________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 5 ] [ 163 कसिणे य फासे, कम्मोवगा कुणिमे श्रावसंति // 27 // तिबेमि // (गाथाग्रं 336) // इति पश्चमध्ययने प्रथमोद्देशकः / / 5-1 // // अथ पञ्चमाध्ययने द्वितीयोद्देशकः // ग्रहावरं सासयदुवखधम्म, तं मे पवक्खामि जहातहेणं / बाला जहा दुक्कडकम्मकारी, वेदंति कम्माइं पुरेकडाई // 1 // हत्थेहिं पाएहि य बंधिऊणं, उदरं विकत्तंति खुरासिएहिं / गिरिहत्तु बालस्स विहत्तु देहं, वद्धं थिरं पिट्ठतो उद्धरंति // 2 // बाहू पकत्तंति (पकप्पत्ति) य मूलतो से, थूलं विमं मुहे बाडहति / रहंसि जुत्तं सरयंति बालं, पारुस्स विझति तुदेण पिठे // 3 // अयंव तत्तं जलियं सजोइ, तऊवमं भूमिमणुकमंता / ते डझमाणा कलुणं थणंति, उसुचोइया तत्तजुगेसु जुत्ता // 4 // बाला बला भूमिमणुकमंता, पविज्जलं लोहपहं च तत्तं / जंसीऽभिदुग्गंसि पवज्जमाणा, पेसेव दंडेहिं पुराकरंति // 5 // ते संपगादसि पवज्जमाणा, मिलाहिं हम्मति निपातिणीहिं / संतावणी नाम चिरद्वितीया, संतप्पती जत्थ असाहुकम्मा // 6 // कंडूसु पक्खिप्प पयंति बालं, ततोवि दड्डा पुण उप्पयंति / ते उड्ढकाएहिं पखज्जमाणा, अवरेहिं खजंति सणफएहिं // 7 // समूसियं नाम विधूमगणं, जं सोयतत्ता कलुणं थणंति / अहोसिरं कट्टु विगत्तिऊणं, अयंत्र सत्येहिं समोसवेति // 8 // समूसिया तत्थ विसूणियंगा, पाखीहिं खजंति अयोमुहेहिं / संजीवणी नाम चिरद्वितीया, जंसी पया हम्मइ पावचेया // 1 // तिक्खाहिं सूलाहि निवाययंति (भितावयंति) वसोगयं सावययं व लद्धं / ते सूलविद्धा कलुणं थणंति, एगंतदुवखं दुहयो गिलाणा ॥१०॥सया जलं नाम निहं महंतं, जंसी जलंतो अगणी अकट्ठो। चिट्ठति बद्धा बहुकूरकम्मा, अरहस्सरा केइ चिरद्वितीया // 11 // चिया