Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / / श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 2 ] [ 207 परंसि लोए पुणो पुणो पचायाइ निंदइ गरहइ पसंसइ णिचाइ नियट्टइ णिमिरियं दंडं छाएति, माई असमाहडसुहलेस्से यावि भवइ, एवं खलु तस्स तपत्तियं सावज्जति पाहिजइ, एकारसमे किरियट्ठाणे मायावत्तिएत्ति श्राहिए 3 // सूत्रं 27 // ग्रहावरे बारसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिएत्ति पाहिजइ, जे इमे भवंति, तंजहा-यारनिया श्रावसहिया गामंतिया कराहुईरहस्सिया णो बहुसंजया णो बहुपडिविरया सव्वपाणभूतजीवसत्तेहिं ते अप्पणो सच्चामोसाई एवं विउंति, अहं ण हतब्बो अन्ने हंतव्या अहं ण अजावेयव्वो अन्ने ग्रजावेयव्वा ग्रहं ण परिघेतब्बो अन्ने परिघेतव्वा ग्रहं ण परितावेयब्वो अन्ने परितावेयब्वा यहं ण उद्दवेयव्यो अन्ने उद्दवेयवा 1 / एवमेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया गरहिया अज्मोववन्ना जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाई अप्पयरो वा भुजयरो वा भुजित्तु भोगभोगाइं कालमासे कालं किचा अन्नयरेसु बासुरिएसु किबिसिएसु ठाणेसु उववत्तारो भवंति 2 / ततो विप्पमुचमाणे भुजो भुजो एलमूयत्ताए तमूयत्ताण्जाइमूयत्ताए पञ्चायंति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जंति पाहिजइ, दुवालसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिएत्ति पाहिए 3 // इच्चेयाई दुवालस किरियट्ठाणाई दविएणं समणेण वा माहणे,ण वा सम्मं सुपरिजाणिग्रवाई भवंति 4 ॥सूत्रं 28|| ग्रहावरे तेरसमे किरियट्ठाणे इरियावहिएत्ति पाहिजइ, इह खलु अत्तत्ताए संवुडस्स यणगारस्स ईरियासमियस्स भासासमियस्स एसणासमियस्त अायाणभंडमतणिक्खेवणासमियस्स उच्चारपासमणखेलसिंघाणजल्लपारि. ट्ठावणियासमियस्स मणसमियस्स वयसमियस्म कायसमियस्स मणगुत्तस्स वयगुत्तस्स कायगुत्तस्स गुतस्म गुतिदियस्स गुत्तवंभयारिस्स पाउत्तं गच्छमाणस्स थाउत्तं चिट्ठमाणस्त पाउत्तं णिसीयमाणस्स पाउत्तं तुयट्टमाणस्स पाउत्तं भुजमागास्स अाउत्तं भासमाणस्स पाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुछणं
Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122