Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] [ 167 खलु कामभोगा अन्नो ग्रहमंसि, से किमंग पुण वयं यन्नमन्नेहिं कामभोगेहिं मुच्छामो ?, इति संखाए णं वयं च कामभोगेहिं विप्पजहिस्सामो 5 / से मेहावी जाणेजा बहिरंगमेतं, इणमेव उवणीयतरागं, तंजहा-माया मे पिता मे भाया मे भगिणी मे भजा मे पुत्ता मे धूता मे पेसा मे नत्ता में सुराहा मे सुही मे पिया मे सहा मे सयणसंगंथसंथुया मे, एते खलु मम णाययो अहमवि एतेसिं, एवं से मेहावी पुवामेव अप्पणा एवं समभिजाणेजा 6) इह खलु मम ग्रन्नयरे दुक्खे रोयातके समुप्पज्जेजा अणिठे जाव दुक्खे णो सुहे, से हंता भयंतारो ! णाययो इमं मम अन्नयरं दुक्खं रोयातंक परियाइयह अणिठे जाव णो सुहं 7 ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जाव परि. तप्पामि वा, इमायो मे अन्नयरातो दुक्खायो रोयातंकायो परिमोएह अणिहायो जाव णो सुहायो, एवमेव णो लद्धपुवं भवइ, तेसिं वावि भयंताराणं मम णाययाणं अन्नपरे दुक्खे रोयातके समुपज्जेज्जा अणिठे जाव णो सुहे, से हंता ग्रहमेतेसिं भयंताराणं णाययाणं इमं यन्नयरं दुक्खं रोयातंक परियाझ्यामि अणिद्रं जाव णो सुहं 8 / मा मे दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु वा, इमायो णं अरणयरायो दुक्खातो रोयातंकायो परिमोएमि अणिटायो जाव णो सुहायो, एवमेव गो लद्रपुध्वं भवइ, अन्नस्स दुक्खं अन्नो न परियाझ्यति यन्नेण कडं ग्रन्नो नो पडिसंवेदेति पत्तेयं जायति पत्तेयं मरइ पत्तेयं चयइ पत्तेयं उववजइ पत्तेयं झंझा पत्तेयं सन्ना पत्तेयं मन्ना एवं विन्नू वेदणा 1 / इइ खलु णातिसंजोगा णा ताणाए वा णो सरणाए वा, पुरिसे वा एगता पुब्बिं गातिसंजोए विप्पजहति, णातिसंजोगा वा एगता पुब्बि पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने खलु णातिसंजोगा अन्नो ग्रहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहिं णातिसंजोगेहिं मुच्छामो ?, इति संखाए णं वयं णातिसंजोगं विप्पजहिस्सामो 10 / से मेहावी जाणेजा बहिरंगमेयं, इणमेव उवणीयतरागं, तंजहा-हत्था मे पाया मे वाहा मे ऊरू मे उदरं में
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