________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 7 ] [ 167 दीहरायं // 27 // से वारिया इत्थी सराइभत्त, उवहाणवं दुक्खखयट्ठयाए / लोगं विदित्ता यारं परं च, सव्वं पभू वारिय सम्बवारं // 28 // सोचा य धम्मं श्ररहंतभासियं, समाहितं अट्ठपदोवसुद्धं / तं सदहाणा (सद्दहंता) य जणा श्रणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्संति // 21 // त्तिबेमि (गाथाग्रं 360) // इति षष्ठमध्ययनम् // 6 // // अथ कुशीलपरिभाषाख्यं सप्तममध्ययनम् // पुढवो य श्राऊ अगणी य वाऊ, तण रुक्ख बीया य तसा य पाणा। जे अंडया जे य जराउ पाणा, संसेयया जे रसयाभिहाणा // 1 // एयाइं कायाई पवेदिताई, एतेसु जाणे पडिलेह सायं / एतेण(हिं) कारण(हिं) य यायदंडे. एतेसु या विप्परियासुर्विति // 2 // जाईपहं अणुपरिव. ट्रमाणे, तसथावरेहिं विणिघायमेति ।से जाति जाति बहुकूरकम्मे, जं कुव्वती मिजति तेण बाले // 3 // अस्सिं च लोए अदुवा परत्था, सयग्गसो वा तह अनहा वा / संमारमावन्न परं परं ते, बंधति वेदंति य दुन्नियाणि // 4 // जे मायरं वा पियरं च हिच्चा, समणव्वए अगणिं ममारभिजा। अहाहु से लोए कुसीलधम्मे, भूताई जे हिंमति प्रायसाते // 5 // उजालयो पाण निवातएजा, निब्वावो अगणि निवायवेज्जा / तम्हा उ मेहावि ममिक्ख धम्मं, ण पंडिए अगणि समारभिजा // 6 // पुढवीवि जीवा श्राऊवि जीवा, पाणा य संपाइम संपयंति / संसेयया कट्ठसमस्सिया य, एते दहे अगणि समारभंते // 7 // हरियाणि भूताणि विलंबगाणि. श्राहार देहा य पुढो सियाई / जे छिंदती यायसुहं पडुच, पागन्भि पाणे बहुणं तिवाती // 8 // जातिं च बुद्धिं च विणासयते, बीयाई अस्संजय पायदंडे / अहाहु से लोए अणजधम्मे, बीयाइ जे हिंसति श्रायसाते // 1 //