________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 11 ] 1 177 अंत एते समाहिए // 25 // ते य बीयोदगं चेव, तमुहिस्सा य जं कडं / भोचा झाणं झियायंति, अखेयन्ना]समाहिया // 26 // जहा ढंका य कंका य, कुलला मग्गुका सिही / मच्छेसणं मियायंति, भाणं ते कलुसाधर्म // 27 // एवं तु समणा एगे, मिच्छट्ठिी अणारिया। विसएसणं झियायंति, कंका वा कलुसाहमा // 28 // सुद्धं मग्गं विराहित्ता, इहमेगे उ दुम्मती / उम्मग्ग(ग्गेण)गता दुक्खं, घायमेसंति तं तहा // 26 // जहा श्रासाविणिं नावं, जाइबंधो दुरूहिया / इच्छई पारमागंतु, अंतरा य विसीयति // 30 // एवं तु समणा एगे, मिच्छट्ठिी अणारिया। सोयं कसिणमावन्ना, श्रागंतारो महब्भयं // 31 // इमं च धम्ममादाय कासवेण पवेदितं / तरे सोयं महाघोरं, अत्तत्ताए परिव्वए (कुजा भिक्खु गिलाणस्स अगिलाए समाहिए) // 32 // विरए गामधम्मेहिं, जे केई जगई जगा। तेसिं अत्तुवमायाए, थाम कुव्वं परिवए // 33 // श्रइमाणं च, तं परिन्नाय पंडिए / सव्वमेयं णिराकिचा, गिवाणं संधए मुणी // 34 // संधए (सदहे) साहुधम्मं च, पावधम्म णिराकरे / उवहाणवीरिए भिक्खू, कोहं माणं ण पत्थए (च वजए)॥३५॥ जे य बुद्धा अतिक्कता, जे य बुद्धा श्रणागया। संति तेसिं पइट्ठाणं, भूयाणं जगती जहा // 36 // अह णं वयमावन्नं, फासा उच्चावया फुसे। ण तेसु विणिहराणेजा, वारण व महागिरी // 37 // संवुडे से महापन्ने, धीरे बुद्धे दत्तेसणं चरे। निव्वुडे कालमाकंखी, एयं केवलिणो मयं // 38 // तिबेमि / (गाथा 546) // इति एकादशमध्ययनम् // 11 // ...