________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 9 ] [ 171 असुद्धं तेसिं परवकतं, सफलं होइ सव्वसो // 22 // जे य बुद्धा महाभागा, वीरा सम्मत्तदंसिणो। सुद्धं तेसिं परक्कंतं, अफलं होइ सव्वसो // 23 // तेसिपि तवो ण (इ) सुद्धो, निक्खंता जे महाकुला / जन्ने वन्ने वियाणंति, न सिलोगं पवेज्जए // 24 // अप्पपिंडासि पाणासि, अप्पं भासेज सुव्वए / खंतेऽभिनिव्वुडे दंते, वीतगिद्धी सदा जए // 25 // झाणजोगं सवाहटु, कायं विउसेज सव्वसो / तितिक्खं परमं णचा, श्रामोक्खाए परिव्वएजासि // 26 // (गाथाग्रं० 446) त्तिवेमि // // इति वोर्यालयमष्टममध्ययनम् // 8 // // अथ धर्माख्यं नवममध्ययनम् // कयरे धम्मे अक्खाए, माहणेण मतोमता / अंजु धामं जहातच्चं, जिणाणं तं सुणेह मे (जणगा तं सुणेह भे) // 1 // माहणा खत्तिया वेस्सा, चंडाला अदु बोकसा / एसिया वेसिया सुद्दा, जे य श्रारंभणिस्सिया // 2 // परिग्गहनिवि. ठाणं, पावं (वेरं) तेसिं पवडई / श्रारंभसंभिया कामा, न ते दुस्खविमोयगा // 3 // श्राघायकिञ्चमाहेउ, नाइयो विसएसिणो / अन्ने हरंति तं वित्तं, कम्मी कम्मेहिं किच्चती // 4 // माया पिया राहुसा भाया, भजा पुत्ता य श्रोरसा / नालं ते तर ताणाय, लुप्पंतस्स सकम्मुणा // 5 // एयम8 सपेहाए, परमट्ठा. णुगामियं / निम्ममो निरहंकारो, चरे भिक्खू जिणाहियं // 6 // चिचा वित्तं च पुत्ते य, णाइयो य परिग्गहं / चिच्चा ण अंतगं सोयं, (चिच्चाणऽगांतगं सोयं) निरवेक्खो परिव्वए // 7 // पुढवी उ अगणी वाऊ, तणरुक्खा सबीयगा / अंडया पोयजराऊ, रससंसेयउब्भिया // 8 // एतेहिं छहिं काएहि, तं विज्जं परिजाणिया। मणसा कायवक्केणं, णारंभी ण परिग्गही // 1 // मुसावायं बहिद्धं च, उग्गहं च अजाइया / सत्थादाणाई लोगंसि, तं विज्जं परिजाणिया // 10 // पलिउंचणं भयणं च, पंडिल्लु