणं धम्मं श्राइक्खियब्वे ?, हंता अाइक्खियव्वे, किं ते तहप्पगारं धम्मं सोचा णिसम्म एवं वएजा-इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलियं पडिपुगणं संसुद्धं गेयाउयं Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत् सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 7 ] [ 247 सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निजाणमग्गं निव्वाणमग्गं वितहमसंदिद्धं सम्बदुक्खापहीणमग्गं, एत्यं ठिया जीवा सिझति बुझंति मुच्चंति परिणिबायंति सबदुक्खाणमंतं करेंति, तमाणाए तहा गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा णिसियामो तहा तुयट्टामो तहा भुजामो तहा भासामो तहा अब्भुट्ठामो तहा उट्ठाए उट्टेमोत्ति पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमामोत्ति वएन्जा ?, हंता वरजा, किं ते तहप्पगारा कप्पंति, पब्वावित्तए ?, हता कापति, किं ते तहप्पगारा कप्पति मुंडावित्तए ?, हंता कप्पंति, किं ते तहप्पगारा कप्पंति सिक्खावित्तए ?. हंता कप्पंति, कि ते तहप्पगारा कप्पंति उवहावित्तए ?, हंता कप्पंति, तेसिं च णं तहप्पगाराणं सव्वपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं दंडे णिक्खिते ?, हंता निक्खित्ते, से णं एयारवेणं विहारेणं विह. रमाणा जाव वासाइं चउपंचमाइं छ8इसमाई वा अप्पयरो वा भुजयरो वा देसं दूइज्जेत्ता अगारं वएज्जा ?, हंता वएजा, तस्स णं सब्बपाणेहिं जाव सबसतेहिं दंडे णिक्खित्ते?, णो इणठे समठे, से जे से जीवे जस्स परेणं सधपाणेहिं जाव सब्यसत्तेहिं दंडे णो णिविखत्ते, से जे से जीवे जस्स धारेगां सव्वपागोहि जाव सत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते, से जे से जीवे जस्स इयाणि सब्वपाणेहिं जान सत्तेहिं दंडे णो णिविखत्ते भवइ, परेगां असंजए यारेगां संजए, इयाणिं असंजए, असंजयस्स णं सबपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णो णिक्खिते भाइ, से एवमायाणह ? णियंठा !, से एवमायाणियव्वं 2 // भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्वा-ग्राउसंतो ! नियंठा इह खलु परिवाइया वा परिवाइयायो वा अन्नपरेहितो तित्थाययणेहितो बागम्म धम्म सवणवत्तियं उपसंकमेजा ? हंता उवसंकमेजा, किं तेसिं तहप्पगारेणं धमे बाइक्खियव्वे ?, हंता अाइक्खियव्वे, तं चेव उवटावित्तए जाव कप्पंति ? हंता कप्पंति, किं ते तहप्पगारा कप्पंति संभुजित्तए ? हंता कप्पंति, तेणं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा तं चेव जाव अगारं वएजा ?, Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 248 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः हंता वएजा, ते णं तहप्पगारा कप्पंति संभुजित्तए ?, णो इणठे समठे, से जे से जीवे जे परेणं नो कप्पंति संभुजित्तए, से जे से जीवे यारेणं कप्पंति संभुजित्तए, से जे से जीवे जे इयाणी णो कप्पंति संभुजितए, परेणं अस्समणे पारेणं समणे, इयाणिं अस्समणे, अस्समणेणं सद्धिं णो कप्पंति समणाणं निग्गंथाणं संभुजितए, से एवमायाणह ? णियंठा !, से एवमायाणियव्वं 3 // सूत्रं 78 // भगवं च णं उदाहु संतेगइया समणोवासगा भवंति, तेसिं च णं एवं वृत्तपुवं भवइ-णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगा. रायो अणगारियं पवइत्तए, वयं णं चाउइसट्टमुहिट्ठपुरिणमासिणीसु पडिपुराणं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा विहरिस्सामो, थूलगं पाणाइवायं पञ्चक्खाइस्सामो, एवं थूलगं मुसावायं थूलगं श्रदिन्नादाणं थूलगं मेहुणं थूलगं परिग्गहं पच्चक्खाइस्सामो, इच्छापरिमाणं करिस्सामो, दुविहं तिविहेगा, मा खलु ममट्ठाए किंचि करेह वा करावेह वा तत्थवि पञ्चक्खाइस्सामो, ते णं अभोच्चा पिच्चा असिणाइत्ता प्रासंदीपेढीयायो पच्चारहित्ता, ते तहा कालगया कि वत्तव्वं सिया-सम्मं कालगत्तत्ति ?, वत्तव्यं सिया, ते पाणावि वुच्चंति ते तसावि वुच्चंति ते महाकाया ते चिरट्टिइया, ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ, ते अप्पयरागा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ, इति से महयायो जगणं तुम्मे वयह तं चेव जाव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 1 // भगवं च णं उदाहु संतेगझ्या समणोवासगा भवंति, तेसिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ, णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगारायो जाव पव्वइत्तए, णो खलु वयं संचाएमो चाउद्दसट्टमुद्दिट्टपुराणमासिणीसु जाव अणुपालेमाणा विहरित्तए, वयं णं अपच्छिममारणंतियं संलेहणाजूसणाजूसिया भत्तपाणं पडियाइक्खिया जाव कालं अणवकंखमाणा विहरिस्सामो, सव्वं पाणाइवायं पञ्चक्खाइस्सामो जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खाइस्सामो तिविहं तिविहेणां, मा खलु ममट्ठाए किंचिवि Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 7 ] [ 246 जाव प्रासंदीपेढियायो पच्चोरुहित्ता एते तहा कालगया, किं वत्तव्यं सिया संमं कालगयत्ति ?, वत्तव्वं सिया, ते पाणावि वुच्चंति जाव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 2 // भगवं च गां उदाहु संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा-महइच्छा महारंभा महापरिग्गहा अहम्मिया जाव दुप्पडियारांदा जाव सब्वायो परिग्गहायो अप्पडिविरया जावजीवाए, जेहिं समणोवासगस्स थायाणसो श्रामरगांताए दंडे णिविखत्ते, ते ततो पाउगं विप्पजहंति, ततो भुजो सगमादाए दुग्गइगामिणो भवंति, ते पाणावि वुच्चंति ते तसावि वुचंति ते महाकाया ते चिरट्टिइया ते बहुयरगा श्रायागासो, इति से महयायो | जराणां तुम्भे वदह तं चेव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 3 // भगवं च गां उदाहु संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा-अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया जाव सव्वायो परिग्गहायो पडिविरया जावजीवाए, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो अामरणांताए दंडे णिविखत्ते ते तयो श्राउगं विषजहंति ते तयो भुजो सगमादाए सोग्गइगामिणो भवंति, ते पाणावि वुच्चंति जाव णो णेयाउए भवइ 1 // भगवं च गां उदाहु संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा-यप्पेच्छा अप्पारंभा श्रप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया जाव एगवायो परिग्गहायो अप्पडिविरया, जेहिं समणोवासगस्स श्रायाणसो अामरणांताए दंडे णिक्खित्ते, ते तयो अाउगं विप्पजहंति, ततो भुजो सगमादाए सोग्गइगामिणो भवंति, ते पाणावि वुच्चंति जाव णां णेयाउए भवइ 5 // भगवं च णं उदाहु संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा-श्राररिणया श्रावसहिया गामणियंतिया कराहुई रहस्सिया, जेहिं समणोवासगस्स श्रायाणसो अामरणांताए दंडे णिक्खित्ते भवइ, णो बहुसंजया णो बहुपडिविरया पाणभूयजीवसत्तेहिं, अप्पणा सच्चामोसाई एवं एवं विउंजंति (विप्पडिवेदेति) अहं ण हतब्बो अन्ने हंतव्वा, जाव कालमासे कालं किचा अन्नयराई यासुरियाई किनिसियाई जाव उववत्तारो भवंति, तश्रो विप्पमुच्चमाणा Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 250 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः भुजो एलमुयत्ताए तमोरूवत्ताए पञ्चायंति, ते पाणावि वुच्चंति जाव णो ोयाउए भवइ 6 // भावं च गां उदाहु संतेगइया पाणा दीहाउया जेहि समणोवासगस्स बायाणसो यामरगांताए जाव दंडे णिक्खित्ते भवइ, ते पुत्रामे कालं करेंति, करित्ता पारलोइयत्ताए पञ्चायंति, ते पाणावि वुञ्चति ते तसावि बुचंति ते महाकाया ते चिरट्टिइया ते दीहाउया ते बहु. यरगा, जेहिं समणोवासगस्स सुपञ्चरवायं भवइ, जाव णो णेयाउए भवइ७।। भगवं च गां उदाहु संतेगइया पाणा ममाउया जेहिं समणोवासगस्म अायाामो ग्रामरगांताए जाव दंडे णिक्खित्ते भवइ, ते मयमेव कालं करेंति करित्ता पारलोइयत्ताए पञ्चायंति, ते पाणावि बुच्चंति तमावि वुच्चंति ते महाकाया ते समाउया ते बहुयरगा जेहिं समोवासगस्स सुपचक्खायं भवइ, जाव णो णेयाउए भवइ 8 // भगवं च गां उदाहु संतेगइया पाणा अप्पाउया, जेहिं समणोवासगरम अायाणसो श्रामरगांताए जाव दंडे णिक्खिते भवइ, ते पुवामेव काल करेंति करेत्ता पारलोइयत्ताए पञ्चायंति, ते पाणावि वुचंति ते तमावि वुच्वंति ते महाकाया ते अपाउया ते बहु. यरगा पाणा, जेहिं समणोवासगस्म सुपञ्चवसायं भवइ, जाव णो णेयाउए भवइ 1 // भगवं च गां उदाहु मंतेगइया समणोवासगा भवंति, तेसिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ-णो खलु वयं संचाएमो मुडे भवित्ता जाव पवइत्तए, णो खलु वयं संचाएमो चाउद्दमट्ठमुद्दिट्ठपुराणमासिणीसु पडिपुराणां पोसहं अणुमालित्तए, णो खलु वयं संचाएमो अपच्छिमं जाव विहरित्तए, वयं च गां सामाइयं देसावगासियं पुरत्था पाईगां वा पडिगां वा दाहिगां वा उदीगां वा एतावता जाव सधपाणेहिं जाव सबसतेहिं दंडे णिक्खित्ते सव्वपागाभू. यजीवसतेहिं खेमंकरे ग्रहमंसि, तत्थ यारेणां जे तमा पाणा जेहिं ममणोवामगस्स यायाणसो यामरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तयो पाउं विपजहति विपनाहेत्ता तत्थ वारेगां चे जे तसा. पाणा जेहिं समणोरासगस्म Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यंति, तेहिं च बुन्चति ते पर तमा आउ विष्ण श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् // श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 7 ] / 251 अायाणसो जाव तेसु पच्चायंति, जेहिं समणोवासगस्म सुपच्चक्खायं भवइ, ते पाणावि जाव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 10 / मूत्रं 76 // तत्थ पारेणं जे तमा पाणा जेहिं समणोवासगस्स बायाणसो अामरणंताए दंडे णिक्खित्ते ते तयो बाउं विप्पजहंति विप्पजहित्ता तत्थ पारेणं चेव जाव थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्टाए दंडे अणिक्खित्ते श्रणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते तेसु पञ्चायंति, तेहिं समणोवामगस्स अट्टाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खि ते ते पाणावि बुन्चंति ते तसा ते चिरट्टिइया जाव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 1 // तत्थ जे बारेणं तसा पाणा जेहिं समणोवासगस्स पायाणसो अामरणंताए दंडे निविखते तो ग्राउं विप्पजहंति विप्पजहित्ता तत्थ परेणं जे तसा थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो अामरणंताए दंडे निक्खित्ते ते जाव तेसु पञ्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ, ते पाणावि जाव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 2 // तत्थ जे पारेणं थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्टाए दंडे अणिक्खिते अणट्ठाए निक्खिते ते तयो पाउं विप्पजहंति विप्पजहित्ता तत्थ पारेणं चेव जे तसा पाणा जेहिं समणोवासगस्स बायाणसो ग्रामर ताए जाव तेसु पच्चायति तेसु समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ, ते पाणावि जाव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 3 // तत्थ जे ते बारेणं जे थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे श्रणिक्खित्ते अणट्टाए णिक्खित्ते, ते तो ग्राउं विप्पजहंति विप्पजहिता ते तत्थ पारेण चेव जे थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिविखत्ते अणट्टाए णिक्खित्ते तेसु पञ्चायंति, तेहिं समणोवासगस्स अट्टाए अणट्ठाए ते पाणावि जाव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 4 // तत्थ जे ते बारेणं थावरा पाणा जेहिं समणोदासगस्स अट्टाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए णिक्खित्ते तो ग्राउं विप्पजहंति विप्पजहित्ता तत्थ परेणं जे तसथावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 252 ] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः थायाणसो अामरणंताए जाव तेसु पच्चायंति तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवर, ते पाणावि जाव अयंपि भेदे से णो ोयाउए भवइ 5 // तत्थ जे ते परेणं तसथावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स यायाणसो अामरणंताए जाव ते तयो ग्राउंविप्पजहति विप्पजहित्ता तत्थ पारेणं जे तसा पाणा जेहिं समणोवास गस्स थायाणमो थामरणंताए जाव तेसु पञ्चायंति, तेहिं समणोवामगस्स सुपचक्खायं भवइ, ते पाणावि जाव अयंपि भेदे से णो गोयाउए भवइ 6 // तत्थ जे ते परेणं तमथावरा पाणा जेहिं ममणोवासगस्स श्रायाणमो ग्रामरणंताए जाव ते तयो अाउं विप्पजहंति विप्पजहित्ता तत्थ यारेणं जे थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणटाए णिविखत्ते तेसु पञ्चायंति, जेहिं समणोबासगस्स अट्ठाए अणिक्खित्ते अणट्ठाए णिक्खित्ते जाव ते पाणावि जाव अयंपि भेदे से णो णेयाउए भवइ 7 // तत्थ ते परेणं तसथावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स पायाणसो ग्रामरणंताए जाव ते तो ग्राउं विप्पजहंति विप्पजहिता ते तत्थ परेणं चेव जे तमथावरा पाणा जेहिं समणोवागसस्स पायाणसो थामरणंताए जाव तेसु पचायंति, जेहिं समणोवागसम्स सुपञ्चक्खायं भवइ, ते पाणावि जाव अपि भेदे से णो ऐयाउए भवइ 8 // भगवं च णं उदाहु गां एतं भूयं ण एतं भव्वं ण एतं भविस्संति जराणं तसा पाणा कोच्छिजिहिति थावरा पाणा भविस्संति, थावरा पाणावि वोच्छिजिहिंति तसा पाणा भविस्संति, अवोच्छिन्नेहिं तसथावरेहि पाणेहिं जगणं तुम्भे वा अन्नो वा एवं वदह-णत्थि णं से केइ परियाए जाव णो णेयाउए भवइ 1 // सूत्रं 80 // भगवं च णं उदाहु थाउसंतो ! उदगा जे खलु ममणं वा माहणं वा परिभासेइ मित्ति मन्नति श्रागमित्ता णाणं आगमित्ता दंसणं ग्रागमित्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए से खलु परलोगपलिमंथत्ताए चिट्ठइ, जे खलु समणं वा माहगं चा णो परिभासई मित्ति मन्नंति आगमित्ता णाणं यागमित्ता सणं Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 7 ] [ 253 श्रागमित्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए से खलु परलोगविसुद्धीए विट्टइ, तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं अणाढायमाणे जामेव दिसिं पाउ-भूते तामेव दिसि पहारेत्थ गमणाए 1 // भगवं च णं उदाहु अाउसंतो उदगा ! जे खलु तहाभूतस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि अारियं धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्म अप्पणो चेव सुहुमाए पडिलेहाए अणुत्तरं जोगखेमपयं लंभिए समाणे सोवि ताव तं अाढाइ परिजाणेति वंदति नमंसति सकारेइ संमाणेइ जाव कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासति 2 // तए णं से उदए पेढालपुते भावं गोयम एवं वयासी-एतेसि णं भंते ! पदाणं पुलिं अन्नाणयाए असवणयाए अबोहिए अणभिगमेणं अदिट्ठाणं असुयाणं अमुयाणं अविनायाणं अब्बोगडाणं अणिगूढाणं अविच्छिन्नाणं अणिसिट्ठाणं अणिवूढाणं अणुवहारियाणं एयमझें णो सदहियं णो पत्तियं णो रोइयं, एतेसि णं भंते ! पदाणं एसिंह जाणयाए सवणयाए बोहिए जाव उवहारणयाए एयमझें सदहामि पत्तियामि रोएमि एवमेव से जहेयं तुब्भे वदह 3 // तए णं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी-सहहाहि गां अजो ! पत्तियाहि गां अजो! रोएहि गां अजो ! एवमेयं जहा गां अम्हे वयामो, तए रां से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासीइच्छामि गां भंते ! तुम्भं अंतिए चाउज्जामायो धम्मायोपंचमहब्बइयं सपडिकमणं धम्म उवसंपजित्ताणं विहरित्तए 4 // तए णं से भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं गहाय जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता तए णं से उदए पेढालपुत्ते समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो थायाहि / पयाहियां करेइ, तिक्त्तो पायाहियां पयाहिणां करित्ता वंदइ नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- इच्छामि गां भंते / तुम्भं अंतिए चाउज्जामायो धम्मायो पंचमहत्वइयं सपडिकमणां धम्म उवसंपजित्ता गां विहरित्तए 5 // तए गां समणे भगवं महावीरे उदयं एवं वयासी- अहासुहं देवाणु Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 254 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः प्पिया ! मा पडिबंध करेहि, तए गां से उदए पेढालपुत्ते समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अंतिए चाउज्जामाश्रो धम्मायो पंचमहब्बइयं सपडिकमयां धम्म उपसंपजित्ता गां विहारइ तिबेमि 6 // सूत्रं 81 / / इति नालंदइज्जं सत्तम अज्मयां समत्तं / इति सूयगडांगबीयसुयक्खंधो समत्तो थापं० 2100 // इति समममध्ययनम् // 27 // इति दितीयः श्रुतस्कन्धः / / 2 / / इति द्वितीयं सूत्रकृताङ्गम् // 2 // .. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री