________________ 18. ] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सत्थारमेवं फरुसं वयंति // 2 // विसोहियं ते अणुकाहयते, जे यातभावेण वियागरेजा / अट्टाणिए होइ बहुगुणागां (होंति बहुनिवेसो), जे णाणसंकाइ मुसं वदेजा // 3 // जे यावि पुट्ठा पलिउंचयंति, थायाणम, खलु वंचयित्ता (यन्ति) / असाहुणो ते इह साहुमाणी, मायरिण एसंति अणंतघातं // 4 // जे कोहणे होइ जगट्ठभासी, वियोसियं जे उ उदीरएजा। अंधे व से दंडपहं गहाय, अवियोसिए धासति पावकम्मी // 5 // जे विग्गहीए अन्नायभासी, न से समे होइ अझंझपत्ते। यो(उ)वायकारी य हरीमणे य, एगंतदिट्ठी (एगंतसड्डी) य अमाइरूवे // 6 // से पेसले सुहुमे पुरिसजाए, जच्चन्निए चेव सुउज्जुयारे / बहुंपि अणुसासिए जे तहचा, समे हु से होइ अझंझपत्ते ॥७॥जे प्रावि अप्पं वसुमंति मना, संखाय वायं अपरिवख कुजा / तवेण वाऽहं सहिउत्ति मत्ता, अगणं जणं पस्सति विवभूयं // 8 // एगंतकूडेण उ से पलेइ. ण विजती मोगपयंमि गोत्ते / जे माणणठेण विउकसेन्जा, वसुमनतरेण अबुज्झम.गणे // 6 // जे माहणो खत्तियजायए वा, तहुग्गपुते तह लेच्छई वा / जो पब्बईए परदचभाई, गोते ण जे थंभति (थंभभि) माणबद्धे // 10 // न तस्स जाई व कुलं व ताणं, णरणत्य विजाचरणं सुचिरणं / णिवखम्म से मेवइ गारिमग्गं(कम्म), रम से पारए होइ विमोयणाए // 11 // णिकिंचणे भिक्खु सुलूहजीवी, जे गारवं होइ सलो. गगामी / श्राजीवमेयं तु अबुझमाणो, पुणो पुणो विपरियासुर्वेति // 12 // जे भासवं भिवखु सुसाहुवादी, पडिहाणवं होइ विसारए य / श्रागाढपरणे सुविभावियप्पा, अन्नं जणं पन्नया परिहवेजा // 13 // एवं ण से होइ समाहिपत्ते, जे पन्नवं भिक्खु विउकसेजा / अहवाऽवि जे ला(लो)भमयावलित्ते, अन्नं जणं खिसति बालपन्ने // 14 // पन्नामयं चेव तवोमयं च, णिनामए गोयमयं च भिक्खू / याजीवगं चेव चउत्थमाहु, से पंडिए उत्तम पोग्गले से // 15 // एयाई मयाई विगिंच धीरा, गा ताणि सेवांते सुधीरः