________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 4 ] [157 दिट्ठिमं परिनिव्वुडे / उवसग्गे नियामित्ता, ग्रामोक्खाए परिव्वएजासि // 22 // त्तियाम / / इति तृतीयाध्ययने चतु द्देशकः / / 3-4 / / इति तृतीयमध्ययनम् // 3 // // अथ चतुर्थे स्त्रीपरिज्ञाध्ययने प्रथमोद्देशकः // __जे मायरं च पियरं च, विप्पजहाय पुव्वसंजोगं / एगे सहिते चरि. स्सामि, भारतमेहुणो विवित्तेसु (विवित्तेसि) // 1 // सुहुमेणं तं परिक्कम्म, छन्नपएण इथियो मंदा / उब्वायंपि ताउ जाणसु (जाणंति), जहा लिस्संति भिक्खुणो एगे // 2 // पासे भिसं णिसीयंति अभिक्खणं पोसवत्थं परिहिंति। कायं अहेवि दंसंति, बाहू उद्भट्टु काखमणुव्वजे // 3) सयणासणेहिं जोगेहि इथियो एगता णिमंतंति / एयाणि चेव से जाणे, पासाणि विरूवरूवाणि // 2 // नो तासु चक्खु संधेजा, नोविय साहसं समभिजाणे / णो सहियंपि विहरेजा, एवमप्पा सुरक्खियो होइ // 5 // ग्रामतिय उस्सविया भिक्खु यायला निमंतति / एताणि चेव से जाणे, सहाणि विस्वरूवाणि // 6 // मणबंधणेहिं णेगेहिं, कलुण विणीयमुवगसित्ताणं / अदु मंजुलाई भासंति, श्राणवयंति भिन्नकहाहिं // 7 // सीहं जहा व कुणिमेणं, निभयमेगचरंति पासेणं / एवित्थियाउ बंधति, संवुडं एगतियमणगारं // 8 // यह तत्थ पुणो णमयंती, रहकारो व णेमि ग्राणुपुबीए / बद्धे मिए व पासेणं, फंदते वि ण मुच्चए ताहे // 6 // ग्रह सेऽणुतप्पई पच्छा, भोच्चा पायसं व विसमिस्सं / एवं विवे(विवा गमादाय, संवासो नवि कप्पए दविए // 10 // तम्हा उ वजए इत्थी, विसलित्तं व कंटगं नच्चा / योए कुलाणि वसवत्ती, याशते ण सेवि णिग्गंथे // 11 // जे एवं उंछ अणुगिद्धा, अन्नयरा हुंति कुसीलाणं / सुतवस्तिएवि से भिक्खू, नो विहरे सह णमित्थीसु // 12 / / अवि धूयराहि सुराहाहिं, धातीहिं अदुव दासीहिं / महतीहिं वा कुमारीहिं, संथवं से न कुजा गुणगारे // 13 // यदु गाइणं च सुहीणं वा, अप्पियं