________________ 236 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः जाव उवद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेवं जाण सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा यातोडिजमाणा वा हम्ममाणे वा तजिजमाणे वा तालिजमाणे वा जाव उवद्दविजमाणे वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति, एवं णचा सव्वे पाणा जाव सब्वे सत्ता न हंतव्वा जाव ण उद्दवेयब्वा, एस धम्मे धुवे णिइए सासए समिञ्च लोगं खेयन्नेहिं पवेदिए, एवं से भिक्खू विरते पाणाइवायातो जाव मिन्छादसणसल्लायो, से भिक्खू णो दंतपक्खालणेणं दंते पक्खालेजा, णो अंजणं णो वमणं णो धूवणित्तं पियाइते, से भिक्खू अकिरिए अलूमए अकोहे जाव श्रलोभे उवसंते परि. निव्वुडे, एस खलु भगवया अक्खाए संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे अकिरिए संबुडे एगंतपंडिए भवइ तिबेमि // सूत्रं 67 // // इति चतुर्थमध्ययनम् // 2-4 / / // अथ पञ्चममाचारश्रुताध्ययनम् // श्रादाय बंभचेरं च, श्रासुपन्ने इमं वई / अस्सि धम्मे अणायारं, नायरेज कयाइवि // 1 // अणादीयं परिन्नाय, प्रणवदग्गेति वा गुणो / सासयमसासए वा, इति दिहि न धारए // 2 // एएहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारो ण विजई / एहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए // 3 // समुच्छि(जि)हिंति मत्थारो, सब्वे पाणा प्रणेलिसा / गंठिगा वा भविस्संति, सासयोते व णो वए // 4 // एएहिं दोहिं ठाणेहिं, ववहारो ण विजइ / एएहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए // 5 // जे केइ खुद्दगा पाणा, अदुवा संति महालया। सरिसं तेहिं वेरंति, असरिसंती य णो वदे // 6 // एएहिं दोहिं ठागोहिं, ववंहारो ण विजई / एएहिं दोहिं ठाणेहिं, अणायारं तु जाणए // 7 // ग्रहाकम्माणि (ग्रहाकडाणि) भुजंति, अराणम