________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्ग-सूत्रम् / / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 6 ] [ 236 भासाय दोसे य विवजगस्स, गुणे य भासाय णिसेवगस्स // 5 // महब्बए पंच अणुब्बए य, तहेव पंचासव संवरे य / विरतिं इहस्सामणियंमि पुराणे (पन्ने), लवावसकी समणेत्तिवेमि // 6 // सीयोदगं सेवउ बीयकायं, थाहायकम्मं तह इत्थियायो / एगंतचारिस्सिह अम्ह धम्मे, तवस्सिणो णाभिसमेति पावं // 7 / / सीतोदगं वा तह बीयकायं, थाहायकम्मं तह इत्थियात्रो। एयाइं जाणं पडिसेवमाणा, अगारिणो अस्समणा भवंति // 8 // सिया य बीयोदग इस्थिगयो, पडिसेवमाणा समणा भवतु / अगारिणोऽत्री समणा भवंतु, सेवंति उ तेऽवि तहप्पगारं ॥१॥जे यावि बीयोदगभोति भिक्खू , भिक्खं विहं जायति जीवियट्ठी / ते णातिसंजोगमप्पविहाय, कायोवगा ग तकरा भवंति ॥१०॥इमं वयं तु तुम पाउकुव्वं, पावाइणो गरिहसि सव्व एव / पावाइणो पुढो किट्टयंता, सयं सयं दिट्ठि करेंति पाउ // 11 // ते अन्नमन्नस्स उ गरहमाणा, अक्खंति भो समणा माहणा य / सतो य अत्थी असतो य णत्थी, गरहामो दिढि ण गरहामो किंचि // 12 // ण किंचि रूवेणऽभिधारयामो, सदिछिमग्गं तु करेमु पाउँ / मग्गे इमे किट्टिएँ पारिएहि, अणुत्तरे सप्पुरि. सेहिं अंजू // 13 // उड्ढ़ अहेयं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा। भूयाहिसंकाभि दुगुछमाणा, णो गरहती बुसिमं किंचि लोए // 14 // श्रागंतगारे यारामगारे, समणे उ भीते ण उवेति वासं / दक्खा हु संती बहवे मणुस्सा, ऊणातिरित्ता य लवालवा य // 15 // मेहाविणो सिविखय बुद्धिमंता, सुत्तेहि अत्येहि य णिच्छयन्ना (णिच्छियन्नू)। पुच्छिसु मा णे श्रणगार एगे (यन्ने), इति संकमाणो ण उवेति तत्थ // 16 // णो कामकिच्चा ण य बालकिचा, रायाभियोगेण कुयो भएणं / वियागरेज पसिणं नवावि, सकामकिचेणिह यारियाणं // 17 // गंता च तत्था अदुवा अगंता, वियागरेजा समियाऽऽसुपन्ने। प्रणारिया दंमणयो परित्ता, इति संकमाणो ण उवेति तत्थ // 18 // पन्नं जहा वणिए उदयट्टी, आयस्स हेउं पगरेति संगं / तऊवमे