Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 184 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / प्रथमो विभागः परिनाय, अस्सि जीवितभावणा // 4 // भावणाजोगसुद्धप्पा, जले णावा व ग्राहिया / नावा व तीरसंपन्ना, सव्वदुक्खा तिउट्टइ // 5 // तिउट्टई उ मेधावी, जाणं लोगंसि पावगं / तुति पावकम्माणि, नवं कम्ममकुव्वयो // 6 // अकुवयो णवं णत्थि, कम्मं नाम विजाणइ / विनाय से महावीरे, जेण जाई ण मिजई ॥७॥ण मिजई महावीरे, जस्स नत्थि पुरेकडं / वाउव्व जालमञ्चेति, पिया लोगंसि इथियो // 8 // इथियो जे ण सेवंति, थाइमोक्खा हु ते जणा / ते जणा बंधणुम्मुक्का, नावखंति जीवियं // 6 // जीवितं पिट्ठयो किच्चा, अंतं पावंति कम्मुणं / कम्मुणा संमुहीभूता, जे मग्गमणुसासई // 10 // अणुसासणं पुढो पाणी, वसुमं पूयणासु (स) ते / अणासए जते दंते, दढे यारयमेहुणे // 11 // णीवारे व ण लीएजा, छिन्नसोए अणाविले / अणाइले सया दंते, संधि पत्ते अणेलिसं // 12 // अणेलिसस्स खेयन्ने, ण विरुझिज केणइ / मणसा वयसा चेव, कायसा चेव चक्खुमं // 13 // से हु चक्खू मणुस्साणं, जे कंखाए य अंतए / अंतेण खुरो वहती, चक्कं अंतेश लोढ़ती // 14 // अंताणि धीरा सेवंति, तेण अंतकरा इह / इह माणुस्तए ठाणे, धम्ममाराहिउं णा / / 15 / / णिट्ठियट्ठा व देवा वा, उत्तरीए इयं सुयं / सुयं च मेयमेगेसिं अमणुस्सेसु णो तहा // 16 // अंतं करंति दुक्खाणं, इहमेगेसि श्राहियं / बाघायं पुण एगेसिं, दुल्लभेऽयं समुस्सए॥ १७॥इयो विद्धंसमाणस्स, पुणो संबोहि दुल्लभा दुल्लहायो तहच्चायो, जे धम्म8 वियागरे // 18 // जे धम्मं सुद्रमक्खंति, पडिपुन्नमणेलिसं / अणेलिसस्स जंगणं, तस्स जम्मकहा करो ? // 16 // कयो कयाइ मेधावी, उप्पज्जति तहागया। तहागया अप्पडिन्ना, चक्खू लोगस्सणुत्तरा // 20 // अणुत्तरे य ठाणे से, कासवेण पवेदिते / जं किचा णिव्वुडा एगे, निर्ल्ड पावंति पंडिया // 21 // पंडिए वीरियं लद्ध, निग्घायाय पवत्तगं / धुणे पुव्वकडं कम्म, णवं वाऽवि ण कुवती // 22 / /
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