Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 198] [श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः सीसं मे सीलं मे ग्राऊ मे बलं मे वरणो मे तया मे छाया मे सोयं मे चक्व मे घाणं मे जिब्भा मे फासा मे ममाइजइ, वयाउ पडिजूरइ, तंजहाश्राउयो बलायो वराणायो तयायो छायायो सोयायो जाव फासायो, सुसंधितो संधी विसंधीभवइ, वलियतरंगे गाए भवइ, किराहा केसा पलिया भवंति, तंजहा-जंपि य इमं सरीरगं उरालं श्राहारोवइयं एयपि य अणुपुव्वेणं विप्पजहियव्वं भविस्सति 11 // एवं संखाए से भिक्खू भिक्खायरियाए समुट्ठिए दुहयो लोगं जाणेजा, तंजहा-जीवा चेव अजीवा चेव, तसा चेव थावरा चेव 12 // सूत्रम् 13 // - इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरिग्गहा, जे इमे तसा थावरा पाणा ते सयं समारंभति अन्नेणवि समारंभावेंति अरणंपि समारभंतं समणुजाणंति 1 // इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरिग्गहा, जे इमे कामभोगा माचेता वा अचित्ता वा ते सयं परिगिरहंति अन्नेणवि परिगिराहावेंति अन्नपि परिगिराहतं समणुजाणंति 2 // इह खलु गारस्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरिग्गहा, अहं खलु अणारंभे अपरिग्गहे, जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरिग्गहा, एतेसिं चेव निस्साए बंभचेरवास वसिस्सामो, कस्स णं तं हेउं ?, जहा पुव्वं तहा अवरं जहा अवरं तहा पुव्वं, अंजू एते अणुवरया अणुपट्ठिया पुणरवि तारिसगा चेव ३॥जे खलु गारस्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगतिया समणा माहणावि सारंभा सपरि. ग्गहा, दुहतो पावाई कुव्वंति इति संखाए दोहिवि अंतेहिं अदिस्समाणो इति भिक्खू रीएजा 4 // से बेमि पाईणं वा 6 जाव एवं से परिराणायकम्मे, एवं से ववेयकम्मे, एवं से विद्युतरकारए भवतीति मक्खायं 5 ॥सूत्रं 14 //
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