________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 205 ___ग्रहावरे छठे किरियहाणे मोप्सावत्तिएत्ति याहिजइ, से जहाणामए केइ पुरिसे घायहेउं वा णाईहउँ वा अगारहेउं वा परिवारहेडं वा सयमेव मुसं वयति अराणेणवि मुसं वाएइ मुसं वयंतपि अरणं समणुजाणइ, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति पाहिजइ, छठे किरियट्ठाणे मोसावत्तिएत्ति ग्राहिए / / सूत्रम् 22 / / - ग्रहावरे सत्तमे किरियट्ठाणे ग्रदिन्नादाणवत्तिएत्ति याहिजइ, से जहाणामए केइ पुरिसे थायहेउं वा जाव परिवारहेउं वा सयमेव अदिन्नं थादिवइ यन्नेणवि यदिन्नं यादियावेति अदिन्नं श्रादियंत अन्नं समणुजाणइ, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति अाहिजइ, सत्तमे किरियट्ठाणे यदिन्नादाणवत्तिएत्ति अाहिए। सूत्रम् 23 // ग्रहावरे यट्टमे किरियट्ठाणे अज्झत्थवत्तिएत्ति पाहिजइ, से जहाणामए केइ पुरिसे णत्थि णं केइ किंचि विसंवादेति सयमेव हीणे दीणे दुठे दुम्मणे योहयमसंकप्पे चिंतासोगरसंपविठे करतलपल्हस्थमुहे अट्टज्माणावगए भूमिगयदिट्ठिए झियाइ, तस्स णं अन्झत्थया असंसइया चत्तारि ठाणा एवमहिज्जइ (ज्जंति) तंजहा-कोहे माणे माया लोहे, अज्झत्यमेव कोहमाणमायालोहे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जति पाहिजइ, अट्ठमे किरियट्ठाणे अज्झत्यवत्तिएत्ति श्राहिए // सूत्रम् 24 // __ग्रहावरे णवमे किरियट्ठाणे माणवत्तिएत्ति पाहिज्जइ, से जहाणामए केइ पुरिसे जातिमएण वा कुलमएण वा बलमएण वा रूवमएण वा तवमरण वा सुयमएण वा लाभमएण वा इस्मरियमएण वा पन्नामएण वा अन्नतरेण वा मयट्ठाणेणं मत्ते समाणे परं हीलेति निदेति खिसति गरहति परिभवइ अवमराणेति, इत्तरिए अयं, ग्रहमंसि पुण विसिट्ठजाइकुलबलाइगुणोववेए, एवं अप्पाणं समुकसे, देहच्चुए कम्मबितिए श्रवसे पयाइ, तंजहा-गभायो गभं 4 जम्मायो जम्मं मारायो मारं णरगायो णरगं चंडे थद्धे चवले /