Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ 210 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : प्रथमो विभागः हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ // से एगइयो सउणियभावं पडिसंधाय सउणिं वा अगणतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 10 // से एगइयो मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा श्रराणतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 11 // से एगद्दयो गोघायभावं पडिसंधाय तमेव गोणं वा अरणयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 12 // से एगइयो गोवालभावं पडिसंधाय तमेव गोवालं (गोणं) वा परिजविय परिजविय हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 13 // से एगइयो सोवणियभावं पडि. संधाय तमेव सुणगं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 14 // से एगइयो सोवणियंतियभावं पडिसंधाय तमेव मणुस्सं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव श्राहारं याहारेति, इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ 15 // सूत्रं 31 // से एगइयो परिसामन्मायो उद्वित्ता अहमेयं हणामित्ति कटु तित्तिरं वा वट्टगं वा लावगं वा कवोयगं वा कविंजलं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हता जाव उवक्खाइत्ता भवइ 1 // से एगइयो केणइ यायामोणं विरुद्ध समाणे अदुवा रूलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएगां सस्साई भामेइ अन्नेणवि अगणिकाएणं सस्साइं झामावेइ अगणिकाएणं सस्साई झामंतंपि अन्नं समणुजाणइ इति से महया पावकमेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ 2 // से एगइयो केणइ अायाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव धूरायो कप्पेति अन्नेणवि कप्पावेति कप्पंतपि अन्नं समणुजाणइ इति से महया जाव भवइ 3 // से एगइयो केणइ अायाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टसालायो वा गोणसालाथो वा घोडगसालायो वा गद्दभसालायो
Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122