________________ 164 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः महंतीउ समारभित्ता, छुम्भंति ते तं कलुणं रसंतं / श्रावती तत्थ असाहुकम्मा, सप्पी जहा पडियं जोइमज्झे // 12 // सदा कसिणं पुण घम्मयणं गाढोवणीयं अइदुक्खधम्मं / हत्थेहिं पाएहि य बंधिऊणं, सत्तुव्व डंडेहिं समारभंति // 13 // भंजति बालरस वहेण पुट्ठी, सीसपि भिदंति अयोघणेहिं / ते भिनदेहा फलगंव तच्छा, तत्ताहिं बाराहिं णियोजयंति // 14 // अभिजुजिया रुद्द असाहुकम्मा, उसुचोइया हथिवहं वहति / एगं दुरूहित्तु दुवे ततो वा, थारुस्स विझति ककाणयो से // 15 // बाला बला भूमिमणुकमंता, पविजलं कंटइलं महंतं / विवद्धतप्पेहिं विव. राणचिते, समीरिया कोट्टबलि करिति // 16 // वेतालिए नाम महाभितावे, एगायते पव्वयमंतलिक्खे / हम्मति तत्था बहुकूरकम्मा, परं सहस्साण मुहुत्तगाणं // 17 // संवाहिया दुकडिणो थणंति, ग्रहो य रायो परितप्पमाणा / एगंतकूडे नरए महंते, कूडेण तत्था विसमे हता उ // 18 // भंति णं फुधमरी सरोसं, समु गरे ते मुसले गहेतु। ते भिन्नदेश रुहिरं वमंता, योमुद्रगा धरणितले पडंति // 16 // अणासिया नाम महासियाला, पागभिणो ताथ सयायकोवा / खज्जति तत्था बहुकूरकम्मा, अदूरगा संकलियाहि बद्धा // 20 // सयाजला नाम नदी भिदुग्गा, प.वेज्जलं लोहविलीणतत्ता / जंसी भिदुग्गंसि पवज्जमाणा, एगायऽताणुकमगां करेंति // 21 // एयाई फासाइं फुसंति घालं, निरंतरं तत्थ चिरद्वितीयं / ण हम्ममाणस्स उ होइ ताणं, एगो सयं पचणुहोइ दुक्खं // 22 // जं जारिसं पुरमकासि कम्म, तमेव यागच्छति संपराए। एगंतदुक्खं भवमजगित्ता, वेदंति दुक्खी तमणंतदुक्खं // 23 // एताणि सोचा णगाणि धीरे, न हिंसए किंचण सव्वलोए / एगंतदिट्ठी अपरिग्गहे उ, बुझिज लोयस्स वसं न गच्छे // 24 // एवं तिरिक्खे मणुयासु(म)रेसु, चतुरन्तऽणतं तयणुब्बिवागं / स सव्वमेयं इति वेदइत्ता, कंखेज कालं धुयमायरेज्ज // 25 // तिबेमि (गाथा 361) / / / इति पञ्चमाध्ययने द्वितियोद्देशकः / / 5-2 / / / / इति पञ्चमायनंम् / / 5 / /