________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गसूत्रम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 13 ] [ 176 गामी य पुढोसिया जे, पुणो पुणो विपरियासुवेति // 13 // जमाहु श्रोहं सलिलं अपारगं, जाणाहि णं भवगहणं दुमोक्खं / जसी विसन्ना विसयं. गणाहिं, दुहयोऽवि लोयं अणुसंचरंति // 14 // न कम्मुणा कम्म खति बाला, अकम्मुणा कम्म खति धीरा / मेधाविणो लोभमयावतीता, संतोसिणो नो पकरेंति पावं (संतोसिणो लोभमयावतीता) // 15 // ते तीयउप्पन्नमणागयाई, लोगस्स जाणंति तहागयाई / णेतारो अन्नेसि अणनणेया, बुद्धा हु ते अंतकडा भवंति // 16 // ते णेव कुव्वंति ण कारवंति, भूताहिसंकाइ दुगु'छमाणा / सया जता विप्पणमंति धीरा, विराणत्ति(गणाय) धीरा य हवंति (वीरा य भवंति) एगे // 17 // डहरे य पाणे वुड्ढे य पाणे, ते श्रात्तयो पासइ (तुल्लए) सबलोए / उव्वेहती लोगमिणं महतं, बुद्धेऽपमत्तेसु परिवएजा // 18 // जे पाययो परयो वावि णच्चा, अलमप्पणो होति अलं परेसिं / तं जोइभूतं च सयावसेजा, जे पाउकुजा अणुवीति धम्म // 11 // अत्ताण जो जाणति जो य लोगं, गईं च जो जाणइ णागइं च / जो सासयं जाण असासयं च, जाति मरणं च जणोववायं // 20 // अहोऽवि सत्ताण विउट्टणं च, जो पासवं जगणति संवरं च / दुक्खं च जो जाणति निजरं च, सो भासिउमरिहइ किरियवाद // 21 // ससु रूवेसु असन्जमाणो, गंधेसु रसेसु अदुस्समाणे / णो जीवितं णो मरणाहिकंखी, थायाणगुत्ते वलया विमुक्के // 22 // तिबेमि // (गाथा 568) // इति बादशममध्ययनम् // 12 // // अथ त्रयोदशं श्रीयाथातथ्याध्ययनम् // थाहत्तहीयं तु पवेयइस्सं, नाणप्पकारं पुरिसस्स जातं / सयो श्र धम्म असो असीलं, संतिं असंति करिस्सामि पाउं // 1 // अहो य रायो श्र समुट्ठिएहिं, तहागएहिं पडिलब्भ धम्मं / समाहिमाघातमजोसयंता,