Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 166 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: प्रथमो विभागः अंतरा कामभोगेसु विसराणा ८॥सूत्रं 12 // से बेमि पाईणं वा (6) संतेगतिया मणुस्सा भवति, तंजहा-पारिया वेगे अणारिया वेगे उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे. कायमंता वेगे, रहस्तमंता वेगे, सुवन्ना वेगे, दुवन्ना वेगे, सुरूवा वेगे। दुरूवा वेगे 1 / तेसिं च णं जणजाणवयाई खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाई भवंति, तं० अप्पयरा वा भुजयरा वा, तहप्पगारेहिं कूलेहिं यागम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिता सतो वावि एगे णाययो य (अणाययो) य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खारियाए समुट्टिता असतो वावि एगे णाययो (अणाययो) य उवगरणं च विष्पनहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता, [जे ते सता वा असतो वा णाययो य यणाययो य उवगरणं च विप्पजहाय भि खायरियाए समुट्ठिता] 2 / पुवमेव तेहिं णायं भवइ, तंजहा-इह खलु पुरिसे अन्नमन ममट्ठाए एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा-खेत्तं मे वत्थू मे हिरराणां मे सुवन्न मे धणं मे धरणं मे कंसं मे दूसं मे विपुलधण-कणगरयण-मणिमोत्तिय-संखसिलप्पवाल-रप्तरयणसंतसारसावतेयं मे सदा मे रूवा मे गंधा मे रसा मे फाप्ता मे, एते खलु मे कामभोगा अहमवि एतेसिं 3 // से मेहावी पुवामेव अपणो एवं समभिजाणेजा, तंजहा-इह खलु मम अन्नयरे दुक्खे रोयातके समुप्पज्जेजा अणिठे अकंते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे दुक्खे णो सुहे से हंता भयंतारो ! कामभोगाइं मम अन्नयरं दुक्खं रोयातंक परियाइयह अणिटु अकंतं अप्पियं असुभं अमणुन अमणामं दुक्खं णो सुह, ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा इमायो मे अण्णयरायो दुवखायो रोगातंकायो पडि. मोयह अणिटायो अकंतायो अप्पियायो असुभायो यमणुनायो अमणामायो दुक्खायो णो सुहायो, एवामेव णो लद्धपुत्वं भवइ 4 / इह खलु कामभोगा णो ताणाए वा णो सरणार वा, पुरिसे वा एगता पुट्विं कामभोगे विप्पजहति, कामभोगा वा एगता पुब्बिं पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने
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