________________ 154 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः // 15 // हत्थऽस्तरहजाणेहिं, विहारगमणेहि य / भुज भोगे इमे सग्थे, महरिसी ! पूजयामु तं // 16 // वत्थाधमलकारं, इत्थीयो सयणाणि य / भुजाहिमाइं भोगाई, श्राउसो ! पूजयामु तं // 17 // जो तुमे नियमो चिराणो, भिक्खुभावंमि सुव्वया ! / अगारमावसंतस्स, सव्वो संविजर तहा // 18 // चिरं दूइजमाणस्त, दोसो दाणिं कुतो तव ? / इच्चेव णं निमंति, नीवारेण व सूयरं // 16 // चोइया भिक्खचरियाए, अचयंता जवित्तए / तत्थ मंदा विसीयंति, उजाणंसि व दुबला // 20 // अचयंता व लूहेणं, उवहाणेण तजिया / तत्थ मंदा विसीयंति, उजाणंसि जरग्गवा // 21 // एवं निमंतणं लद्भु, मुन्छिया गिद्ध, इत्थीसु / अझोववन्ना कामेहिं चोइज्जता गया गिहं // 22 // // तियेमि / / इति तृतीयाध्ययने द्वितीयोद्देशकः // 3-2 // // अथ तृतीयाध्ययने तृतीयोद्दशकः // जहा संगामकालंमि. पिटतो भीरु वेहइ / वलयं गहगां गूंमं, को जाणइ पराजयं ? // 1 // मुहुनागां मुहुतस्स मुहुत्तो होइ तारिसो / पराजिया वसप्पामो, इति भीरू उवेहई // 2 // एवं तु समणा एगे, अबलं नचाण अप्पगं / अणागयं भयं दिस्स, यदि(अव)कप्पंतिमं सुयं // 3 को जाणइ विऊ(या)वातं, इत्थीयो उदगाउ वा / चोइज्जता परक्खामो, ण णो यत्थि पकप्पियं // 4 // इञ्चेव पडिलेहंति, वल / (बलाइ) पडिलहिणो / वितिगिच्छसमावन्ना, पंथाणं च अकोविया // 5 // जे उ संगामकालंमि, नाया सूरपुरंगमा / णो ते पिट्ठमुवेहिंति, किं परं मरगां सिया ? // 6 // एवं समुट्ठिए भिक्खू, वोसिजागारबंधगां / प्रारंभ तिरिय कटु, अत्तत्ताए परिव्वए // 7 // तमेगे परिभासंति, भिक्खूयं साहुजीविणं / जे एवं परिभासंति, अंतए ते समाहिए // 8 // संबद्धसमकप्पा उ. अन्नमन्नेसु मुन्छिया।