________________ 226 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः णाणाविहजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए अवगत्ताए पणगत्ताए सेवालत्ताए कलंबुगताए हडताए कसेरुगत्तार कच्छभाणियत्ताए उप्पलत्ताए पउमत्ताए कुमुयत्ताए नलिणत्ताए सुभगत्ताए सोगंधियत्ताए पोंडरियमहापोंडरियत्ताए सयपतत्ताए सहस्तपत्तत्ताए एवं कल्हारकोंकणयत्ताए अरविंदत्ताए तामरसत्ताए भिसभिसमुणालपुक्खलत्ताए पुक्खलच्छिभगत्ताए विउति, ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियागां उदगागां सिणेहमाहारेंति, ते जीरा थाहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य गां तेसिं उदगजोणियागां उदगागां जाव पुवरखलच्छिभगागां सरीरा णाणावराणा जावमक्खायं, एगो चेव घालावगो 4 // सूत्र५४ // ग्रहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता तेसिं चेव पुढवीजोगिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं रुख जोणिएहिं मूनेहिं जाव बीएहिं रुक्खजोणिएहिं अमारोहेहिं यज्झारोहजोणिहिं यज्मारहेहिं यज्मारोहजोगिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं पुढविजोणिएहिं तणेहि तणजोजिएहिं तणेहिं तणजोणिएहिं मूल्नेहिं जाव बीएहिं एवं योसहीहिवि तिन्नि बालावगा 1 / एवं हरिएहिवि तिन्नि बालावगा 2 / पुढविजोणिएहिवि पाएहिं काएहिं जाव कूरेहिं उदगनोणिएहिं रुक्खेहि रुखखजोगिएहि रक्खेहि रुखजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं एवं यज्झारुहेहिवि तिगिण 3 / तणेहिंपि तिरिण बालावगा 4 // श्रोसहीहिपि तिरिण 5 / हरिएहिपि तिगिण 6 उदगजोगिएहिं उदएहिं यवएहिं जाव पुवखलच्छिभएहिं तसपाणत्ताए विउति 6 / / ते जीवा तेसिं पुढवी. जोणियाणां उदगजोणियाणां रुक्खजोणियागां अज्झारोहजोणियागां तणजोणियाणां योसहीजोणियागां हरियजोणियागां स्वखागां अज्मारहागां तणाणां योसहीणां हरियाणां मूलागां जाव बीयागां यायागां कायागां जाव कुरवा(कूरा)गां उदगागां अवगागां जाव पुक्खलच्छिभगागां सिणेहमाहारेंति 7 / ते जीवा अाहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं / अवरेऽवि य गां ते से रुक्खजोणियागां अज्झारोहजोणियाणां तणजोणियागां योसहिजो