Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 49
________________ 182 ] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः सणे य, परकमे यावि सुसाहुजुत्ते / समितीसु गुत्तीसु य श्रायपन्ने, वियागरिते य पुढो वएजा // 5 // सदाणि सोचा अदु भेरवाणि, श्रणासवे तेसु परिव्वएजा / निद' च भिक्खू न पमाय कुजा, कहंकहं वा वितिगिच्छतिन्ने // 6 // डहरेण वुडेणऽणुसासिए उ, रातिणिएणावि समव्वएणं / सम्मं तयं (समं गतं) थिरतो णाभिगच्छे, णिज्जंतए वावि अपारए से // 7 // विउट्टितेणं समयाणुसिठे, डहरेण वुड्ढेण उ चोइए य / अच्चुट्टियाए घडदासिए वा, अगारिणं वो समयाणुसिठे // // ण तेसु कुझे ण य पव्वहेजा, ण यावि किंची फरसं वदेजा। तहा करिस्संति पडिस्सुगोजा, सेयं खु मेयं ण पमाय कुजा // 6 // वणंसि मूढस्स जहा अमूदा, मग्गाणुसासंति हितं पयाणं / तेगोव (तेणावि) मझ इणमेव सेयं, जं मे बुहा समणुसासयंति // 10 // ग्रहातेण मूढेण अमूढगस्स, कायब पूया सविसेसजुत्ता। एयोवमं तत्थ उदाहु वीरे, अणुगम्म प्रत्थं उवणेति सम्म // 11 // णेता जहा अंधकारंसि रायो, मग्गं ण जाणाति अपस्समाणे / से सूरियस्स अभुग्गमेणं, मग्गं वियाणाइ पगासियंसि // 12 // एवं तु सेहेवि अपुटुधम्मे, धम्मं न जाणाइ अबुज्झमाणे / से कोविए जिणवयणेण पच्छा, सूरोदए पासति चक्खुणेव // 13 // उड्ढे अहेयं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावरा जे य पाणा / सया जए तेसु परिवएज्जा, मणप्पयोसं अविकंपमाणे // 14 // कालेण पुच्छे समियं पयासु, श्राइवखमाणो दवियस्स वित्तं / तं सोयकारी य पुढो पवेसे, संखा इमं केवलियं समाहिं // 15 // अस्सि सुठिचा तिविहेण तायी, एएसु या संति निरोहमाहु। ते एवमवखंति तिलोगदंसी, ण भुजमेयंति पमायसंगं // 16 // निसम्म से भिवखु समीहियठं, पडिभाणवं होइ विसारए य / श्रायाणपट्ठी वोदाणमोणं, उवेच्च सुद्धण उवेति मोक्खं (न उवेइ मारं) // 17 // संखाइ धम्मं च वियागरंति, बुद्धा हु ते अंतकरा भवंति। ते पारगा दोराहवि मोयणाए, संसोधितं पराहमुदाहरंति // 18 // णो छायए

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