________________ 148] नमोणपयं उपजियाविणा इखिणिया जिला परिभवहर [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः संवुडो / चिचा वित्तं च णाययो, प्रारंभ च सुसंवुडे चरे // 22 // त्तिबेमि // गाथा 120 // इति द्वितीयाध्ययने प्रथमोद्देशकः // 2-1 / / // अथ द्वितीयाध्ययने द्वितीय उद्देशकः // तयसं व जहाइ से रयं, इति संखाय मुणी ण मजई। गोयन्नतरेण माहणे (जे विऊ) अहसेयकरी अनेसी(सि) इंखिणी // // जो परिभवइ परं जणं, संसारे परिवत्तई महं (चिरं) / अदु इंखिणिया उ पाविया, इति संखाय मुणी ण मजई // 2 // जे यावि यणायगे सेया, जेविय पेसगपेसए सिया। जे मोणपयं उवट्ठिए, णो लज्जे समयं सया(5)यरे // 3 // सम अन्नयरम्मि संजमे, संसुद्धे समणे परिव्वए / सिथ (जे) यावकहा समाहिए, दविए. कालमकासि पंडिए // 4 // दूरं अणुपस्सिया मुणी, तीतं धम्ममणागयं तहा / पुढे परुसेहिँ माहणे, अवि हराणू समयंमि रीयइ (समयाहियासए) // 5 // पराणसमते (पराहसमत्थ) सया जए, समताधम्ममुदाहरे मुणी। सुहुमे उ सया अलूमए, णो कुज्झ (कुप्पे) मो माणि माहणे // 6 // बहुजणाणमणमि संवुडो, सव्वट्ठेहिं णरे अणिस्सिए / हरए व सया यणाविले, धम्म पादुरकासि कासवं // 7 // बहवे पाणा पुढो सिया, पत्तेयं समयं समी(उवे)हिया। जो मोणपदं उवट्ठिते, विरतिं तत्थ अकामि पंडिए॥॥ धम्मस्स य पारए मुणी, श्रारंभस्स य अंतए ठिए। सोयंति य णं ममाइणो, हो लभंति गिर्य परिग्गहं सोउण तयं उवट्ठियं, केइ गिही विग्घेण उठ्ठिया / धम्ममि अणुतरे मुणी, तंपि जिणिज इमेण पंडिए)॥६॥ इहलोगदुहावहं विऊ, परलोगे य दुहं दुहावहं / विद्धंसणधम्ममेव तं, इति विज्जं कोऽगारमावसे ? // 10 // महयं पलिगोव जाणिया, जावि य वंदणष्यणा इहं / सुहुने सल्ले दुरुद्धरे, विउमंता पयहिज संथवं (पलिमंथ महं वियाणिया, जाविय वंदणप्यणा इहं। सुहुमं सल्लं दुरुद्धर, तंपि जिणे एएण पंडिए) // 11 // एगे चरे ठाणमामणे,