Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 238 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विमागः सिद्धी प्रसिद्धी वा, एवं सन्नं निवेसए // 25 // गस्थि सिद्धी नियं ठाणं, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि सिद्धी नियं ठाणं, एवं सन्नं निवेसए // 26 // णत्थि साहू साहू वा, येवं सन्नं निवेसए / यत्थि साहू असाहू वा, एवं सन्नं निवेसए // 27 // णस्थि कल्लाण पावे वा, णेवं सन्नं निवेसए / अस्थि कल्लाण पावे वा, एवं सन्नं निवेसए // 28 // कल्लाणे पावए वावि, ववहारो ण विज्जइ / जं वेरं तं न जाणंति, समणा बाल पंडिया // 26 // असेसं अक्खयं वावि, सव्वदुक्खेति वा पुणो / वज्मा पाणा न वज्झत्ति, इति वायं न नीसरे // 30 // दीसंति निभियप्पाणो (समियायारा), भिवखुणो साहुजीविणो / एए (तेवि) मिच्छोवजीवंति, इति दिठिं न धारए // 31 // दक्खिणाए पडिलंभो, अत्थि वा णत्थि (अत्थि णत्थि त्ति) वा पुणो / ण वियागरेज मेहावी, संतिमग्गं च वूहए // 32 // इच्चेएहिं ठाणेहिं, जिणदि ठेहिं संजए / धारयते उ अप्पाणं, ग्रामोपखाए परिवएजासि // 33 // त्तिबेमि // .. // इति पञ्चममध्ययनम् // 2-5 // // अथ षष्ठमादकीयाध्ययनम् // पुराकडं ग्रह ! इमं सुणेह, एगंतयारी समणे पुरासी / से भिक्खुणो उवणोत्ता अणेगे, थाइखतिरिह पुढो विथरेणं // 1 // साऽऽजीविया पट्टविताऽथिरेणं, सभागयो गणयो भिवखुमज्झे / श्राइ. क्खमाणो बहुजन्नमत्थं, न संधयाती श्रवरेण पुव्वं // 2 // एगंतमेवं अदुवा वि इसिंह, दोऽवराणमन्नं न समेति जम्हा / पुदि च इसिंह च श्रणागतं वा, एगंतमेवं पडिसंधयाति // 3 // समिञ्च लोगं तसथावराणं, खेमंकरे समणे माहणे वा / बाइक्खमाणोवि सहस्स मज्झे, एगंतयं सारयती तहऽच्चे // 4 // धम्मं कहतस्स उ णस्थि दोसो, खंतस्स दंतस्स जितिदियरस /
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