Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् // श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 6 ] [ 241 एव तुब्भे, जीवाणु भागे सुविचिंतिए व / पुव्वं समुद्द अवरं च पुढे, उलोइए पाणितले ठिए वा // 34 // जीवाणुभागं सुविचिंतयंता, श्राहारिया अन्नविहीय सोहिं / न वियागरे छन्नपयोपजीवि, एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं // 34 // सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए नियए भिक्खुयाणं / असं. जए लोहियपाणि से ऊ, णियच्छति गरिहमिहेव लोए // 36 // थूलं उरभं इह मारियाणं, उद्दिट्ठभत्तं च पगप्पएत्ता / तं लोणतेल्लेण उवक्खडेत्ता, सपिप्पलीयं पगरंति मंसं // 37 // तं भुजमारणा पिसितं पभूतं, णो उवलिप्पामो वयं रएणं / इच्चेवमाहंसु अणजधम्मा, अणारिया बाल रसेसु गिद्धा // 38 // जे यावि भुजंति तहप्पगारं, सेवंति ते पावमजाणमाणा / मणं न एयं कुसला करेंती, वायावि एसा बुझ्या उ मिच्छा // 36 // सव्वेसि जीवाण दयट्ठयाए, सावजदोसं परिवजयंता / नस्संकिणो इसिणो नायपुत्ता, उद्दिट्ठभत्तं परिवजयंति // 40 // भूयाभिसंकाएँ दुगुंछमाणा, सव्वेसिं पाणाण निहाय दंडं / तम्हा ण भुजंति तहप्पगारं, एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं // 41 // निग्गंथधम्ममि इमं समाहिं, अस्ति सुठिचा अणिहे चरेजा / बुद्धे मुणी सीलगुणो. ववेए, अच्चत्यतं (यो) पाउणती सिलोगं // 42 // सिमायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णियए माहणाणं / ते पुन्नखंधे सुमहऽजणित्ता, भवंति देवा इति वेयवायो // 43 // सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णियए कुलालयाणं / से गछति लोलुवसंपगाढे, विवाभितावी णरगाभिसेवी // 4 // दयावरं धम्म दुगुंछमाणा, वहावहं धम्म पसंसमाणा / एगपि जे भोययती असीलं, णियो णिसं जाति कुयो सुरेहिं ? // 45 // दुहश्रोवि धम्ममि समुट्ठियामो, अस्सि सुट्ठिचा तह एसकालं / श्रायारसीले बुइएह नाणी, ण संपंरायमि विसेसमत्थि // 46 // अव्वत्तरूवं पुरिसं महंत, सणातणं अक्खय. मव्वयं च / सव्वेसु भूतेसुवि सव्वतो से, चंदो व ताराहिं समत्तरूवे // 47 // एवं ण मिज्जंति ण संसरंती, ण माहणा खत्तिय वेस पेसा /
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