Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ 166 श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् :: श्रुतस्कंधः 2 अध्ययनं 1 ] तत्थ खलु भगवता छजीवनिकाय हेऊ पराणत्ता, तंजहा-पुढवीकाए नाव तसकाए, से जहाणामए मम अस्सायं दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा स्त वा ताडिजमाणस वा परियाविजमाणस्स वा किलामिजमाणस्त वा उद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि 1 / इच्चे जाण सव्वे जीवा सब्वे भूता सव्वे पाणा सब्वे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा ग्राउट्टिजमाणा वा हम्ममाणा वा तजिजमाणा वा ताडिजमाणा वा परियाविजमाणा वा किलामिजमाणा वा उद्दविजमाणा वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुवखं भयं पडिसंवदंति, एवं नच्चा सव्वे पाणा जाव सत्ता ण हंतव्वा ण यजावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण परितावेयव्या ण उद्दवेयव्वा 2 // से बेमि जे य अतीता जे य पडुप्पन्ना जे य श्रागमिस्ता अरिहंता भगवंतो सव्वे ते एषमाइक्खंति एवं भासंति एवं पराणवेंति एवं परूवेति-सव्वे पाणा जाव सत्ता ण हंतव्वा ण यजावेयवा ण परिघेतव्या ण परितावेयब्वा ण उद्दवेयवा एस धम्मे धुवे णीतिए सासए समिञ्च लोगं खेयन्नेहिं पवेदिए, एवं से भिक्खू विरते पाणातिवायातो जाव विरते परिग्गहातो णो दंतपवखालणेणं दंते पक्खालेजा णो अंजणं णो वमणं णो धूवणे णो तं परियाविएज्जा 3 // से भिक्खू अकिरिए अलूमए अकोहे प्रमाणे अमाए अलोहे उवसंते परिनिव्वुडे णो श्रासंसं पुरतो करेजा इमेण मे दिठेण वा सुएण वा मएण वा विनाएण वा इमेण वा सुचरियतवनियमबंभचेरवासेण इमेण वा जायामायावत्तिएणं धम्मेणं इयो चुए पेचा देवे सिया कामभोगाण वसवत्ती सिद्धे वा अदुक्खमसुभे एथवि सिया एत्थवि णो सिया 4 // से भिक्खू सद्द हिं अमुच्छिए रूवेहिं अमुच्छिए गंधेहिं अमुच्छिए रसेहिं अमुच्छिए फासेहिं अमुच्छिए विरए कोहायो माणायो मायायो लोभायो पेजायों
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