Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् : श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 206 तिरिच्छ ते विज्ज सेवेति, ते अणारिया विप्पडिबन्ना कालमासे कालं किच्चा अन्नयराइं यासुरियाई किब्बिसियाई ठाणाई उववत्तारो भवंति, ततोऽवि विप्पमुचमाणा भुजो एलभूयताए तमयंधपाए पचयति ॥सूत्रं 30 // से एगइयो अायहेउं वा णायहेउं वा सयणहेउं वा अगारहेडं वा परिवारहेउँ वा नायगं वा सहवासियं वा णिस्साए अदुवा अणुगामिए 1 यदुवा उवचरए 2 अदुवा पडिपहिए 3 अदुवा संधिच्छेदए 4 अदुवा गंठिच्छेदए 5 यदुता उरम्भिए 6 अदुवा मोवरिए 7 यदुवा वागुरिए 8 अदुवा साउणिए 1 अदुवा मच्छिए 10 अदुवा गोघायए 11 अदुवा गोवालए 12 अदुवा सोवणिए (सेयणए) 13 अदुवा सोवणियंतिए 14-1 // से एगइयो ग्राणुगामियभावं पडिसंधाय तमेव अणुगामियाणुगामियं हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता याहारं याहारेति, इति से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उववखाइत्ता भवइ 2 // से एगइयो उवचरयभावं पडिसंधाय तमेव उवचरियं हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता याहारं थाहारेति, इति से महया पावहिं कम्मेहिं श्रत्ताणं उदवखाइत्ता भवइ 3 // से एगइयो पाडिपहियभावं पडिसंधाय तमेव पाडिपहे ठिचा हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता अाहारं श्राहारेति, इति से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ 4 // से एगइयो सधिहंदगभावं पडिसं. धाय तमेव संधि छेत्ता भत्ता जाव इति से महया पावहिं कम्महिं अत्ताणं उववखाइत्ता भवइ 5 // से एगइयो गंठिछेदगभावं पडिसंधाय तमेव गंठिं छेत्ता भेत्ता जाव इति से महया पावहिं कम्मेहिं अत्ताणं उववखाइत्ता भवइ 6 // से एगइयो उरब्भियभावं पडिसंधाय उरभं वा अराणतरं वा तसं पाणं हंता जाव उववखाइत्ता भवइ / एसो अभिलावो सव्वस्थ 7 // से एगइयो सोयरि. यभावं पडिसंधाय महिसं वा अरणतरं वा तसं पाणं जाव उवक्खाइत्ता भवइ 8 // से एगइयो वागुरियभावं पडिसंधाय मियं वा अरणतरं वा तसं पाणं
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