________________ 194 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः सिया सरीरे जाए सरीरे संवुड्ढे सरीरे अभिसमगणागए सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मा पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिठ्ठति 2 / से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे संवुड्डा सरीरे अभिसमराणागया सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरि. समेव अभिभूय चिठ्ठति 3 / से जहाणामए वम्मिए सिया पुढविजाए पुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमराणागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठइ / एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिढ़ति 4 / से जहाणामए रुक्खे सिया पुढविजाए पुढविसंवुडढे पुढवियभिसमराणागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिठंति 5 / से जहाणामए पुखरिणी सिया पुढविजाया जाव पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिठति 6 / से जहाणामए उदगपुवखले सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटठंति 7 / से जहाणामए उदगबुब्बुए सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति 8 // जंपिय इमं समणाणं णिग्गंथाणं उद्दिठं पणीयं वियंजियं दुवालसंगं गणिपिडयं, तंजहा-यायारो सूयगडो जाव दिट्ठिवातो, सव्वमेवं मिच्छा, ण एवं तहियं, ण एवं ग्राहातहियं, इमं सच्चं इमं तहियं इमं श्राहातहियं, ते एवं सन्नं कूव्वंति, ते एवं सन्नं संठति, ते एवं सन्नं सोवठ्ठवयंति, तमेवं ते तज्जाइयं दुक्खं णातिउटति सउणी पंजरं जहा 1 // ते णो एवं विडिवेदेति, तंजहा-किरिया इ वा जाव अणिरए इवा, एवामेव ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाई समारंभंति भोयणाए, एवामेव ते प्रणारिया विप्पडिवन्ना एवं सद्दहमाणा जाव इति ते णो हब्बाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसराणेत्ति, तच्चे पुरिसजाए