________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 10 ] [ 173 नन्नत्थ अंतराएणं, परगेहे ण णिसीयए / गामकुमारियं किड्ड, नातिवेलं हसे मुणी // 26 // अणुस्सुयो (अणिस्सियो) उरालेसु, जयमाणो परिव्वए। चरियाए अप्पमत्तो, पुट्ठो तत्थ हियासए // 30 // हम्ममाणो ण कुप्पेज, वुचमाणो न संजले / सुमणे अहियासिज्जा, ण य कोलाहलं करे // 31 // लद्धे कामे ण पत्थेजा, विवेगे एव(म)माहिए। यायरियाई सिवखेजा, बुद्धाण अंतिए सया // 32 // सुस्सूसम.णो उवासेज्जा, सप्पन्नं सुतवस्सियं / वीरा जे अत्तपन्नेसी, धितिमन्ता जिइंदिया // 33 // गिहे दीवमपासंता, पुरिसादाणिया नरा / ते वीरा बंधणु-मुक्का, नावकंखंति जीवियं // 34 // अगिद्धे सहकासेसु, ग्रारंभेसु चणिस्सिए / सव्वं तं समयातीतं, जमे लवियं बहु // 35 // अइमागां च मायं च, तं परिगणााय पंडिए / गारवाणि य सवाणि, गिब्यागां संधए मुणि // 36 // (गाथाग्रं 482) तिबेमि // . // इति नवममध्ययनम् / 9 // // अथ दशमं श्रीसमाध्याख्यमध्ययनम् // याचं मईमं मणुवीय धम्म, अंजू समाहि तमियां सुमेह / अपडिन्न भिक्खू उ समाहिपत्ते, अणियाण भूतेमु परिव्वराजा / / 1 / / उड्डअहे ये तिरियं दिसासु, तमा य जे थावर जे य पाणा / हत्थेहिँ पाएहिँ य संजमित्ता, यदिन्नमन्नेसु य णो गहेजा / / 2 // सुयक्खायधम्मे वितिगिच्छ: तिराणे, लाढे चरे बायतुले पयासु / यायं न कुजा इह जीवियट्ठी, चयं न कुजा सुतबस्ति भिक्खू // 3 // सबिंदियाभिनिव्वुडे पयासु, चरे मुणी सवतो विप्पमुक्के / पासाहि पाणे य पुढोवि सचे, दुक्खेण अटे परितप्पः माणे // 4 // एतेसु बाले य (एवं तु बाले) पकुवमाणे, श्रावट्टती (बाउदृति) कम्मसु पावएसु / अतिवायतो कीरति पावकम्म, निउंजमाणे उ करेइ कम्मं // 5 // यादीणविनीव (यादीणभूईवि) करेति पावं, मंता उ