________________ 170 ] _[ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो। पारयो परयो वावि, दुहावि य असंजया // 6 // वेराइं कुबई वेरी, तयो वेरेहिं रजती / पावोवगा य श्रारंभा, दुक्खफासा य अंतसो // 7 // संपरायं णियच्छंति, अत्तदुक्कडकारिणो / रागदोसस्सिया बाला, पावं कुव्वंति ते बहुं // 8 // एवं सकम्मवीरियं, बालाणां तु पवेदितं / इत्तो अकम्मविरियं, पंडियाणां सुणेह मे // 1 // दविए बंधणुम्मुक्के, सम्वो छिन्नबंधणे / पणोल्ल पावकं कम्म, सल्लं कंतति अंतसो (सल्लं कंतइ अप्पणो) // 10 // नेयाउयं सुयक्खायं, आदाय समीहए / भुजो भुजो दुहावासं, सुहत्तं तहा तहा // 11 // ठाणी विविहठाणाणि, चइस्संति ण संसश्रो / यणियते अयं वासे (अनिइए य संवासे), णायएहिं सुहीहि य // 12 // एक्मादाय मेहावी, अप्पणो गिद्धिमुद्धरे / पारियं उपसंपज्जे, सबधम्मकोवि यं // 13 // सह संमइए णचा, धम्मसारं सुणेत्तु वा। समुवट्ठिए उ अणगारे (उवट्ठिए य मेहावी), पचक्खायपावए // 14 // जं किंचुवकर्म जाणे (णच्चा), श्राउक्लेमस्स अप्पणो / तस्सेव अंतरा खिप्पं, सिक्खं सिवखेज पंडिए // 15 // जहा कुम्मे सयंगाई, सए देहे समाहरे। एवं पावाई मेधावी, यज्झप्पेण समाहरे // 16 // साहरे हत्थपाए य, मणं पंचें(सव्वें)दियाणि य / पावकं च परीणाम, भासादोमं च तारिसं // 17 // णु मागां च मायं च, तं पंडिन्नाय पंडिए (अइमाणां च मायं च तं परिगणाय पंडिए।), (सुयं मे इहमेगेसिं / एवं वीरस्स वीरियं), (पायतळं सुपादाय, एवं वीरस्स वीरियं), सातागाखणिहुए, उवसंते णिहं चरे॥१८॥ पाणे य णाइवाएजा. अदिन्नंपिय णादए। सादियं ण मुसं ब्रूया, एस धम्मे वुसीमयो // 11 // अतिकम्मति कायाए, मणसा वि न पत्थए / सव्वथो संवुडे दंते, पायाणं सुसमाहरे // 20 // कडं च कजमाणं.च, श्रागमिस्सं च पावगं / सव्वं तं णाणुजाणंति, श्रायगुत्ता जिइंदिया // 21 // जे याबुद्धा महाभागा, वीरा असमत्तदंसिणो /