Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्सूत्रकृताङ्गम् / श्रुतस्कंधः 1 अध्ययनं 15 ] [ 183 णोऽविय लूमएजा, माणं ण सेवेज पगासणं च / ण यावि पन्ने परिहास कुजा, ण याऽऽसियावाय वियागरेजा // 16 // भूताभिसंकाइ दुगुंउमाणे, ण णिव्वहे मंतपदेण गोयं / ण किंचि मिच्छे माणुए पयासु, असाहुधम्माणि ण संवएजा // 20 // हासं पि णो संधति पावधम्मे, श्रोए तहीयं फरुसं वियाणे / णो तुच्छए णो य विकंथइजा, अणाइले या अकसाइ भिक्खू // 21 // संकेज याऽसंकितभाव भिक्खू, विभजवायं च वियागरेजा। भासादुयं धम्मसमुट्ठितेहिं, वियागरेजा समया सुपन्ने // 22 // अणुगच्छमाणे वितहं विजांणे, तहा तहा साहु अककसेणं / ण कत्थई भास विहिंसइजा, निरुद्धगं वावि न दीहइजा // 23 // समालवेज्जा पडिपुन्नभासी, निसामिया समियाग्रहदंसी। अाणाइ सुद्धं वयणं भिउंजे, अभिसंधए पावविवेग भिक्खू // 24 // अक्षाबुझ्याई सुसिक्खएजा, जइज्जया णातिवेलं वदेजा / से दिट्ठिमं दिट्ठि ण लूसएजा, से जाणई भासिउं तं समाहिं // 25 // अलूसए णो पच्छन्नभासी, णो सुत्तमत्थं च करेज ताई। सत्थारभत्ती अणुवीइ वायं, सुयं च सम्म पडिवाययेजा(यंति) / / 26 / / से सुद्धसुत्ते उवहाणवं च, धम्मं च जे विंदति तत्थ तत्थ / श्रादेजवक्के कुसले वियत्ते, स अरिहइ भासिउं तं समाहि // 27 // तिबेमि // (गाथागं 518) इति चतुर्दशमध्ययनम् // 14 // // अथ आदानीयनामकं पञ्चदशमध्ययनम् // जमतीतं पडुपन्नं, श्रागमिस्सं च णाययो / सव्वं मन्नति तं ताई, दंसणावरणंतए // 1 // अंतए वितिगिच्छाए, से जाणति अणेलिसं / अणेलिसस्स अक्खाया, ण से होइ तहिं तहिं // 2 // तहिं तहिं सुयक्खायं, से य सच्चे सुश्राहिए / सया सच्चेण संपन्ने, मित्तिं भूएहि कप्पए // 3 // भूएहिं न विरुज्झेजा, एस धम्मे बुसीमयो / बुसिमं जगं
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