________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] [165 // अथ श्रीवीरस्तुत्याख्यं षष्ठमध्ययनम् // पुच्छिस्सु णं समणा माहणा य, अगारिणो या परतिस्थिया य / सं केइ णेगंतहियं धम्ममाहु, अणेलिसं साहु ममिक्खयाए // 1 // कहं च णाणं कह दंसणं से, सौलं कहं नायसुतस्त श्रासी ? / जाणासि गां भिक्खु जहातहेणं, अहासुतं ब्रूहि जहा णिसतं // 2 // खेयन्नए से कुसला. सुपन्ने (कुसले महेसी), श्रणांतनाणी य अशांतदंसी / जसंसिणी चक्खुपहे ठियरस, जाणाहि धम्मं च धियं च पेहि // 3 // उडढं अहेयं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा / से णिचणिच्चेहि समिवख पन्ने, दीवे व धम्म समियं उदाहु // 4 // से सम्बदंसी अभिभूयनाणी, गिरामगंधे धिइमं ठितप्पा / अणुतरे सबजगंसि विज्जं, गंथा अतीते अभए यणाऊ // 5 // से भूइपगणे अणिएयचारी, श्रोहंतरे धीरे अगांतचवग्वृ / अणुत्तरं तप्पति सूरिए वा, वइरोयणिंदे व तमं पगासे // 6 // अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं, ोया मुणी कासव यासुपन्ने / इंदेव देवाण महाणुभावे, सहस्सणेता दिवि गां विसिठे // 7 // से पन्नया अक्खयसागरे वा, महोदही वावि अशांतपारे। / अणाइले वा अकसाइ मुक्के (भिक्खू ), सक्केव देवाहिवई जुईमं // 8 // से वीरिएगां पडिपुन्नवीरिए, सुदंसणे वा णगसव्वसे? / सुरालए वासि(दि). मुदागरे से, विरायए गोगगुणोववेए // 6 // सयं सहस्साण उ जोयणागां, तिकंडगे पंडगवेजयंते / से जोयणे णरणवते सहरसे, उद्धस्सितो हेट्ठ महस्समेगं // 10 // पुठे गभे चिट्ठइ भूमिवट्टिए, जं सूरिया अणुपरिवट्रयति / से हेमवन्ने बहुनंदणे य, जंसी रतिं वेदयंती महिंदा / / 11 / / से पव्यए सहमहप्पगासे, विरायती कंचणमट्ठवन्ने / अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे गिरीवरे से जलिएव भोमे // 12 // महीइ मझमि टिते णगिंद, पन्नायते सूरियसुद्धलेसे / एवं सिरीए उमः भूरिवन्ने, मणोरमे जोयइ