Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 78
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 211 वा कंटकोंदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ अन्नेणवि झामावइ झामंतंपि अन्न समणुजाणइ इति से महया जाव भवइ 4 // से एगइयो केणइ यायाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा कुंडलं वा मणिं वा मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ अन्नेणवि अवहरावइ अवहरंतंपि अन्न समणुजाणइ इति से महया जाव भवइ 5 // से एगइयो केणइवि श्रादाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं समणाण वा माहणाण वा छत्तगं वा दंडगं वा भंडगं वा मत्तगं वा लट्ठि वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगं वा चम्मयं वा छेयणगं वा चम्मकोसियं वा सयमेव यवहरति जाव समणुजाणइ इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवइ 6 // से एगइयो गो वितिगिलइ तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकारणं श्रोसहीयो झामेइ जाव यन्नपि झामतं समणुजाणइ इति से महया जाव उपक्खाइत्ता भवति // से एगइयो णो वितिगिछइ, तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घरायो कप्पेइ अन्नेणवि कप्पावेति अन्नपि कप्पंतं समणुजाणइ० 8 // से एगइयो णो वितिगिंछइ तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा अट्टसालायो वाजाव गदभसालायो वा कंटकोंदियाहिं पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ जाव समणुजाणइ 1 // से एगइयो णो वितिगिछइ, तं०-गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा जाव मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ जाव समणुजाणइ० 10 // से एगइयो णो वितिगिछइ तं०-समणाण वा माहणाण वा छत्तगं वा दंडगं वा जाव चम्मच्छेदणगं वा सयमेव अवहरइ जाव समगुजाणइ इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवइ 11 // से एगइयो समणं वा माहणं वा दिस्सा णाणाविहेहिं पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ, अदुवा णं अच्छराए ग्राफालित्ता भवइ, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवइ, कालेणवि से

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