Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 206 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। प्रथमो विभागः मणी यावि भवइ, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजंति पाहिजइ, णवमे किरियाठाणे माणवनिएत्ति वाहिए।सूत्रम् 25 // ग्रहावरे दसमे किरियट्ठाणे मितदोसवत्तिएत्ति पाहिज्जइ, से जहाणामए केइ पुरिसे माईहिं वा पितीहिं वा भाईहिं वा भइणीहिं वा भजाहिं वा धूयाहिं वा पुत्तेहिं वा सुराहाहि वा सद्धिं संवसमाणे तेसिं अन्नयरंसि ग्रहालहुगंसि यवराहसि सयमेव गस्यं दंडं निवत्तेति, तंजहा-सीयोदगवियउंसि वा कायं उच्छोलित्ता भवति, उसिणोदगवियडेण वा कायं योसिंचित्ता भवति, अगणिकारणं कायं उबडहित्ता भवति, जोत्तेण वा वेत्तेण वा वा णेत्तेण वा तयाइ वा [कराणेण वा छियाए वा] लयाए वा यन्नयरेण वा दवरएण पासाइं उद्दालित्ता भवति, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा कायं अाउट्टित्ता भवति, तहप्पगारे पुरिसजाए संवसमाणे दुम्मणा भवति, पवसमाणे सुमणा भवति, तहप्पगारे पुरिसजाए दंडपासी दंडगुरुए दंडपुरकडे अहिए इमंसि लोगंसि अहिए परंसि लोगंसि संजलणे कोहगो पिटिमंसि यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जंति पाहिजति, दसमे किरियट्ठाणे मित्तदोसवत्तिएत्ति वाहिए ॥सूत्रम् 26 // ग्रहावरे एक्कारसमे किरियट्ठाणे मायावत्तिएत्ति यांहिजइ, जे इमे भवंति-गूढायारा तमोकसिया उलुगपतलहुया पव्वयगुरुया ते पायरियावि संता अणारियायो भासायोवि पउज्जति, अन्नहामंतं अप्पाणं अन्नहा मन्नंति, अन्नं पुट्ठा अन्नं वागरंति, अन्नं बाइक्खियध्वं अन्नं बाइक्खंति 1 // से जहाणामए केइ पुरिसे अंतोसल्ले तं सल्लं णो सयं णिहरति णो अन्नेण णिहराति णो पडिविद्धंसेइ, एवमेव निराहवेइ, अविउट्टमाणे अंतोअंतो रियइ 2 / एवमेव माई मायं कटु णो बालोएइ णो पडिक्कमेइ णो णिदइ णो गरहइ णो विउट्टइ णो विसोहेइ णो अकरणाए अब्भुठेइ णो अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिबजइ, माई अस्सि लोए पञ्चायोइ माइ
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